मुरादाबाद । दिवाकर अग्रवाल को
डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की चुनावी होड़ से बाहर करने की षड़यंत्रपूर्ण
आहट ने डिस्ट्रिक्ट 3100 में चुनावी माहौल को खासा गर्मा दिया है । इस षड्यंत्र को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर राकेश सिंघल की शह और समर्थन मिलने की ख़बरों ने गर्मी के तापमान को और बढ़ाने का काम किया है ।
उल्लेखनीय है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर कार्यालय को इस वर्ष होने वाले
डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव के लिए दो आवेदन प्राप्त हुए हैं -
एक रोटरी क्लब मुरादाबाद हैरिटेज के दिवाकर अग्रवाल का और दूसरा रोटरी क्लब
मुरादाबाद मिडटाउन के दीपक बाबू का । इन दोनों उम्मीदवारों के नामांकन
दस्तावेजों की जाँच होनी है और उन्हें स्वीकार या अस्वीकार करने का फैसला
होना है । यह काम एक औपचारिकता भर होता है, इसीलिए नामांकन की तारिख के
गुजरते ही डिस्ट्रिक्ट के लोगों के बीच यह चर्चा स्थापित हो गई कि इस बार
का चुनाव दिवाकर अग्रवाल और दीपक बाबू के बीच होगा । इन दोनों के बीच
मुकाबले की रणभेरी भी बज गई और दोनों की तरफ से सेना भी सजने लगी ।
लेकिन अचानक से पहले फुसफुसाहट के रूप में और फिर तथ्यात्मक रूप से यह
चर्चा गर्म होने लगी कि दीपक बाबू के चुने जाने को सुनिश्चित करने के
उद्देश्य से दिवाकर अग्रवाल को चुनावी मुकाबले से बाहर कर दिए जाने की
तैयारी की जा रही है ।
इस तैयारी को चूँकि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर राकेश सिंघल की डिस्ट्रिक्ट टीम के प्रभावी सदस्यों द्धारा अंजाम देते हुए देखा/पहचाना जा रहा है, इसलिए इस तैयारी में राकेश सिंघल की मिलीभगत की चर्चा को बल मिला । कुछेक लोगों का कहना है कि यह षड्यंत्र राकेश सिंघल के दिमाग की उपज है, जो डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस के खर्चे को जुटाने की जरूरत के चलते पैदा हुई है; तो अन्य कुछेक लोगों का कहना है कि यह राकेश सिंघल के नजदीकी ऐसे लोगों का आयोजित किया गया षड्यंत्र है जो दीपक बाबू के खास हैं और इस वर्ष दीपक बाबू को किसी भी तरह डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी चुनवा देना चाहते हैं । राकेश सिंघल के कुछेक अन्य नजदीकियों का कहना लेकिन यह है कि राकेश सिंघल इस बात को जान/समझ रहे हैं कि दिवाकर अग्रवाल की उम्मीदवारी को निरस्त करना आसान नहीं होगा और इसके चलते जो लफड़ा पैदा होगा उसके कारण उन्हें सिर्फ बदनामी ही मिलेगी और डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में उनकी ही किरकिरी होगी । राकेश सिंघल पर लेकिन अपनी टीम के कुछेक प्रमुख सदस्यों का दिवाकर अग्रवाल की उम्मीदवारी को निरस्त करने को लेकर जो दबाव है उससे निपट पाना भी उनके लिए आसान नहीं है ।
इस तैयारी को चूँकि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर राकेश सिंघल की डिस्ट्रिक्ट टीम के प्रभावी सदस्यों द्धारा अंजाम देते हुए देखा/पहचाना जा रहा है, इसलिए इस तैयारी में राकेश सिंघल की मिलीभगत की चर्चा को बल मिला । कुछेक लोगों का कहना है कि यह षड्यंत्र राकेश सिंघल के दिमाग की उपज है, जो डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस के खर्चे को जुटाने की जरूरत के चलते पैदा हुई है; तो अन्य कुछेक लोगों का कहना है कि यह राकेश सिंघल के नजदीकी ऐसे लोगों का आयोजित किया गया षड्यंत्र है जो दीपक बाबू के खास हैं और इस वर्ष दीपक बाबू को किसी भी तरह डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी चुनवा देना चाहते हैं । राकेश सिंघल के कुछेक अन्य नजदीकियों का कहना लेकिन यह है कि राकेश सिंघल इस बात को जान/समझ रहे हैं कि दिवाकर अग्रवाल की उम्मीदवारी को निरस्त करना आसान नहीं होगा और इसके चलते जो लफड़ा पैदा होगा उसके कारण उन्हें सिर्फ बदनामी ही मिलेगी और डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में उनकी ही किरकिरी होगी । राकेश सिंघल पर लेकिन अपनी टीम के कुछेक प्रमुख सदस्यों का दिवाकर अग्रवाल की उम्मीदवारी को निरस्त करने को लेकर जो दबाव है उससे निपट पाना भी उनके लिए आसान नहीं है ।
राकेश सिंघल की डिस्ट्रिक्ट टीम के कुछेक जिन प्रमुख सदस्यों ने
दीपक बाबू को इस बार डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी चुनवाने का बीड़ा उठाया है,
उन्होंने दरअसल यह भाँप/समझ लिया है कि दिवाकर अग्रवाल से मुकाबला करते
हुए तो दीपक बाबू को चुनाव नहीं जितवाया जा सकेगा । डिस्ट्रिक्ट के
लोगों के बीच उम्मीदवार के रूप में दिवाकर अग्रवाल और दीपक बाबू की जो
सक्रियता रही है उसके नतीजे के रूप में बाजी दिवाकर अग्रवाल के हाथ में
जाती दिख रही है । मेरठ क्षेत्र के क्लब्स में दिवाकर अग्रवाल को जो एकतरफा
समर्थन मिलता नजर आ रहा है, उसने दीपक बाबू और उनके समर्थकों के लिए
उम्मीद बिलकुल तोड़ दी है । मुजफ्फरनगर और मुरादाबाद क्षेत्र में भी
दीपक बाबू के लिए ऐसा कोई समर्थन नहीं दिख रहा है जिससे मेरठ में हो रहे
नुकसान की भरपाई की जा सके । ऐसे में दीपक बाबू के समर्थकों को एक ही उपाय
समझ में आ रहा है और वह उपाय यह कि दिवाकर अग्रवाल की उम्मीदवारी को ही
ख़त्म कर दिया जाये ताकि न रहेगा बाँस और न बजेगी बाँसुरी - यानि जब
दिवाकर अग्रवाल की उम्मीदवारी ही नहीं रहेगी तो दीपक बाबू को कोई मुकाबला
ही नहीं करना पड़ेगा; और तब दीपक बाबू आराम से डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी बन
जायेंगे ।
दीपक बाबू के इन समर्थकों को लगता है कि वे डिस्ट्रिक्ट गवर्नर राकेश सिंघल पर दबाव बना कर दिवाकर अग्रवाल की उम्मीदवारी को निरस्त करवा लेंगे । दीपक बाबू के इन समर्थकों का दावा है कि इलेक्शन कमेटी के जो तीन सदस्य हैं उनमें दो - विष्णु सरन भार्गव और कृष्ण गोपाल अग्रवाल का समर्थन तो वह दिवाकर अग्रवाल की उम्मीदवारी को निरस्त करने के लिए जुटा लेंगे और उसके बाद इलेक्शन कमेटी के तीसरे सदस्य योगेश मोहन गुप्ता यदि समर्थन नहीं करेंगे तो वह अल्पमत में रहेंगे और उनके विरोध का कोई मतलब नहीं होगा । यह बात दिवाकर अग्रवाल की उम्मीदवारी को निरस्त करने की तैयारी में जुटे लोगों ने इसलिए कही है क्योंकि योगेश मोहन गुप्ता सार्वजनिक रूप से घोषणा कर चुके हैं कि दिवाकर अग्रवाल की उम्मीदवारी को निरस्त करने का कोई कारण है ही नहीं ।
दीपक बाबू के इन समर्थकों को लगता है कि वे डिस्ट्रिक्ट गवर्नर राकेश सिंघल पर दबाव बना कर दिवाकर अग्रवाल की उम्मीदवारी को निरस्त करवा लेंगे । दीपक बाबू के इन समर्थकों का दावा है कि इलेक्शन कमेटी के जो तीन सदस्य हैं उनमें दो - विष्णु सरन भार्गव और कृष्ण गोपाल अग्रवाल का समर्थन तो वह दिवाकर अग्रवाल की उम्मीदवारी को निरस्त करने के लिए जुटा लेंगे और उसके बाद इलेक्शन कमेटी के तीसरे सदस्य योगेश मोहन गुप्ता यदि समर्थन नहीं करेंगे तो वह अल्पमत में रहेंगे और उनके विरोध का कोई मतलब नहीं होगा । यह बात दिवाकर अग्रवाल की उम्मीदवारी को निरस्त करने की तैयारी में जुटे लोगों ने इसलिए कही है क्योंकि योगेश मोहन गुप्ता सार्वजनिक रूप से घोषणा कर चुके हैं कि दिवाकर अग्रवाल की उम्मीदवारी को निरस्त करने का कोई कारण है ही नहीं ।
दिवाकर अग्रवाल के नामांकन को निरस्त करने की तैयारी कर रहे
लोगों ने तर्क यह दिया है कि इस वर्ष की डिस्ट्रिक्ट डायरेक्टरी में दिवाकर
अग्रवाल का नाम और पता/परिचय प्रकाशित हुआ है, जो चुनाव के लिए बने नियमों
का उल्लंघन है और इस आधार पर दिवाकर अग्रवाल का नामांकन रद्द कर दिया जाना
चाहिए । इस मुद्दे पर दिवाकर अग्रवाल के समर्थकों का कहना है कि
असिस्टेंट गवर्नर प्रोजेक्ट को-ऑर्डीनेटर का जो पद दिवाकर अग्रवाल को ऑफर
किया गया था, उसे दिवाकर अग्रवाल ने 30 जून से पहले ही छोड़ दिया था ।
डिस्ट्रिक्ट डायरेक्टरी में उनका जो नाम और पता/परिचय प्रकाशित हुआ है वह डिस्ट्रिक्ट गवर्नर और या डायरेक्टरी तैयार करने वाले लोगों की गलती है; उनकी गलती की सजा दिवाकर अग्रवाल को भला क्यों मिलनी चाहिए ?
इसके अलावा, डिस्ट्रिक्ट डायरेक्टरी में नाम और पता/परिचय प्रकाशित होने की ही बात है तो वह तो दीपक बाबू का भी प्रकाशित हुआ है - दीपक बाबू का नाम और पता/परिचय तो विज्ञापन के रूप में प्रकाशित हुआ है जो प्रचार करने की श्रेणी में आता है, रोटरी इंटरनेशनल के नियमों के अनुसार जिसकी पूरी तरह से मनाही है । दिवाकर अग्रवाल के समर्थकों का कहना है कि इस आधार पर नामांकन तो दीपक बाबू का निरस्त होना चाहिए । दिवाकर अग्रवाल के समर्थकों का कहना है कि लेकिन वह दीपक बाबू की उम्मीदवारी को निरस्त करने की मांग नहीं कर रहे हैं; वह खुले चुनावी मुकाबले के लिए तैयार हैं और विश्वास करते हैं कि डिस्ट्रिक्ट के लोगों को फैसला करने देना चाहिए ।
इसके अलावा, डिस्ट्रिक्ट डायरेक्टरी में नाम और पता/परिचय प्रकाशित होने की ही बात है तो वह तो दीपक बाबू का भी प्रकाशित हुआ है - दीपक बाबू का नाम और पता/परिचय तो विज्ञापन के रूप में प्रकाशित हुआ है जो प्रचार करने की श्रेणी में आता है, रोटरी इंटरनेशनल के नियमों के अनुसार जिसकी पूरी तरह से मनाही है । दिवाकर अग्रवाल के समर्थकों का कहना है कि इस आधार पर नामांकन तो दीपक बाबू का निरस्त होना चाहिए । दिवाकर अग्रवाल के समर्थकों का कहना है कि लेकिन वह दीपक बाबू की उम्मीदवारी को निरस्त करने की मांग नहीं कर रहे हैं; वह खुले चुनावी मुकाबले के लिए तैयार हैं और विश्वास करते हैं कि डिस्ट्रिक्ट के लोगों को फैसला करने देना चाहिए ।
डिस्ट्रिक्ट गवर्नर राकेश सिंघल के लिए जाहिर है कि फैसला करना आसान नहीं होगा । उनकी
चिंता इस बात को लेकर भी है कि दिवाकर अग्रवाल की उम्मीदवारी को मनमाने
तरीके से निरस्त करने के फैसले को रोटरी के बड़े नेताओं ने यदि समर्थन नहीं
दिया तो डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में उनकी तो बहुत बदनामी होगी ।
चुनावी मुकाबले के नजरिये से डिस्ट्रिक्ट में दीपक बाबू की बजाये यदि
दिवाकर अग्रवाल का पलड़ा भारी दिख रहा है तो फिर डिस्ट्रिक्ट में ही दिवाकर
अग्रवाल की उम्मीदवारी को निरस्त करने के फैसले पर बबाल हो जायेगा और उसमें
डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में राकेश सिंघल की ही फजीहत होगी । जाहिर
है कि दीपक बाबू को जबर्दस्ती और हेराफेरी से डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी
चुनवाने की कोशिश की राकेश सिंघल को भारी कीमत चुकानी पड़ सकती है और उसके
बाद भी कोई गारंटी नहीं है कि उनकी कोशिश सफल हो ही जाये । इसलिए यह देखना दिलचस्प होगा दीपक बाबू के लिए राकेश सिंघल और उनकी टीम के सदस्यों ने जो चाल सोची है, उसे वह अमल में ला भी पाते हैं या नहीं ?