Thursday, August 13, 2015

इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स की सेंट्रल काउंसिल के दूसरे कुछेक उम्मीदवारों की तुलना में पानीपत में अपनी स्थिति को काफी कमजोर पाते/देखते हुए अतुल गुप्ता ने असीम पाहवा को मोहरा बनाया और उनकी मदद से अमरजीत चोपड़ा का कार्यक्रम फ्लॉप करवाया था क्या ?

नई दिल्ली । पानीपत ब्रांच के एक आयोजन में करीब पाँच महीने पहले हुए हंगामे के तार इंस्टीट्यूट की सेंट्रल काउंसिल के सदस्य अतुल गुप्ता से जुड़ने की चर्चाओं ने मामले को खासा दिलचस्प बना दिया है । दरअसल उस हंगामे से पानीपत में इंस्टीट्यूट की चुनावी राजनीति में जो नाटक शुरू हुआ था, उसका दूसरा भाग अभी हाल ही में खेला गया - जिसमें पोल खुली कि इस नाटक के असली सूत्रधार अतुल गुप्ता हैं । उल्लेखनीय है कि अभी तक इस मामले को असीम पाहवा की राजनीतिक महत्वाकांक्षा की परिणति के रूप में ही देखा/पहचाना जा रहा था, लेकिन हाल में दोबारा से जो तमाशा हुआ तो लोगों को 'पता चला' कि असीम पाहवा तो बेचारे इस्तेमाल हो रहे थे - और पूरे खेल की बागडोर तो दिल्ली में बैठे अतुल गुप्ता के हाथ में थी । इसी के साथ लोगों को इस बात का भी जबाव मिल गया कि करीब पाँच महीने पहले का तमाशा इतना 'आक्रामक' क्यों था कि इंस्टीट्यूट के पूर्व अध्यक्ष अमरजीत चोपड़ा को अपमानित होकर वापस लौटना पड़ा । दरअसल अभी तक इस सवाल पर असमंजस बना हुआ था कि ब्रांच में पदाधिकारियों का झगड़ा क्यों तो उस समय सामने आया, जब अमरजीत चोपड़ा ब्रांच के सेमिनार में भाषण देने आए; और क्यों उसने इतना उग्र रूप ले लिया कि अमरजीत चोपड़ा को बिना भाषण दिए वापस लौटना पड़ा । इंस्टीट्यूट के किसी बड़े पदाधिकारी के साथ इंस्टीट्यूट की किसी ब्रांच में ऐसा सुलूक इससे पहले कभी देखने में नहीं आया । हालाँकि तब भी लोगों को शक तो हुआ था, कि यह तमाशा कहीं 'बाहर से तो निर्देशित नहीं हो रहा है, लेकिन लोगों की समझ में ज्यादा कुछ आया नहीं; और फिर उक्त तमाशे को एक तात्कालिक प्रतिक्रिया मान कर लगभग भुला भी दिया गया था ।    
किंतु अभी जब पानीपत ब्रांच में उस नाटक का अगला सीन मंचित हुआ, तो सारा माजरा साफ हो गया । उल्लेखनीय है कि करीब पांच महीने पहले पानीपत ब्रांच में जो तमाशा हुआ था, उसमें निशाना तत्कालीन चेयरमैन विशाल मल्होत्रा को बनाया गया था । उस तमाशे का नेतृत्व असीम पाहवा ने किया था । असीम पाहवा को खुन्नस तो इस बात की थी कि उनके उम्मीदवार गोविंद सैनी को हरा कर विशाल मल्होत्रा चेयरमैन बन गए थे; किंतु उन्होंने मुद्दा बनाया चेयरमैन के रूप में विशाल मल्होत्रा द्वारा किए जा रहे भ्रष्टाचार को । विशाल मल्होत्रा को चेयरमैन बने कुछ ही दिन हुए थे - कुछ ही दिनों में उन्होंने भला ऐसा क्या भ्रष्टाचार कर लिया था कि असीम पाहवा को उनके खिलाफ हुड़दंग मचाना/मचवाना जरूरी लगा; और वह भी उस कार्यक्रम में जिसमें इंस्टीट्यूट के पूर्व चेयरमैन अमरजीत चोपड़ा को मुख्य वक्ता के रूप में भाषण करना था । असीम पाहवा और उनके साथियों को समझाने की बहुत कोशिश की गई कि जो मुद्दा वह उठा रहे हैं, उस पर बाद में बात हो जाएगी - अभी कार्यक्रम होने दिया जाए । असीम पाहवा और उनके साथियों ने लेकिन किसी की भी नहीं सुनी और कार्यक्रम नहीं हो पाया, तथा अमरजीत चोपड़ा को बिना भाषण दिए हुए ही वापस लौटना पड़ा । असीम पाहवा और उनके साथियों के रवैये को देखने वाले कुछेक लोगों को लगा भी कि इस हंगामे के पीछे असल उद्देश्य कहीं अमरजीत चोपड़ा को बैरंग लौटाने का तो नहीं है ?
उक्त हंगामे के बाद चूँकि विशाल मल्होत्रा ने चेयरमैन पद से इस्तीफा दे दिया, और असीम पाहवा अपनी मनमानी करने में कामयाब हो गए - इसलिए बात आई-गई हो गई । वह आई-गई बात लेकिन अभी तब फिर मुखर हो उठी, जब पानीपत के एक कार्यक्रम में अतुल गुप्ता मुख्य वक्ता के रूप में पधारे और जिसमें असीम पाहवा को भी भाषण देना था । कार्यक्रम में मौजूद कुछेक लोगों ने असीम पाहवा से जानना चाहा कि विशाल मल्होत्रा के खिलाफ भ्रष्टाचार के जो आरोप आपने लगाए थे, उन्हें लेकर क्या कार्रवाई की गई है ? उनसे पूछा गया कि उन्होंने तो विशाल मल्होत्रा पर बड़े गंभीर आरोप लगाए थे; अब जब ब्रांच पर उनका पूरी तरह से कब्जा है तो वह अपने आरोपों को सच साबित करने के लिए क्या कर रहे हैं ? असीम पाहवा ने पहले तो इन सवालों को टालने का प्रयास किया, किंतु बात जब बढ़ी तो असीम पाहवा ने बहानेबाजी की कि जाँच करने के लिए पर्याप्त दस्तावेज/कागज ही गायब मिले । इस पर उन्हें कहा गया कि इससे तो मामला और भी गंभीर हो गया है, और उन्हें इसके लिए पुलिस में रिपोर्ट करना चाहिए और विशाल मल्होत्रा के खिलाफ कार्रवाई करना/करवाना चाहिए । असीम पाहवा लेकिन फिर भी बहानेबाजी करते रहे और सवालों को टालते रहे । बात बढ़ती, लेकिन उससे पहले अतुल गुप्ता बीच में कूद पड़े और उन्होंने असीम पाहवा को लोगों के सवालों से बचाया । इस मौके पर अतुल गुप्ता ने असीम पाहवा की जिस तरह से वकालत की और लोगों के सवालों से उन्हें बचाने का काम किया, उससे लोगों को यह समझने में देर नहीं लगी कि अतुल गुप्ता और असीम पाहवा के बीच अवश्य ही बड़ी स्वादपूर्ण खिचड़ी पकी हुई है । 
इस 'खिचड़ी' को लेकर चर्चा चली तो फिर कई रहस्य उघड़ते चले गए । असीम पाहवा के नजदीकियों ने ही वहाँ लोगों को बताया कि रीजनल काउंसिल के लिए असीम पाहवा की उम्मीदवारी को अतुल गुप्ता ने ही उकसाया है; और अतुल गुप्ता के सहयोग/समर्थन के भरोसे ही असीम पाहवा चुनावी मैदान में उतरे हैं । हालाँकि कुछेक लोगों का यह भी कहना रहा कि अतुल गुप्ता वास्तव में असीम पाहवा को इस्तेमाल कर रहे हैं और उनके जरिए अपनी 'जमीन' को बढ़ाने का जुगाड़ कर रहे हैं । मजे की बात यह है कि चुनावी संदर्भ में अतुल गुप्ता की स्थिति बहुत ही सुरक्षित समझी जा रही है, और कई लोगों को तो यहाँ तक लगता है कि वह तो सबसे ज्यादा वोट पायेंगे - लेकिन फिर भी अपने वोटों की संख्या बढ़ाने के लिए उन्हें तरह तरह के प्रपंच करते हुए देखा/सुना जा रहा है । इसी प्रपंच के चलते उन्होंने पानीपत के नाटक की स्क्रिप्ट लिखी । दरअसल पानीपत में अतुल गुप्ता अपनी स्थिति दूसरे कुछेक उम्मीदवारों की तुलना में काफी कमजोर पाते/देखते हैं । पानीपत में अपनी स्थिति को बेहतर बनाने के लिए अतुल गुप्ता ने असीम पाहवा को मोहरा बनाया और उनकी मदद से अपने लिए मौके बनाने के प्रयास तेज किए । अब समझा जा रहा है कि अमरजीत चोपड़ा का कार्यक्रम फ्लॉप करवाने के लिए ही विशाल मल्होत्रा को निशाना बनाते हुए हंगामा करवाया गया था - और उस हंगामे का मास्टर माइंड अतुल गुप्ता थे । अतुल गुप्ता की इस भूमिका के खुलासे ने इंस्टीट्यूट के चुनावी परिदृश्य को खासा दिलचस्प बना दिया है ।