गाजियाबाद । प्रसून चौधरी की
उम्मीदवारी के लिए समर्थन जुटाने हेतु जोन स्तर पर शुरू हुईं मीटिंग्स ने
रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3010 के प्रस्तावित विभाजित डिस्ट्रिक्ट 3012
में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव में पुनः गर्मी पैदा कर दी है ।
उल्लेखनीय है कि डिस्ट्रिक्ट 3012 के गठन की औपचारिक घोषणा होने की
प्रक्रिया पूरी होने तथा नए बने डिस्ट्रिक्ट के लिए चुनावी प्रक्रिया के
दोबारा शुरू होने के कारण चुनाव की तारीख के आगे बढ़ने से चुनावी सरगर्मियाँ
ठंडी पड़ गई थीं । चुनावी सरगर्मियाँ इसलिए भी ठंडी पड़ गईं थीं
क्योंकि रोटरी वर्ष के पहले तीन-चार महीनों में उम्मीदवारों ने जमकर प्रचार
अभियान चला लिया था और नया कुछ करने को बाकी नहीं रह गया था । सच यह है कि
उम्मीदवार भी और 'वोटर' भी पूरी तरह पक/चट गए थे । दरअसल चुनाव चूँकि
अक्टूबर/नवंबर में होते हैं, इसलिए उम्मीदवार अपनी सक्रियता का प्लान भी
इसी तरह बनाते हैं कि उनका चुनाव अभियान अक्टूबर/नवंबर तक पूरा हो जाये । मौजूदा
रोटरी वर्ष में भी उम्मीदवारों ने तो प्लान इसी तरह से बनाया और अपना
चुनाव अभियान तय समय तक पूरा कर लिया, लेकिन चुनाव आगे खिसकता गया । ऐसे
में, उम्मीदवारों के सामने सचमुच में यह संकट पैदा हो गया कि अब वह क्या
करें ? इसी संकट के चलते चुनावी सरगर्मियाँ ठंडी पड़ गईं ।
लेकिन प्रसून चौधरी की उम्मीदवारी के लिए समर्थन जुटाने हेतु जोन स्तर पर शुरू हुईं मीटिंग्स ने चुनावी हलचल में एक बार फिर से गर्मी पैदा करने का काम किया है । गाजियाबाद क्षेत्र के दो जोन में प्रसून चौधरी की उम्मीदवारी के समर्थकों ने मीटिंग्स कर ली हैं; दिल्ली के कुछेक जोन में मीटिंग्स के कार्यक्रम तय होने की सूचनाएँ मिल रही हैं और प्रसून चौधरी के समर्थकों की तरफ से किया जा रहा दावा सुना जा रहा है कि जल्दी ही सभी जोन में मीटिंग्स के कार्यक्रम तय कर लिए जायेंगे तथा उचित समय तक सभी जोन में मीटिंग्स कर ली जायेंगी । प्रसून चौधरी की उम्मीदवारी के समर्थकों की इस आक्रामक रणनीति का उनके प्रतिद्धंद्धी उम्मीदवार सतीश सिंघल की तरफ से कैसे मुकाबला किया जायेगा, इसका कोई संकेत लोगों को अभी तक नहीं मिला है । इस कारण, चुनाव अभियान के इस दूसरे दौर में सतीश सिंघल के मुकाबले प्रसून चौधरी के चुनाव अभियान को बढ़त लेते हुए देखा/पाया जा रहा है ।
प्रसून चौधरी को बढ़त इसलिए भी मिलती दिख रही है क्योंकि हाल ही में रोटरी इंटरनेशनल प्रेसीडेंट गैरी हुआंग की उपस्थिति में डिस्ट्रिक्ट में हुए रू-ब-रू आयोजन में रोटरी फाउंडेशन के संदर्भ में प्रसून चौधरी का प्रदर्शन काफी अच्छा रहा । सतीश सिंघल का क्लब यूँ तो काफी प्रभावी बताया जाता है, लेकिन इंटरनेशनल प्रेसीडेंट तथा डिस्ट्रिक्ट के प्रमुख लोगों के सामने जब प्रदर्शन का मौका आया तो पता नहीं क्यों सतीश सिंघल अपने को और अपने क्लब को चार्जड दिखाने से चूक गए । रू-ब-रू आयोजन में हुए 'प्रदर्शन' के आधार पर डिस्ट्रिक्ट के प्रमुख लोगों ने प्रसून चौधरी और सतीश सिंघल के बीच तुलना की तो प्रसून चौधरी के पलड़े को भारी पाया/पहचाना । प्रसून चौधरी के पक्ष में डिस्ट्रिक्ट के प्रमुख लोगों के बीच बनी यह धारणा डिस्ट्रिक्ट के दूसरे लोगों तक ट्रांसफर हुई तो उसका फायदा प्रसून चौधरी को मिलना ही था । यह फायदा वैसे उतना नहीं मिलता, यदि प्रसून चौधरी की तरफ से जोन स्तर पर मीटिंग्स का कार्यक्रम न शुरू किया गया होता । प्रसून चौधरी की तरफ से जोन स्तर पर शुरू हुईं मीटिंग्स और मीटिंग्स की तैयारी ने एक तरह से कड़ी-से-कड़ी जोड़ने का काम किया और इंटरनेशनल प्रेसीडेंट के साथ हुए रू-ब-रू कार्यक्रम में भारी हुए अपने पलड़े को और भारी बना लिया है ।
प्रसून चौधरी को बढ़त बनाते देखने के बावजूद प्रसून चौधरी की उम्मीदवारी के कई एक समर्थक सतीश सिंघल से मिल सकने वाली चुनौती को लेकर हालाँकि गंभीर भी बने हुए हैं । उनका मानना और कहना है कि सतीश सिंघल अभी भले ही प्रसून चौधरी से पिछड़ते नजर आ रहे हों, लेकिन सतीश सिंघल को इस पिछड़न को दूर करने के लिए ज्यादा प्रयास नहीं करने पड़ेंगे और थोड़े से प्रयासों से ही वह अपनी स्थिति को बेहतर बना सकेंगे । चुनाव अभियान के पहले चरण में भी ऐसा ही हुआ था । प्रसून चौधरी और सतीश सिंघल के बीच की होड़ को दिलचस्पी और नजदीक से देख रहे रोटेरियंस का मानना और कहना है कि प्रसून चौधरी के साथ अच्छी बात यह रही है कि उन्होंने शुरू से ही अपनी कमजोरियों को जाना/पहचाना और उन्हें दूर करते हुए आगे बढ़ने का काम किया; उनके रवैये के विपरीत सतीश सिंघल ने अपनी खूबियों पर मुग्ध होने/रहने का काम किया तथा अपनी कमजोरियों को पहचानने/समझने का ज्यादा प्रयास ही नहीं किया - उन्हें दूर करने का प्रयास तो फिर क्या ही होता । यही कारण रहा कि ऐसे कई प्रमुख रोटेरियंस जिन्हें सतीश सिंघल के साथ या तो होना चाहिए था और या जिन्हें उनके साथ शुरू में देखा भी जा रहा था - वह या तो चुप बैठे दिख रहे हैं और या प्रसून चौधरी की उम्मीदवारी का झंडा उठाये हुए नजर आ रहे हैं । दरअसल इसलिए ही सतीश सिंघल जहाँ मौकों का फायदा उठाने में चूकते हुए दिख रहे हैं; वहीं प्रसून चौधरी मौकों का फायदा उठाते हुए सतीश सिंघल के मुकाबले बढ़त बनाने में कामयाब होते हुए नजर आ रहे हैं ।
लेकिन प्रसून चौधरी की उम्मीदवारी के लिए समर्थन जुटाने हेतु जोन स्तर पर शुरू हुईं मीटिंग्स ने चुनावी हलचल में एक बार फिर से गर्मी पैदा करने का काम किया है । गाजियाबाद क्षेत्र के दो जोन में प्रसून चौधरी की उम्मीदवारी के समर्थकों ने मीटिंग्स कर ली हैं; दिल्ली के कुछेक जोन में मीटिंग्स के कार्यक्रम तय होने की सूचनाएँ मिल रही हैं और प्रसून चौधरी के समर्थकों की तरफ से किया जा रहा दावा सुना जा रहा है कि जल्दी ही सभी जोन में मीटिंग्स के कार्यक्रम तय कर लिए जायेंगे तथा उचित समय तक सभी जोन में मीटिंग्स कर ली जायेंगी । प्रसून चौधरी की उम्मीदवारी के समर्थकों की इस आक्रामक रणनीति का उनके प्रतिद्धंद्धी उम्मीदवार सतीश सिंघल की तरफ से कैसे मुकाबला किया जायेगा, इसका कोई संकेत लोगों को अभी तक नहीं मिला है । इस कारण, चुनाव अभियान के इस दूसरे दौर में सतीश सिंघल के मुकाबले प्रसून चौधरी के चुनाव अभियान को बढ़त लेते हुए देखा/पाया जा रहा है ।
प्रसून चौधरी को बढ़त इसलिए भी मिलती दिख रही है क्योंकि हाल ही में रोटरी इंटरनेशनल प्रेसीडेंट गैरी हुआंग की उपस्थिति में डिस्ट्रिक्ट में हुए रू-ब-रू आयोजन में रोटरी फाउंडेशन के संदर्भ में प्रसून चौधरी का प्रदर्शन काफी अच्छा रहा । सतीश सिंघल का क्लब यूँ तो काफी प्रभावी बताया जाता है, लेकिन इंटरनेशनल प्रेसीडेंट तथा डिस्ट्रिक्ट के प्रमुख लोगों के सामने जब प्रदर्शन का मौका आया तो पता नहीं क्यों सतीश सिंघल अपने को और अपने क्लब को चार्जड दिखाने से चूक गए । रू-ब-रू आयोजन में हुए 'प्रदर्शन' के आधार पर डिस्ट्रिक्ट के प्रमुख लोगों ने प्रसून चौधरी और सतीश सिंघल के बीच तुलना की तो प्रसून चौधरी के पलड़े को भारी पाया/पहचाना । प्रसून चौधरी के पक्ष में डिस्ट्रिक्ट के प्रमुख लोगों के बीच बनी यह धारणा डिस्ट्रिक्ट के दूसरे लोगों तक ट्रांसफर हुई तो उसका फायदा प्रसून चौधरी को मिलना ही था । यह फायदा वैसे उतना नहीं मिलता, यदि प्रसून चौधरी की तरफ से जोन स्तर पर मीटिंग्स का कार्यक्रम न शुरू किया गया होता । प्रसून चौधरी की तरफ से जोन स्तर पर शुरू हुईं मीटिंग्स और मीटिंग्स की तैयारी ने एक तरह से कड़ी-से-कड़ी जोड़ने का काम किया और इंटरनेशनल प्रेसीडेंट के साथ हुए रू-ब-रू कार्यक्रम में भारी हुए अपने पलड़े को और भारी बना लिया है ।
प्रसून चौधरी को बढ़त बनाते देखने के बावजूद प्रसून चौधरी की उम्मीदवारी के कई एक समर्थक सतीश सिंघल से मिल सकने वाली चुनौती को लेकर हालाँकि गंभीर भी बने हुए हैं । उनका मानना और कहना है कि सतीश सिंघल अभी भले ही प्रसून चौधरी से पिछड़ते नजर आ रहे हों, लेकिन सतीश सिंघल को इस पिछड़न को दूर करने के लिए ज्यादा प्रयास नहीं करने पड़ेंगे और थोड़े से प्रयासों से ही वह अपनी स्थिति को बेहतर बना सकेंगे । चुनाव अभियान के पहले चरण में भी ऐसा ही हुआ था । प्रसून चौधरी और सतीश सिंघल के बीच की होड़ को दिलचस्पी और नजदीक से देख रहे रोटेरियंस का मानना और कहना है कि प्रसून चौधरी के साथ अच्छी बात यह रही है कि उन्होंने शुरू से ही अपनी कमजोरियों को जाना/पहचाना और उन्हें दूर करते हुए आगे बढ़ने का काम किया; उनके रवैये के विपरीत सतीश सिंघल ने अपनी खूबियों पर मुग्ध होने/रहने का काम किया तथा अपनी कमजोरियों को पहचानने/समझने का ज्यादा प्रयास ही नहीं किया - उन्हें दूर करने का प्रयास तो फिर क्या ही होता । यही कारण रहा कि ऐसे कई प्रमुख रोटेरियंस जिन्हें सतीश सिंघल के साथ या तो होना चाहिए था और या जिन्हें उनके साथ शुरू में देखा भी जा रहा था - वह या तो चुप बैठे दिख रहे हैं और या प्रसून चौधरी की उम्मीदवारी का झंडा उठाये हुए नजर आ रहे हैं । दरअसल इसलिए ही सतीश सिंघल जहाँ मौकों का फायदा उठाने में चूकते हुए दिख रहे हैं; वहीं प्रसून चौधरी मौकों का फायदा उठाते हुए सतीश सिंघल के मुकाबले बढ़त बनाने में कामयाब होते हुए नजर आ रहे हैं ।