Saturday, April 7, 2018

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 ए टू में मदन बत्रा की बातों और दावों के लायंस इंटरनेशनल से पुष्टि न हो पाने के कारण संदेहास्पद हो जाने के लिए मदन बत्रा के नजदीकियों ने जेपी सिंह और विनोद खन्ना को जिम्मेदार ठहराया

नई दिल्ली । सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद की उम्मीदवारी को अधिकृत करवाने तथा लोगों के बीच स्वीकार्यता दिलवाने के लिए मदन बत्रा ने अपने बारे में जो जो तथ्य दिए/बताए हैं, उनके संदेहास्पद हो जाने से उनका पूरा वजूद ही सवालों के घेरे में आ गया है । विरोधी तो विरोधी, उनके अपने समर्थकों के बीच भी यह बातें होने लगी हैं कि सवालिया बातों और दावों के जरिये गवर्नरी हासिल करने की मदन बत्रा की कोशिशों से डिस्ट्रिक्ट और लायनिज्म का ही नाम खराब हो रहा है । मदन बत्रा के नजदीकियों ने इस झमेले के लिए जेपी सिंह और विनोद खन्ना को जिम्मेदार ठहरा कर मामले को और गर्म कर दिया है । मदन बत्रा और उनकी उम्मीदवारी के समर्थक नेताओं के लिए मुसीबत की बात यह हुई है कि अब जब चुनाव के दिन नजदीक आ रहे हैं, तब मदन बत्रा से जुड़ी बातों और दावों पर जिस तरह से सवाल उठ रहे हैं, और लोगों के बीच यह भावना घर करती जा रही है कि मदन बत्रा अपनी सक्रियताओं को लेकर जो भी बातें बता रहे हैं और या दावे कर रहे हैं, वह सब झूठे हैं । मदन बत्रा और उनके समर्थक नेताओं के लिए यह समझना भी मुश्किल हो रहा है कि ठीक चुनाव से पहले बने इस माहौल से वह कैसे निपटें ? मजे की - और मदन बत्रा व उनके समर्थक नेताओं के लिए चुनौती की बात यह हुई है कि लायंस इंटरनेशनल कार्यालय तक ने मदन बत्रा के दावों और उनके द्वारा दी गई जानकरियों की पुष्टि करने से इंकार कर दिया है । लायंस इंटरनेशनल कार्यालय द्वारा इंकार कर दिए जाने के बाद तो उनके दावों और उनके द्वारा दी गई जानकारियों के झूठे होने के आरोप और पुख्ता हो गए हैं । बीएसएफ में रह कर चीन के खिलाफ हुए युद्ध में भूमिका निभाने का उनका दावा भी लोगों के बीच संदेह और मजाक का विषय बना हुआ है ।
दरअसल मदन बत्रा को लायनिज्म में हो तो कई वर्ष गए हैं, लेकिन लायनिज्म में उन्होंने ऐसी कोई भूमिका नहीं निभाई है जिससे कि एक लायन सदस्य और पदाधिकारी के रूप में उनकी भूमिका ने लोगों पर कोई छाप छोड़ी हो । वास्तव में इसीलिए लायनिज्म में अपनी सक्रियता तथा विभिन्न पदों पर रहने को लेकर मदन बत्रा ने जो दावे किये हैं, उन पर डिस्ट्रिक्ट के लोगों ने संदेह किए हैं । लोगों के इन संदेहों को बल इस बात से और मिला कि लायंस इंटरनेशनल कार्यालय ने भी मदन बत्रा के दावों की पुष्टि नहीं की । उल्लेखनीय है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर कार्यालय ने सभी चारों उम्मीदवारों - रवि मेहरा, गुरचरण सिंह भोला, मदन बत्रा और रमन गुप्ता के नामांकन पत्रों को लायंस इंटरनेशनल कार्यालय भेज दिया; और उससे नामांकन पत्रों में दी गई जानकारियों की पुष्टि करने का अनुरोध किया । लायंस इंटरनेशनल कार्यालय ने मदन बत्रा के अलावा बाकी तीनों उम्मीदवारों के नामांकन पत्रों में दी गई जानकारियों की तो पुष्टि कर दी, लेकिन मदन बत्रा के नामांकन पत्र में दी गई जानकारी की पुष्टि नहीं की । लायंस इंटरनेशनल कार्यालय की तरफ से यह पुष्टि न हो पाने के चलते मदन बत्रा द्वारा की गई जानकारियाँ संदेह के घेरे में आ गई हैं और कई लोग तो साफ-साफ उन्हें झूठा भी कहने/बताने लगे हैं । मदन बत्रा और उनके समर्थकों ने हालाँकि इसे अपने विरोधियों का दुष्प्रचार कह कर अपना बचाव करने की कोशिश की है, लेकिन उनकी यह कोशिश इसलिए सफल होती हुई नहीं दिख रही है क्योंकि उनके द्वारा दिए गए तथ्यों और दावों की पुष्टि करने से इंकार करने का काम उनके विरोधियों ने नहीं, बल्कि लायंस इंटरनेशनल कार्यालय ने किया है ।
मदन बत्रा के नजदीकियों ने इस स्थिति के बनने के लिए जेपी सिंह और विनोद खन्ना को जिम्मेदार ठहराना शुरू कर दिया है । उनका कहना है कि जेपी सिंह और विनोद खन्ना यदि चाहते तो नरेश अग्रवाल की मदद लेकर मदन बत्रा के द्वारा दिए गए तथ्यों और दावों की लायंस इंटरनेशनल कार्यालय से पुष्टि करवा सकते थे । जेपी सिंह और विनोद खन्ना ने लेकिन उनके मामले में कोई दिलचस्पी ही नहीं ली, और इस तरह मदन बत्रा बेचारे मुसीबत में फँस गए । मदन बत्रा बीएसएफ में नौकरी करने को लेकर भी विवाद में फँसे हैं । लोगों का, खासतौर से उनके क्लब के तथा सोनीपत के ही लोगों का कहना है कि इससे पहले तो कभी सुनने को नहीं मिला था कि मदन बत्रा ने बीएसएफ में नौकरी की थी; अब अचानक से चुनाव के मौके पर इस तरह का शिगूफा छोड़ कर मदन बत्रा लोगों की सहानुभूति जुटाने की कोशिश कर रहे हैं । बीएसएफ में रहते हुए चीन के साथ युद्ध में भूमिका निभाने का उनका दावा इसलिए विवादस्पद हो गया है, क्योंकि बीएसएफ वास्तव में युद्ध में कोई भूमिका निभाता ही नहीं है । बीएसएफ की भूमिका तो शांति के दिनों में सीमा पार के इलाकों में सीमा की सुरक्षा-व्यवस्था देखने तथा सीमा क्षेत्र के अपराधों को रोकने की ही होती है । इससे भी बड़ी बात यह है कि बीएसएफ का गठन ही एक दिसंबर 1965 को हुआ था, जबकि चीन के साथ युद्ध 1962 में हुआ था । 1965 में पाकिस्तान के साथ जो युद्ध हुआ था, वह भी अप्रैल से सितंबर के बीच की अवधि में हुआ था । जाहिर है कि बीएसएफ में रहते हुए युद्ध में भूमिका निभाने का मदन बत्रा का दावा झूठा ही है । चुनाव से ठीक पहले मदन बत्रा की बातों और उनके दावों की पोल खुलने से मदन बत्रा की उम्मीदवारी के लिए मुसीबत और बढ़ गई है ।