गाजियाबाद । अरुण मित्तल और मुकेश गोयल ने फिरकी
चली तो डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति का सारा ताना-बाना ही बदल गया है ।
अभी कुछ ही दिन पहले मुजफ्फरनगर में कुंजबिहारी अग्रवाल और अरविंद संगल की
जिस जोड़ी ने डिस्ट्रिक्ट का धुरंधर बनने की कोशिश की थी - उसे दोहरी चोट
पड़ी है । एक तरफ तो सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के उम्मीदवार अजय
सिंघल उनकी पकड़ से छूटते दिख रहे हैं; और दूसरी तरफ अपनी इज्जत बचाने के
लिए उनके सामने उन्हीं सुनील जैन व अनीता गुप्ता के
साथ जाने की मजबूरी आ पड़ी है जिनके साथ जाने के लिए कुछ ही दिन पहले वह अजय
सिंघल को मना कर रहे थे । उल्लेखनीय है कि डिस्ट्रिक्ट का धुरंधर बनने की
कोशिश करने वाली कुंजबिहारी अग्रवाल और अरविंद संगल की जोड़ी ने अजय सिंघल
को हिदायत दी थी कि वह अरुण मित्तल, सुनील निगम, सुनील जैन और अनीता गुप्ता से बिलकुल नहीं मिलेंगे । लेकिन अरुण मित्तल ने तगड़ी चाल चली और वह सुनील
निगम को लेकर मुकेश गोयल से जा मिले, जिससे अजय सिंघल की उम्मीदवारी के
झंडे को पूरी तरह अपने कब्जे में करने में मुकेश गोयल को सुविधा हो गई; और
डिस्ट्रिक्ट का धुरंधर बनने की कोशिश करने वाली कुंजबिहारी अग्रवाल और
अरविंद संगल की जोड़ी पूरी तरह अलग-थलग पड़ गई है ।
हालाँकि, लायंस क्लब गंगोह सेंट्रल के एपीएस कपूर की उम्मीदवारी की संभावना ने कुंजबिहारी अग्रवाल और अरविंद संगल की जोड़ी को 'रास्ता' दिखाया है, जिस पर चल कर वह सुनील जैन व अनीता गुप्ता की शरण में जा सकते हैं । एपीएस कपूर को सुनील जैन के उम्मीदवार के रूप में देखा/पहचाना जा रहा है । एपीएस कपूर के नजदीकियों का हालाँकि कहना है कि वह डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति के मूड/मिजाज को देख कर ही अपनी उम्मीदवारी को आगे बढ़ायेंगे और सिर्फ सुनील जैन के द्धारा इस्तेमाल होने के लिए ही उम्मीदवार नहीं बनेंगे । सुनील जैन ने लेकिन स्पष्ट कर दिया है कि चुनाव तो होकर रहेगा; एपीएस कपूर यदि उम्मीदवार नहीं बनेंगे तो वह जीजी गर्ग को उम्मीदवार बना देंगे । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में सुनील जैन की जरूरत दरअसल यह है कि क्लब्स से ड्यूज मिलें और उनकी कॉन्फ्रेंस अच्छे से हो । वह जानते हैं कि यदि चुनाव नहीं हुए तो क्लब्स से उन्हें ड्यूज तो नहीं ही मिलेंगे, डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस करना भी उनके लिए मुश्किल हो जायेगा । इसी जरूरत के चलते सुनील जैन पिछले दिनों मुकेश गोयल से भी मिले थे और अजय सिंघल की उम्मीदवारी का समर्थन करने का प्रस्ताव उनके सामने रखा था; इस प्रस्ताव में उन्होंने समर्थन की लेकिन जो 'कीमत' चाही थी, वह मुकेश गोयल को बहुत ज्यादा लगी थी और उन्होंने सुनील जैन के प्रस्ताव को स्वीकार करने से इंकार कर दिया था ।
मुकेश गोयल से मिले इस स्पष्ट इंकार के बाद ही सुनील जैन ने एपीएस कपूर को खोजा और उन्हें सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए उम्मीदवार बनाने की तैयारी कर ली । एपीएस कपूर के नजदीकियों का हालाँकि कहना है कि एपीएस कपूर पूरी गंभीरता से चुनाव लड़ना चाहेंगे और एक उम्मीदवार को जो कुछ भी करने की जरूरत होती है उसे वह पूरा करने के लिए तैयार हैं, लेकिन वह यह जरूर समझना चाहेंगे कि सुनील जैन के पास चुनाव का खाका क्या है और वह किस आधार पर एपीएस कपूर की उम्मीदवारी को समर्थन दिलवायेंगे । नजदीकियों का यह भी कहना है कि यदि वह यह समझेंगे कि सुनील जैन उनकी उम्मीदवारी को सिर्फ अपने 'मकसद' के लिए इस्तेमाल कर रहे हैं तो फिर वह सुनील जैन के चक्कर में नहीं पड़ेंगे । एपीएस कपूर पर दबाव बनाने के लिए ही सुनील जैन ने जीजी गर्ग का नाम उछाला है; हालाँकि जीजी गर्ग को जानने वाले लोगों का कहना है कि जीजी गर्ग भले ही सुनील जैन के बिजनेस पार्टनर हों और उनके शिक्षा संस्थान में सलाहकार के पद पर हों और इस नाते सुनील जैन उन पर अपना अधिकार समझते हों - लेकिन फिर भी जीजी गर्ग उनके द्धारा इस्तेमाल होने तथा उनके द्धारा बलि का बकरा बनाये जाने के लिए तो तैयार नहीं ही होंगे ।
सुनील जैन दरअसल यह बताते हुए एपीएस कपूर और जीजी गर्ग में हवा भरने की कोशिश कर रहे हैं कि लायन राजनीति को उन्होंने समझ लिया है - यहाँ तीन महीने पहले उम्मीदवार बनो, पैसे खर्च करो और चुनाव जीत लो : जैसे वह जीते और गवर्नर बने । 'सफलता' की अपनी कहानी में सुनील जैन लेकिन इस तथ्य को छिपाने की कोशिश कर रहे हैं कि तीन महीने पहले वह उम्मीदवार तब बने थे जब मुकेश गोयल के समर्थन का उन्हें भरोसा मिल गया था और उनके सामने एक बड़ा कमजोर सा उम्मीदवार था । निश्चित रूप से उनकी जीत में उनके द्धारा किया गया खर्च भी एक कारण था - लेकिन वह एक अकेला कारण नहीं था । एपीएस कपूर तथा उनके नजदीकी इस तथ्य को समझ/पहचान रहे हैं - और डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति के खिलाड़ी अनुमान लगा रहे हैं कि जीजी गर्ग भी निश्चित ही इस तथ्य को समझ/पहचान रहे होंगे; और इसीलिए उम्मीदवारी की चर्चा शुरू हो जाने के बाद भी न एपीएस कपूर की तरफ से और न जीजी गर्ग की तरफ से कोई करंट दिखाई देना शुरू हुआ है ।
एपीएस कपूर को लेकर लोगों को यह जरूर लग रहा है कि हो सकता है वह यह समझ रहे हों कि इस बार प्रतीकात्मक तरीके से वह अपनी उम्मीदवारी रख लेते हैं तो अगली बार के लिए उनकी उम्मीदवारी का पलड़ा भारी हो जायेगा । अवतार कृष्ण का अनुभव लेकिन उन्हें इस फार्मूले पर जाने से रोक रहा है : अवतार कृष्ण पिछली बार की अपनी उम्मीदवारी के भरोसे इस बार अपनी उम्मीदवारी का पलड़ा भारी नहीं रख सके । एपीएस कपूर के शुभचिंतकों का ही कहना है कि एपीएस कपूर यदि सचमुच गवर्नर बनना चाहते हैं तो उन्हें इस सच्चाई पर जरूर ध्यान देना चाहिए कि जो लोग मुकेश गोयल को गालियाँ देते रहे थे और कसमें खाते सुने जाते थे कि वह मुकेश गोयल के समर्थन के बिना ही गवर्नर बन कर दिखायेंगे - उन्हें भी गवर्नर बनने के लिए मुकेश गोयल की शरण में आने के लिए मजबूर होना पड़ा है ।
इस बार मुकेश गोयल ने अजय सिंघल के साथ जैसी जो केमिस्ट्री बैठाई, उसका ही नतीजा रहा कि कोई और उम्मीदवार मैदान में आने का साहस ही नहीं कर सका । अजय सिंघल ने खुद भी अपनी सक्रियता से और अपने व्यवहार से किसी को नाराज होने का या विरोधी होने का मौका नहीं दिया और नेताओं के बीच की प्रतिस्पर्धा के बावजूद हर खेमे में अपनी उम्मीदवारी के प्रति स्वीकार्यता का आधार बनाया । यह अजय सिंघल की रणनीति की कुशलता का ही परिणाम रहा कि उन्होंने अपने ऊपर लगे 'मुकेश गोयल के उम्मीदवार' के ठप्पे को भी मिटाने/छिपाने का कोई प्रयास नहीं किया और इस ठप्पे के साथ ही मुकेश गोयल के धुर विरोधियों के बीच अपनी उम्मीदवारी के प्रति स्वीकार्यता व समर्थन प्राप्त किया । अजय सिंघल और मुकेश गोयल ने डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति में जिस तरह से एकतरफा माहौल बनाया और डिस्ट्रिक्ट के नेताओं को विकल्पहीन बनाया उसे देख कर ही सुनील जैन जिन अवतार कृष्ण के भरोसे मैदान में डटने की तैयारी कर रहे थे, उन अवतार कृष्ण ने सुनील जैन की बजाये मुकेश गोयल पर भरोसा करना ज्यादा उपयोगी समझा । कुंजबिहारी अग्रवाल और अरविंद संगल की जोड़ी ने सुनील जैन के खिलाफ तो मोर्चा खोला हुआ था और वह अजय सिंघल को उनसे दूर रहने की हिदायत दे रहे थे; किंतु मुकेश गोयल से दूरी बनाये रखने के बावजूद उनके खिलाफ मोर्चा खोलने से बचते नजर आ रहे थे ।
अजय सिंघल की उम्मीदवारी को लेकर मुकेश गोयल की राजनीति चल तो अच्छे से रही थी, लेकिन लगभग अकेले होने के कारण मुकेश गोयल दबाव में भी थे । इसीलिए कुंजबिहारी अग्रवाल व अरविंद संगल की जोड़ी भी और सुनील जैन भी माने बैठे थे कि कुछ न होते/करते भी वह अपनी अपनी राजनीति और मनमानी करते रह सकेंगे । अरुण मित्तल की चाल ने लेकिन उन दोनों से ही यह मौका छीन लिया है । अरुण मित्तल ने फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर सुनील निगम को साथ लेकर मुकेश गोयल के साथ आने का जो फैसला किया उसने मुकेश गोयल को दबावमुक्त करने का काम किया है और दूसरे नेताओं के तोते उड़ा दिए हैं । यह देखना दिलचस्प होगा कि जिन नेताओं के तोते उड़े हैं वह अपने अपने तोते वापस लाने के लिए क्या करते हैं और करते हैं उसके बाद भी उनके तोते वापस आते हैं या नहीं ?
हालाँकि, लायंस क्लब गंगोह सेंट्रल के एपीएस कपूर की उम्मीदवारी की संभावना ने कुंजबिहारी अग्रवाल और अरविंद संगल की जोड़ी को 'रास्ता' दिखाया है, जिस पर चल कर वह सुनील जैन व अनीता गुप्ता की शरण में जा सकते हैं । एपीएस कपूर को सुनील जैन के उम्मीदवार के रूप में देखा/पहचाना जा रहा है । एपीएस कपूर के नजदीकियों का हालाँकि कहना है कि वह डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति के मूड/मिजाज को देख कर ही अपनी उम्मीदवारी को आगे बढ़ायेंगे और सिर्फ सुनील जैन के द्धारा इस्तेमाल होने के लिए ही उम्मीदवार नहीं बनेंगे । सुनील जैन ने लेकिन स्पष्ट कर दिया है कि चुनाव तो होकर रहेगा; एपीएस कपूर यदि उम्मीदवार नहीं बनेंगे तो वह जीजी गर्ग को उम्मीदवार बना देंगे । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में सुनील जैन की जरूरत दरअसल यह है कि क्लब्स से ड्यूज मिलें और उनकी कॉन्फ्रेंस अच्छे से हो । वह जानते हैं कि यदि चुनाव नहीं हुए तो क्लब्स से उन्हें ड्यूज तो नहीं ही मिलेंगे, डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस करना भी उनके लिए मुश्किल हो जायेगा । इसी जरूरत के चलते सुनील जैन पिछले दिनों मुकेश गोयल से भी मिले थे और अजय सिंघल की उम्मीदवारी का समर्थन करने का प्रस्ताव उनके सामने रखा था; इस प्रस्ताव में उन्होंने समर्थन की लेकिन जो 'कीमत' चाही थी, वह मुकेश गोयल को बहुत ज्यादा लगी थी और उन्होंने सुनील जैन के प्रस्ताव को स्वीकार करने से इंकार कर दिया था ।
मुकेश गोयल से मिले इस स्पष्ट इंकार के बाद ही सुनील जैन ने एपीएस कपूर को खोजा और उन्हें सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए उम्मीदवार बनाने की तैयारी कर ली । एपीएस कपूर के नजदीकियों का हालाँकि कहना है कि एपीएस कपूर पूरी गंभीरता से चुनाव लड़ना चाहेंगे और एक उम्मीदवार को जो कुछ भी करने की जरूरत होती है उसे वह पूरा करने के लिए तैयार हैं, लेकिन वह यह जरूर समझना चाहेंगे कि सुनील जैन के पास चुनाव का खाका क्या है और वह किस आधार पर एपीएस कपूर की उम्मीदवारी को समर्थन दिलवायेंगे । नजदीकियों का यह भी कहना है कि यदि वह यह समझेंगे कि सुनील जैन उनकी उम्मीदवारी को सिर्फ अपने 'मकसद' के लिए इस्तेमाल कर रहे हैं तो फिर वह सुनील जैन के चक्कर में नहीं पड़ेंगे । एपीएस कपूर पर दबाव बनाने के लिए ही सुनील जैन ने जीजी गर्ग का नाम उछाला है; हालाँकि जीजी गर्ग को जानने वाले लोगों का कहना है कि जीजी गर्ग भले ही सुनील जैन के बिजनेस पार्टनर हों और उनके शिक्षा संस्थान में सलाहकार के पद पर हों और इस नाते सुनील जैन उन पर अपना अधिकार समझते हों - लेकिन फिर भी जीजी गर्ग उनके द्धारा इस्तेमाल होने तथा उनके द्धारा बलि का बकरा बनाये जाने के लिए तो तैयार नहीं ही होंगे ।
सुनील जैन दरअसल यह बताते हुए एपीएस कपूर और जीजी गर्ग में हवा भरने की कोशिश कर रहे हैं कि लायन राजनीति को उन्होंने समझ लिया है - यहाँ तीन महीने पहले उम्मीदवार बनो, पैसे खर्च करो और चुनाव जीत लो : जैसे वह जीते और गवर्नर बने । 'सफलता' की अपनी कहानी में सुनील जैन लेकिन इस तथ्य को छिपाने की कोशिश कर रहे हैं कि तीन महीने पहले वह उम्मीदवार तब बने थे जब मुकेश गोयल के समर्थन का उन्हें भरोसा मिल गया था और उनके सामने एक बड़ा कमजोर सा उम्मीदवार था । निश्चित रूप से उनकी जीत में उनके द्धारा किया गया खर्च भी एक कारण था - लेकिन वह एक अकेला कारण नहीं था । एपीएस कपूर तथा उनके नजदीकी इस तथ्य को समझ/पहचान रहे हैं - और डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति के खिलाड़ी अनुमान लगा रहे हैं कि जीजी गर्ग भी निश्चित ही इस तथ्य को समझ/पहचान रहे होंगे; और इसीलिए उम्मीदवारी की चर्चा शुरू हो जाने के बाद भी न एपीएस कपूर की तरफ से और न जीजी गर्ग की तरफ से कोई करंट दिखाई देना शुरू हुआ है ।
एपीएस कपूर को लेकर लोगों को यह जरूर लग रहा है कि हो सकता है वह यह समझ रहे हों कि इस बार प्रतीकात्मक तरीके से वह अपनी उम्मीदवारी रख लेते हैं तो अगली बार के लिए उनकी उम्मीदवारी का पलड़ा भारी हो जायेगा । अवतार कृष्ण का अनुभव लेकिन उन्हें इस फार्मूले पर जाने से रोक रहा है : अवतार कृष्ण पिछली बार की अपनी उम्मीदवारी के भरोसे इस बार अपनी उम्मीदवारी का पलड़ा भारी नहीं रख सके । एपीएस कपूर के शुभचिंतकों का ही कहना है कि एपीएस कपूर यदि सचमुच गवर्नर बनना चाहते हैं तो उन्हें इस सच्चाई पर जरूर ध्यान देना चाहिए कि जो लोग मुकेश गोयल को गालियाँ देते रहे थे और कसमें खाते सुने जाते थे कि वह मुकेश गोयल के समर्थन के बिना ही गवर्नर बन कर दिखायेंगे - उन्हें भी गवर्नर बनने के लिए मुकेश गोयल की शरण में आने के लिए मजबूर होना पड़ा है ।
इस बार मुकेश गोयल ने अजय सिंघल के साथ जैसी जो केमिस्ट्री बैठाई, उसका ही नतीजा रहा कि कोई और उम्मीदवार मैदान में आने का साहस ही नहीं कर सका । अजय सिंघल ने खुद भी अपनी सक्रियता से और अपने व्यवहार से किसी को नाराज होने का या विरोधी होने का मौका नहीं दिया और नेताओं के बीच की प्रतिस्पर्धा के बावजूद हर खेमे में अपनी उम्मीदवारी के प्रति स्वीकार्यता का आधार बनाया । यह अजय सिंघल की रणनीति की कुशलता का ही परिणाम रहा कि उन्होंने अपने ऊपर लगे 'मुकेश गोयल के उम्मीदवार' के ठप्पे को भी मिटाने/छिपाने का कोई प्रयास नहीं किया और इस ठप्पे के साथ ही मुकेश गोयल के धुर विरोधियों के बीच अपनी उम्मीदवारी के प्रति स्वीकार्यता व समर्थन प्राप्त किया । अजय सिंघल और मुकेश गोयल ने डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति में जिस तरह से एकतरफा माहौल बनाया और डिस्ट्रिक्ट के नेताओं को विकल्पहीन बनाया उसे देख कर ही सुनील जैन जिन अवतार कृष्ण के भरोसे मैदान में डटने की तैयारी कर रहे थे, उन अवतार कृष्ण ने सुनील जैन की बजाये मुकेश गोयल पर भरोसा करना ज्यादा उपयोगी समझा । कुंजबिहारी अग्रवाल और अरविंद संगल की जोड़ी ने सुनील जैन के खिलाफ तो मोर्चा खोला हुआ था और वह अजय सिंघल को उनसे दूर रहने की हिदायत दे रहे थे; किंतु मुकेश गोयल से दूरी बनाये रखने के बावजूद उनके खिलाफ मोर्चा खोलने से बचते नजर आ रहे थे ।
अजय सिंघल की उम्मीदवारी को लेकर मुकेश गोयल की राजनीति चल तो अच्छे से रही थी, लेकिन लगभग अकेले होने के कारण मुकेश गोयल दबाव में भी थे । इसीलिए कुंजबिहारी अग्रवाल व अरविंद संगल की जोड़ी भी और सुनील जैन भी माने बैठे थे कि कुछ न होते/करते भी वह अपनी अपनी राजनीति और मनमानी करते रह सकेंगे । अरुण मित्तल की चाल ने लेकिन उन दोनों से ही यह मौका छीन लिया है । अरुण मित्तल ने फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर सुनील निगम को साथ लेकर मुकेश गोयल के साथ आने का जो फैसला किया उसने मुकेश गोयल को दबावमुक्त करने का काम किया है और दूसरे नेताओं के तोते उड़ा दिए हैं । यह देखना दिलचस्प होगा कि जिन नेताओं के तोते उड़े हैं वह अपने अपने तोते वापस लाने के लिए क्या करते हैं और करते हैं उसके बाद भी उनके तोते वापस आते हैं या नहीं ?