Sunday, July 8, 2018

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3012 में अशोक अग्रवाल ने अपने क्लब के सदस्यों को विश्वास में लेने के साथ साथ अपनी तरफ से डिस्ट्रिक्ट के लोगों से संपर्क करने की अपनी कोशिशों को भी बढ़ाया है, जिसका डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव के संदर्भ में उन्हें अच्छा नतीजा भी मिलता दिख रहा है

गाजियाबाद । अशोक अग्रवाल ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की अपनी उम्मीदवारी के लिए समर्थन जुटाने हेतु न सिर्फ अपनी रणनीति पर पुनर्विचार करना शुरू किया है, बल्कि अपनी सक्रियता को भी बढ़ाया है, और वन-टू-वन पर ज्यादा ध्यान देना शुरू किया है । मजे की बात यह है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव के संदर्भ में अधिकतर लोग अशोक अग्रवाल की स्थिति को ही मजबूत मान रहे हैं, और अधिकतर लोगों को लग रहा है कि उनके प्रतिद्धंद्धी उम्मीदवार के रूप में अमित गुप्ता के लिए उनका मुकाबला करना मुश्किल क्या, असंभव ही होगा । कई एक लोगों ने तो कहना भी शुरू कर दिया कि अमित गुप्ता जब अशोक अग्रवाल की मजबूत स्थिति को देखेंगे और पायेंगे कि डिस्ट्रिक्ट के अधिकतर लोग अशोक अग्रवाल के साथ हैं, तो वह अपनी उम्मीदवारी को वापस ही ले लेंगे । अधिकतर लोगों की इस राय और समझ ने लगता है कि अशोक अग्रवाल को अति-विश्वास से भर दिया और उन्होंने खुद को विजेता मानना/समझना शुरू भी कर दिया । लेकिन अमित गुप्ता को जब चुनावी मैदान में डटे देखा/पाया गया और महसूस किया गया कि अमित गुप्ता धीरे धीरे ही सही - चुनावी लड़ाई में 'टिक' और आगे बढ़ रहे हैं, तब अशोक अग्रवाल और उनके नजदीकियों का माथा ठनका । उन्हें डर हुआ कि अमित गुप्ता के साथ होने वाली उनकी चुनावी लड़ाई कहीं कछुए व खरगोश की दौड़ वाली कहानी को न दोहरा दे - जिसमें खरगोश और उसके साथी कछुए को दौड़ में कहीं देख/मान ही नहीं रहे थे व निश्चिन्त हो गए थे; और उनकी आँख तब 'खुली', जब उन्होंने दौड़ में अपने को पिछड़ा तथा कछुए को जीता हुआ पाया ।
अशोक अग्रवाल और उनके साथियों ने लगता है कि इस बात को समझा/पहचाना है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की चुनावी लड़ाई में अभी वह भले ही आगे दिख रहे हैं - लेकिन उनके और अमित गुप्ता के बीच की दूरी कम भी होती जा रही है; और उन्होंने यदि लापरवाही बरतना जारी रखा तो उन्हें पीछे होने में भी देर नहीं लगेगी । दरअसल चुनावी प्रक्रिया में उम्मीदवार से लोगों को - खासकर 'अपने' लोगों को कुछ अलग किस्म की उम्मीदें हो जाती हैं, और वह एक अलग तरीके से 'सेंटीमेंटल' हो जाते हैं । कई बार उम्मीदवारों को यह गलती करते देखा गया है कि वह 'अपने' लोगों पर यह सोच कर ध्यान देना कम या बंद कर देते हैं कि यह तो 'अपना' है ही; उसका यह रवैया देख कर उसका 'अपना' सोचता है कि इसमें अभी से इतनी अकड़ आ गई है और यह अभी से ही हमें तवज्जो नहीं दे रहा है, सो वही 'अपने' उसे सबक सिखाने के लिए उसकी जड़ें खोद देते हैं - फिर वह उम्मीदवार 'मुझे तो अपनों ने ही मारा. गैरों में कहाँ दम था' बुदबुदाते हुए अपने दिन काटता है । यूँ तो यह हर 'स्तर' पर होता है - जैसा कि डिस्ट्रिक्ट में सतीश सिंघल के साथ हुआ; उनके क्लब के जिन लोगों ने ब्लड बैंक बनवाने में उनका हर तरह से साथ दिया था, सतीश सिंघल के व्यवहार से अपमानित महसूस करते हुए उन्हीं लोगों ने ही सतीश सिंघल को 'तबाह' भी कर दिया । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव के संदर्भ में अशोक अग्रवाल और उनके साथियों को खटका यह देख कर हुआ कि डिस्ट्रिक्ट में जब सभी उनके साथ हैं, तो अमित गुप्ता की उम्मीदवारी को खाद-पानी आखिर कौन दे रहा है ?
अशोक अग्रवाल ने इस बीच अलग अलग बहानों से दो एक बड़ी पार्टियाँ दीं, जिनमें लोगों की अच्छी भागीदारी भी रही; इससे अशोक अग्रवाल की उम्मीदवारी के पक्ष में माहौल तो अच्छा बना, लेकिन साथ साथ ही यह महसूस भी किया गया कि इससे लोगों के साथ व्यक्तिगत स्तर पर उनकी बॉन्डिंग नहीं बन रही है । कई लोग शिकायत करते हुए भी सुने गए कि अशोक अग्रवाल जब बिलकुल सामने ही पड़ जाते हैं, तब तो बड़े तपाक से मिलते हैं, लेकिन वैसे उनकी न तो कोई खोज-खबर लेते हैं और न अपनी तरफ से उनसे मिलने या बात करने की कोशिश करते हैं । इस तरह की बातों से अशोक अग्रवाल और उनके साथियों को वन-टू-वन मिलने पर ध्यान देने की जरूरत महसूस हुई । हाल-फिलहाल के दिनों में अशोक अग्रवाल ने अपने क्लब के सदस्यों पर भी ध्यान देना शुरू किया है; अभी तक वह अपने क्लब के गिने-चुने सदस्यों के साथ ही दिखाई देते रहे हैं, लेकिन पिछले कुछेक दिनों में उन्होंने अपने क्लब के अधिकतर सदस्यों को विश्वास में लेना शुरू किया है और अपनी उम्मीदवारी के लिए समर्थन जुटाने हेतु उन्हें सक्रिय करने का प्रयास किया है । अशोक अग्रवाल ने अपनी तरफ से लोगों से संपर्क करने की अपनी कोशिशों को भी बढ़ाया है, जिसका उन्हें अच्छा नतीजा मिलता दिख रहा है । अशोक अग्रवाल के रवैये में बदलाव आया है, तो उनके समर्थकों व शुभचिंतकों का भी उत्साह बढ़ा है - और समर्थकों व शुभचिंतकों के इस उत्साह ने अशोक अग्रवाल की उम्मीदवारी के दावे को फिर से मजबूती देने का काम किया है ।