गाजियाबाद । दीपक गुप्ता को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की उम्मीदवारी के संदर्भ में राजीव वशिष्ट के साथ डिस्ट्रिक्ट के कुछेक बड़े नेताओं के यहाँ जाने पर जेके गौड़ की खीज और आलोचना का शिकार होना पड़ा है । जेके
गौड़ ने कुछेक लोगों के बीच उलाहना दिया कि दीपक गुप्ता अब राजीव वशिष्ट के
भरोसे अपनी उम्मीदवारी के लिए समर्थन जुटायेंगे क्या ? जिन लोगों के बीच जेके गौड़ ने अपनी यह खीज निकाली, उनके लिए यह समझना हालाँकि मुश्किल हुआ कि जेके गौड़ इस संदर्भ में ज्यादा नाराज दीपक गुप्ता से हैं या राजीव वशिष्ट से - और या दोनों से ? मोटे तौर पर यही समझा गया कि कुल मिलाकर वह दोनों से ही नाराज हैं । जेके
गौड़ के नजदीकियों के अनुसार, जेके गौड़ को दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी से
इसलिए नाराजगी है क्योंकि दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी के कारण उनके पास
ज्यादा राजनीति करने का मौका ही नहीं बचेगा - और न उन्हें 'अपने' बॉस लोगों की 'राजनीतिक सेवा' करने का अवसर मिलेगा । दीपक गुप्ता ने अपनी चुनावी तैयारी में
राजीव वशिष्ट की मदद लेकर जेके गौड़ के इस आकलन और डर को सच भी साबित कर
दिया है । दरअसल, इसीलिए राजीव वशिष्ट को अपनी चुनावी तैयारी में शामिल
करने की दीपक गुप्ता की कोशिश से जेके गौड़ बुरी तरह भड़के हुए हैं ।
जेके गौड़ ने जिन लोगों को अपना यह भड़कना दिखाया, उनका कहना है कि जेके गौड़ अपनी उम्मीदवारी के दिनों को लगता है कि भूल गए हैं - जब मुकेश अरनेजा व रमेश अग्रवाल जैसे लोग उन्हें हतोत्साहित तथा
लगभग अपमानित करते थे; और जब वह अपनी उम्मीदवारी की मदद के लिए राजीव
वशिष्ट तथा उनके जैसे ही दूसरे लोगों की मदद पर निर्भर करते थे । जीतने के बाद जेके गौड़ को मुकेश अरनेजा व रमेश अग्रवाल अपने लगने लगे और राजीव वशिष्ट जैसे लोग उनके लिए पराये जैसे हो गए हैं - तो यह जेके गौड़ का शुद्ध अवसरवाद ही है । जेके
गौड़ ने अपनी उम्मीदवारी के दिनों में जब राजीव वशिष्ट की कई कई मौकों पर
मदद ली थी, तो अब वह इस बात पर क्यों भड़क रहे हैं कि उन्हीं राजीव वशिष्ट
की मदद अब दीपक गुप्ता ले रहे हैं ?
जेके गौड़ का यह
भड़कना शायद इसलिए हो कि उन्हें लगता है कि उनके होते हुए दीपक गुप्ता को
राजीव वशिष्ट की मदद लेने की भला क्या जरूरत है ? उल्लेखनीय है कि जेके गौड़
ने सार्वजानिक रूप से दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी के समर्थन में रहने की
घोषणा की हुई है । दूसरे लोगों को भले ही लगता हो कि जेके गौड़ अपने 'राजनीतिक-बॉस' लोगों की 'नौकरी'
ही करेंगे, लेकिन जेके गौड़ का खुद का कहना है कि वह गाजियाबाद/उत्तर
प्रदेश के लोगों के साथ रहेंगे और इस नाते से दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी के
समर्थन में रहेंगे । जेके गौड़ के इतना साफ साफ कहने के बाद भी कई लोगों को उनकी बातों पर विश्वास नहीं है ।
डिस्ट्रिक्ट में पिछले दिनों सीओएल के चुनाव में जेके गौड़ ने जिस तरह से
अपना दोगला चरित्र दिखाया, उसके बाद उनकी कही हुई बात पर विश्वास करना
लोगों के लिए मुश्किल हुआ है । उल्लेखनीय है कि सीओएल के चुनाव में जेके
गौड़ ने दावा तो किया था कि वह किसी के पक्ष में नहीं हैं; उमेश चोपड़ा के
साथ तो उन्होंने यहाँ तक ऐलान कर दिया था कि यदि कोई कह दे कि उन्होंने
रमेश अग्रवाल के लिए समर्थन जुटाने की कोशिश की है तो वह रोटरी छोड़ देंगे । लेकिन लगातार यह सूचनाएँ भी मिलती रही थीं कि जेके गौड़ कैसे क्लब के लोगों पर दबाव बना कर
रमेश अग्रवाल के पक्ष में कॉन्करेंस जुटाने की मुहिम में लगे रहे और कैसे
उन्होंने अपने स्टॉफ के लोगों को भेज भेज कर कॉन्करेंस इकठ्ठा की हैं । जेके
गौड़ की इस धोखाधड़ी वाली भूमिका ने उनकी ऐसी कुख्याति बना दी है कि उनकी
बातों पर लोगों के लिए विश्वास करना आसान नहीं रह गया है ।
इसीलिए
दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी को उनके समर्थन देने/करने की घोषणा को भी संदेह
के साथ देखा/पहचाना जा रहा है । 'चोर की दाढ़ी में तिनका' वाली कहावत को
चरितार्थ करते हुए जेके गौड़ ने खुद ही, राजीव वशिष्ट पर दीपक गुप्ता की निर्भरता को
अपने प्रति अविश्वास के रूप में ही देखा/पहचाना हो शायद; और इसीलिए वह
राजीव वशिष्ट को लेकर अभियान पर निकलने की दीपक गुप्ता की कार्रवाई से भड़के
हैं । दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी के प्रति समर्थन का भाव रखने वाले
लोगों को लगता भी है कि दीपक गुप्ता को जेके गौड़ के प्रति सावधान रहने की
जरूरत है - उन्हें जेके गौड़ का समर्थन लेने का भी प्रयास करना चाहिए और उन
पर पूरी तरह भरोसा करने से भी बचना चाहिए । यह हालाँकि एक सामान्य-सी 'समझ'
ही है और इसमें जेके गौड़ के लिए कोई नकारात्मक भाव नहीं है; लेकिन जैसा कि
कहा/माना जाता है कि व्यक्ति किसी के कहने या न कहने से नहीं, बल्कि अपने
ही अपराधबोध से ज्यादा पीड़ित होता है । जेके गौड़ की कारस्तानियाँ क्या
रही हैं, यह दूसरे लोग तो कम जानते होंगे - खुद जेके गौड़ ज्यादा जानते
होंगे; व्यक्ति दूसरों से तो झूठ बोल सकता है, लेकिन अपने आप से नहीं बोल
सकता । इसीलिए माना/समझा जा सकता है कि राजीव वशिष्ट से दीपक गुप्ता के मदद लेने पर जेके गौड़ के बौखलाने के पीछे उनका अपराधबोध ही कारण रहा होगा, अन्यथा इस बात पर बौखलाने का तो कोई कारण नहीं बनता/दिखता है ।
जो भी हो, जेके गौड़ की इस बौखलाहट ने दीपक गुप्ता के सामने अपने समर्थकों तथा संभावित समर्थकों के बीच सामंजस्य और तालमेल बैठाने की चुनौती तो पैदा कर ही दी है ।
जो भी हो, जेके गौड़ की इस बौखलाहट ने दीपक गुप्ता के सामने अपने समर्थकों तथा संभावित समर्थकों के बीच सामंजस्य और तालमेल बैठाने की चुनौती तो पैदा कर ही दी है ।