लखनऊ । विशाल सिन्हा ने
डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस में जाने की इच्छा रखने वाले को बता/जता दिया है
कि जो कोई भी डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस में जाना चाहता है उसे अपनी जेब से
ढाई हजार रुपये खर्च करने होंगे । विशाल सिन्हा ने किन्हीं किन्हीं
लोगों से साफ साफ यह कह भी दिया है कि डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस में जिन लोगों
को मुफ्तखोरी की आदत हो गई है उन्हें इस बार डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस में
जाने का विचार त्याग ही देना चाहिए । विशाल सिन्हा के इस रवैये पर लोग भड़के हुए हैं । उनका कहना है कि पिछले तो
विशाल सिन्हा डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस में चलने/पहुँचने के लिए लोगों की
खुशामद कर रहे थे और उसमें जाने वाले लोगों का खर्चा उठा रहे थे - इस बार
फिर उनका रवैया बदला हुआ क्यों है ? विशाल सिन्हा ने पिछले वर्ष तो लोगों
को खुशी खुशी मुफ्तखोरी करवाई थी, तब फिर इस बार वह मुफ्तखोरी की बात करते
हुए लोगों को अपमानित करने का काम क्यों कर रहे हैं । जो भी लोग यह सवाल उठा रहे हैं, वही खुद ही इसका जबाव भी दे रहे हैं : उनका कहना है कि पिछली बार विशाल सिन्हा को चूँकि चुनाव लड़ना था और उसके लिए उन्हें
लोगों के वोट चाहिए थे - इसलिए वह अपने खर्चे पर लोगों को डिस्ट्रिक्ट
कॉन्फ्रेंस में ले गए थे; इस बार लेकिन उन्हें चुनाव तो लड़ना नहीं है, वह
तो डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बन ही गए हैं, लिहाजा उन्हें लोगों को अपमानित करने
का अधिकार मिल गया है ।
विशाल सिन्हा ने दरअसल इसीलिए इस बार शुरू से यह कोशिश की कि इस बार उन्हें चुनाव न लड़ना पड़े ।
एके सिंह की उम्मीदवारी के सामने आने के बाद तो विशाल सिन्हा का सारा जोर
इस बात पर केंद्रित हो गया कि किसी भी तरह से एके सिंह की उम्मीदवारी वापस
हो ताकि वह डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बन सकें । विशाल सिन्हा दरअसल जानते थे
कि यदि चुनाव की नौबत आई तो पहले तो उनके लिए चुनाव लड़ना ही संभव नहीं
होगा; और यदि किसी तरह से उन्होंने चुनाव लड़ भी लिया तो जीतना मुश्किल होगा
। इसीलिए विशाल सिन्हा ने रोना-धोना मचाकर अपने लिए सहानुभूति जुटाई
और एके सिंह की उम्मीदवारी को वापस करवा दिया । उस प्रक्रिया में विशाल
सिन्हा और उनके राजनीतिक गुरु गुरनाम सिंह ने हालाँकि सभी लोगों को यह
आश्वासन दिया था कि चुनाव न होने की स्थिति में भी विशाल सिन्हा एक उम्मीदवार की 'जिम्मेदारियों' का निर्वाह करेंगे । पर
अब जब एक उम्मीदवार के रूप में उनके सामने जिम्मेदारियों का निर्वाह करने का मौका आया है तो विशाल सिन्हा के
तेवर बदल गए हैं और एक उम्मीदवार के रूप में उनसे 'उम्मीद' करने वाले लोगों
को वह मुफ्तखोर का नाम देकर अपमानित करने में जुट गए हैं ।
यूँ
अगर देखें तो विशाल सिन्हा 'जो' कर रहे हैं उसमें गलत कुछ भी नहीं है । एक
उम्मीदवार को किसी के भी डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस में जाने/पहुँचने का खर्च
भला क्यों उठाना चाहिए ? इसलिए विशाल सिन्हा यदि यह कह रहे हैं कि वह
डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस में जाने/पहुँचने वाले लोगों का खर्च नहीं उठायेंगे
और यह खर्च स्वयं जाने/पहुँचने वाले को ही वहन करना होगा - तो इसमें
वास्तव में गलत कुछ भी नहीं है । लेकिन फिर भी लोगों को यदि विशाल
सिन्हा का रवैया पसंद नहीं आ रहा है तो इसका कारण यही है कि विशाल सिन्हा
के रवैये में उन्हें 'नौ सौ चूहे खा चुकी बिल्ली के हज पर जाने' वाला मामला
दिख रहा है । यही विशाल सिन्हा हैं जिन्होंने पिछले वर्ष लोगों की खूब आवभगत की थी और एक उम्मीदवार का 'फर्ज' निभाया था । सिर्फ यही नहीं, उससे पिछले वर्षों में वह उम्मीदवारों से यह 'फर्ज' निभववाते रहे हैं । लोगों
का सवाल यही है कि विशाल सिन्हा के लिए जो बात पिछले कई वर्षों से ठीक और
जरूरी रही है, वह इस बार गलत कैसे हो गई है ? लोगों को इसमें विशाल सिन्हा
का अवसरवादी रवैया ही दिख रहा है । जब तक दूसरे उम्मीदवारों की जेब से
पैसा निकलना था, विशाल सिन्हा तब तक उनसे उम्मीदवारी का 'फर्ज' अदा करवाते
रहे; लेकिन अब जब उनके लिए अपनी जेब से पैसा निकालने का मौका आया तो वह लोगों को मुफ्तखोरी न करने की नसीहत देने लगे हैं ।
विशाल
सिन्हा के इस रवैये ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर अनुपम बंसल और डिस्ट्रिक्ट के
बड़े नेता गुरनाम सिंह के सामने बड़ी समस्या खड़ी कर दी है । अनुपम बंसल की
समस्या यह है कि विशाल सिन्हा के इस रवैये के चलते उनकी डिस्ट्रिक्ट
कॉन्फ्रेंस का कबाड़ा हो गया है; और गुरनाम सिंह की समस्या यह है कि
उन्हें लोगों के इस सवाल का कोई जबाव नहीं सूझ रहा है और उन्हें इस सवाल के
चलते मुँह छिपाना पड़ रहा है कि पिछले तमाम वर्षों से जो 'काम' वह दूसरे उम्मीदवारों से करवाते रहे हैं, वही काम वह अब विशाल सिन्हा से क्यों नहीं करवा रहे हैं ?