Wednesday, April 11, 2018

इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के प्रेसीडेंट नवीन गुप्ता के खुन्नसी और बदले की भावना वाले व्यवहार के साथ-साथ वेस्टर्न रीजन के लोगों के चिंताजनक व आक्रामक तेवर वाइस प्रेसीडेंट प्रफुल्ल छाजेड़ के लिए मुसीबत बने

मुंबई । वेस्टर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के प्रतिष्ठित कार्यक्रम 'मेंबर्स मीट' से इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के प्रेसीडेंट नवीन गुप्ता की अनुपस्थिति से छिड़ा विवाद इंस्टीट्यूट के वाइस प्रेसीडेंट प्रफुल्ल छाजेड़ का पीछा छोड़ने का नाम ही नहीं ले रहा है । यूँ तो नवीन गुप्ता की अनुपस्थिति ने प्रफुल्ल छाजेड़ को कार्यक्रम में ही मुसीबत में फँसा दिया था; उस मुसीबत को लेकिन प्रफुल्ल छाजेड़ ने ज्यादा गंभीरता से नहीं लिया था । उन्होंने उम्मीद की थी कि यह एक दिन की बात है, और एक ही दिन में खत्म हो जाएगी । लेकिन कार्यक्रम को हुए तीन सप्ताह बीत जाने के बाद भी प्रफुल्ल छाजेड़ की मुश्किलें कम होने का नाम ही नहीं ले रही हैं । दरअसल 'मेंबर्स मीट' जैसे महत्त्वपूर्ण कार्यक्रम में प्रेसीडेंट नवीन गुप्ता की अनुपस्थिति को वेस्टर्न रीजन के लोगों के बीच प्रफुल्ल छाजेड़ की असफलता और कमजोरी के रूप में देखा जा रहा है । प्रफुल्ल छाजेड़ के नजदीकियों ने यह कहते/बताते हुए मामले को और हवा दी हुई है कि नवीन गुप्ता निवर्तमान प्रेसीडेंट नीलेश विकमसे के साथ अपनी खुन्नस प्रफुल्ल छाजेड़ के साथ निकाल रहे हैं, और प्रफुल्ल छाजेड़ मामले को ठीक से हैंडल नहीं कर पा रहे हैं । यह बात लोगों के बीच चर्चा में रही ही है कि नवीन गुप्ता को नीलेश विकमसे के साथ बहुत ही शिकायतें/दिक्कतें थीं । नवीन गुप्ता को सबसे बड़ी समस्या/दिक्कत यही थी कि नीलेश विकमसे ने उन्हें उचित सम्मान और तवज्जो नहीं दी, जो वाइस प्रेसीडेंट के रूप में उन्हें मिलना चाहिए थी । लगता है कि नवीन गुप्ता भी वाइस प्रेसीडेंट के रूप में प्रफुल्ल छाजेड़ के साथ वैसा ही सुलूक कर रहे हैं - और करना चाहते हैं, जैसा कि नीलेश विकमसे ने उनके साथ किया था । समझा जाता है कि 'मेंबर्स मीट' कार्यक्रम में ऐन मौके पर आना स्थगित करके नवीन गुप्ता ने नीलेश विकमसे और प्रफुल्ल छाजेड़ से 'बदला' लेने का काम किया है ।
उल्लेखनीय है कि वेस्टर्न इंडिया रीजनल काउंसिल का 'मेंबर्स मीट' कार्यक्रम एक बहुत ही महत्त्वपूर्ण कार्यक्रम है, जिसमें वेस्टर्न रीजन की ब्रांचेज के पदाधिकारियों के साथ-साथ मुंबई के प्रमुख चार्टर्ड एकाउंटेंट्स शामिल होते हैं । वेस्टर्न रीजन से इंस्टीट्यूट के प्रेसीडेंट रहे कई लोग भी इसमें शामिल होते हैं । इसी कार्यक्रम में इंस्टीट्यूट के प्रेसीडेंट और वाइस प्रेसीडेंट का स्वागत भी होता है । इंस्टीट्यूट का प्रेसीडेंट बहुत ही उत्साह से इस कार्यक्रम में शामिल होता है । लेकिन इस बार पहली बार यह हुआ है कि इंस्टीट्यूट का प्रेसीडेंट इस कार्यक्रम में नहीं पहुँचा । नवीन गुप्ता ने बहुत सफाई से उक्त कार्यक्रम में शामिल होने से अपने आप को बचा लिया । उन्होंने बताया कि जब वह मुंबई के लिए निकल रहे थे, तभी प्रधानमंत्री कार्यालय से उन्हें बुलावा आ गया था और उन्हें मुंबई आना स्थगित करना पड़ा । लोगों को यह उनका बहाना लगता है । लोगों का कहना है कि प्रधानमंत्री ने उन्हें कोई गपशप करने के लिए तो बुलाया नहीं होगा; किसी नीतिगत मुद्दे पर बात करते के लिए ही बुलाया होगा - और प्रधानमंत्री यदि किसी नीतिगत मुद्दे पर बात करना चाहेंगे, तो प्रेसीडेंट और वाइस प्रेसीडेंट दोनों को बुलायेंगे; इसके अलावा, नवीन गुप्ता ने बाद में यह भी नहीं बताया कि प्रधानमंत्री ने किस नीतिगत मुद्दे पर उनसे बात की ? लोगों ने मजाक में याद भी किया कि कहीं न जाने/पहुँचने के लिए बहाना बनांना हो, तो छोटा व्यक्ति दस्त लगने की बात कहता है, और बड़ा आदमी प्रधानमंत्री द्वारा बुला लिए जाने की बात बताता है । इसी तरह के सवालों के चलते माना गया कि नवीन गुप्ता अपने खुन्नसी व्यवहार के चलते जानबूझ कर मेंबर्स मीट में नहीं पहुँचे । नवीन गुप्ता की अनुपस्थिति के चलते प्रफुल्ल छाजेड़ को भारी मुश्किलों का सामना करना पड़ा । असल में हुआ यह कि मेंबर्स मीट में लोगों ने प्रोफेशन से जुड़े मुद्दों पर इंस्टीट्यूट प्रशासन की राय और रवैये को लेकर प्रफुल्ल छाजेड़ से सवाल किए । प्रफुल्ल छाजेड़ ने यह कहते हुए जबाव देने से बचने की कोशिश की कि उन्हें वाइस प्रेसीडेंट बने अभी मुश्किल से एक महीने का समय हुआ है, इसलिए नीतिगत मामलों में उनकी जानकारी आधी-अधूरी ही है । इस पर लोगों ने कहा भी कि वाइस प्रेसीडेंट बने भले ही महीना हुआ हो, लेकिन इंस्टीट्यूट की सेंट्रल काउंसिल में तो कई वर्षों से हो - इसलिए प्रोफेशन से जुड़े मामलों पर अपनी राय तो दो/बताओ । प्रफुल्ल छाजेड़ ने लेकिन चुप रहने में ही अपनी भलाई देखी/समझी, और कार्यक्रम के दौरान पैदा हुई मुश्किलों को सहते हुए समय बिताया ।
प्रफुल्ल छाजेड़ ने समझा कि कार्यक्रम समाप्त होगा तो उन्हें मुश्किलों से छुटकारा स्वतः ही मिल जायेगा । लेकिन मुश्किलें उनका पीछा छोड़ती हुई नहीं दिख रही हैं । दरअसल नवीन गुप्ता के 'तेवर' देखते हुए वेस्टर्न रीजन के लोग दो खेमों में बँट गए नजर आ रहे हैं : एक खेमे में ऐसे लोग हैं जो चाहते हैं कि प्रफुल्ल छाजेड़ को नवीन गुप्ता से अपने संबंध बेहतर करना/बनाना चाहिए, ताकि नवीन गुप्ता के प्रेसीडेंट-वर्ष में वेस्टर्न रीजन के लोगों तथा ब्रांचेज को खुन्नसी फैसलों का शिकार न होना पड़े । दूसरे खेमे के लोग लेकिन यह चाहते हैं कि प्रफुल्ल छाजेड़ को ईंट का जबाव पत्थर से देना चाहिए - और उन्हें नवीन गुप्ता के खुन्नसी व्यवहार का बदला लेने के लिए प्रेसीडेंट के रूप में नवीन गुप्ता द्वारा लिए जाने वाले फैसलों में हस्तक्षेप करना चाहिए । इस दूसरे खेमे में सेंट्रल काउंसिल के जो सदस्य हैं, उनका कहना है कि सेंट्रल काउंसिल की पिछली एक मीटिंग में संजीव चौधरी की कमेटियों के पदाधिकारियों के चयन को लेकर नवीन गुप्ता के साथ जो झड़प हुई थी, उसमें प्रफुल्ल छाजेड़ को संजीव चौधरी का साथ देना चाहिए था - ताकि नवीन गुप्ता पर दबाव बनता और वह प्रफुल्ल छाजेड़ को गंभीरता से लेना शुरू करते । प्रफुल्ल छाजेड़ के लिए समस्या की बात लेकिन यह हो रही है कि वह दोनों 'रास्तों' में से किसी भी रास्ते पर चलने में अपने आप को कंफर्टेबल नहीं पा रहे हैं । इंस्टीट्यूट के प्रेसीडेंट नवीन गुप्ता के साथ-साथ वेस्टर्न रीजन के लोगों को साधे रखना प्रफुल्ल छाजेड़ के लिए खासा चुनौतीपूर्ण और मुसीबतभरा मामला बन रहा है ।