Monday, April 21, 2014

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3010 में दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी और कई प्रमुख पूर्व गवर्नर्स द्धारा डॉक्टर सुब्रमणियन की उम्मीदवारी के प्रति व्यक्त किए गए समर्थन से डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए शरत जैन की उम्मीदवारी का समर्थन कर रहे अरनेजा गिरोह पर दोहरी मार पड़ी है

नई दिल्ली । दीपक गुप्ता डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के दूसरे उम्मीदवारों के लिए एक साथ एक पहेली भी बन गए हैं और एक मुसीबत भी । मजे की बात यह है कि दूसरे उम्मीदवार और उनके प्रवर्तक/समर्थक दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी में कोई दम भी देखने से इंकार कर रहे हैं, लेकिन साथ ही दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी में अपने अपने खेल के बिगड़ने की आहट भी सुन रहे हैं । दरअसल दीपक गुप्ता को डिस्ट्रिक्ट के जिन नेताओं से समर्थन मिलने की उम्मीद थी - वास्तव में जिनका समर्थन उन्हें घोषित भी हो गया था; लेकिन बाद में उनके पलट जाने और डॉक्टर सुब्रमणियन की उम्मीदवारी के समर्थन में हो जाने से दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी को तगड़ा झटका लगा । डॉक्टर सुब्रमणियन की उम्मीदवारी को डिस्ट्रिक्ट के सत्ता खेमे के नेताओं के समर्थन की घोषणा पेट्स में पहले दिन हुई और इस घोषणा के तुरंत बाद ही दीपक गुप्ता चूँकि अचानक से पेट्स-आयोजन से लौट आये - इसलिए उनके इस लौटने को उनके अपनी उम्मीदवारी से 'लौटने' के रूप में देखा गया । पेट्स से अचानक लौटने का जो कारण दीपक गुप्ता ने बताया, डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति के खिलाड़ियों ने उसे सच नहीं माना । जो स्थितियाँ बनीं, उसका डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के दूसरे उम्मीदवारों के समर्थकों ने फायदा उठाने का पूरा प्रयास किया और दीपक गुप्ता के उम्मीदवार बने रहने को लेकर संदेह फैलाना शुरू कर दिया । दीपक गुप्ता ने लेकिन उम्मीदवार बने रहने का दावा करके उनके प्रयासों को फलीभूत नहीं होने दिया है । इस बीच जिन लोगों से उनकी बात हुई उनसे दीपक गुप्ता ने स्पष्ट कर दिया है कि चुनावी राजनीति को लेकर नेताओं के बीच क्या समीकरण बने हैं या आगे क्या बनते हैं, इसकी परवाह किये बिना वह अपनी उम्मीदवारी बनाये हुए हैं और बनाये रहेंगे ।
दीपक गुप्ता का यह तेवर दूसरे उम्मीदवारों और उनके समर्थकों के लिए पहेली बना है - उनके लिए यह समझना मुश्किल हो रहा है कि दीपक गुप्ता को जब कहीं किसी नेता का समर्थन नहीं मिल रहा है तो फिर वह अपनी उम्मीदवारी को बनाये रखने का हौंसला आखिर कहाँ से पा रहे हैं ? दीपक गुप्ता के इस हौंसले ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए शरत जैन की उम्मीदवारी का समर्थन कर रहे अरनेजा गिरोह को सबसे ज्यादा संकट में डाला है । उल्लेखनीय है कि अरनेजा गिरोह गाजियाबाद और उत्तर प्रदेश में अपना समर्थन-आधार मानता और बताता है - लेकिन दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी के चलते उसके लिए यहाँ शरत जैन के लिए समर्थन जुटाना चुनौतीपूर्ण ही होगा । अरनेजा गिरोह ने गाजियाबाद और उत्तर प्रदेश का इंचार्ज भले ही जेके गौड़ को बना रखा हो, लेकिन दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी के कारण जेके गौड़ के लिए अपने गिरोह के लिए 'काम' करना उतना आसान नहीं होगा - जितना आसान उनके लिए सीओएल के चुनाव में रमेश अग्रवाल के लिए काम करना था । अरनेजा गिरोह को दरअसल दोहरी मार पड़ी है - डिस्ट्रिक्ट के कई प्रमुख पूर्व गवर्नर्स ने जिस तरह डॉक्टर सुब्रमणियन की उम्मीदवारी के प्रति समर्थन व्यक्त किया है, उसके चलते अरनेजा गिरोह के लिए दिल्ली के क्लब्स में भी समर्थन जुटाना मुश्किल होगा । दोहरी मुसीबत से बाहर निकलने की कोशिश में ही अरनेजा गिरोह ने दीपक गुप्ता पर अपनी उम्मीदवारी वापस लेने के लिए दबाव बनाया है; और इसके लिए दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी के बारे में झूठी ख़बरें फैलाने का हथकंडा भी उन्होंने अपनाया है । हालाँकि अभी तक उनका कोई हथकंडा सफल होता हुआ दिखा नहीं है ।
अरनेजा गिरोह को एक बड़ा झटका यह भी लगा है कि गिरोह का एक योद्धा तिहाड़ पहुँच गया है, जिसने सीओएल के चुनाव में रमेश अग्रवाल के लिए समर्थन जुटाने में बड़ी मेहनत की थी ।
अरनेजा गिरोह के लिए उम्मीद की किरण हालाँकि डॉक्टर सुब्रमणियन के रवैये में है । अरनेजा गिरोह के एक नेता का कहना है कि डॉक्टर सुब्रमणियन की उम्मीदवारी का समर्थन जो पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर कर रहे हैं, वह न तो सक्रिय रहते हैं और न ही सचमुच में कुछ करते हैं; खुद डॉक्टर सुब्रमणियन भी एक उम्मीदवार जैसी सक्रियता नहीं दिखा पाते हैं - इसलिए डॉक्टर सुब्रमणियन की उम्मीदवारी को कई बड़े नेताओं के समर्थन के बावजूद उनके लिए शरत जैन के लिए दिल्ली में समर्थन जुटाना ज्यादा मुश्किल नहीं होगा । डॉक्टर सुब्रमणियन के समर्थकों को अपनी इस कमजोरी का अहसास शायद है - और इसीलिए उन्होंने अपनी इस कमजोरी को दूर करने के लिए कमर कस ली है । कमर कसने के इसी क्रम में डॉक्टर सुब्रमणियन की उम्मीदवारी के समर्थकों ने भी दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी वापस कराने के प्रयास किये हैं । उन्हें लगता है कि दीपक गुप्ता अपनी उम्मीदवारी वापस लेकर यदि डॉक्टर सुब्रमणियन की उम्मीदवारी का समर्थन करते हैं तो डॉक्टर सुब्रमणियन की उम्मीदवारी को और बल मिलेगा ।
मजे की बात यह है कि दोनों खेमों के नेता लोग दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी को वापस कराने का प्रयास भी कर रहे हैं, और साथ ही यह दावा भी कर रहे हैं कि दीपक गुप्ता का कुछ बनेगा नहीं । इस पर दीपक गुप्ता के समर्थकों का कहना है कि दोनों खेमों के लोगों को जब विश्वास है कि दीपक गुप्ता का कुछ नहीं बनेगा, तब फिर वह दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी से परेशान क्यों हैं ? गाजियाबाद के कुछेक रोटेरियंस याद करते हैं कि जब जेके गौड़ ने अपनी उम्मीदवारी प्रस्तुत की थी, तब भी इन लोगों ने जेके गौड़ की उम्मीदवारी को हलके में लिया था । जेके गौड़ के बारे में तो लोग हालाँकि कहते भी थे कि - 'अब जेके गौड़ जैसे लोग डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बनेंगे क्या': दीपक गुप्ता के बारे में लोग कम-अस-कम ऐसा तो नहीं ही मानते/कहते हैं । जाहिर है कि जेके गौड़ के मुकाबले दीपक गुप्ता का 'वजन' ज्यादा है । हालाँकि यह नतीजा निकालने की कोशिश करना अभी जल्दबाजी करना होगा कि बिना किसी समर्थन-आधार के सफल होने की जेके गौड़ की कहानी को दोहरा पाना दीपक गुप्ता के लिए संभव होगा या नहीं । कई लोगों का मानना और कहना है कि 'अभी तक' - यानि पेट्स के आयोजन तक - जेके गौड़ ने सक्रियता का जो लेबल बना लिया था, दीपक गुप्ता अभी उससे पीछे हैं । दीपक गुप्ता के समर्थकों का इस संदर्भ में लेकिन एक मजेदार तर्क है - कि दीपक गुप्ता लेकिन इसलिए 'सौभाग्यशाली' भी हैं कि उनके संभावित प्रतिद्धंद्धी उनसे भी ज्यादा ढीले हैं । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के संभावित उम्मीदवारों की ढीलमढाल के बावजूद लेकिन परदे के पीछे चुनावी समीकरणों को बनाने/बिगाड़ने का खेल पूरा चल रहा है ।