गाजियाबाद । चार्टर्ड एकाउंटेंट्स इंस्टीट्यूट की गाजियाबाद ब्रांच में पिछले वर्ष हुई
घपलेबाजी का मामला ब्रांच के मौजूदा चेयरमैन पुनीत सखुजा, पिछले वर्ष के
चेयरमैन सचिंदर गर्ग और सेंट्रल इंडिया रीजनल काउंसिल के सदस्य मुकेश बंसल
के लिए एकसाथ जी का जंजाल बन गया है - और सभी की निगाह एक अगस्त को होने
वाली ब्रांच की एजीएम पर है, जिसमें पिछले वर्ष के एकाउंट्स प्रस्तुत और
स्वीकार किए जाने की कार्रवाई होनी है । इस वर्ष की एजीएम को लेकर
गाजियाबाद के चार्टर्ड एकाउंटेंट्स और उनके नेताओं की ही नहीं, बल्कि
सेंट्रल रीजन के तमाम नेताओं की दिलचस्पी दरअसल इसलिए है - क्योंकि हर कोई
जानना/देखना चाहता है कि पिछले वर्ष हुए घपले को पकड़ने में पुनीत सखुजा ने
जो तत्परता और आक्रामकता दिखाई, उसे वह लॉजिकल कन्क्लूजन तक ले जा पाते हैं
या उनकी तत्परता और आक्रामकता बीच रास्ते में ही दम तोड़ देती है । पुनीत
सखुजा इस बात पर गर्व करते हैं कि उन्होंने तत्परता और आक्रामकता के साथ
कार्रवाई करते हुए ब्रांच और इंस्टीट्यूट के करीब साढ़े छह लाख रुपए बचाए;
दूसरे लोगों को लेकिन लगता है कि इतना काफी नहीं है; उनका कहना है कि पिछले
वर्ष हुए इस घपले के लिए जिम्मेदार लोगों पर कार्रवाई होनी चाहिए, ताकि
आगे कोई इस तरह का घपला करने के बारे में न सोच सके । यह माँग करने
वाले लोग दरअसल पिछले वर्ष के चेयरमैन सचिंदर गर्ग को 'सजा' दिलवाना चाहते
हैं । उनका तर्क है कि सचिंदर गर्ग की मिलीभगत के बिना उक्त घपला हो ही
नहीं सकता था ।
इस मामले में रोमांचपूर्ण पहलू यह है कि
कुछेक लोग सचिंदर गर्ग की ऊँगली पकड़ कर मुकेश बंसल का 'पहुँचा' पकड़ने की
कोशिश करने लगे हैं । उनका कहना है कि सचिंदर गर्ग चूँकि मुकेश बंसल के
'आदमी' हैं, इस नाते पिछले वर्ष चेयरमैन भले ही सचिंदर गर्ग थे - लेकिन
ब्रांच में राजपाट मुकेश बंसल का ही चला था; और ऐसा हो ही नहीं सकता
कि पिछले वर्ष जो घपला हुआ, उसकी जानकारी मुकेश बंसल को न हो । इस तर्क के
साथ, पिछले वर्ष हुए घपले में कुछेक लोग मुकेश बंसल की जिम्मेदारी भी 'तय'
करने/करवाने के काम में लगे हैं । कई लोगों को यह भी लगता है कि मौजूदा
वर्ष चूँकि चुनावी वर्ष है, इसलिए उम्मीदवार लोग अपने आप को आगे बढ़ाने के
लिए दूसरे उम्मीदवारों को नीचे खींचने का काम करेंगे ही - और इस काम में
घपलेबाजी के आरोप मामले को सनसनीखेज तो बनाते ही हैं । सचिंदर गर्ग ने इस
बात का फायदा उठाते हुए घपलेबाजी के आरोप की अपने ऊपर पड़ी धूल को झाड़ने का
काम शुरू भी कर दिया है । उनका कहना है कि मुकेश बंसल को फँसाने के लिए
उन्हें नाहक ही बलि का बकरा बनाया जा रहा है और मामले को बढ़ाचढ़ा कर पेश
किया जा रहा है । उनका कहना है कि जो मामला है, वह वास्तव में अतिरिक्त
भुगतान संबंधी छोटी सी प्रशासनिक चूक का मामला है, जिसे घपला कहना उचित
नहीं है । सचिंदर गर्ग का कहना है कि लेकिन चुनावी मुकाबलेबाजी की होड़ में
लगे लोगों ने बात का बतंगड़ बना दिया है, और मुकेश बंसल के साथ नजदीकी के कारण उन्हें बदनामी का शिकार बनना पड़ रहा है ।
मामला
हालाँकि इतना सीधा/सरल भी नहीं है, क्योंकि मामले में पुनीत सखुजा को खासी
गंभीर लड़ाई लड़नी पड़ी है । मामला यदि अतिरिक्त भुगतान संबंधी छोटी सी
प्रशासनिक चूक का होता, तो ब्रांच के चेयरमैन के रूप में पुनीत सखुजा को
एफआईआर करवाने की धमकी देने की हद तक नहीं जाना पड़ता । उल्लेखनीय है कि
पिछले वर्ष ब्रांच में लगे कम्प्यूटर्स के भुगतान में गड़बड़ी को पकड़ने का
काम पुनीत सखुजा ने चेयरमैन का अपना कार्यकाल शुरू होते ही पकड़ लिया था ।
पहले तो पिछले वर्ष के ब्रांच के पदाधिकारियों तथा कम्प्यूटर्स सप्लाई करने
वाले बेंडर ने गड़बड़ी की बात से साफ इंकार किया, लेकिन कागजातों में ही
गड़बड़ी के जो संकेत और सुबूत नजर आ रहे थे - उन्हें देखते हुए पुनीत सखुजा
ने सख्ती दिखाई और मामले में एफआईआर दर्ज करने की बात की । इसके बाद
बेंडर करीब साढ़े छह लाख रुपये वापस करने के लिए राजी हुआ और ब्रांच को उक्त
रकम वापस मिली । उम्मीद की जा रही थी कि रकम वापस मिलने से मामला समाप्त
हो जायेगा, लेकिन हुआ उल्टा । दरअसल रकम वापस मिलने से, और सख्ती करने के
बाद वापस मिलने से यह तो स्पष्ट हो ही गया है कि मामला घपलेबाजी का ही है ।
इसमें अब जिम्मेदारी तय करने की बात शुरू होने लगी । कुछेक लोगों ने
कहना शुरू किया कि उक्त घपलेबाजी पिछले वर्ष के पदाधिकारियों की मिलीभगत के
बिना संभव नहीं हो सकती है, इसलिए उनके खिलाफ भी कार्रवाई होनी चाहिए ।
पुनीत सखुजा इस बारे में यह कहते हुए अपने हाथ खड़े कर दे रहे हैं कि जो
हुआ, उसकी पूरी रिपोर्ट उन्होंने इंस्टीट्यूट प्रशासन को भेज दी है; किसके
खिलाफ क्या कार्रवाई होनी चाहिए, यह इंस्टीट्यूट प्रशासन को तय करना है,
उन्हें नहीं ।
पुनीत सखुजा के इस रवैये से लोगों को लगा है कि ब्रांच के प्रशासनिक
स्तर पर उक्त मामला अब खत्म हो गया है । इस मामले में लेकिन मुकेश बंसल को
भी खींच लिए जाने से लोगों को लग रहा है कि अब यह मामला ब्रांच के
प्रशासनिक स्तर से हट कर चुनावी राजनीति के मैदान में शिफ्ट हो रहा है । इसी
नाते लोगों की निगाह एक अगस्त को होने वाली ब्रांच की एजीएम पर है । एजीएम
में यह मामला कैसे हैंडिल होता है, इस पर निर्भर करेगा कि राजनीतिक मैदान
पर इस मामले को कैसे खेला जायेगा । उम्मीद यही की जा रही है कि पिछले वर्ष गाजियाबाद ब्रांच में हुए घपले को लेकर गाजियाबाद और सेंट्रल रीजन में राजनीतिक नजरिये से बबाल अभी मचेगा, और राजनीति की पिच पर यह मामला आसानी से दफ्न नहीं होगा ।