नई दिल्ली ।
नरेश अग्रवाल के प्रेसीडेंट-वर्ष में, लायंस इंटरनेशनल के इतिहास में पहली
बार ऐसा हुआ है कि लायंस इंटरनेशनल के पैसों की 'चोरी' करने वाले लोगों की
बजाये - चोरी को रोकने की कोशिश करने वाले लोगों को सजा सुनाई गई है; और
सजा भी ऐसी-वैसी नहीं, बल्कि सजा के नाम पर उन्हें लायनिज्म से ही निकाल
दिया गया है । एलसीआईएफ ग्रांट सीएफपी 15842/MD 321 के तहत करीब एक
करोड़ 31 लाख रुपयों में चोरी रोकने की कोशिश करने के 'जुर्म' में मल्टीपल
काउंसिल चेयरमैन विनय गर्ग तथा ट्रेजरर स्वतंत्र सब्बरवाल को उनके अपने
अपने क्लब से निकालने के आदेश दिए गए हैं । इन दोनों के क्लब के प्रेसीडेंट
को लायंस इंटरनेशनल कार्यालय से जो पत्र मिला है, उसमें यह भी स्पष्ट कर
दिया गया है कि यह किसी और क्लब के सदस्य भी नहीं बन सकते हैं - और इस तरह
लायनिज्म में इनकी मौजूदगी की सभी संभावनाओं को खत्म कर दिया गया है । समझा जाता है कि इस
कार्रवाई के जरिये लायंस इंटरनेशनल में इस समय काबिज भारतीय पदाधिकारियों
ने वास्तव में यह संदेश देने का काम किया है कि भविष्य में कोई भी लायंस
इंटरनेशनल के पैसों की लूट का विरोध करेगा, तो उसके खिलाफ कड़ी कार्रवाई की
जाएगी । उल्लेखनीय है कि दिल्ली में इंटरनेशनल कन्वेंशन होनी है, जिसमें
करोड़ों रुपयों का घालमेल होना है - इस घालमेल में अपना अपना हिस्सा बनाने
के लिए बड़े लायन लीडर्स ने कमर कस ली है, कुछेक लायन लीडर्स ने तो अपने
अपने बेटों को लायनिज्म से जुड़े धंधों में लगा दिया है; स्वाभाविक ही है कि
कुछेक लोग उनकी चोरी-चकारी रोकने की कोशिश करेंगे ही । विनय गर्ग और
स्वतंत्र सब्बरवाल के खिलाफ कार्रवाई करके विरोध करने वाले लोगों को
चेतावनी देने का काम किया गया है । मजे की बात यह है कि लायंस
इंटरनेशनल के पैसों की चोरी रोकने की कोशिश करने वाले मल्टीपल काउंसिल के
पदाधिकारियों के खिलाफ तो कार्रवाई कर दी गई है, लेकिन लायंस इंटरनेशनल के
ड्यूज का पैसा सीधे-सीधे हड़प जाने वाले डिस्ट्रिक्ट 321 सी वन के
निवर्तमान डिस्ट्रिक्ट गवर्नर शिव कुमार चौधरी के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं
हुई है । यानि नरेश अग्रवाल का न्याय-मंत्र है : चौकीदार को सजा और चोर को माफी ।
एलसीआईएफ ग्रांट सीएफपी 15842/MD 321 के तहत मिले करीब एक करोड़ 31 लाख रूपए में हुई बेईमानी को समझने/पहचानने के लिए कोई बहुत दिमाग लगाने की जरूरत नहीं है । मामला बहुत सीधा सा है । जैसा कि उक्त ग्रांट को जो नंबर दिया गया है, उससे ही जाहिर है कि उक्त ग्रांट मल्टीपल डिस्ट्रिक्ट 321 को मिली है । यह ग्रांट डायबिटीज प्रोजेक्ट के लिए मिली थी, जिसे मल्टीपल के विभिन्न डिस्ट्रिक्ट्स में खर्च किया जाना था । इस प्रोजेक्ट के मुखिया पूर्व इंटरनेशनल डायरेक्टर जगदीश गुलाटी थे । लायंस इंटरनेशनल के कायदे-कानून के अनुसार, प्रोजेक्ट के नाम पर आई रकम को मल्टीपल व डिस्ट्रिक्ट्स के पदाधिकारियों की सलाहानुसार खर्च होना था, लेकिन हुआ यह कि उन्हें ही पूरी तरह अँधेरे में रख कर जगदीश गुलाटी ने उक्त रकम को एलसीसीआईए के पदाधिकारियों के साथ मिल कर ठिकाने लगा दिया । उक्त रकम चूँकि मल्टीपल के नाम पर आई थी, इसलिए वह मल्टीपल के अकाउंट में थी । जगदीश गुलाटी ने उक्त रकम की माँग की । मल्टीपल के पदाधिकारियों का कहना रहा कि जगदीश गुलाटी ने मल्टीपल के डिस्ट्रिक्ट्स के साथ जो धोखा किया, और प्रोजेक्ट की रकम को मनमाने तरीके से 'बाहर' के लोगों के साथ मिल कर खर्च कर लिया, उसे तो चलो छोड़ो - लेकिन जो पैसा खर्च किया है, उसका हिसाब तो दो कि कहाँ किस मद में कितना पैसा खर्च हुआ है, ताकि एलसीआईएफ को ग्रांट की रिपोर्ट सौंपी जा सके । जगदीश गुलाटी लेकिन हिसाब देने को तैयार नहीं हुए । आरोप है कि वह इसीलिए तैयार नहीं हुए, क्योंकि एक रुपए की चीज को पाँच-पाँच रुपए में खरीदा बताया/दिखाया गया है । जगदीश गुलाटी और ग्रांट की रकम को मनमाने तरीके से खर्च करने वाले उनके साथियों को विश्वास रहा कि एलसीआईएफ को वह जो और जैसा भी हिसाब भेजेंगे, वह उनके 'सैंया' नरेश अग्रवाल स्वीकार करवा ही देंगे, लेकिन मल्टीपल के पदाधिकारियों को हिसाब भेजा तो उनकी 'चोरी' निश्चित ही पकड़ी जाएगी ।
इसके बाद लेकिन जो हुआ, वह लायंस इंटरनेशनल के इतिहास में पहली बार हुआ और सचमुच कमाल हुआ । नियम-कायदे के अनुसार, एलसीआईएफ किसी प्रोजेक्ट के तहत ग्रांट देती है, तो कुछ समय के पश्चात वह उस ग्रांट का हिसाब-किताब देने को कहती है । कई बार, कई बार क्या अक्सर ही हिसाब-किताब देने वाले लोग लापरवाही करते हैं तो उसके लिए रिमाइंडर आता है । ग्रांट सीएफपी 15842/MD 321 के मामले में एलसीआईएफ ने लेकिन हिसाब-किताब माँगने की बजाये ग्रांट की रकम वापस माँगी । ग्रांट की रकम वापस माँगने का एलसीआईएफ ने कोई कारण भी नहीं बताया । ऐसे में समझा गया और आरोप लगे कि उक्त ग्रांट की रकम को मनमाने तरीके से खर्च कर लेने वाले लोगों ने हिसाब-किताब दिए बिना उक्त रकम को हासिल करने के लिए अपने 'सैंया' नरेश अग्रवाल की मदद ली । पुरानी कहावत है ही कि कोतवाल जब सैंया हो, तो चाहें जो कर लो । समझा जाता है और आरोप है कि प्रेसीडेंट के रूप में नरेश अग्रवाल की सिफारिश पर एलसीआईएफ के पदाधिकारियों ने मल्टीपल डिस्ट्रिक्ट 321 के लिए मंजूर हुई ग्रांट की रकम को मल्टीपल के पदाधिकारियों से वापस लेकर एलसीसीआईए के लोगों को सौंपने के लिए ही अपने ही नियम-कायदे को ताक पर रख दिया है । मल्टीपल काउंसिल 321 के पदाधिकारियों ने एलसीआईएफ के पदाधिकारियों को नियम-कायदों की बात बताने की कोशिश की तो मिलीभगत करके दो पदाधिकारियों - चेयरमैन विनय गर्ग और ट्रेजरर स्वतंत्र सब्बरवाल की प्राथमिक सदस्यता समाप्त करवाने के लिए कार्रवाई कर दी गई । मजे की बात यह है कि ग्रांट के नाम पर जो रकम मल्टीपल 321 में आई, वह वैसी की वैसी ही बैंक अकाउंट में रखी रही; उसमें से इकन्नी भी खर्च नहीं हुई और ब्याज सहित उक्त रकम एलसीआईएफ को वापस भी भेज दी गई - लेकिन फिर भी विनय गर्ग और स्वतंत्र सब्बरवाल के खिलाफ कार्रवाई कर दी गई । समझा जाता है कि इस कार्रवाई के जरिए लोगों को यह संदेश दिया गया है कि जो कोई भी नरेश अग्रवाल और उनके संगी-साथियों द्वारा की जाने वाली लूट-खसोट में रूकावट डालने की कोशिश करेगा, उसे लायनिज्म में नहीं रहने दिया जायेगा ।
मजेदार तथ्य यह भी है कि ग्रांट सीएफपी 15842/MD 321 के तहत मिली रकम 8 नबंवर 2017 को मल्टीपल डिस्ट्रिक्ट के अकाउंट में आई थी, जिसे लेकर चले झमेले में 18 अप्रैल 2018 को विनय गर्ग व स्वतंत्र सब्बरवाल के खिलाफ कार्रवाई भी हो गई । यानि करीब पाँच महीने में एक ऐसे मामले में लायंस इंटरनेशनल ने कार्रवाई कर दी, जिसमें एक नए पैसे की भी गड़बड़ी नहीं हुई है और सारा पैसा ब्याज सहित एलसीआईएफ को वापस मिल गया है । इसके विपरीत, डिस्ट्रिक्ट 321 सी वन का निवर्त्तमान डिस्ट्रिक्ट गवर्नर शिव कुमार चौधरी करीब ग्यारह महीने से इंटरनेशनल ड्यूज के लाखों रुपए हड़पे बैठा है, और लायंस इंटरनेशनल के पदाधिकारी उसके खिलाफ लेकिन कोई कार्रवाई नहीं कर पा रहे हैं । इस तरह नरेश अग्रवाल के प्रेसीडेंट-वर्ष में लायंस इंटरनेशनल में यह अजब-गजब तमाशा देखने को मिल रहा है, जहाँ चोर को माफी तथा चौकीदार को सजा मिल रही है ।
एलसीआईएफ ग्रांट सीएफपी 15842/MD 321 के तहत मिले करीब एक करोड़ 31 लाख रूपए में हुई बेईमानी को समझने/पहचानने के लिए कोई बहुत दिमाग लगाने की जरूरत नहीं है । मामला बहुत सीधा सा है । जैसा कि उक्त ग्रांट को जो नंबर दिया गया है, उससे ही जाहिर है कि उक्त ग्रांट मल्टीपल डिस्ट्रिक्ट 321 को मिली है । यह ग्रांट डायबिटीज प्रोजेक्ट के लिए मिली थी, जिसे मल्टीपल के विभिन्न डिस्ट्रिक्ट्स में खर्च किया जाना था । इस प्रोजेक्ट के मुखिया पूर्व इंटरनेशनल डायरेक्टर जगदीश गुलाटी थे । लायंस इंटरनेशनल के कायदे-कानून के अनुसार, प्रोजेक्ट के नाम पर आई रकम को मल्टीपल व डिस्ट्रिक्ट्स के पदाधिकारियों की सलाहानुसार खर्च होना था, लेकिन हुआ यह कि उन्हें ही पूरी तरह अँधेरे में रख कर जगदीश गुलाटी ने उक्त रकम को एलसीसीआईए के पदाधिकारियों के साथ मिल कर ठिकाने लगा दिया । उक्त रकम चूँकि मल्टीपल के नाम पर आई थी, इसलिए वह मल्टीपल के अकाउंट में थी । जगदीश गुलाटी ने उक्त रकम की माँग की । मल्टीपल के पदाधिकारियों का कहना रहा कि जगदीश गुलाटी ने मल्टीपल के डिस्ट्रिक्ट्स के साथ जो धोखा किया, और प्रोजेक्ट की रकम को मनमाने तरीके से 'बाहर' के लोगों के साथ मिल कर खर्च कर लिया, उसे तो चलो छोड़ो - लेकिन जो पैसा खर्च किया है, उसका हिसाब तो दो कि कहाँ किस मद में कितना पैसा खर्च हुआ है, ताकि एलसीआईएफ को ग्रांट की रिपोर्ट सौंपी जा सके । जगदीश गुलाटी लेकिन हिसाब देने को तैयार नहीं हुए । आरोप है कि वह इसीलिए तैयार नहीं हुए, क्योंकि एक रुपए की चीज को पाँच-पाँच रुपए में खरीदा बताया/दिखाया गया है । जगदीश गुलाटी और ग्रांट की रकम को मनमाने तरीके से खर्च करने वाले उनके साथियों को विश्वास रहा कि एलसीआईएफ को वह जो और जैसा भी हिसाब भेजेंगे, वह उनके 'सैंया' नरेश अग्रवाल स्वीकार करवा ही देंगे, लेकिन मल्टीपल के पदाधिकारियों को हिसाब भेजा तो उनकी 'चोरी' निश्चित ही पकड़ी जाएगी ।
इसके बाद लेकिन जो हुआ, वह लायंस इंटरनेशनल के इतिहास में पहली बार हुआ और सचमुच कमाल हुआ । नियम-कायदे के अनुसार, एलसीआईएफ किसी प्रोजेक्ट के तहत ग्रांट देती है, तो कुछ समय के पश्चात वह उस ग्रांट का हिसाब-किताब देने को कहती है । कई बार, कई बार क्या अक्सर ही हिसाब-किताब देने वाले लोग लापरवाही करते हैं तो उसके लिए रिमाइंडर आता है । ग्रांट सीएफपी 15842/MD 321 के मामले में एलसीआईएफ ने लेकिन हिसाब-किताब माँगने की बजाये ग्रांट की रकम वापस माँगी । ग्रांट की रकम वापस माँगने का एलसीआईएफ ने कोई कारण भी नहीं बताया । ऐसे में समझा गया और आरोप लगे कि उक्त ग्रांट की रकम को मनमाने तरीके से खर्च कर लेने वाले लोगों ने हिसाब-किताब दिए बिना उक्त रकम को हासिल करने के लिए अपने 'सैंया' नरेश अग्रवाल की मदद ली । पुरानी कहावत है ही कि कोतवाल जब सैंया हो, तो चाहें जो कर लो । समझा जाता है और आरोप है कि प्रेसीडेंट के रूप में नरेश अग्रवाल की सिफारिश पर एलसीआईएफ के पदाधिकारियों ने मल्टीपल डिस्ट्रिक्ट 321 के लिए मंजूर हुई ग्रांट की रकम को मल्टीपल के पदाधिकारियों से वापस लेकर एलसीसीआईए के लोगों को सौंपने के लिए ही अपने ही नियम-कायदे को ताक पर रख दिया है । मल्टीपल काउंसिल 321 के पदाधिकारियों ने एलसीआईएफ के पदाधिकारियों को नियम-कायदों की बात बताने की कोशिश की तो मिलीभगत करके दो पदाधिकारियों - चेयरमैन विनय गर्ग और ट्रेजरर स्वतंत्र सब्बरवाल की प्राथमिक सदस्यता समाप्त करवाने के लिए कार्रवाई कर दी गई । मजे की बात यह है कि ग्रांट के नाम पर जो रकम मल्टीपल 321 में आई, वह वैसी की वैसी ही बैंक अकाउंट में रखी रही; उसमें से इकन्नी भी खर्च नहीं हुई और ब्याज सहित उक्त रकम एलसीआईएफ को वापस भी भेज दी गई - लेकिन फिर भी विनय गर्ग और स्वतंत्र सब्बरवाल के खिलाफ कार्रवाई कर दी गई । समझा जाता है कि इस कार्रवाई के जरिए लोगों को यह संदेश दिया गया है कि जो कोई भी नरेश अग्रवाल और उनके संगी-साथियों द्वारा की जाने वाली लूट-खसोट में रूकावट डालने की कोशिश करेगा, उसे लायनिज्म में नहीं रहने दिया जायेगा ।
मजेदार तथ्य यह भी है कि ग्रांट सीएफपी 15842/MD 321 के तहत मिली रकम 8 नबंवर 2017 को मल्टीपल डिस्ट्रिक्ट के अकाउंट में आई थी, जिसे लेकर चले झमेले में 18 अप्रैल 2018 को विनय गर्ग व स्वतंत्र सब्बरवाल के खिलाफ कार्रवाई भी हो गई । यानि करीब पाँच महीने में एक ऐसे मामले में लायंस इंटरनेशनल ने कार्रवाई कर दी, जिसमें एक नए पैसे की भी गड़बड़ी नहीं हुई है और सारा पैसा ब्याज सहित एलसीआईएफ को वापस मिल गया है । इसके विपरीत, डिस्ट्रिक्ट 321 सी वन का निवर्त्तमान डिस्ट्रिक्ट गवर्नर शिव कुमार चौधरी करीब ग्यारह महीने से इंटरनेशनल ड्यूज के लाखों रुपए हड़पे बैठा है, और लायंस इंटरनेशनल के पदाधिकारी उसके खिलाफ लेकिन कोई कार्रवाई नहीं कर पा रहे हैं । इस तरह नरेश अग्रवाल के प्रेसीडेंट-वर्ष में लायंस इंटरनेशनल में यह अजब-गजब तमाशा देखने को मिल रहा है, जहाँ चोर को माफी तथा चौकीदार को सजा मिल रही है ।