नई
दिल्ली । नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के पदाधिकारी अपनी कारस्तानियों
में अब इस हद तक दुस्साहसी हो गए हैं कि वह इंस्टीट्यूट के प्रेसीडेंट एम
देवराज रेड्डी तक को 'ऊल्लू' बनाने के काम में लग गए हैं । चर्चा है
कि एम देवराज रेड्डी ने इंस्टीट्यूट के वरिष्ठ सदस्य अविनाश गुप्ता के
खिलाफ की जा रही रीजनल काउंसिल पदाधिकारियों की कार्रवाई का संज्ञान लिया
है, जिसके बाद रीजनल काउंसिल के पदाधिकारी मामले की लीपापोती में जुट गए
हैं । उल्लेखनीय है कि अविनाश गुप्ता ने लिखित में की गई अपनी शिकायत में
कहा/बताया है कि नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के
सेक्रेटरी सुमित गर्ग ने उनसे टेलीफोन पर बात करते हुए स्वीकार किया व
बताया कि चेयरमैन दीपक गर्ग के नेतृत्व में रीजनल काउंसिल के 'पॉवर
ग्रुप' ने तय किया हुआ है कि अविनाश गुप्ता को नॉर्दर्न रीजन के किसी भी
कार्यक्रम में 'दिखने' नहीं दिया जायेगा । अविनाश गुप्ता इंटरनेशनल
टैक्सेशन में एक्सपर्ट वरिष्ठ चार्टर्ड एकाउंटेंट हैं, टैक्स रिसर्च
फाउंडेशन के प्रेसीडेंट हैं । उन्होंने ऑस्ट्रिया की विएना यूनिवर्सिटी से
इंटरनेशनल टैक्सेशन की पढ़ाई की है । वह एक प्रभावी वक्ता हैं और अपनी बात
को कहने की कला के चलते प्रोफेशन के लोगों के बीच काफी लोकप्रिय हैं । अपनी
लोकप्रियता के कारण ही वह चार्टर्ड एकाउंटेंट्स इंस्टीट्यूट की ब्रांचेज
में स्पीकर के रूप में आमंत्रित किए जाते हैं । अब इंस्टीट्यूट व प्रोफेशन
के ऐसे व्यक्ति के खिलाफ नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के पदाधिकारी
गोलबंद हो जाएँ और तय करें कि नॉदर्न रीजन के किसी भी कार्यक्रम में वह
इन्हें 'दिखने' नहीं देंगे - तो इंस्टीट्यूट के मुखिया के रूप में एम
देवराज रेड्डी का मामले में दिलचस्पी लेना स्वाभाविक ही है । गौर करने
की बात यह है कि रीजनल काउंसिल के पदाधिकारियों पर जो आरोप है, वह सिर्फ
आरोप या कयास भर नहीं है, बल्कि रीजनल काउंसिल के सेक्रेटरी सुमित गर्ग का
कथन है । दरअसल सुमित गर्ग के कथन ने ही मामले को खासा गंभीर बना दिया है ।
इंस्टीट्यूट
के प्रेसीडेंट एम देवराज रेड्डी के दिलचस्पी लेने के कारण नॉर्दर्न इंडिया
रीजनल काउंसिल के पदाधिकारी मुश्किल में फँसे, तो उनकी मदद के लिए सेंट्रल
काउंसिल के सदस्य विजय गुप्ता आगे आए । पिछली 27 मई की अपनी रिपोर्ट
में 'रचनात्मक संकल्प' विस्तार से बता चुका है कि कैसे विजय गुप्ता ही इस
पूरे मामले के लिए 'जिम्मेदार' हैं । वह जिम्मेदार हैं, तो मददगार की
भूमिका निभाने के लिए भी उन्हें ही आगे आना पड़ा । नॉर्दर्न इंडिया रीजनल
काउंसिल की अभी पिछले दिनों ही में हुई मीटिंग में विजय गुप्ता को उक्त मामले को
संभालने के लिए ही आना पड़ा । विजय गुप्ता की उपस्थिति में रीजनल
काउंसिल के 'आरोपी' पदाधिकारियों ने मजेदार किस्म का नाटक किया : उन्होंने
अविनाश गुप्ता के आरोप को सिरे से नकार दिया; सेक्रेटरी सुमित गर्ग ने इस
बात से इंकार किया कि उन्होंने अविनाश गुप्ता से वैसा कुछ कहा है, जैसा
कहने का दावा अविनाश गुप्ता ने किया है । यह प्रसंग नाटक में लेकिन तब
तब्दील हुआ, जब रीजनल काउंसिल के पदाधिकारियों ने इन बातों को रिकॉर्ड करने
से इंकार किया । मीटिंग में मौजूद कुछेक लोगों का सुझाव था कि अविनाश
गुप्ता ने सुमित गर्ग से हुई बातचीत का हवाला देते हुए जिन जिन लोगों को
ईमेल लिखी है, उन उन लोगों को सुमित गर्ग उस तरह की बातचीत न होने की तथा
अविनाश गुप्ता के आरोप को झूठा ठहराते हुए ईमेल लिखें/भेजें । सुमित गर्ग
ने, रीजनल काउंसिल के दूसरे 'आरोपी' पदाधिकारियों ने - और यहाँ तक कि विजय
गुप्ता ने भी इस सुझाव पर कोई ध्यान नहीं दिया । उनकी कोशिश रही कि
बातों को रिकॉर्ड पर लाए बिना मामले को खत्म कर लिया जाए - तथा इंस्टीट्यूट
के प्रेसीडेंट एम देवराज रेड्डी को बता दिया जाए कि मामला कुछ है ही नहीं ।
ऐसे में किसी के लिए भी यह समझना मुश्किल है कि अविनाश
गुप्ता के आरोप जब रिकॉर्ड पर हैं, तो उनके आरोप के जबाव को रिकॉर्ड पर
लाने में 'आरोपी' पदाधिकारी डर क्यों रहे हैं ? उल्लेखनीय है कि अविनाश
गुप्ता ने नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के चेयरमैन दीपक गर्ग को पत्र
लिखकर आरोप लगाए हैं, लेकिन दीपक गर्ग की तरफ से उन्हें लिखित में जबाव
नहीं मिला है । दीपक गर्ग लिख कर यह कहने का भी साहस नहीं कर पा रहे हैं कि उनके आरोप गलत हैं और झूठे हैं । हाल ही में हुई
रीजनल काउंसिल की मीटिंग में, सेंट्रल काउंसिल सदस्य विजय गुप्ता की
उपस्थिति में रीजनल काउंसिल के पदाधिकारियों ने यही नाटक किया - जिसके तहत
उन्होंने बार-बार दोहराया कि अविनाश गुप्ता के आरोप गलत हैं और झूठे हैं,
लेकिन अपने इस दावे को रिकॉर्ड पर न आने देने के लिए भी उन्होंने पूरा जोर
लगाया । दरअसल उन्हें भी पता है कि अविनाश गुप्ता के आरोप पूरी तरह सच हैं,
और अपने आरोपों के बाबत अविनाश गुप्ता के पास पुख्ता सुबूत भी हैं -
उन्हें डर है कि वह यदि रिकॉर्ड पर अविनाश गुप्ता के आरोप को झूठा कहेंगे,
तो खुद ही झूठे साबित हो जायेंगे । इसलिए रीजनल काउंसिल के पदाधिकारी इस
चालाकी से 'काम' कर रहे हैं कि इंस्टीट्यूट के प्रेसीडेंट एम देवराज रेड्डी
तक वह विजय गुप्ता के जरिए यह संदेश भी भिजवा दें कि उन पर लगाए जा रहे आरोप झूठे हैं, और यह बात रिकॉर्ड पर भी न आए । इस सारी कवायद के पीछे रीजनल काउंसिल के 'पॉवर ग्रुप' का वास्तविक
उद्देश्य इंस्टीट्यूट के प्रेसीडेंट एम देवराज रेड्डी को 'ऊल्लू' बनाने का
है - इस कवायद का दिलचस्प पहलू यह है कि रीजनल काउंसिल के पदाधिकारियों को
इसमें सेंट्रल काउंसिल के सदस्य विजय गुप्ता का पूरा पूरा सहयोग व समर्थन
मिल रहा है ।
इसमें मजे की बात यह है कि इतना सब नाटक रीजनल काउंसिल के ट्रेजरार नितिन कँवर की निजी खुन्नसबाजी को
निकालने के लिए किया जा रहा है । उल्लेखनीय है कि असल झगड़ा अविनाश गुप्ता
और नितिन कँवर के बीच है, जिसमें रीजनल काउंसिल के चेयरमैन दीपक गर्ग व
सेक्रेटरी सुमित गर्ग तथा सेंट्रल काउंसिल सदस्य विजय गुप्ता ने अपने आप को
इस हद तक फँसा लिया है कि उनके लिए अपनी इज्जत तक बचाना मुश्किल हो रहा है
- और उन्हें इंस्टीट्यूट के प्रेसीडेंट तक के साथ चालबाजी करने के लिए
मजबूर होना पड़ रहा है । और सच पूछा जाए तो यह अविनाश गुप्ता व नितिन
कँवर के बीच का कोई झगड़ा भी नहीं है - यह सिर्फ नितिन कँवर की ईगो है और
निजी खुन्नसबाजी है, जिसके वशीभूत होकर उन्होंने अविनाश गुप्ता से पंगा ले
लिया और फिर ऐसी आग भड़क उठी कि उसकी आँच इंस्टीट्यूट के प्रेसीडेंट तक जा पहुँची है ।
मामला सिर्फ यह है कि अविनाश गुप्ता की तरह नितिन कँवर भी इंटरनेशनल
टैक्सेशन में काम करते हैं, और अविनाश गुप्ता से सीनियर हैं । अविनाश
गुप्ता चूँकि विदेश से पढ़ाई करके आए हैं, और अपने विषय को अच्छे से
जानते/समझते हैं, अच्छा बोल लेते हैं - तो उन्होंने नितिन कँवर के बाद
प्रोफेशन में आने के बावजूद उनकी तुलना में लोगों के बीच अच्छी पहचान बना
ली । नितिन कँवर स्पीकर के रूप में लोगों को ज्यादा प्रभावित नहीं कर पाते
हैं और सेमीनार आदि में होने वाले सवालों का संतोषप्रद तरीके से जबाव नहीं दे पाते हैं, तो सेमीनार आदि में नितिन कँवर की बजाए अविनाश गुप्ता को ज्यादा बुलाया जाता है । किसी भी प्रोफेशन में ऐसा होता ही है : नितिन कँवर और अविनाश गुप्ता भी प्रोफेशन में बहुतों से आगे हैं, तो बहुतों से पीछे भी हैं; नितिन कँवर को लेकिन और किसी से पीछे रह जाने का मलाल नहीं हुआ, किंतु अविनाश गुप्ता से पीछे रह जाने को वह बर्दाश्त नहीं कर पाए और 'पदीय-बदमाशी' से अविनाश गुप्ता को पीछे खींचने में जुट गए ।
दरअसल दोनों
चूँकि राजनीति में भी हैं, इसलिए नितिन कँवर को यह बर्दाश्त नहीं हुआ कि
राजनीतिक सर्किल में लोग उनकी बजाए अविनाश गुप्ता को ज्यादा तवज्जो दें ।
नितिन कँवर की चुनावी सफलता ने भी उनकी 'सार्वजनिक पहचान' में कोई सुधार
नहीं किया । चुनावी सफलता के मायने तो होते हैं, लेकिन सार्वजनिक पहचान के
संदर्भ में वह काम नहीं आती है । चुनावी जीत की बात करें तो फूलन देवी भी
सांसद का चुनाव जीती ही थीं, लेकिन उनकी जीत उनकी सार्वजनिक पहचान बदलने
में कोई भूमिका नहीं निभा पाई थी । प्रोफेशन में ही देखें तो बिना चुनाव लड़े और जीते गिरीश आहुजा की जो पहचान है, उसका मुकाबला सेंट्रल काउंसिल का कोई
सदस्य या इंस्टीट्यूट का कोई प्रेसीडेंट नहीं कर सकता । 'फूलनदेवी' टाइप कई
चार्टर्ड एकाउंटेंट्स रीजनल काउंसिल के और सेंट्रल काउंसिल के चुनाव तो
जीत जाते हैं; चेयरमैन और प्रेसीडेंट भी बन जाते हैं - लेकिन अपनी
'सार्वजनिक पहचान' में कोई सुधार नहीं कर पाते हैं । नितिन कँवर को जब
लगा कि रीजनल काउंसिल का चुनाव वह जीते हैं, रीजनल काउंसिल में 'पॉवर
ग्रुप' का सदस्य वह हैं, रीजनल काउंसिल में ट्रेजरार वह हैं - फिर भी
सेमीनार आदि में उनकी बजाए अविनाश गुप्ता को ज्यादा बुलाया जा रहा है, और
इंटरनेशनल टैक्सेशन विषय के स्पीकर के रूप में उनकी बजाए अविनाश गुप्ता की
वाहवाही लगातार होती ही जा रही है - तो नितिन कँवर को लगा कि अविनाश गुप्ता
से निपटने के लिए उन्हें ऊँगली टेढ़ी करना ही पड़ेगी । अविनाश गुप्ता से
निपटने के लिए नितिन कँवर ने रीजनल काउंसिल के पदाधिकारियों का सहयोग लिया
और अविनाश गुप्ता को स्पीकर के रूप में आमंत्रित करने वाले आयोजनों को रद्द
करवाने तथा उनमें अड़चनें पैदा करने के अभियान में जुट गए । रीजनल काउंसिल
के सेक्रेटरी सुमित गर्ग ने अविनाश गुप्ता को बता भी दिया कि 'हम' अब
तुम्हें नहीं छोड़ेंगे । इस कार्रवाई को अंजाम देते हुए नितिन कँवर उस मशहूर कहावत को भूल गए, जो एक हिंदी फिल्म में एक डायलॉग के रूप में भी इस्तेमाल हुई - कि 'जो लोग खुद शीशे के घरों में रहते हैं, उन्हें दूसरों पर पत्थर नहीं फेंकने चाहिएँ ।' नितिन कँवर ने शायद इस बात पर भी गौर नहीं किया कि अविनाश गुप्ता चुनावी राजनीति में भले ही सफल न हो पाएँ हों, लेकिन उनके द्वारा
की जा रही कार्रवाई का जबाव देने लायक राजनीति जानते ही होंगे । अविनाश
गुप्ता ने नितिन कँवर की टुच्ची हरकत का जो जबाव दिया - उससे नितिन कँवर ही
नहीं, उनका साथ देने वाले रीजनल काउंसिल के पदाधिकारी भी संकट में फँस गए हैं ।
इंस्टीट्यूट के प्रेसीडेंट एम देवराज रेड्डी ने इस मामले में जो दिलचस्पी
ली है, उससे नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के पदाधिकारियों की कारस्तानी
का मामला गंभीर रूप लेता हुआ नजर आ रहा है ।