Wednesday, July 11, 2018

इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स की सेंट्रल काउंसिल के लिए राजिंदर नारंग की अचानक से प्रस्तुत हुई उम्मीदवारी ने पहले से ही मुसीबतों में घिरी चरनजोत सिंह नंदा तथा हंसराज चुग की उम्मीदवारी को और गहरी मुसीबत में धकेल दिया है

नई दिल्ली । राजिंदर नारंग द्वारा सेंट्रल काउंसिल के लिए प्रस्तुत उम्मीदवारी को चरनजोत सिंह नंदा तथा हंसराज चुग ने अपने अपने लिए एक मुसीबत के रूप में देखा/पहचाना है, और इसीलिए इनकी तरफ से राजिंदर नारंग की उम्मीदवारी को वापस करवाने के लिए तरह तरह की कोशिशें हो रही हैं । चरनजोत सिंह नंदा और हंसराज चुग के नजदीकियों की तरफ से जो कुछ सुनने को मिल रहा है, उसके अनुसार इनके लिए मुसीबत की बात यह हुई है कि राजिंदर नारंग का जो आधार क्षेत्र है - उसमें इन्होंने पिछले दिनों अपनी अपनी उम्मीदवारी के लिए समर्थन जुटाने वास्ते काफी काम किया है, और इन्हें लगता है कि उक्त क्षेत्र में इन्होंने अपने अपने लिए अच्छा समर्थन जुटाया है । इन्हें लग रहा है कि लेकिन राजिंदर नारंग ने सेंट्रल काउंसिल के लिए अचानक से उम्मीदवारी प्रस्तुत करके इनकी सारी 'मेहनत' पर पानी फेर दिया है और इनकी पूरी योजना का गुड़ गोबर कर दिया है । उल्लेखनीय है कि चरनजोत सिंह नंदा सेंट्रल काउंसिल में पुनर्वापसी के लिए जोर लगा रहे हैं, तो हंसराज चुग सेंट्रल काउंसिल में प्रवेश करने के लिए हाथ-पैर मार रहे हैं । हंसराज चुग ने पिछली बार भी चुनाव लड़ा था, और वह थोड़े से अंतर से ही सेंट्रल काउंसिल में प्रवेश करने से रह गए थे । अबकी बार उन्होंने सेंट्रल काउंसिल के लिए पहले से ही चुनावी तैयारी शुरू कर दी थी, ताकि पिछली बार रह गई कमी को पूरा किया जा सके । हंसराज चुग की तैयारी को लेकिन राजिंदर नारंग की अचानक से प्रस्तुत हुई उम्मीदवारी से ग्रहण लगता नजर आ रहा है ।
राजिंदर नारंग इंस्टीट्यूट की नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के सदस्य हैं, और हिसार ब्रांच के सदस्य हैं । हरियाणा के वेस्टर्न हिस्से का प्रतिनिधित्व करता हिसार एक ऐतिहासिक शहर है, जो भावनात्मक रूप से एक तरफ रोहतक व भिवानी से जुड़ता है, और दूसरी तरफ सिरसा व भटिंडा तक अपनी पहुँच बनाता, तथा तीसरी तरफ जींद, कैथल, कुरुक्षेत्र के रास्ते पानीपत व सोनीपत को अपने घेरे में लेता है । इंस्टीट्यूट की चुनावी राजनीति में इस क्षेत्र को भारी उपेक्षा सहनी पड़ती है; दिल्ली के उम्मीदवार लोग चंडीगढ़, लुधियाना, जालंधर अमृतसर और शिमला तक के तो चक्कर लगा लेंगे, लेकिन यहाँ यदा-कदा ही झाँकने आयेंगे । हालाँकि इसका वाजिब कारण भी है - ब्रांचेज छोटी छोटी हैं, और उनके सदस्य भी आसपास के शहरों/कस्बों तक फैले हुए हैं । इस कारण न तो यहाँ से कोई उम्मीदवार बनने की हिम्मत करता है, और न दिल्ली या चंडीगढ़/लुधियाना के उम्मीदवार यहाँ समय और मेहनत खराब करना चाहते हैं । इस पूरे क्षेत्र में साढ़े तीन हजार से लेकर चार हजार के बीच चार्टर्ड एकाउंटेंट्स हैं, और जो एक बड़े क्षेत्रफल में फैले/बिखरे हुए हैं । राजिंदर नारंग पहले और अकेले चार्टर्ड एकाउंटेंट हैं, जिन्होंने इस क्षेत्र को इंस्टीट्यूट के राजनीतिक नक्शे पर पहचान दिलाई है । रीजनल काउंसिल के पिछले चुनाव में इसी क्षेत्र के समर्थन के भरोसे राजिंदर नारंग 58 उम्मीदवारों में 777 वोटों के साथ छठे नंबर पर रहे थे । राजिंदर नारंग की कामयाबी ने दिखाया/बताया कि सफलता सिर्फ दिल्ली या चंडीगढ़/लुधियाना जैसे बड़े इलाकों/शहरों की ही बपौती नहीं है, बल्कि तुलनात्मक रूप से एक छोटे क्षेत्र को अपना आधार-क्षेत्र बना कर भी चुनावी सफलता प्राप्त की जा सकती है । राजिंदर नारंग ने रीजनल काउंसिल के चुनाव में हिसार और आसपास के क्षेत्र को जो राजनीतिक पहचान दिलाई, उसी क्षेत्र में चरनजोत सिंह नंदा तथा हंसराज चुग ने सेंट्रल काउंसिल की अपनी उम्मीदवारी के लिए शरण पाने का प्रयास किया ।
चरनजोत सिंह नंदा तथा हंसराज चुग ने अलग अलग कारणों से पिछले दिनों हिसार और उसके आसपास के क्षेत्र को अपनी सक्रियता का केंद्र बनाया हुआ है । दरअसल, चरनजोत सिंह नंदा को सेंट्रल काउंसिल में पुनर्वापसी करने की अपनी कोशिश में दिल्ली तथा चंडीगढ़, लुधियाना, अमृतसर जैसे बड़े इलाके व शहरों में विरोध का सामना करना पड़ रहा है । सेंट्रल काउंसिल में पुनर्वापसी की उनकी कोशिश को लोग अच्छी निगाह से नहीं देख रहे हैं और मान रहे हैं कि चरनजोत सिंह नंदा इंस्टीट्यूट व प्रोफेशन के हित में नहीं, बल्कि अपने निजी स्वार्थ में यह पुनर्वापसी करना चाह रहे हैं । कई जगह चरनजोत सिंह नंदा को चार्टर्ड एकाउंटेंट्स - खासकर युवा चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के तीखे विरोधभरे सवालों का सामना करना पड़ा है कि वह तमाम वर्ष सेंट्रल काउंसिल में रह चुके हैं, लिहाजा ऐसा कौन सा काम है - जो वह इतने वर्षों में नहीं कर सके और जिसके लिए वह फिर से सेंट्रल काउंसिल में आना चाहते हैं ? अपनी उम्मीदवारी का इस तरह विरोध होता देख चरनजोत सिंह नंदा ने उपेक्षित हिसार और उसके आसपास के क्षेत्र पर ध्यान देना शुरू किया । हंसराज चुग ने पिछली बार के चुनाव में काफी मेहनत की थी, पिछली बार चुनाव के समय वह रीजनल काउंसिल के सदस्य थे और उसका फायदा उन्हें मिला ही था - जो अब की बार उन्हें नहीं मिल सकेगा । ऐसे में उनके सामने यह चुनौती थी कि वह अपने समर्थन को बढ़ाने के लिए नए क्षेत्र खोजें, और इसी चुनौती को पूरा करने के लिए उन्होंने भी हिसार और आसपास के क्षेत्र पर ध्यान देना शुरू किया । दिल्ली और चंडीगढ़/लुधियाना में दौड़ लगाने वाले अधिकतर उम्मीदवारों को चूँकि इस क्षेत्र पर ध्यान नहीं था, इसलिए चरनजोत सिंह नंदा और हंसराज चुग ने अपने अपने तरीके से अपनी अपनी उम्मीदवारी के लिए इस क्षेत्र पर जो ध्यान दिया, उसका उन्हें सुफल भी मिलता नजर आ रहा था ।
लेकिन राजिंदर नारंग के सेंट्रल काउंसिल के लिए उम्मीदवारी प्रस्तुत करने से चरनजोत सिंह नंदा और हंसराज चुग को अपनी सारी तैयारी पर पानी फिरता दिख रहा है । इनके नजदीकियों का कहना है कि इन्हें दरअसल उम्मीद नहीं थी कि राजिंदर नारंग सेंट्रल काउंसिल के लिए उम्मीदवार हो जायेंगे । राजिंदर नारंग ने अचानक से अपनी उम्मीदवारी प्रस्तुत करके चौंकाया तो कई लोगों को, लेकिन चरनजोत सिंह नंदा तथा हंसराज चुग की तो चुनावी व्यूह रचना को ही ध्वस्त कर दिया है । इंस्टीट्यूट की चुनावी राजनीति में उपेक्षा का शिकार होने/रहने वाले हिसार क्षेत्र को राजिंदर नारंग ने पहचान व प्रतिष्ठा तो दिलवाई ही है, इंस्टीट्यूट की प्रशासनिक व्यवस्था का भी ध्यान इस क्षेत्र की तरफ खींचा है । पिछले पाँच/छह वर्षों में इस क्षेत्र में जो नई नई ब्रांचेज खुली हैं तथा स्टडी सर्किल शुरू हुए हैं, उन्हें क्षेत्र के लोगों के बीच राजिंदर नारंग की उपलब्धियों के रूप में ही देखा/पहचाना जा रहा है । ऐसे में, राजिंदर नारंग के उम्मीदवार हो जाने से इन्हें अब इस क्षेत्र में कुछ मिलता हुआ नहीं दिख रहा है । राजिंदर नारंग की अचानक से प्रस्तुत हुई उम्मीदवारी ने पहले से ही मुसीबतों में घिरी चरनजोत सिंह नंदा तथा हंसराज चुग की उम्मीदवारी को और गहरी मुसीबत में धकेल दिया है । इनके नजदीकियों का कहना है कि इस अचानक आ टपके खतरे से निपटने के लिए इन्होंने अलग अलग तरीकों का इस्तेमाल करते हुए राजिंदर नारंग की उम्मीदवारी को वापस करवाने के लिए प्रयास शुरू किए हैं । यह देखना दिलचस्प होगा कि इनके प्रयास सफल होते हैं या राजिंदर नारंग अपनी उम्मीदवारी के जरिये इनके लिए मुसीबत बने ही रहते हैं ।