नई दिल्ली । नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल की
कुछेक ब्रांचेज के पदाधिकारियों के संजीव सिंघल पर काम दिलवाने का आश्वासन
देकर सेंट्रल काउंसिल के लिए प्रस्तुत अपनी उम्मीदवारी के लिए समर्थन जुटाने की कोशिश करने के आरोप ने इंस्टीट्यूट के पदाधिकारियों को मुश्किल में डाल दिया है । दरअसल
उनके लिए यह तय कर पाना मुश्किल हो रहा है कि एक संभावित उम्मीदवार के
खिलाफ लगने वाले इस आरोप पर वह क्या और कैसे कार्रवाई करें ? हालाँकि आरोप
की जो प्रकृति है, उसमें कोई नई बात नहीं है । इंस्टीट्यूट के चुनाव में
कुछेक उम्मीदवार अपने लिए समर्थन जुटाने हेतु चार्टर्ड एकाउंटेंट्स को काम
देते/दिलवाते रहे हैं । फिर भी संजीव सिंघल पर लगे इस तरह के आरोप ने
खासी खलबली मचाई हुई है और इंस्टीट्यूट के पदाधिकारियों तक को माथापच्ची
करना पड़ रही है, तो इसका कारण शायद यही है कि संजीव सिंघल ने इस खेल को बड़े
स्तर पर अंजाम देने की कोशिश की है और उनकी इस कोशिश से अन्य कुछेक
उम्मीदवारों को अपने लिए खतरा महसूस होने लगा है । संजीव सिंघल
बहुराष्ट्रीय फर्म ईवाय ग्लोबल की भारतीय सदस्य एसआर बाटलीबोई एंड कंपनी
में पार्टनर हैं, जिस नाते चार्टर्ड एकाउंटेंट्स को काम दिलवाने के मामले
में वह बेहतर स्थिति में हैं । चार्टर्ड एकाउंटेंट्स इंस्टीट्यूट की सेंट्रल काउंसिल के लिए
प्रस्तुत अपनी उम्मीदवारी के लिए संजीव सिंघल ने तैयारी भी बड़े जोरशोर से
शुरू की है, और इसीलिए एक उम्मीदवार के रूप में उनकी चुनावी सक्रियता पर हर किसी की सतर्क नजर है ।
संजीव सिंघल के लिए उम्मीदवार के रूप में समस्या और चुनौती की बात यह है कि बिग फोर के नाम पर संजीव चौधरी पहले से ही सेंट्रल काउंसिल सदस्य के रूप में चुनावी मैदान में हैं । संजीव चौधरी की सीट को अधिकतर लोग सुरक्षित ही मानते/समझते हैं; और साथ ही यह भी मानते/कहते हैं कि बिग फोर से एक ही उम्मीदवार सेंट्रल काउंसिल में आ सकेगा । बिग फोर के उम्मीदवारों के साथ मुसीबत की बात यह होती है कि उन्हें आम चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के वोट नहीं मिल पाते हैं, और उन्हें पूरी तरह फर्म के वोटों पर ही निर्भर होना/रहना पड़ता है । फर्म के वोटों पर संजीव चौधरी की दावेदारी ज्यादा मजबूत देखी जा रही है । यूँ भी नॉर्दर्न रीजन ईवाय के उम्मीदवारों के लिए मुफीद नहीं रहा है । ऐसे में संजीव सिंघल को कई प्रतिकूल अवधारणाओं का भी मुकाबला करना पड़ रहा है । उल्लेखनीय है कि चुनावी राजनीति में हकीकतों/तथ्यों का उतना प्रभाव नहीं पड़ता है, जितना अवधारणा (परसेप्शन) का पड़ता है । बिग फोर के उम्मीदवारों को लेकर लोगों के बीच जो और जैसी भी अवधारणाएँ हैं, वह सब संजीव सिंघल के खिलाफ माहौल बनाती हैं । इसलिए ही सेंट्रल काउंसिल के लिए प्रस्तुत अपनी उम्मीदवारी को लेकर संजीव सिंघल के लिए एक आक्रामक चुनावी रणनीति और 'सीन' बनाने की जरूरत थी भी, और जिसे उन्होंने बनाया भी ।
आक्रामक चुनावी रणनीति के तहत ही संजीव सिंघल ने नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल की ब्रांचेज के पदाधिकारियों पर डोरे डालने शुरू किए, जिसका फायदा उन्हें कुछेक ब्रांचेज में सेमीनार आदि में स्पीकर के निमंत्रण के रूप में मिला भी है । इसे उनकी आम चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के बीच पैठ बनाने की कोशिश के रूप में देखा/पहचाना गया । उनकी इसी कोशिश में यह सुनने को मिला कि उन्होंने ब्रांचेज के पदाधिकारियों को कुछ काम/वाम दिलवाने के ऑफर दिए हैं । इस पर लोगों के कान खड़े हुए तो आरोप सामने आए कि ब्रांचेज के पदाधिकारियों तथा अन्य सदस्यों को काम दिलवाने का लालच देकर संजीव सिंघल उन्हें अपने समर्थक बनाने का प्रयास कर रहे हैं । इंस्टीट्यूट की सेंट्रल काउंसिल के लिए उम्मीदवार बने दूसरे लोगों को अपने समर्थक जब संजीव सिंघल के नजदीक जाते दिखे, तो उनका माथा गर्म हुआ और उन्होंने संजीव सिंघल पर लगने वाले आरोपों को हवा देने का काम शुरू किया और आरोपों को इंस्टीट्यूट के पदाधिकारियों तक पहुँचाया । जैसा कि शुरू में ही कहा गया है कि इंस्टीट्यूट के पदाधिकारियों के लिए समझना मुश्किल हो रहा है कि इन आरोपों पर वह कैसी और क्या कार्रवाई करें ? इंस्टीट्यूट के पदाधिकारियों की यह असमंजसता संजीव सिंघल के लिए राहत की बात तो है, लेकिन उन पर लगे आरोपों के चलते उनकी चुनावी रणनीति की जो पोल खुली है - वह उनकी मुसीबत बढ़ाने वाली भी है ।
संजीव सिंघल के लिए उम्मीदवार के रूप में समस्या और चुनौती की बात यह है कि बिग फोर के नाम पर संजीव चौधरी पहले से ही सेंट्रल काउंसिल सदस्य के रूप में चुनावी मैदान में हैं । संजीव चौधरी की सीट को अधिकतर लोग सुरक्षित ही मानते/समझते हैं; और साथ ही यह भी मानते/कहते हैं कि बिग फोर से एक ही उम्मीदवार सेंट्रल काउंसिल में आ सकेगा । बिग फोर के उम्मीदवारों के साथ मुसीबत की बात यह होती है कि उन्हें आम चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के वोट नहीं मिल पाते हैं, और उन्हें पूरी तरह फर्म के वोटों पर ही निर्भर होना/रहना पड़ता है । फर्म के वोटों पर संजीव चौधरी की दावेदारी ज्यादा मजबूत देखी जा रही है । यूँ भी नॉर्दर्न रीजन ईवाय के उम्मीदवारों के लिए मुफीद नहीं रहा है । ऐसे में संजीव सिंघल को कई प्रतिकूल अवधारणाओं का भी मुकाबला करना पड़ रहा है । उल्लेखनीय है कि चुनावी राजनीति में हकीकतों/तथ्यों का उतना प्रभाव नहीं पड़ता है, जितना अवधारणा (परसेप्शन) का पड़ता है । बिग फोर के उम्मीदवारों को लेकर लोगों के बीच जो और जैसी भी अवधारणाएँ हैं, वह सब संजीव सिंघल के खिलाफ माहौल बनाती हैं । इसलिए ही सेंट्रल काउंसिल के लिए प्रस्तुत अपनी उम्मीदवारी को लेकर संजीव सिंघल के लिए एक आक्रामक चुनावी रणनीति और 'सीन' बनाने की जरूरत थी भी, और जिसे उन्होंने बनाया भी ।
आक्रामक चुनावी रणनीति के तहत ही संजीव सिंघल ने नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल की ब्रांचेज के पदाधिकारियों पर डोरे डालने शुरू किए, जिसका फायदा उन्हें कुछेक ब्रांचेज में सेमीनार आदि में स्पीकर के निमंत्रण के रूप में मिला भी है । इसे उनकी आम चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के बीच पैठ बनाने की कोशिश के रूप में देखा/पहचाना गया । उनकी इसी कोशिश में यह सुनने को मिला कि उन्होंने ब्रांचेज के पदाधिकारियों को कुछ काम/वाम दिलवाने के ऑफर दिए हैं । इस पर लोगों के कान खड़े हुए तो आरोप सामने आए कि ब्रांचेज के पदाधिकारियों तथा अन्य सदस्यों को काम दिलवाने का लालच देकर संजीव सिंघल उन्हें अपने समर्थक बनाने का प्रयास कर रहे हैं । इंस्टीट्यूट की सेंट्रल काउंसिल के लिए उम्मीदवार बने दूसरे लोगों को अपने समर्थक जब संजीव सिंघल के नजदीक जाते दिखे, तो उनका माथा गर्म हुआ और उन्होंने संजीव सिंघल पर लगने वाले आरोपों को हवा देने का काम शुरू किया और आरोपों को इंस्टीट्यूट के पदाधिकारियों तक पहुँचाया । जैसा कि शुरू में ही कहा गया है कि इंस्टीट्यूट के पदाधिकारियों के लिए समझना मुश्किल हो रहा है कि इन आरोपों पर वह कैसी और क्या कार्रवाई करें ? इंस्टीट्यूट के पदाधिकारियों की यह असमंजसता संजीव सिंघल के लिए राहत की बात तो है, लेकिन उन पर लगे आरोपों के चलते उनकी चुनावी रणनीति की जो पोल खुली है - वह उनकी मुसीबत बढ़ाने वाली भी है ।