लखनऊ । प्रदीप मुखर्जी के नेतृत्व वाली डिस्ट्रिक्ट की सत्ता चौकड़ी
ने इस बार श्रीनाथ खत्री के बजाये प्रमोद कुमार को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर
नॉमिनी चुनवाने के खेल को जिस चतुराई के साथ अंजाम तक पहुँचाया है, उसे
देख/जान कर अगली बार के लिए रंजीत सिंह के 'चुने जाने' को पक्का समझा जा
रहा है । उल्लेखनीय है कि अगले रोटरी वर्ष में रंजीत सिंह को इस चौकड़ी
के उम्मीदवार के रूप में देखा/पहचाना जा रहा है । डिस्ट्रिक्ट के लोगों की
बीच की चर्चाओं को सुने/माने तो रंजीत सिंह और चौकड़ी के नेताओं के बीच
'सौदा' हो चुका है, और चौकड़ी के नेताओं ने रंजीत सिंह को 'चुनवाने' की
'सुपारी' ले ली है । प्रदीप मुख़र्जी के नेतृत्व वाली चौकड़ी ने हालाँकि
पिछली बार भी, वेद प्रकाश को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी चुनवा देने में
सफलता प्राप्त की थी, लेकिन सुबोध अग्रवाल ने उनकी कारस्तानियों का प्रचार
करके वेद प्रकाश की जीत का मजा कुछ किरकिरा कर दिया था । दरअसल उससे पिछली
बार यह चौकड़ी सतपाल गुलाटी के मामले में गच्चा खा गई थी । चौकड़ी की तमाम
कोशिशों के बावजूद सतपाल गुलाटी चुनाव हार गए थे । सतपाल गुलाटी की हार
को जीत में बदलने के लिए इन्हें तत्कालीन इंटरनेशनल डायरेक्टर शेखर मेहता
की शरण में जाना पड़ा था । शेखर मेहता की मदद से इन्होंने चक्कर चलाया और
हारे हुए सतपाल गुलाटी को जितवाया । सतपाल गुलाटी के मामले में धक्का खा
चुकने के बाद चौकड़ी के नेताओं ने वेद प्रकाश के मामले में रिस्क लेना ठीक
नहीं समझा और उन्हें जितवाने के लिए हर तरह का धतकर्म किया । वेद प्रकाश को उन्होंने चुनवा तो लिया, लेकिन सुबोध अग्रवाल ने जिस तरह से उनकी पोल-पट्टी खोली, उससे उनकी बहुत किरकिरी भी हुई ।
प्रदीप
मुखर्जी के नेतृत्व वाली चौकड़ी ने इसीलिए इस बार थोड़ी सावधानी के साथ अपना
खेल जमाया । प्रतिद्धंद्धी लोगों ने समझा कि इस बार यह अपनी हरकतों से बाज
रहेंगे, इसलिए पर्दे के पीछे चलने वाले खेल को उन्होंने जानने/समझने की
कोई कोशिश ही नहीं की । श्रीनाथ खत्री बेचारे भले व्यक्ति हैं, उन्होंने सोचा कि वह
कई वर्षों से रोटरी में सक्रिय हैं; सभी उन्हें और उनकी सक्रियता को
जानते/पहचानते हैं; सभी के साथ उनके अच्छे और व्यावहारिक संबंध रहे हैं;
इसलिए कोई भी उन्हें हराने के लिए षड्यंत्र क्यों करेगा ? श्रीनाथ
खत्री इस बात को समझ ही नहीं पाए कि डिस्ट्रिक्ट पर कब्ज़ा जमाये बैठी चौकड़ी
को उनके जैसे लोग गवर्नर के रूप में नहीं चाहिए और इसके लिए वह किसी भी हद
तक जा सकते हैं । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए चुने गए अधिकृत
उम्मीदवार प्रमोद कुमार की उम्मीदवारी को चेलैंज करने के लिए श्रीनाथ खत्री
ने जब अपनी तैयारी दिखाई तो डिस्ट्रिक्ट की सत्ता चौकड़ी के नेता इतनी बुरी
तरह से बौखला गए कि उन्होंने क्लब्स के पदाधिकारियों पर तरह-तरह से
श्रीनाथ खत्री के पक्ष में कॉन्करेंस न देने के लिए दबाव बनाया । भीषण
दबाव के बावजूद श्रीनाथ खत्री को पर्याप्त संख्या में जब कॉन्करेंस मिल गईं
और उनका चेलैंज मान्य हो गया, तो सत्ता खेमे की चौकड़ी के नेताओं के सचमुच पसीने छूट गए और उन्हें सतपाल गुलाटी की हार वाला सीन दिखने लगा । इसके बाद पहला काम तो यह किया गया कि इलेक्शन कमेटी पर पूरी तरह कब्ज़ा जमाया गया और फिर क्लब्स के पदाधिकारियों और नेताओं पर शिकंजा और कसा गया
तथा ऐसी व्यवस्था की कि क्लब्स के पदाधिकारियों के लिए बच निकलना मुश्किल
हो जाये । श्रीनाथ खत्री और उनके समर्थक समझ तो गए थे कि डिस्ट्रिक्ट की
सत्ता चौकड़ी के नेता अब 'अपनी' पर आ गए हैं, लेकिन उनका मुकाबला कैसे करें
यह वह नहीं समझ पाये और चुनाव हार बैठे ।
डिस्ट्रिक्ट की सत्ता चौकड़ी के नेताओं ने इस बार अपना काम थोड़ा सफाई से किया, इसलिए इस बार उन्हें ज्यादा बदनामी नहीं मिली । दरअसल इसी बात से अगली बार के लिए रंजीत सिंह का मामला बिलकुल फिट समझा जा रहा है । इस बार की
डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस का जिम्मा उन्हें देकर डिस्ट्रिक्ट की सत्ता चौकड़ी
के नेताओं ने डिस्ट्रिक्ट के लोगों को यह संदेश भी दे दिया है कि अगली बार
के लिए उन्होंने किसका ठेका लिया है । रंजीत सिंह का मुकाबला सुमेर
अग्रवाल और रीता मित्तल से होने की संभावना जताई जा रही है । सुमेर अग्रवाल
पहले भी चुनाव लड़ चुके हैं, लेकिन डिस्ट्रिक्ट को अपने कब्जे में रखने
वाले नेताओं की चालों का शिकार हो चुके हैं । रीता मित्तल तो सत्ता खेमे
के नेताओं की ऐसी शिकार हुईं हैं कि ऐसा उदाहरण रोटरी के इतिहास में दूसरा
नहीं मिलेगा । रीता मित्तल तो बाकायदा चुनाव जीती थीं और रोटरी इंटरनेशनल
द्धारा डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी स्वीकार भी हो चुकीं थीं, लेकिन रोटरी
इंटरनेशनल में चली तिकड़म के चलते वह डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नहीं बन सकीं ।
ये दोनों ही डिस्ट्रिक्ट की सत्ता चौकड़ी के नेताओं की कारस्तानियों को
चूँकि अच्छे से जानते/पहचानते हैं इसलिए रंजीत सिंह का इनके साथ होने वाला
चुनाव आसान तो नहीं होगा, लेकिन फिर भी रंजीत सिंह के समर्थकों को विश्वास
है कि डिस्ट्रिक्ट की सत्ता चौकड़ी के नेता रंजीत सिंह की नैय्या को पार लगवा ही देंगे ।
डिस्ट्रिक्ट की सत्ता चौकड़ी के नेताओं ने अगले
रोटरी वर्ष के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर सतपाल गुलाटी को जिस तरह अपने शिकंजे
में फँसा लिया है, उससे भी यही संकेत मिलता है कि रंजीत सिंह को
डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में सतपाल गुलाटी का भी पूरा पूरा सहयोग और
समर्थन रहेगा । डिस्ट्रिक्ट के कुछेक लोगों को हालाँकि लगता है कि
सुमेर अग्रवाल और रीता मित्तल चूँकि डिस्ट्रिक्ट की सत्ता चौकड़ी की
कारस्तानियों को जानते/समझते हैं और अपने अपने तरीके से उनका विरोध करते
रहे हैं इसलिए अबकी बार वह और ज्यादा सतर्क रहेंगे - जिससे कि सत्ता चौकड़ी
के नेताओं को मनमानी करने की पूरी आजादी नहीं मिलेगी और इसके चलते रंजीत
सिंह के लिए मामला उतना आसान नहीं होगा, जितना कि समझा जा रहा है । इन्हीं
लोगों का लेकिन साथ ही यह भी मानना और कहना है कि सत्ता चौकड़ी के नेताओं
पर दबाव बनाने के लिए इन्हें पहले से ही सावधान रहना होगा और उनकी हरकतों पर इन्हें नजर रखनी होगी ।
यह देखना दिलचस्प होगा कि सुमेर अग्रवाल और रीता मित्तल अपने अपने अनुभवों
से सबक लेकर किस तरह अपनी अपनी उम्मीदवारी को आगे बढ़ाते हैं और सचमुच में
रंजीत सिंह के लिए कोई चुनौती पैदा कर पाते हैं या नहीं ।