Wednesday, July 4, 2018

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल के डायरेक्टर पद की कुर्सी तो तमाम मुसीबतों के बावजूद जेपी सिंह को मिल गई है, लेकिन लीडरशिप के स्वार्थी नेता अपने अपने स्वार्थ पूरा करने के चक्कर में उन्हें ठीक से डायरेक्टरी करने भी देंगे क्या ?

नई दिल्ली । जेपी सिंह अंततः इंटरनेशनल डायरेक्टर बन ही गए । इंटरनेशनल डायरेक्टर पद पाने के लिए जेपी सिंह को जैसी मुसीबतों का सामना करना पड़ा है, वैसी मुसीबतें शायद ही किसी और इंटरनेशनल डायरेक्टर ने झेली होंगी । हालाँकि मजे की बात यह रही कि हालात हमेशा ही पूरी तरह जेपी सिंह के अनुकूल ही रहे और लीडरशिप का उन्हें लगभग एकतरफा समर्थन मिलता रहा, लेकिन फिर भी शुरू से लेकर ऐन मौके तक मुसीबतें जैसे उनके पीछे पड़ी रहीं । कई लोगों का मानना और कहना है कि वास्तव में अधिकतर बार मुसीबतों को जेपी सिंह ने खुद ही आमंत्रित किया । अपनी राह आसान बनाने के लिए जेपी सिंह ने लीडरशिप से जो 'फैसले' करवाए, वह उलटे पड़े और उन्हीं फैसलों ने उनकी राह को आसान बनाने की बजाये मुश्किल बनाने का काम किया । दरअसल डिस्ट्रिक्ट से लेकर मल्टीपल तक में एंडोर्स होने के लिए जेपी सिंह ने मुकाबले से बचने की जो कोशिशें कीं, वहीं मुसीबत बन कर उन पर भारी पड़ीं । पहले डिस्ट्रिक्ट में अपने प्रतिद्धंद्धी उम्मीदवार को चुनावी मैदान से हटवाने की उन्होंने जो कोशिश की, वह उन पर इतनी भारी पड़ी कि अकेले उम्मीदवार होने के बावजूद वह डिस्ट्रिक्ट में एंडोर्समेंट लेने में फेल हो गए । यह तथ्य जेपी सिंह के लिए भारी फजीहत का कारण बना । किसी भी चुनाव में अकेला उम्मीदवार भी हार जाये - इससे पहले यह नहीं सुना गया था । पर यह रिकॉर्ड जेपी सिंह के नाम बना । इसके बाद मल्टीपल में भी अन्य प्रतिद्धंद्धी उम्मीदवारों को रास्ते से हटाने के लिए षड्यंत्र रचा गया, जिस पर जो बबाल हुआ - उसने ऐन मौके तक जेपी सिंह का साथ नहीं छोड़ा । लेकिन जैसा कि कहा/माना जाता है कि 'अंत भला, तो सब भला'; और 'जो जीता, वही सिकंदर' - इसलिए जेपी सिंह फिलहाल सिकंदर तो बन गए हैं - लेकिन आगे भी बने रहते हैं या नहीं, यह देखने की बात होगी ।
दरअसल जेपी सिंह ने अपने व्यवहार से अपने ही डिस्ट्रिक्ट में अपने 'दुश्मनों' की संख्या खासी बढ़ाई हुई है, और उनके अपने डिस्ट्रिक्ट के यही दुश्मन उनके बाहर के विरोधियों को 'गोली/बारूद' उपलब्ध करवाते रहते हैं । यूँ तो हर (पूर्व) डायरेक्टर को अपने अपने डिस्ट्रिक्ट में विरोध और अलग-थलग पड़ने का दंश झेलना पड़ता है, लेकिन जेपी सिंह के मामले में बात थोड़ी अलग है; और यह अलग इसलिए है क्योंकि डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति में झटके लगते रहने के बावजूद अपने डिस्ट्रिक्ट में उनका एक अच्छा-खासा समर्थन आधार है, और उनकी सक्रियता देख/समझ कर ऐसा भी नहीं लगता है कि दूसरे (पूर्व) डायरेक्टर्स की तरह वह सिर्फ जुगाड़ू बन कर रहना चाहते हैं । वह खासे ऊर्जावान हैं, उनके पास लायनिज्म को लेकर एक विज़न है, वास्तव में कुछ करने के लिए जरूरी इच्छाशक्ति भी उनमें है - इसलिए उम्मीद की जाती है कि वह डिस्ट्रिक्ट और मल्टीपल में ही नहीं, बल्कि उसके ऊपर भी एक बड़ी भूमिका निभा सकते हैं । उनके सामने बस एक ही चुनौती है, और वह चुनौती वह खुद हैं । एक खुन्नसी सोच के चलते वह खुद मुसीबतों को जैसे आमंत्रित करते हैं । जैसे, पिछले लायन वर्ष में उनके डिस्ट्रिक्ट में सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के चुनाव में यह शुरू से ही स्पष्ट था कि रमन गुप्ता की उम्मीदवारी का मुकाबला करने का दम मदन बत्रा में नहीं है; जेपी सिंह ने लेकिन मदन बत्रा को जबर्दस्ती सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए उम्मीदवार बना/बनवा कर डिस्ट्रिक्ट पर चुनाव थोपा, मदन बत्रा की हुई बुरी हार से अंततः जेपी सिंह की ही फजीहत हुई । जेपी सिंह की खुन्नस 'किसी और' से थी, उसका बदला लेकिन उन्होंने रमन गुप्ता और मदन बत्रा से निकाला और इस तरह न सिर्फ अपनी ही फजीहत करवाई, बल्कि अपने विरोधियों की संख्या में इजाफा और किया ।
जेपी सिंह को डिस्ट्रिक्ट व मल्टीपल तथा उससे ऊपर एक बड़ी भूमिका निभाते देखने के इच्छुक लोगों का मानना और कहना है कि जेपी सिंह यदि छोटे-छोटे स्वार्थों में पड़ना छोड़ दें और सचमुच में एक बड़ी सोच को व्यवहार में उतारें, तो वह वास्तव में हर किसी नेता पर खासे भारी पड़ेंगे । यह उन्होंने किया भी है । अपने डिस्ट्रिक्ट में ब्लड बैंक से चिपके रह कर उन्होंने खासी बदनामी और मुसीबतें 'कमाई' थीं, लेकिन जब वह ब्लड बैंक छोड़ने के लिए तैयार हुए और उन्होंने अपने आप को ब्लड बैंक से दूर कर लिया तब धीरे धीरे उनकी बदनामी और मुसीबतें भी कम होती गईं । जैसा कि कहा जा चुका है कि अपनी तमाम मुसीबतों के लिए जेपी सिंह खुद ही जिम्मेदार रहे हैं, इसलिए उम्मीद की जाती है कि वह अपने ही अनुभवों से सबक लेंगे और सावधानी बरतते हुए अपनी प्राथमिकताओं पर ध्यान देंगे, तो निश्चय ही लायनिज्म में बड़ी भूमिका निभायेंगे । कई लोगों का मानना और कहना है कि तमाम बाधाओं के बावजूद जेपी सिंह इंटरनेशनल डायरेक्टर पद की कुर्सी तक पहुँच गए हैं, तो इसका एक बड़ा कारण यह भी है कि लीडरशिप का उनको एकतरफा समर्थन मिला है । लीडरशिप के समर्थन के भरोसे जेपी सिंह को इंटरनेशनल डायरेक्टर की कुर्सी तो मिल गई है, लेकिन आगे का काम उन्हें खुद ही करना है । कुछेक लोगों का मानना और कहना है कि लीडरशिप के जो लोग अभी तक उनकी मदद करते रहे हैं, वही लोग अब अपने अपने स्वार्थ पूरे करने के लिए उनका इस्तेमाल करेंगे - अपने व्यवहार के साथ-साथ लीडरशिप के स्वार्थी नेताओं से निपटना जेपी सिंह के लिए भारी चुनौती होगा । यह देखना दिलचस्प होगा कि जेपी सिंह इस चुनौती से निपटने की जरूरत समझते भी हैं, या दूसरे (पूर्व) डायरेक्टर्स की तरह जुगाड़ू बने रह कर ही खुश रहते हैं ?