कानपुर । कानपुर चार्टर्ड एकाउंटेंट्स सोसायटी के वार्षिक समारोह में उमेश गर्ग को तवज्जो मिलने से बौखलाए मनु अग्रवाल तथा उनके संगी-साथियों ने भारी बबाल तो मचाया, किंतु बबाल के बावजूद वह मनचाहा नतीजा प्राप्त नहीं कर पाए । दरअसल हुआ यह कि कानपुर चार्टर्ड एकाउंटेंट्स सोसायटी के 28वें स्थापना दिवस पर आयोजित वार्षिक समारोह को मनु अग्रवाल तथा उनके संगी-साथी सेंट्रल काउंसिल के लिए प्रस्तुत मनु अग्रवाल की उम्मीदवारी के प्रमोशन के लिए इस्तेमाल करना चाहते थे, और इसके लिए उन्होंने पूरी तैयारी भी कर रखी थी - किंतु उमेश गर्ग की उपस्थिति ने उनकी सारी तैयारी पर पानी फेर दिया था । चूँकि उमेश गर्ग सेंट्रल इंडिया रीजनल काउंसिल के चेयरमैन हैं, इसलिए कानपुर चार्टर्ड एकाउंटेंट्स सोसायटी के वार्षिक समारोह में प्रोटोकॉल के तहत उन्हें मंच पर जगह मिलना ही थी - और वह जगह उन्हें मिली भी । रीजनल काउंसिल के चेयरमैन होने के नाते उन्हें सिर्फ मंच पर जगह ही नहीं मिली, बल्कि वक्ताओं की प्रशंसा भी मिली । किसी भी कार्यक्रम में यह एक स्वाभाविक सा दृश्य होता है कि प्रत्येक वक्ता मंच पर बैठे लोगों के लिए प्रशंसा के दो शब्द बोलता ही है । उमेश गर्ग चूँकि सेंट्रल इंडिया रीजनल काउंसिल के चेयरमैन हैं, इसलिए उनके बारे में बोलते हुए वक्ताओं ने जरा कुछ ज्यादा जोश दिखा दिया । उमेश गर्ग ने भी चूँकि सेंट्रल काउंसिल के लिए अपनी उम्मीदवारी घोषित की हुई है, इसलिए समारोह के मंच पर उमेश गर्ग को मिल रही प्रशंसा को मनु अग्रवाल तथा उनके संगी-साथियों ने अपने से छिनते वोटों के रूप में देखा/पहचाना । उन्हें लगा कि उमेश गर्ग को यह जो तवज्जो और प्रशंसा मिल रही है, उससे सेंट्रल काउंसिल चुनाव के संदर्भ में कानपुर में उमेश गर्ग के वोट बढ़ रहे हैं - और इसका सीधा मतलब यह है कि कानपुर में उनके, यानि मनु अग्रवाल के वोट घट रहे हैं ।
उल्लेखनीय है कि मनु अग्रवाल तथा उनके संगी-साथी लगातार इस प्रयास में हैं कि कानपुर में मनु अग्रवाल के अलावा सेंट्रल काउंसिल के किसी भी अन्य उम्मीदवार को घुसने से रोक देना चाहिए; और कानपुर में कोई भी चार्टर्ड एकाउंटेंट मनु अग्रवाल के अलावा सेंट्रल काउंसिल के किसी अन्य उम्मीदवार से न मिले और न बात करे । मनु अग्रवाल और उनके संगी-साथी अपने इस प्रयास में कानपुर के कई चार्टर्ड एकाउंटेंट्स से लड़ बैठे हैं, जिन्होंने दूसरे उम्मीदवारों से बात/मुलाकात की । कई एक लोगों ने मनु अग्रवाल तथा उनके संगी-साथियों को विभिन्न मौकों पर समझाने की बहुत कोशिश की कि जैसा वह सोचते और चाहते हैं, वैसा नहीं हो सकता है - इसलिए वह लोगों से लड़ना/झगड़ना बंद करें; क्योंकि लड़ने/झगड़ने से उनका खुद का नुकसान हो रहा है । कभी तो ऐसा लगता रहा कि उन्हें यह बात समझ में आ रही है, लेकिन फिर जल्दी ही वह यही कुछ करते देखे/सुने जाने लगते हैं । मनु अग्रवाल और उनके संगी-साथियों की इन्हीं हरकतों के चलते सेंट्रल इंडिया रीजनल काउंसिल की 'कानपुर प्रोग्राम कमेटी' को निष्प्रभावी बना दिया गया है । रीजनल काउंसिल के चेयरमैन के रूप में उमेश गर्ग ने उक्त कमेटी का चेयरमैन नवीन भार्गव को बनाया । मनु अग्रवाल और उनके संगी-साथी इस पर भड़क गए और उन्होंने प्रचारित किया कि नवीन भार्गव रीजनल काउंसिल की कानपुर प्रोग्राम कमेटी के चेयरमैन के रूप में वास्तव में कानपुर में उमेश गर्ग की उम्मीदवारी के चुनावी एजेंट बने हैं, और उनका काम उमेश गर्ग की उम्मीदवारी के लिए सहयोग व समर्थन जुटाना होगा । नवीन भार्गव रीजनल काउंसिल के चेयरमैन रह चुके हैं और कानपुर में उनकी अच्छी फॉलोइंग हैं - किंतु मनु अग्रवाल और उनके संगी-साथियों ने उन्हें 'कानपुर-विरोधी' के रूप में प्रचारित किया । मनु अग्रवाल और उनके संगी-साथियों ने इस बात पर ऐसा बखेड़ा खड़ा किया कि उक्त कमेटी को ही निष्प्रभावी कर दिया गया ।
दरअसल अपनी इसी मुहिम के तहत मनु अग्रवाल और उनके संगी-साथियों ने प्रयास किया था कि कानपुर चार्टर्ड एकाउंटेंट्स सोसायटी के वार्षिक समारोह में सेंट्रल काउंसिल के किसी अन्य उम्मीदवार को कोई तवज्जो न मिले । सोसायटी के पदाधिकारियों के साथ मिलकर उन्होंने व्यवस्था भी ऐसी पक्की जमा ली थी, जिसमें सेंट्रल काउंसिल के किसी अन्य उम्मीदवार के लिए समारोह में घुसपैठ कर पाना मुश्किल क्या, असंभव था । किंतु उमेश गर्ग के मामले में उनकी यह व्यवस्था पूरी तरह चरमरा गई । रीजनल काउंसिल के चेयरमैन के रूप में उमेश गर्ग को समारोह के मंच से दूर रख पाना मुश्किल हुआ, और प्रोटोकॉल के तहत उमेश गर्ग को मंच पर बैठाना ही पड़ा । मंच पर बैठे उमेश गर्ग को जब वक्ताओं की प्रशंसा भी मिलने लगी, तब मनु अग्रवाल और उनके संगी-साथी भड़क गए । पर्दे के पीछे से उन्होंने कोशिश तो बहुत की कि उमेश गर्ग को या तो मंच से हटा कर दर्शक दीर्घा में पहुँचा दिया जाए, और या वक्ताओं को निर्देश दिया जाए कि वह किसी भी रूप में उमेश गर्ग की प्रशंसा न करें । पर इनमें से कुछ भी कर पाना संभव नहीं हो सका और मनु अग्रवाल व उनके संगी-साथियों को सिर पीट कर रह जाना पड़ा । मनु अग्रवाल व उनके संगी-साथियों की इस हरकत के बारे में जिन लोगों को पता चला, उन्होंने उन्हें यही समझाया कि वह जो करना चाहते हैं, वह हो पाना संभव ही नहीं है । उन्हें यह भी बताया/समझाया गया कि अपने राजनीतिक स्वार्थ में वह ऐसी कोई बेबकूफी न करें - जिससे उनकी और भद्द पिटे तथा उनकी बदनामी हो । यही हुआ भी, मनु अग्रवाल और उनके संगी-साथी जो करना चाहते थे - उसे तो नहीं ही कर पाए, लोगों के बीच अपनी बदनामी और करा बैठे ।
मनु अग्रवाल और उनके समर्थक दरअसल इस बार अपने चुनाव में कोई कमी नहीं रहने देना चाहते हैं । कानपुर में लोगों का मानना और कहना है कि पिछली बार की अपनी हार से सबक लेकर मनु अग्रवाल इस बार अपने चुनाव को पिछली बार की तुलना में खासी गंभीरता से ले रहे हैं । पर इस गंभीरता के चक्कर में वह कई तरह की बेबकूफियाँ भी कर रहे हैं - लोगों का कहना है कि मनु अग्रवाल कम कर रहे हैं, उनके नजदीकी और समर्थक ज्यादा कर रहे हैं; लेकिन नजदीकियों और समर्थकों का किया-धरा भी मनु अग्रवाल के सिर पर ही पड़ रहा है । मनु अग्रवाल अपनी तरफ से अपने विरोधियों को तथा अपने से नाराज रहने वाले लोगों को मनाने का भरसक प्रयास कर रहे हैं; लेकिन उनके समर्थक और नजदीकी फिर कुछ ऐसी हरकत कर देते हैं जिससे पुराने घाव फिर से हरे हो जाते हैं । इस कारण से मनु अग्रवाल के लिए कानपुर में अपनी उम्मीदवारी को लेकर एकमत समर्थन बना पाना मुश्किल हो रहा है । मनु अग्रवाल कानपुर से चूँकि अकेले उम्मीदवार हैं, इसलिए वह यदि यहाँ के ज्यादा से ज्यादा वोट पाने की उम्मीद कर रहे हैं, तो यह बहुत स्वाभाविक ही है । इसके लिए किंतु यह जो तरीका अपना रहे हैं, उससे मामला बनने की बजाए बिगड़ और रहा है । उमेश गर्ग के मामले में मनु अग्रवाल और उनके संगी-साथियों की जो हरकत रही है, उससे उमेश गर्ग का तो वह कुछ नहीं बिगाड़ सके - उलटे अपनी ही फजीहत और करा बैठे हैं ।