अलीगढ़ । पहले बुलंदशहर और फिर फिरोजाबाद में सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के उम्मीदवार
अजय सनाढ्य की उम्मीदवारी के लिए समर्थन जुटाने और 'दिखाने' के उद्देश्य से
आयोजित हुईं मीटिंग्स में लोगों का जैसा जो उत्साहपूर्ण नजारा देखने को
मिला, उसने सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के चुनावी परिदृश्य को खासा उठा-पटक भरा बना दिया है । सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के दूसरे
उम्मीदवार श्याम बिहारी अग्रवाल ने अपने साथ हुई नाइंसाफी और धोखाधड़ी को
लेकर लोगों की सहानुभूति जुटाने की अच्छी कोशिश की थी, लेकिन लगता है कि वह
सहानुभूति को समर्थन में बदलने का मैकेनिज्म नहीं बना सके हैं - जिसका
नतीजा यह देखने को मिल रहा है कि अजय सनाढ्य की उम्मीदवारी को मिल रहे
समर्थन में वृद्धि हुई है । बुलंदशहर में हुई मीटिंग में बुलंदशहर के
पाँचों क्लब्स के पदाधिकारियों के साथ-साथ बुलंदशहर के दोनों पूर्व
गवर्नर्स अशोक गुप्ता व राकेश सिंघल की उपस्थिति रही; तो फिरोजाबाद में
फिरोजाबाद के चारों क्लब्स के पदाधिकारियों के साथ-साथ फिरोजाबाद के वरिष्ठ
पूर्व गवर्नर विश्वदीप सिंह की उपस्थिति उल्लेखनीय रही । यह बात तो
खुद अजय सनाढ्य के समर्थक बड़े नेताओं ने भी स्वीकार की है कि इसका मतलब यह
नहीं है कि बुलंदशहर और फिरोजाबाद के सभी वोट अजय सनाढ्य को ही मिल
जायेंगे; लेकिन दोनों जगहों में हुई मीटिंग्स की कामयाबी इस बात का
संकेत तो देती ही है कि श्याम बिहारी अग्रवाल की सहानुभूति जुटाने की तमाम
कोशिशों के बावजूद सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए लोगों के बीच अजय सनाढ्य की उम्मीदवारी की स्वीकार्यता
ज्यादा है ।
श्याम बिहारी अग्रवाल की उम्मीदवारी के अभियान को दरअसल इस बात से झटका लगा है कि उनके समर्थन में समझे/बताए जा रहे पूर्व गवर्नर्स उनकी उम्मीदवारी के समर्थन में कुछ करते हुए 'दिख' नहीं रहे हैं । राजनीति में - और खासकर चुनावी राजनीति में होना/करना महत्त्वपूर्ण नहीं होता है, बल्कि 'दिखना' महत्त्वपूर्ण होता है । अजय सनाढ्य के समर्थन में जो पूर्व गवर्नर्स हैं, वह खुलकर अजय सनाढ्य के समर्थन में 'दिख' रहे हैं; लेकिन श्याम बिहारी अग्रवाल के समर्थक पूर्व गवर्नर्स अपने आप को पीछे किए हुए हैं - जिससे लोगों के बीच यह संदेश गया है कि उन्होंने श्याम बिहारी अग्रवाल की स्थिति को कमजोर भाँप लिया है और चूँकि कमजोर के साथ कोई नहीं 'दिखना' चाहता है, इसलिए उन्होंने अपने आप को श्याम बिहारी अग्रवाल की उम्मीदवारी के अभियान से खुद को अलग कर लिया है । समर्थक पूर्व गवर्नर्स के बीच मँझधार में छोड़ जाने से डाँवाडोल हुई नाव को सँभालने के लिए श्याम बिहारी अग्रवाल कोशिश तो बहुत कर रहे हैं, लेकिन लगता है कि उनकी कोशिशें काफी नहीं पड़ रही हैं । दरअसल, इस बीच मौके का फायदा उठाते हुए अजय सनाढ्य ने अपनी कमजोरियों को दुरुस्त किया और लोगों के बीच पैठ बनाने की कोशिश की । अजय सनाढ्य पर सबसे गंभीर आरोप यही रहा है कि एक उम्मीदवार के रूप में वह खुद कुछ नहीं कर रहे हैं, और पूरी तरह डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पारस अग्रवाल तथा फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बीके गुप्ता पर निर्भर हैं । इस आरोप के चलते अपनी उम्मीदवारी को नुकसान होता देख अजय सनाढ्य ने लेकिन अपने आप को सक्रिय किया तथा आरोपियों का मुँह बंद किया । उन्हें इसका फायदा मिलता दिख रहा है ।
बुलंदशहर और फिरोजाबाद में हुईं मीटिंग्स की जोरदार सफलता से यह भी नजर आ रहा है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पारस अग्रवाल के कार्य-व्यवहार के प्रति जिन लोगों को नाराजगी रही भी है, श्याम बिहारी अग्रवाल उसका भी फायदा नहीं उठा पा रहे हैं । यूँ भी डिस्ट्रिक्ट गवर्नर से नाराज होने वाले लोग चाहते रहते हैं कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर उन्हें मना ले और उनकी नाराजगी को दूर कर दे, तो वह उसी के साथ जुड़ जाएँ । पारस अग्रवाल ने लोगों के इस इमोशंस को समझा और नाराज होने/रहने वाले लोगों को मना लिया । नाराज लोगों को चूँकि श्याम बिहारी अग्रवाल के समर्थक पूर्व गवर्नर्स से कोई 'सहारा' नहीं मिला, इसलिए लगता है कि उन्होंने भी नाराजगी छोड़ पारस अग्रवाल के साथ जुड़ने में ही अपनी भलाई देखी/पहचानी । क्लब्स के पदाधिकारियों तथा लोगों को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर से अवॉर्ड तथा फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स से पद लेने होते हैं, इसलिए वह इन दोनों की गुड-बुक में रहना चाहते हैं । इस 'स्थिति' का फायदा अजय सनाढ्य को मिलता नजर आ रहा है । श्याम बिहारी अग्रवाल के लिए हालात खासे अनुकूल थे; लेकिन उन्होंने हालात को निरंतर अनुकूल बनाए रखने के लिए कोई प्रयत्न नहीं किए और यह माने/समझे रहे कि हालात अपने आप अनुकूल बने रहेंगे; इसलिए वह समझ ही नहीं पाए कि कब हालात उनके प्रतिकूल होने लगे । जब तक उन्हें इसका भान हुआ, तब तक बहुत देर हो चुकी थी । उनकी बदकिस्मती यह रही कि जो पूर्व गवर्नर्स उनके साथ थे, वह पीछे हटते गए - जिस कारण हालात को अपने अनुकूल बनाए रखना उनके लिए और मुश्किल हो गया । मुश्किल की बात यह हुई है कि हालात के खिलाफ होने का पता अब चला है जब बुलंदशहर और फिरोजाबाद में हुईं मीटिंग्स की सफलता देखी गई, और अब जब चुनाव में ज्यादा समय भी नहीं रह गया है ।
श्याम बिहारी अग्रवाल की उम्मीदवारी के अभियान को दरअसल इस बात से झटका लगा है कि उनके समर्थन में समझे/बताए जा रहे पूर्व गवर्नर्स उनकी उम्मीदवारी के समर्थन में कुछ करते हुए 'दिख' नहीं रहे हैं । राजनीति में - और खासकर चुनावी राजनीति में होना/करना महत्त्वपूर्ण नहीं होता है, बल्कि 'दिखना' महत्त्वपूर्ण होता है । अजय सनाढ्य के समर्थन में जो पूर्व गवर्नर्स हैं, वह खुलकर अजय सनाढ्य के समर्थन में 'दिख' रहे हैं; लेकिन श्याम बिहारी अग्रवाल के समर्थक पूर्व गवर्नर्स अपने आप को पीछे किए हुए हैं - जिससे लोगों के बीच यह संदेश गया है कि उन्होंने श्याम बिहारी अग्रवाल की स्थिति को कमजोर भाँप लिया है और चूँकि कमजोर के साथ कोई नहीं 'दिखना' चाहता है, इसलिए उन्होंने अपने आप को श्याम बिहारी अग्रवाल की उम्मीदवारी के अभियान से खुद को अलग कर लिया है । समर्थक पूर्व गवर्नर्स के बीच मँझधार में छोड़ जाने से डाँवाडोल हुई नाव को सँभालने के लिए श्याम बिहारी अग्रवाल कोशिश तो बहुत कर रहे हैं, लेकिन लगता है कि उनकी कोशिशें काफी नहीं पड़ रही हैं । दरअसल, इस बीच मौके का फायदा उठाते हुए अजय सनाढ्य ने अपनी कमजोरियों को दुरुस्त किया और लोगों के बीच पैठ बनाने की कोशिश की । अजय सनाढ्य पर सबसे गंभीर आरोप यही रहा है कि एक उम्मीदवार के रूप में वह खुद कुछ नहीं कर रहे हैं, और पूरी तरह डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पारस अग्रवाल तथा फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बीके गुप्ता पर निर्भर हैं । इस आरोप के चलते अपनी उम्मीदवारी को नुकसान होता देख अजय सनाढ्य ने लेकिन अपने आप को सक्रिय किया तथा आरोपियों का मुँह बंद किया । उन्हें इसका फायदा मिलता दिख रहा है ।
बुलंदशहर और फिरोजाबाद में हुईं मीटिंग्स की जोरदार सफलता से यह भी नजर आ रहा है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पारस अग्रवाल के कार्य-व्यवहार के प्रति जिन लोगों को नाराजगी रही भी है, श्याम बिहारी अग्रवाल उसका भी फायदा नहीं उठा पा रहे हैं । यूँ भी डिस्ट्रिक्ट गवर्नर से नाराज होने वाले लोग चाहते रहते हैं कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर उन्हें मना ले और उनकी नाराजगी को दूर कर दे, तो वह उसी के साथ जुड़ जाएँ । पारस अग्रवाल ने लोगों के इस इमोशंस को समझा और नाराज होने/रहने वाले लोगों को मना लिया । नाराज लोगों को चूँकि श्याम बिहारी अग्रवाल के समर्थक पूर्व गवर्नर्स से कोई 'सहारा' नहीं मिला, इसलिए लगता है कि उन्होंने भी नाराजगी छोड़ पारस अग्रवाल के साथ जुड़ने में ही अपनी भलाई देखी/पहचानी । क्लब्स के पदाधिकारियों तथा लोगों को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर से अवॉर्ड तथा फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स से पद लेने होते हैं, इसलिए वह इन दोनों की गुड-बुक में रहना चाहते हैं । इस 'स्थिति' का फायदा अजय सनाढ्य को मिलता नजर आ रहा है । श्याम बिहारी अग्रवाल के लिए हालात खासे अनुकूल थे; लेकिन उन्होंने हालात को निरंतर अनुकूल बनाए रखने के लिए कोई प्रयत्न नहीं किए और यह माने/समझे रहे कि हालात अपने आप अनुकूल बने रहेंगे; इसलिए वह समझ ही नहीं पाए कि कब हालात उनके प्रतिकूल होने लगे । जब तक उन्हें इसका भान हुआ, तब तक बहुत देर हो चुकी थी । उनकी बदकिस्मती यह रही कि जो पूर्व गवर्नर्स उनके साथ थे, वह पीछे हटते गए - जिस कारण हालात को अपने अनुकूल बनाए रखना उनके लिए और मुश्किल हो गया । मुश्किल की बात यह हुई है कि हालात के खिलाफ होने का पता अब चला है जब बुलंदशहर और फिरोजाबाद में हुईं मीटिंग्स की सफलता देखी गई, और अब जब चुनाव में ज्यादा समय भी नहीं रह गया है ।