गाजियाबाद । डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस के आयोजन की जगह के बदल कर
गाजियाबाद हो जाने को शिव कुमार चौधरी के समर्थक आधी लड़ाई जीत लेने के रूप
में भले ही देख रहे हों, लेकिन चुनावी राजनीति के अनुभवी लोगों का मानना
और कहना है कि गाजियाबाद में कॉन्फ्रेंस होने से शिव कुमार चौधरी को वास्तव
में नुकसान होने का ज्यादा खतरा है । सबसे बड़ा खतरा तो यही है कि
कॉन्फ्रेंस पर कब्जे को लेकर उनके दोनों समर्थक खेमे - मुकेश गोयल खेमा और
कुंजबिहारी अग्रवाल खेमा - आपस में भिड़ेंगे, जिसका खामियाजा शिव कुमार
चौधरी को उठाना पड़ सकता है । मजे की बात यह है कि कॉन्फ्रेंस गाजियाबाद
में करवाने को लेकर मुकेश गोयल भी उत्सुक थे, और कुंजबिहारी अग्रवाल तथा
सुशील अग्रवाल भी यही चाहते थे । मुकेश गोयल इसलिए उत्सुक थे जिससे कि
कॉन्फ्रेंस पर कब्जा करने में उन्हें आसानी होगी और कॉन्फ्रेंस पर
कब्जे के जरिये वह दिखा/जता सकेंगे कि डिस्ट्रिक्ट उनके कहे में है; कुंजबिहारी
अग्रवाल और सुशील अग्रवाल की रणनीति में यह था कि गाजियाबाद में
कॉन्फ्रेंस करवा कर और मुकेश गोयल को किनारे बैठा कर वह मुकेश गोयल के
'राजनीतिक खात्मे' का सार्वजनिक प्रदर्शन कर सकेंगे । उन्हें विश्वास
है कि गाजियाबाद इलाका भले ही मुकेश गोयल का हो, लेकिन इस बार की
डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस पर कब्ज़ा मुकेश गोयल का नहीं बल्कि उनका होगा ।
अपना-अपना लक्ष्य पाने की कोशिश में यह दोनों भिड़ेंगे, जिसके चलते नुकसान
शिव कुमार चौधरी का होगा ।
उल्लेखनीय है कि डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति में मुकेश गोयल को राजनीतिक रूप से निपटाने की कुंजबिहारी अग्रवाल और सुशील अग्रवाल की पुरानी हसरत है, जो इस बार उन्हें पूरी होती हुई दिख रही है । दिलचस्प संयोग यह है कि शिव कुमार चौधरी अभी भले ही मुकेश गोयल की मदद ले रहे हों, लेकिन कुछ समय पहले तक वह यही घोषणा किया करते थे कि वह तो उम्मीदवार इसीलिए बने हैं ताकि मुकेश गोयल की राजनीतिक चौधराहट का खात्मा कर सकें । मुकेश गोयल के लिए चुनौती यह हो गई है कि उन्होंने अपने लोगों को तो अपना दुश्मन बना लिया है, और अब अपने घोषित दुश्मनों के साथ मिल कर उन्हें अपनी राजनीतिक जमीन बचानी है । मुकेश गोयल को 'दुश्मनों' ने बाहर से भी घेर लिया है और भीतर से भी निशाने पर ले लिया है । हालाँकि उनके 'दुश्मनों' का ही यह भी मानना और कहना है कि मुकेश गोयल को निपटाना आसान नहीं है, और वह अपने बच निकलने की राह बना ही लेते हैं । डर लेकिन यही है कि मुकेश गोयल के बच निकलने की राह कहीं शिव कुमार चौधरी के अरमानों पर रोलर चला कर न बने !
उल्लेखनीय है कि डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति में मुकेश गोयल को राजनीतिक रूप से निपटाने की कुंजबिहारी अग्रवाल और सुशील अग्रवाल की पुरानी हसरत है, जो इस बार उन्हें पूरी होती हुई दिख रही है । दिलचस्प संयोग यह है कि शिव कुमार चौधरी अभी भले ही मुकेश गोयल की मदद ले रहे हों, लेकिन कुछ समय पहले तक वह यही घोषणा किया करते थे कि वह तो उम्मीदवार इसीलिए बने हैं ताकि मुकेश गोयल की राजनीतिक चौधराहट का खात्मा कर सकें । मुकेश गोयल के लिए चुनौती यह हो गई है कि उन्होंने अपने लोगों को तो अपना दुश्मन बना लिया है, और अब अपने घोषित दुश्मनों के साथ मिल कर उन्हें अपनी राजनीतिक जमीन बचानी है । मुकेश गोयल को 'दुश्मनों' ने बाहर से भी घेर लिया है और भीतर से भी निशाने पर ले लिया है । हालाँकि उनके 'दुश्मनों' का ही यह भी मानना और कहना है कि मुकेश गोयल को निपटाना आसान नहीं है, और वह अपने बच निकलने की राह बना ही लेते हैं । डर लेकिन यही है कि मुकेश गोयल के बच निकलने की राह कहीं शिव कुमार चौधरी के अरमानों पर रोलर चला कर न बने !
शिव कुमार चौधरी के लिए मुसीबत की बात दरअसल यही है कि उनकी उम्मीदवारी का समर्थन करते
'दिख' रहे नेता उन्हें चुनवाने के लिए नहीं, बल्कि उन्हें चुनवाने की आड़
में अपने अपने राजनीतिक लक्ष्य प्राप्त करने की जुगाड़ में हैं । ऐसे में खतरा यही है कि उनके समर्थन में दिखने वाले जिस भी नेता को अपना लक्ष्य प्राप्त होता नहीं दिखेगा, तो वह कूद कर दूसरी तरफ जाने में देर नहीं लगायेगा ।
इसके लिए नेताओं ने पहले से व्यवस्था भी बना ली है - कुंजबिहारी अग्रवाल
ने शिव कुमार चौधरी से नजदीकी बनाई हुई है तो सुशील अग्रवाल ने सुनील जैन
से तार जोड़े हुए हैं । मुकेश गोयल तो सार्वजानिक रूप से कहते ही हैं -
'जिसमें मेरा फायदा, वही मेरा कायदा ।' मुकेश गोयल के एक अत्यंत नजदीकी का
कहना है कि मुकेश गोयल यदि अभी हाल तक उन्हें खुलेआम गालियाँ देते रहे शिव
कुमार चौधरी के साथ आ सकते हैं, तो स्थितियाँ प्रतिकूल होने पर उन्हें
दूसरी तरफ जाने में देर क्यों लगेगी ? जाहिर है कि अपने समर्थकों को
अपने साथ बनाये रखने की जिम्मेदारी शिव कुमार चौधरी को ही निभानी है । उनके
समर्थक दोनों खेमों के नेताओं में आपसी उठापटक न हो, इसकी चिंता जब अभी
हाल ही में मुजफ्फरनगर की एक मीटिंग में सामने आई तो उस मीटिंग में उपस्थित
नेताओं ने एक स्वर में साफ साफ यह कह कर अपने हाथ झाड़ लिए कि मुकेश गोयल को संभालने की जिम्मेदारी विनीत शर्मा को ही लेनी होगी । विनीत शर्मा के यूँ
तो मुकेश गोयल के साथ बहुत गहरे संबंध हैं और इन्हीं संबंधों की बदौलत
उन्होंने मुकेश गोयल का समर्थन शिव कुमार चौधरी के लिए संभव बनाया है -
लेकिन उक्त गहरे संबंधों के बावजूद पिछले वर्षों में कुछेक बार वह मुकेश
गोयल के खिलाफ भी खड़े दिखे हैं; इसीलिए शिव कुमार चौधरी के साथ मुकेश गोयल
के बने रहने में विनीत शर्मा के गहरे संबंध कोई गारंटी नहीं हैं ।
शिव कुमार चौधरी के सामने
सिर्फ नेताओं को ही साधे रखने की चुनौती नहीं है । कार्यवाहक डिस्ट्रिक्ट
गवर्नर गुरी जनमेजा और उनकी कोर टीम के सदस्यों के साथ निभाना भी उनके लिए
एक बड़ी समस्या होगी । सुधीर जनमेजा के साथ शिव कुमार चौधरी के बिगड़े संबंधों के 'कारणों' के
गवाह चूँकि गुरी जनमेजा और उनकी कोर टीम के सदस्य रहे हैं, इसलिए वह शिव
कुमार चौधरी से उनका बदला भी लेना चाहेंगे और शिव कुमार चौधरी को अपने
कब्जे में भी रखना चाहेंगे । उम्मीदवार के रूप में शिव कुमार चौधरी ने जो एक फार्मूला अपनाया - कि सामने वाले को पहले सब्जबाग दिखाओ और फिर जब सचमुच कुछ करने का मौका आये तो बच निकलो - उसका शिकार उन्होंने सुधीर जनमेजा को भी बनाया । हालाँकि होशियारी सिर्फ शिव कुमार चौधरी ने ही नहीं दिखाई थी, सुधीर जनमेजा ने भी दिखाई थी - लेकिन जो संबंध बनाने की कोशिश शिव कुमार चौधरी ने की थी, उसे निभाने की ज्यादा जिम्मेदारी भी उन्हीं की थी । सुधीर
जनमेजा की 'गलती' यही थी कि शिव कुमार चौधरी जिस तरह उन्हें इस्तेमाल करना
चाहते थे, सुधीर जनमेजा उसकी पूरी कीमत उनसे बसूल करना चाहते थे । शिव
कुमार चौधरी उन्हें इस्तेमाल तो करना चाहते थे, लेकिन उसकी कीमत नहीं देना
चाहते थे - और यहीं बात बिगड़ गई । लगभग वही स्थिति अब है । शिव कुमार
चौधरी गाजियाबाद में कॉन्फ्रेंस होने का फायदा उठाना चाहते हैं और इसकी
कीमत भी देने की बात कर रहे हैं । सुनने में आया है कि उनकी तरफ से गुरी
जनमेजा को बता दिया गया है कि कॉन्फ्रेंस का खर्चा वह कर देंगे । आशंका
यह है कि यह 'खर्चा' वाला मामला बबाल पैदा कर सकता है - क्योंकि अभी यह तय
नहीं हुआ है कि 'खर्चा' कितना होगा; और 'खर्चे' का हिसाब किसका माना जायेगा
। सुधीर जनमेजा 'खर्चे' का जो हिसाब देते/बताते थे, वह कभी किसी की समझ में नहीं आया; गुरी जनमेजा जो 'खर्चा'
बतायेंगी, वह शिव कुमार चौधरी को समझ में आ जायेगा - यह एक बड़ा प्रश्न है ।
और यही प्रश्न शिव कुमार चौधरी की उम्मीदवारी के लिए बड़ी चुनौती है ।
इसीलिए
कई लोगों को लग रहा है कि गाजियाबाद में कॉन्फ्रेंस होने से शिव कुमार
चौधरी को लाभ कम, नुकसान ज्यादा होने का खतरा है । रोचक तथ्य यह है कि इस
खतरे को उन्होंने खुद ही आमंत्रित किया है और शायद अभी वह इस खतरे को
समझ/पहचान भी नहीं पा रहे हैं ।