Tuesday, April 29, 2014

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3010 की पेट्स में अधिकतर पूर्व गवर्नर्स ने डॉक्टर सुब्रमणियन की उम्मीदवारी के प्रति समर्थन व्यक्त करके जिस पलड़े को डॉक्टर सुब्रमणियन की तरफ झुका दिया था, सेट्स में हुई राजनीति उस पलड़े को दीपक गुप्ता की तरफ ले आती हुई दिखी है

नई दिल्ली । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की चुनावी लड़ाई के बनते समीकरणों मैं पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स की सक्रियता ने डिस्ट्रिक्ट के दूसरे सक्रिय रोटेरियंस के बीच हलचल सी पैदा कर दी है । डिस्ट्रिक्ट के दूसरे सक्रिय रोटेरियंस के बीच सवाल दरअसल यह उठा है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की चुनावी लड़ाई का सारा पक्ष-विपक्ष यदि पूर्व गवर्नर्स ही तय कर लेंगे तो फ़िर हम क्या करेंगे ? पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स में से जिस तरह दो-तीन ने शरत जैन को अपना उम्मीदवार बना लिया है और बाकी अधिकतर ने डॉक्टर सुब्रमणियन की उम्मीदवारी का झंडा उठा लिया है, उसे 'देख' कर डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति के दूसरे खिलाड़ियों ने अपने आपको उपेक्षित और अपमानित महसूस किया है तथा अपने स्तर पर 'कुछ' करने की तैयारी शुरु की है ।
इस तैयारी के बीज पड़े सेट्स मैं । सेट्स में इसके लिए मौका भी इसलिए बना, क्योंकि वहाँ न तो उम्मीदवार थे और न ही उन उम्मीदवारों के प्रवर्तक थे । संजय खन्ना ने सेट्स को डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति के पचेड़े से बचाने के लिये ही यह व्यवस्था की थीं कि 'जब न रहेगा बाँस तो न बजेगी बाँसुरी ।' असल में, संजय खन्ना पेट्स को राजनीति की भेंट चढ़ते देख चुके थे । पेट्स में हालाँकि राजनीति तो अपने आपने तरीके से सभी ने की थी, लेकिन शरत जैन की उम्मीदवारी के समर्थक अरनेजा गिरोह के लोगों ने तो सारी हदें पार कर दी थीं । पेट्स में जितने भी पूर्व गवर्नर्स उपस्थित थे, उनमें सिर्फ़ मुकेश अरनेजा और रमेश अग्रवाल ही ऐसे थे जिन्होंने रोटरी और डिस्ट्रिक्ट का कोई भी काम वहाँ नहीं किया और सिर्फ़ शरत जैन की उम्मीदवारी का ही काम किया और इस तरह से पेट्स को डिस्टर्ब करने का ही काम किया । इसी से सबक लेकर संजय खन्ना ने उम्मीदवारों और उनके प्रवर्तकों को सेट्स से दूर ही रखा ।
सेट्स में नेता और उनके प्रवर्तक नहीं थे, तो दूसरे लोगों को राजनीति करने का मौका मिला । सेट्स में मौजूद लोगों ने, खास तौर से कुछेक असिस्टेंट गवर्नर्स ने पहल करके अपनी अपनी इस शिकायत को मुखर रूप से प्रस्तुत किया कि डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति में भूमिका निभाने की तैयारी कर रहे पूर्व गवर्नर्स और उनके समर्थन के भरोसे बने उम्मीदवार - उन्हें तो कुछ समझ ही नहीं रहे हैं; और ऐसा लगता है कि जैसे उन्हें तो उन लोगोँ ने अपना अपना पालतू समझ लिया है; उन्होंने जैसे मान लिया है कि वह जहाँ कहेंगे - दूसरे लोग वहीं अपना अगूँठा लगायेंगे । अपनी अपनी शिकायतों को रखने की इस प्रक्रिया में अपने आप ही जैसे यह तय होता गया कि उन्हेँ पूर्व गवर्नर्स के कहने भर से किसी उम्मीदवार का समर्थन नहीं करना है, बल्कि उम्मीदवार की सक्रियता और उसकी परफॉर्मेंस का आकलन करके ही फैसला करना होगा । यह तय करने में चूँकि कुछेक असिस्टेंट गवर्नर्स और 'स्पेशल 26' से जुड़े लोगों की भूमिका रही - इसलिए इस फैसले को डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति के संदर्भ में महत्वपूर्ण परिघटना के रूप में देखा/पहचाना जा रहा है ।
उल्लेखनीय है कि एक हिंदी फिल्म के टाइटल के अनुरूप नामकरण के साथ बनाये गए ग्रुप 'स्पेशल 26' करीब डेढ़ वर्ष पहले साथ-साथ अध्यक्ष रहे और अध्यक्ष के रूप में सक्रिय रहे 26 लोगों का एक ग्रुप है, जिसके सदस्य डिस्ट्रिक्ट में पुराने घिसे/पिटे तौर-तरीकों को बदलने की इच्छा रखते हैं तथा काम-काज और सक्रियता के नये रूप स्थापित करना चाहते हैं । 'स्पेशल 26' डिस्ट्रिक्ट के करीब 55 क्लब्स पर अपना प्रभाव मानता है । इस ग्रुप के कुछेक लोगों के संबंध हालाँकि मुकेश अरनेजा के साथ भी हैँ, लेकिन वह चूँकि रमेश अग्रवाल को फूटी आँख भी नहीं देख सकते हैं - इसलिए इस ग्रुप के लोगों में शरत जैन की उम्मीदवारी के प्रति तो समर्थन का कोई भाव नहीँ दिखता है । 'स्पेशल 26' के लोग पिछले दिनों यह चिंता प्रकट करते हुए अवश्य देखे/सुने गए कि डॉक्टर सुब्रमणियन और दीपक गुप्ता के उम्मीदवार होने की स्थिति में तो उनके सामने भारी धर्मसंकट हो जायेगा कि वह इन दोनों में से किसका समर्थन करें ? यह धर्मसंकट लेकिन सिर्फ 'स्पेशल 26' के लोगों के सामने ही नहीं है, डिस्ट्रिक्ट के दूसरे अन्य कई लोगों के सामने भी है । इसका कारण यही है कि डॉक्टर सुब्रमणियन और दीपक गुप्ता बहुत से लोगों के बीच कॉमन समर्थन-आधार रखते हैं ।
इस धर्मसंकट का हल हालाँकि - 'पूर्व गवर्नर्स के कहने भर से किसी उम्मीदवार का समर्थन नहीं करने और उम्मीदवार की सक्रियता तथा उसकी परफॉर्मेंस का आकलन करके ही फैसला करने' की बढ़ती और संगठित होती सोच में छिपा है । इस सोच ने दीपक गुप्ता के लिए संभावनाओं को बढ़ाने का काम किया है । उल्लेखनीय है कि पेट्स में जिस तरह से डिस्ट्रिक्ट के अधिकतर पूर्व गवर्नर्स ने डॉक्टर सुब्रमणियन की उम्मीदवारी के प्रति समर्थन व्यक्त करके पलड़े को डॉक्टर सुब्रमणियन की तरफ झुका दिया था, सेट्स में हुई राजनीति उस पलड़े को दीपक गुप्ता की तरफ ले आती हुई दिखी है । सेट्स में जो राजनीति हुई, उससे यह साफ हो गया है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की चुनावी लड़ाई में पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स का समर्थन मनोवैज्ञानिक फायदा भले ही देता हो, लेकिन असली मुकाबला सक्रियता और परफॉर्मेंस के सहारे ही जीता जा सकेगा । सेट्स में असिस्टेंट गवर्नर्स और 'स्पेशल 26' के कुछेक लोगों की पहल से जो राजनीति हुई, उसका फायदा उठाने में दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी के समर्थकों ने जिस तरह की तत्परता दिखाई उससे आभास मिलता है कि दीपक गुप्ता और उनके समर्थकों ने जैसे समझ लिया है कि अधिकतर और प्रमुख पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स ने भले ही डॉक्टर सुब्रमणियन की उम्मीदवारी के प्रति समर्थन व्यक्त किया हो, किंतु सक्रियता और परफॉर्मेंस के सहारे बाजी अपने पक्ष में करने का मौका उनके लिये अभी भी बचा हुआ है ।