नई दिल्ली । सुधीर मंगला की
उम्मीदवारी के समर्थकों को सुरेश भसीन की सक्रियता ने बुरी तरह निराश किया
हुआ है और उन्हें लगने लगा है कि सुरेश भसीन की उम्मीदवारी के रहते उनके
लिए डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए रवि भाटिया की उम्मीदवारी से
मुकाबला करना मुश्किल हो रहा है । सक्रियता के लिहाज से सुधीर मंगला
निश्चित रूप से दूसरे उम्मीदवारों से इक्कीस दिख रहे हैं, लेकिन लोग जब इस
बात पर विचार करना शुरू करते हैं कि उनका डिस्ट्रिक्ट गवर्नर कैसा हो, तो
सुधीर मंगला के नंबर कम हो जाते हैं । सुधीर मंगला के व्यवहार और रवैये
के प्रति लोगों को जैसी जो शिकायतें हैं, वह तो हैं हीं - रही सही कसर
सुधीर मंगला की उम्मीदवारी के झंडाबरदार विनय कुमार अग्रवाल ने पूरी कर दी
है । विनय कुमार अग्रवाल की गाली-गलौच पूर्ण बातों के कारण सुधीर मंगला
की उम्मीदवारी के प्रति नकारात्मक भावना ही पैदा हुई है । सुधीर मंगला के
समर्थकों का ही कहना है कि इस कारण से सुधीर मंगला के साथ आ सकने वाले कई
लोगों का झुकाव सुरेश भसीन की तरफ होता जा रहा है । सुरेश भसीन ने अपनी
सक्रियता के बल पर अपनी उम्मीदवारी के लिए समर्थन जुटाने में अच्छी सफलता
प्राप्त की है । अलग-अलग कारणों से जो लोग रवि भाटिया के साथ नहीं जा सकते हैं, और इस कारण जो
सुधीर मंगला के साथ जाते दिख रहे थे - वह सुरेश भसीन के समर्थन में आते दिख
रहे हैं । सुधीर मंगला की उम्मीदवारी के समर्थकों के बीच इसी कारण से
चिंता और निराशा पैदा हुई है ।
सुधीर मंगला की उम्मीदवारी के समर्थकों ने दावा किया था कि वह सुरेश भसीन की उम्मीदवारी को वापस करवा देंगे; सुरेश
भसीन अपनी उम्मीदवारी के साथ लेकिन चुनावी मैदान में न सिर्फ डटे हुए हैं,
बल्कि अपनी उम्मीदवारी के लिए समर्थन भी जुटाते जा रहे हैं । सुधीर
मंगला की उम्मीदवारी के समर्थक हालाँकि अभी भी उम्मीद बनाये हुए हैं और
तर्क दे रहे हैं कि सुरेश भसीन खुद तो रवि भाटिया का मुकाबला कर नहीं
पायेंगे, सुधीर मंगला के लिए भी हालात को मुश्किल बना रहे हैं । सुरेश
भसीन के समर्थकों की तरफ से उन्हें लेकिन इसका सटीक जबाव मिल रहा है,
जिसमें उन्हें सुनने को मिल रहा है कि सुधीर मंगला की उम्मीदवारी के समर्थक
नेता यदि सचमुच रवि भाटिया की खिलाफत करना चाहते हैं तो इसके लिए उन्हें
सुधीर मंगला को छोड़ कर सुरेश भसीन की उम्मीदवारी के साथ जुड़ना/जुटना चाहिए ।
सुधीर मंगला के लिए बड़ी मुसीबत दरअसल अपने समर्थक नेताओं के
कारण से ही पैदा हुई है । उनकी उम्मीदवारी के समर्थन में जो नेता समझे जाते
हैं वह उनके प्रति सकारात्मक रुख के कारण नहीं हैं, बल्कि अपनी नकारात्मक
सोच के कारण उनके साथ हैं । जो लोग अलग-अलग कारणों से रवि भाटिया का
विरोध करना चाहते हैं, वह मजबूरी में सुधीर मंगला के साथ खड़े होने की कोशिश
कर रहे हैं । सुधीर मंगला के और उनके घोषित समर्थक विनय कुमार अग्रवाल के
रवैये के कारण वह लेकिन सुधीर मंगला की उम्मीदवारी के साथ ज्यादा देर तक
खड़े भी नहीं रह पा रहे हैं । कोई सुनियोजित और एकाग्र सोच व तैयारी न होने के कारण वह वास्तव में आपस में ही लड़-मर रहे हैं ।
सुधीर मंगला की उम्मीदवारी के कुछेक समर्थकों को जेके गौड़ और उनके साथी नेताओं का समर्थन तो चाहिए - लेकिन अपनी बातों में वह जेके गौड़ और उनके साथी नेताओं को बदनाम करने का काम कर रहे हैं । जैसे,
सुधीर मंगला और उनके कुछेक समर्थक नेता यह कहने से नहीं चूक रहे हैं कि
जेके गौड़ के पक्ष में बेईमानी न की गई होती तो सुधीर मंगला तो पिछले वर्ष
ही डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी चुन लिए गए होते । सुधीर मंगला और उनके
कुछेक समर्थक पिछले वर्ष हुई राजनीति का आकलन जिस तरह कर रहे हैं उसमें
जेके गौड़ और उनके नेताओं को बेईमान बताया जा रहा है : कहा/बताया जा रहा है
कि पिछले वर्ष काम तो जेके गौड़ का ज्यादा था, लेकिन लोगों के बीच समर्थन
सुधीर मंगला के प्रति था । सुधीर मंगला के प्रति लोगों के बीच समर्थन होने
का कारण यह बताया जा रहे है कि जेके गौड़ को लोग गवर्नर-मैटेरियल नहीं मान
रहे थे, जिसका फायदा सुधीर मंगला को मिल रहा था । सुधीर मंगला और उनके
समर्थकों का दावा है कि जेके गौड़ के पक्ष में तब के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर
रमेश अग्रवाल ने यदि बेईमानी न की होती तो डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी सुधीर
मंगला ही चुने गए होते ।
सुधीर मंगला और उनके समर्थक इस तरह की बातें करके अपने लिए
समर्थन घटाने का ही काम कर रहे हैं । उनकी इन बातों को सुनकर जेके गौड़ की
गुडबुक में आने और या बने रहने की इच्छा रखने वाले लोग स्वतः ही सुधीर
मंगला से दूर होंगे, और वह हो भी रहे हैं । सुधीर मंगला और उनकी
उम्मीदवारी के समर्थक जिस तरह के तर्क दे रहे हैं उनमें जिस तरह के
विरोधाभास दिख रहे हैं उससे भी साफ हो रहा है कि वह सच्चाई और तथ्यों को लेकर पूरी तरह भ्रमित हैं । पिछले वर्ष को लेकर उनका मानना और कहना है कि पिछले वर्ष उम्मीदवार के रूप में
काम जेके गौड़ का ज्यादा था, लेकिन फिर भी लोगों के बीच समर्थन सुधीर मंगला
के लिए ज्यादा था । इस तरह, वह खुद मानते हैं कि ज्यादा काम का कोई खास मतलब नहीं होता है और अपेक्षाकृत कम काम करने वाला भी लोगों के बीच अच्छा समर्थन जुटा सकता है ।
लेकिन इस वर्ष की बात करते हुए वह बिलकुल उल्टा तर्क देते हैं और दावा
करते हैं कि चूँकि रवि भाटिया का काम उनके मुकाबले कम है इसलिए लोगों के
बीच उनका समर्थन ज्यादा है । यह उलटबयानी क्यों ? पिछले वर्ष कम काम के
बावजूद यदि सुधीर मंगला को ज्यादा काम करने वाले जेके गौड़ के मुकाबले अच्छा समर्थन मिल रहा था तो इस वर्ष ज्यादा काम करने वाले सुधीर मंगला को अच्छा समर्थन मिलने के प्रति आश्वस्त कैसे हुआ जा सकता है ? सुधीर मंगला और उनके समर्थकों
का मानना और कहना है कि पिछले वर्ष कम काम के बावजूद सुधीर मंगला को लोगों
का समर्थन इसलिए था क्योंकि गवर्नर-मैटेरियल के संदर्भ में जेके गौड़ के
मुकाबले सुधीर मंगला को ज्यादा नंबर मिल रहे थे । यही तर्क इस वर्ष लेकिन
सुधीर मंगला के खिलाफ जा रहा है । गवर्नर-मैटेरियल के संदर्भ में रवि
भाटिया को सुधीर मंगला से ज्यादा नंबर मिल रहे हैं । जिन लोगों को यह
शिकायत है भी कि रवि भाटिया ने उनसे देर में संपर्क किया और या वह उनसे कम
मिले - उन लोगों का भी मानना और कहना है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लायक
तो रवि भाटिया ही हैं ।
रोटरी में और डिस्ट्रिक्ट में किये गए कामकाज के संदर्भ में बात हो या आपसी व्यवहार की बात हो - सुधीर मंगला पर रवि भाटिया ही भारी पड़ते/दिखते हैं । एक उदाहरण से इसे समझा/पहचाना जा सकता है : जिस वर्ष
डॉक्टर सुब्रमणियन डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के उम्मीदवार बने उसी वर्ष
उनके क्लब के रवि भाटिया भी उम्मीदवार होना चाहते थे, क्लब में लेकिन
डॉक्टर सुब्रमणियन को समर्थन मिला । रवि भाटिया को इससे दुःख और निराशा तो
हुई, लेकिन क्लब के फैसले को उन्होंने एक सच्चे खिलाड़ी की तरह स्वीकार किया
और डॉक्टर सुब्रमणियन की उम्मीदवारी की वह जैसी जो मदद कर सकते थे उन्होंने की । ऐसी ही परिस्थितियों
में लेकिन जब सुधीर मंगला पड़े तो उनका आचरण बिलकुल उलट था । सुधीर मंगला
ने पहली बार अपनी उम्मीदवारी के लिए अचानक से तब दावा ठोका, जब उनके ही
क्लब के विनोद बंसल अपनी उम्मीदवारी को लेकर काफी काम कर चुके थे । सुधीर
मंगला ने जिद पकड़ी कि विनोद बंसल ने काम चाहें जितना कर लिया हो, लेकिन
उम्मीदवार वह बनेंगे । इसे लेकर उन्होंने अपने ही क्लब में संघर्ष की स्थिति पैदा की । क्लब में उम्मीदवारी को लेकर विनोद बंसल के साथ
हुए संघर्ष में उन्हें पराजय का सामना करना पड़ा - लेकिन फिर भी उन्होंने
चुप बैठने की जरूरत नहीं समझी और क्लब में ऐसा बखेड़ा खड़ा किया कि क्लब में
फूट हुई और सुधीर मंगला भी क्लब और अपने वर्षों पुराने साथियों को छोड़ गए ।
सुधीर
मंगला ने अपने इसी तरह के व्यवहार और रवैये से अपने दोस्तों और अपने
साथियों को अपने से दूर कर लिया है । उनके चुनाव अभियान पर भी इसका असर है ।
कई लोगों को - जिन्हें पहले सुधीर मंगला के साथ समझा/पहचाना जाता रहा
था, अब उनसे अलग और या रवि भाटिया व सुरेश भसीन के साथ देखा/पहचाना जा रहा
है । सुधीर मंगला और उनके समर्थक दावा तो करते हैं कि कई नेता उनके साथ हैं
लेकिन 'वे' कई नेता उनके लिए कुछ करते हुए दिखते तो नहीं हैं; कुछेक नेता
तो ऐसे हैं जिनके खुद के क्लब के ड्यूज का झगड़ा पड़ा हुआ है और यही साफ नहीं
है कि चुनाव में उनके खुद के क्लब की कोई भागीदारी होगी भी या नहीं ।
इन्हीं नेताओं में से कुछ का कहना है कि डिस्ट्रिक्ट के लोगों में सुधीर
मंगला और उनके घोषित समर्थक विनय कुमार अग्रवाल के प्रति जो नकार का भाव
है, उसे देख/पहचान कर ही उन्होंने सुधीर मंगला के साथ दिखना बंद कर दिया है
। सुधीर मंगला और उनके समर्थकों ने अपनी कमजोरी का ठीकरा सुरेश भसीन के सर फोड़ना शुरू कर दिया है । उनका
कहना है कि सुरेश भसीन की उम्मीदवारी उनका खेल ख़राब कर रही है । मजे की
बात यह है कि सुरेश भसीन के समर्थक भी ऐसी ही बात कह रहे हैं । उनका कहना
है कि सुधीर मंगला की उम्मीदवारी हट जाये तो वह रवि भाटिया को अच्छी चुनौती
दे सकेंगे । रवि भाटिया के मुकाबले पर आने के लिए सुधीर मंगला और
सुरेश भसीन के बीच जो लड़ाई छिड़ी है, उसने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की
चुनावी लड़ाई को दिलचस्प बना दिया है ।