नई दिल्ली । डॉक्टर सुब्रमणियन की
डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की उम्मीदवारी का झंडा खड़ा करने की कोशिशों
में लगे लोगों के लिए संभावित समर्थकों के बीच डॉक्टर सुब्रमणियन की
उम्मीदवारी पर सहमति बनाना मुश्किल हो रहा है, और इसीलिए डॉक्टर सुब्रमणियन की उम्मीदवारी को लेकर किया जाने वाला ऐलान लगातार टलता जा रहा है ।
इस सब के चलते डॉक्टर सुब्रमणियन की उम्मीदवारी को लेकर संशय लगातार बना
हुआ है । दरअसल जो लोग डॉक्टर सुब्रमणियन की उम्मीदवारी के लिए प्रयत्नशील
हैं, उनकी कोशिश है कि डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति के जो जो खिलाड़ी उनके
साथ हो सकते हैं, पहले उनको विश्वास में ले लें और डॉक्टर सुब्रमणियन की
उम्मीदवारी के प्रति उनके समर्थन की हामी भरवा लें - तब डॉक्टर सुब्रमणियन
की उम्मीदवारी का ऐलान करें । ऐसा करने में समस्या यह हो रही है कि
संभावित समर्थकों को या तो इकठ्ठा नहीं किया जा पा रहा है और या संभावित
समर्थकों में डॉक्टर सुब्रमणियन की उम्मीदवारी को लेकर संदेह बना हुआ है ।
इसी चक्कर में पिछले दिनों जब भी संभावित समर्थकों को लेकर मीटिंग करने की
तैयारी की गई, वह 'इस' या 'उस' कारण से टल गई और डॉक्टर सुब्रमणियन की
उम्मीदवारी पर सहमति बनाने का फैसला आगे के लिए बढ़ गया ।
डॉक्टर सुब्रमणियन की उम्मीदवारी के लिए बने इस प्लान को लेकर कुछेक लोगों के बीच मजाक भी सुनने को मिला है । एक मजेदार मजाक यह सुनने को मिला कि डॉक्टर सुब्रमणियन की उम्मीदवारी को अस्पताल में मरीज के होने वाले ऑपरेशन जैसा मामला समझ लिया गया है । जैसे अस्पताल में मरीज के ऑपरेशन से पहले तैयारी की जाती है - उसका वीपी चेक किया जाता है, उसका शुगर लेबल देखा जाता है, यह पता किया जाता है कि उसे और कोई बीमारी तो नहीं है, उसके रिश्तेदारों की सहमति ली जाती है - और हाँ, उसका पर्स भी चेक किया जाता है, यह जानने के लिए कि वह ऑपरेशन का खर्च उठा पायेगा या नहीं; ठीक उसी तर्ज पर जैसे डॉक्टर सुब्रमणियन की उम्मीदवारी की तैयारी की जा रही है । इस तैयारी में जैसे यह देखने/समझने से इंकार किया जा रहा है कि चुनाव लड़ना बिलकुल एक अलग तरह का मामला है; यह एक ऐसा मामला है जैसे सामने 'आग का दरिया है, और उसमें डूब के पार जाना है ।' डॉक्टर सुब्रमणियन एक बार चुनावी प्रक्रिया का हिस्सा बन चुके हैं - यहाँ जानबूझ कर यह कहने से बचा जा रहा है कि वह एक बार चुनाव लड़ चुके हैं; क्योंकि तब चुनाव उन्होंने लड़ा नहीं था, वह चुनावी प्रक्रिया का हिस्सा भर बने थे - इसलिए उम्मीद की जा रही थी कि उस अनुभव से अवश्य ही उन्होंने कुछ सबक सीखे होंगे । लेकिन लगता यही है कि चुनावी लड़ाई के कोई गुर उन्होंने अपने पिछले अनुभव से नहीं सीखे हैं, और अबकी बार भी वह सिर्फ चुनावी प्रक्रिया का हिस्सा भर होना चाहते हैं, चुनाव लड़ना नहीं चाहते ।
डॉक्टर सुब्रमणियन की उम्मीदवारी के लिए बने इस प्लान को लेकर कुछेक लोगों के बीच मजाक भी सुनने को मिला है । एक मजेदार मजाक यह सुनने को मिला कि डॉक्टर सुब्रमणियन की उम्मीदवारी को अस्पताल में मरीज के होने वाले ऑपरेशन जैसा मामला समझ लिया गया है । जैसे अस्पताल में मरीज के ऑपरेशन से पहले तैयारी की जाती है - उसका वीपी चेक किया जाता है, उसका शुगर लेबल देखा जाता है, यह पता किया जाता है कि उसे और कोई बीमारी तो नहीं है, उसके रिश्तेदारों की सहमति ली जाती है - और हाँ, उसका पर्स भी चेक किया जाता है, यह जानने के लिए कि वह ऑपरेशन का खर्च उठा पायेगा या नहीं; ठीक उसी तर्ज पर जैसे डॉक्टर सुब्रमणियन की उम्मीदवारी की तैयारी की जा रही है । इस तैयारी में जैसे यह देखने/समझने से इंकार किया जा रहा है कि चुनाव लड़ना बिलकुल एक अलग तरह का मामला है; यह एक ऐसा मामला है जैसे सामने 'आग का दरिया है, और उसमें डूब के पार जाना है ।' डॉक्टर सुब्रमणियन एक बार चुनावी प्रक्रिया का हिस्सा बन चुके हैं - यहाँ जानबूझ कर यह कहने से बचा जा रहा है कि वह एक बार चुनाव लड़ चुके हैं; क्योंकि तब चुनाव उन्होंने लड़ा नहीं था, वह चुनावी प्रक्रिया का हिस्सा भर बने थे - इसलिए उम्मीद की जा रही थी कि उस अनुभव से अवश्य ही उन्होंने कुछ सबक सीखे होंगे । लेकिन लगता यही है कि चुनावी लड़ाई के कोई गुर उन्होंने अपने पिछले अनुभव से नहीं सीखे हैं, और अबकी बार भी वह सिर्फ चुनावी प्रक्रिया का हिस्सा भर होना चाहते हैं, चुनाव लड़ना नहीं चाहते ।
दरअसल इसीलिए डॉक्टर सुब्रमणियन की उम्मीदवारी के झंडाबरदार जिन
संभावित समर्थकों को जुटा कर डॉक्टर सुब्रमणियन की उम्मीदवारी का ऐलान
करना चाहते हैं, उनके बीच डॉक्टर सुब्रमणियन की उम्मीदवारी के प्रति समर्थन
का भाव पैदा नहीं हो पा रहा है । उनकी उम्मीदवारी के संदर्भ में जिन
लोगों को संभावित समर्थकों के रूप में देखा/पहचाना जा रहा है उनमें से
कइयों को तो यही शक है कि डॉक्टर सुब्रमणियन सचमुच में एक उम्मीदवार की
जिम्मेदारियों का निर्वाह कर भी सकेंगे ? इसीलिए उनमें से अधिकतर का
कहना है कि डॉक्टर सुब्रमणियन को पहले एक उम्मीदवार के रूप में सक्रिय होना
चाहिए तथा इस बात को प्रखर तरीके से 'दिखाना' चाहिए कि एक उम्मीदवार के
रूप में सक्रिय होने की सामर्थ्य उनमें है । कई लोगों का कहना है कि
डॉक्टर सुब्रमणियन की उम्मीदवारी की औपचारिक घोषणा करने से पहले जिस तरह की
सर्वानुमति बनाने की कोशिश की जा रही है वह एक बेकार की कसरत है, जिसका
किसी भी तरह से कोई फायदा नहीं मिलना है । डॉक्टर सुब्रमणियन और उनकी
उम्मीदवारी के प्रस्तोताओं को एक बात बहुत अच्छी तरह से समझ लेनी चाहिए कि
यह सिर्फ उनकी 'लड़ाई' है, जिसे उन्हें 'खुद' लड़ना है - वह लड़ते हुए 'दिखेंगे' तो सहयोगी और समर्थक खुद-ब-खुद जुड़ते जायेंगे ।
डॉक्टर सुब्रमणियन और उनकी उम्मीदवारी के प्रस्तोता जिन लोगों
को अपने संभावित समर्थकों के रूप में देख रहे हैं, उनमें से अधिकतर दरअसल
दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी के प्रति अपना समर्थन व्यक्त कर चुके हैं ।
शिमला में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट संजय खन्ना के ऐजी व कोर टीम के
ट्रेनिंग सेमीनार में इकठ्ठा हुए लोगों के बीच अगले रोटरी वर्ष के चुनावी
परिदृश्य को लेकर चर्चा हुई थी, जिसमें बताया गया था कि डॉक्टर
सुब्रमणियन ने तो उम्मीदवारी प्रस्तुत करने से साफ इंकार कर दिया है और
वहाँ मौजूद सभी नेताओं ने अगले रोटरी वर्ष की चुनावी परिस्थितियों का आकलन
करते हुए नतीजा निकाला था कि उनके लिए दीपक गुप्ता ही मोस्ट सूटेबल
उम्मीदवार होंगे । इस नतीजे का इसलिए खास महत्व है कि जहाँ यह नतीजा
निकाला गया था, वहाँ अगले रोटरी वर्ष के एक अन्य संभावित उम्मीदवार शरत जैन
भी मौजूद थे । शरत जैन की उम्मीदवारी को ख़ारिज करते हुए जिस तरह से दीपक
गुप्ता की उम्मीदवारी के प्रति समर्थन व्यक्त किया गया, उससे अगले रोटरी
वर्ष की चुनावी राजनीति के संदर्भ में दरअसल एक बात और साफ हुई - कि अगले रोटरी वर्ष में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद का चुनाव उम्मीदवारों के साथ-साथ दो खेमों के बीच भी होगा ।
हाल ही में हुए सीओएल के चुनाव ने डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति को दो
खेमों में बाँट दिया है - एक खेमे के रूप में अरनेजा गिरोह है; और जो लोग
अरनेजा गिरोह के लोगों की टुच्ची और घटिया हरकतों के विरोध में हैं वह
दूसरा खेमा बनाते हैं । अरनेजा गिरोह को सीओएल के चुनाव में तमाम घटिया
तिकड़मों के बावजूद जिस तरह हार का मुँह देखना पड़ा, उसके चलते दूसरे खेमे के
लोग बम-बम हैं ।
दूसरे खेमे के लोग अगले रोटरी वर्ष में भी अपनी एकता को
बनाये रखना और दिखाना चाहते हैं और इसीलिए वह अगले रोटरी वर्ष के
डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव को लेकर गंभीरता दिखा रहे हैं । शरत
जैन को चूँकि अरनेजा गिरोह के उम्मीदवार के रूप में देखा/पहचाना जा रहा
है, इसलिए दूसरे खेमे के लोगों को एक ऐसे उम्मीदवार की तलाश है जो शरत जैन
से मुकाबला कर सके । दूसरे खेमे के कई नेताओं को अपनी यह तलाश दीपक गुप्ता
पर आकर ख़त्म होती हुई दिखती है, और इसीलिए शिमला में ऐजी व कोर टीम के
ट्रेनिंग सेमीनार में जुटे नेताओं ने दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी के प्रति
समर्थन व्यक्त कर दिया । दूसरे खेमे के नेताओं की इस एकता ने अपनी
उम्मीदवारी की प्रस्तुति से साफ साफ इंकार कर चुके डॉक्टर सुब्रमणियन के मन
में लड्डू फोड़ने का काम किया - उन्हें लगा कि जो माहौल है उसमें उनका
काम बन सकता है; सो मौके का फायदा उठाने की गरज से उन्होंने यू-टर्न लिया
और अपनी उम्मीदवारी की बात करने/चलाने लगे । डॉक्टर सुब्रमणियन की
उम्मीदवारी को लेकर लेकिन जो नाटक चल रहा है, उसने उनकी उम्मीदवारी की
बुनियादी कमजोरी को ही जाहिर करने का काम किया है । डॉक्टर सुब्रमणियन की
उम्मीदवारी के प्रति हमदर्दी का भाव रखने वाले लोगों का ही मानना और कहना
है कि डॉक्टर सुब्रमणियन अपनी उम्मीदवारी के प्रति नेताओं के समर्थन को
सुनिश्चित करने का जो उपक्रम कर रहे हैं उससे लोगों के बीच संदेश यही जा
रहा है कि वह अपनी रणनीति और अपनी सक्रियता की बजाए नेताओं के समर्थन पर
ज्यादा भरोसा कर रहे हैं । इससे लोगों के बीच ही नहीं, नेताओं के बीच भी
उनकी उम्मीदवारी का दावा स्वतः कमजोर पड़ रहा है । इसी कारण से दूसरे
खेमे के नेताओं के बीच डॉक्टर सुब्रमणियन की उम्मीदवारी के प्रति समर्थन का
भाव पैदा नहीं हो पा रहा है और डॉक्टर सुब्रमणियन की उम्मीदवारी की
औपचारिक घोषणा का ऐलान लगातार टलता जा रहा है ।