जबलपुर/रायपुर । बलदीप सिंह मैनी की उम्मीदवारी के ढीले पड़ने से वर्ष 2015-16 के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए होने वाला चुनाव खासा दिलचस्प हो गया है । उल्लेखनीय
है कि यह चुनाव पिछले रोटरी वर्ष में ही होना था, लेकिन बलदीप सिंह मैनी
की उम्मीदवारी प्रस्तुत करने वाले उनके क्लब ने कोर्ट-कचहरी करके मामले को
ऐसा फँसाया कि फिर चुनाव स्थगित ही कर देना पड़ा । लंबी जद्दो-जहद के बावजूद बलदीप सिंह मैनी और उनके क्लब - रोटरी क्लब जबलपुर को कुछ भी हासिल नहीं हुआ; पर उन्होंने जो किया उसके चलते डिस्ट्रिक्ट को इस वर्ष डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी नहीं मिला । पिछले
वर्ष न हो पाया चुनाव अब जब इस वर्ष होने जा रहा है तो बलदीप सिंह मैनी
अपनी उम्मीदवारी को लेकर ढीले-से लग रहे हैं, जिस कारण यह चुनाव अब जबलपुर
के अरुण गुप्ता और रायपुर के राकेश दवे के बीच सीधे मुकाबले में बदल गया
दिख रहा है ।
वर्ष 2015-16 के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के
लिए होने वाले चुनाव के बदले समीकरण ने अरुण गुप्ता की उम्मीदवारी के
समर्थकों को यह दावा करने का बल दिया है कि बलदीप सिंह मैनी के ढीले पड़ने
से अरुण गुप्ता की उम्मीदवारी को फायदा होगा । यह दावा करने के पीछे उनका तर्क है कि
जबलपुर और मध्य प्रदेश के जो क्लब बलदीप सिंह मैनी के साथ जा सकते थे, वह
अब अरुण गुप्ता का समर्थन करेंगे और इससे अरुण गुप्ता का समर्थन आधार बढ़ेगा
। राकेश दवे की उम्मीदवारी के समर्थक लेकिन इस तर्क से सहमत नहीं है
और बलदीप सिंह मैनी के रवैये को राकेश दवे के लिए अनुकूल मान रहे हैं ।
उनका तर्क है कि बलदीप सिंह मैनी अभी भी उम्मीदवार हैं, इसलिए उनके समर्थन
में जो क्लब थे वह तो उनके साथ रहेंगे ही - जिसमें उनका खुद का क्लब भी शामिल है; इसलिए अरुण गुप्ता की उम्मीदवारी के समर्थक जिस फायदे की उम्मीद कर रहे हैं, उसका तो कोई सवाल ही नहीं है । बलदीप सिंह मैनी के रवैये में राकेश दवे की उम्मीदवारी के समर्थकों को अपने लिए
फायदा इसलिए भी दिख रहा है क्योंकि उन्हें उम्मीद है कि बलदीप सिंह मैनी को
सक्रिय न पाकर उनके समर्थक अरुण गुप्ता की तरफ जाने की बजाये राकेश दवे की
तरफ जायेंगे ।
अरुण गुप्ता की उम्मीदवारी के समर्थकों को लगता है कि इस बात का आभास है कि बलदीप सिंह मैनी के ढीले पड़ने से अरुण गुप्ता को फायदा अपने आप नहीं मिलेगा, बल्कि फायदा जुटाने के लिए उन्हें प्रयास करना पड़ेगा । अरुण गुप्ता और उनके समर्थकों ने इस बाबत प्रयास शुरू भी कर दिया है । अपने प्रयास के तहत उन्होंने एक तरफ तो जबलपुर और मध्य प्रदेश में अपने लिए समर्थन संगठित करने का अभियान शुरू किया है तो दूसरी तरफ डिस्ट्रिक्ट के बाकी
लोगों को भावनात्मक अपील से प्रभावित करने का दाँव चला है । इस दाँव से
उन्होंने राकेश दवे का 'शिकार' करने का लक्ष्य निर्धारित किया है ।
अरुण गुप्ता की उम्मीदवारी के समर्थकों का कहना है कि वर्ष 2015-16 में
मध्य प्रदेश के क्लब्स को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर कार्यालय में प्रतिनिधित्व
मिलना चाहिए, क्योंकि डिस्ट्रिक्ट में तय हुई सर्वसम्मत व्यवस्था के तहत यह
उनका अधिकार है । उल्लेखनीय है कि मध्य प्रदेश, ओडिसा और छत्तीसगढ़ क्षेत्र में फैले डिस्ट्रिक्ट में सर्वसम्मत रूप से यह तय हुआ समझौता है कि तीनों प्रदेशों के क्लब्स को बारी-बारी से डिस्ट्रिक्ट गवर्नर कार्यालय में प्रतिनिधित्व मिलेगा । इस समझौते के तहत वर्ष 2015-16 में मध्य प्रदेश के क्लब्स का नंबर है । उक्त समझौते का हवाला देकर अरुण गुप्ता की उम्मीदवारी के समर्थकों ने राकेश दवे को घेरने की तैयारी की है ।
राकेश दवे की उम्मीदवारी के समर्थकों ने इस 'हमले' से अपना बचाव करने की तैयारी के तहत अपना जबाव लगता है कि पहले से बना के रखा हुआ है । उनका कहना है कि यह सच है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर कार्यालय में तीनों प्रदेशों के क्लब्स को बारी-बारी से प्रतिनिधित्व देने को लेकर एक अलिखित समझौता है - लेकिन यह समझौता दरअसल एक सुविधा है, कोई अधिकार नहीं है । यह सुविधा देने/लेने के पीछे उद्देश्य यह रहा है कि हर प्रदेश के क्लब्स अपने-अपने यहाँ नेतृत्व को विकसित करें और सक्रिय करें । राकेश दवे की उम्मीदवारी के समर्थकों का कहना है कि वर्ष 2015-16 में मध्य प्रदेश के क्लब्स का प्रतिनिधित्व करने की इच्छा रखने वाले वाले लोगों ने न तो नेतृत्व विकसित करने को लेकर कोई काम किया और न कोई सक्रियता ही दिखाई । उन्होंने इसका सुबूत यह दिया कि मध्य प्रदेश से दो लोगों ने अपनी अपनी उम्मीदवारी तो प्रस्तुत कर दी, लेकिन उनके क्षेत्र के क्लब्स के ड्यूज समय से जमा हों - इसके लिए उनमें से किसी ने भी कोई प्रयास नहीं किया । यही कारण रहा कि जबलपुर के 12 क्लब्स में से
कुल 6 के ही ड्यूज समय से जमा हो सके । यह हाल तब है जब जबलपुर से दो लोग
डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बनने की दौड़ में शामिल हुए । राकेश दवे की उम्मीदवारी
के समर्थकों का कहना/पूछना है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर कार्यालय में मध्य
प्रदेश का प्रतिनिधित्व करने की इच्छा और कोशिश करने वाले लोगों को यह भी बताना चाहिए कि नेतृत्व करने की उनकी ऐसी कैसी कोशिश है कि इनके अपने शहर के आधे क्लब्स के ड्यूज ही समय से जमा नहीं हो सके ? यह सवाल इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि ड्यूज यदि समय से जमा होते तो इन्हें ही तो फायदा होता ।
राकेश
दवे की उम्मीदवारी के समर्थकों का कहना है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर कार्यालय
में प्रतिनिधित्व को लेकर मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में टकराव पहले भी होता
रहा है और दोनों ही तरफ से दूसरे की बारी पर दावा करने के प्रयास होते रहे हैं, इसलिए राकेश दवे यदि मध्य प्रदेश की बारी पर दावा कर रहे हैं, तो इससे उनके खिलाफ लोगों के बीच कोई माहौल नहीं बनता है ।
क्योंकि लोग यह भी देखेंगे कि राकेश दवे ने ऐसा तब किया जब मध्य प्रदेश से
कोई भी उम्मीदवार बनने को तैयार होता हुआ नहीं दिख रहा था ।
अरुण
गुप्ता और राकेश दवे के बीच होते दिख रहे चुनावी मुकाबले में दोनों तरफ से
जिस तरह की तैयारी और जिस तरह के तर्क देखे/सुने जा रहे हैं उससे वर्ष
2015-16 के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए होने वाला चुनावी मुकाबला
रोमांचपूर्ण होता जान पड़ रहा है । यह देखना दिलचस्प होगा कि इस मुकाबले में और कौन-कौन से मोड़ आते हैं ।