Thursday, August 20, 2015

इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स में हुए सौ करोड़ रुपयों के जमीन घोटाले के कारण जयदीप शाह पर लगे दाग और नागपुर में मराठों व गैर मराठों के बीच विभाजन होने से जुल्फेश शाह के लिए सेंट्रल काउंसिल की राह मुश्किल बनी

नागपुर । जुल्फेश शाह के लिए भारी मुसीबत की बात यह हो गई है कि वह जिन जयदीप शाह के नाम/समर्थन के भरोसे सेंट्रल काउंसिल का चुनाव जीतने का जुगाड़ बैठा रहे हैं, वही जयदीप शाह लेकिन उनकी राह का रोड़ा बनते नजर आ रहे हैं । दरअसल जयदीप शाह के अध्यक्ष-काल में इंस्टीट्यूट में सौ करोड़ रुपयों का जो जमीन घोटाला हुआ था, और उसकी जो कालिख जयदीप शाह के नाम पर लगी थी - उसका दाग अभी तक धुला नहीं है, और यही दाग जुल्फेश शाह के लिए मुसीबत बना है । जुल्फेश शाह को चूँकि जयदीप शाह के 'आदमी' के रूप में ही देखा/पहचाना जाता है, इसलिए कई लोगों को लगता है कि जुल्फेश शाह की आड़ में जयदीप शाह फिर से प्रोफेशन के लोगों के बीच नागपुर का नाम खराब करेंगे । यूँ भी सौ करोड़ रुपयों के जमीन घोटाले के दाग के कारण जयदीप शाह की लोगों के बीच जो फजीहत हुई है, उसके चलते उनका लोगों के बीच पहले जैसा प्रभाव भी नहीं रह गया है । जयदीप शाह की बदनामी का ही नतीजा माना/समझा गया कि इंस्टीट्यूट की सेंट्रल काउंसिल में 18 वर्ष से लगातार चलती चली आ रही नागपुर की उपस्थिति, पिछली बार अनुपस्थिति में बदल गई । पिछले चुनाव में राजेश लोया की चुनावी असफलता को जयदीप शाह की 'करनी' के नतीजे के रूप में ही देखा/पहचाना गया । राजेश लोया की साफ-सुथरी छवि, एक बड़े सहकारी बैंक की चेयरमैनी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में गहरी पैठ के चलते राजेश लोया की जीत को सुनिश्चित ही समझा जा रहा था - किसी को भी उनके असफल होने की आशंका तक नहीं थी; किंतु उनकी तमाम खूबियों पर जयदीप शाह की बदनामी भारी पड़ी । 
जयदीप शाह की वही बदनामी जुल्फेश शाह के लिए मुसीबत बनती नजर आ रही है । पिछली बार रीजनल काउंसिल के चुनाव में जुल्फेश शाह को जयदीप शाह की बदनामी के कारण ही अपेक्षित वोट नहीं मिल सके थे, और पहली वरीयता में उन्हें एक हजार वोटों पर ही संतोष करना पड़ा था । इस बार सेंट्रल काउंसिल के लिए वेस्टर्न रीजन में कोटा तीन हजार वोट के आसपास तय होता दिख रहा है । इस आधार पर देखें तो रीजनल काउंसिल के चुनाव में एक हजार वोट पाने वाले जुल्फेश शाह के लिए सेंट्रल काउंसिल का चुनाव एक बहुत बड़ी चुनौती है । उनके लिए यह चुनौती इसलिए भी बड़ी है, क्योंकि वह अपनी चुनावी सफलता के लिए जयदीप शाह पर पूरी तरह निर्भर हैं । हालाँकि जयदीप शाह को लेकर जुल्फेश शाह थोड़ी सावधानी तो जरूर बरत रहे हैं - पहले जहाँ वह जयदीय शाह की छत्रछाया में रहना अपना गौरव समझते थे और जयदीप शाह की शान में कविताएँ सुनाया करते थे, वैसा सब तो करने से वह बचते नजर आ रहे हैं; लेकिन फिर भी अपने चुनाव अभियान में वह जयदीप शाह पर निर्भर तो हैं ही । जुल्फेश शाह के लिए यह बहुत मुश्किल है कि वह जयदीप शाह को पूरी तरह छोड़ दें । वास्तव में जयदीप शाह का संग-साथ और समर्थन ही उनकी कुल ताकत है - पर सौ करोड़ रुपयों का जमीन घोटाला उनकी बदकिस्मती का सबब बना हुआ है, जिसके कारण उनकी यह 'कुल ताकत' ही उनकी परेशानी भी बनी हुई है । 
जुल्फेश शाह के लिए परेशानी और चुनौती की बात यह भी है कि नागपुर में चार्टर्ड एकाउंटेंट्स की महान चट्टानी एकता जातीय आधार पर चटकती जा रही है । नागपुर के बारे में मशहूर रहा है कि यहाँ के वोट यहाँ के ही उम्मीदवार को पक्के तौर पर मिलते हैं, तथा अन्य किसी उम्मीदवार की दाल यहाँ नहीं गलती है । किंतु अब यह दावा कमजोर पड़ रहा है । दरअसल पिछले वर्षों में हुई राजनीति ने यहाँ मराठों को अपने ठगे जाने का अहसास कराया है, जिसके चलते मराठों में बगावती सुर पैदा हुए हैं । पहले अशोक चांडक ने और फिर जयदीप शाह ने जिस तरह से नागपुर की राजनीति पर कब्जा किया, उससे मराठों के बीच असंतोष पैदा हुआ है । उल्लेखनीय है कि जब अशोक चांडक सेंट्रल काउंसिल में होते थे, तब रीजनल काउंसिल में नागपुर का प्रतिनिधित्व जयदीप शाह और अनिरुद्ध शेनवई करते थे । अशोक चांडक की जगह लेने के लिए इन्हीं दोनों के बीच होड़ थी । अशोक चांडक के लिए जिस तरह से अनिल दानी ने राजनीतिक त्याग किया था, उसी तर्ज पर अनिरुद्ध शेनवई के लिए लोग जयदीप शाह से त्याग की उम्मीद करते थे । लोगों ने उम्मीद की थी कि जयदीप शाह बड़प्पन दिखायेंगे और सेंट्रल काउंसिल में अशोक चांडक की जगह अनिरुद्ध शेनवई के लिए छोड़ेंगे । जयदीप शाह ने लेकिन बड़प्पन दिखाने की बजाये चतुराई दिखाई । जयदीप शाह ने जिस तरह से सेंट्रल काउंसिल में अशोक चांडक की जगह हथियाई और अनिरुद्ध शेनवई को पीछे धकेल दिया, उससे नागपुर में मराठों व गैर मराठों के बीच एक गाँठ पड़ गई थी । 
जयदीप शाह ने अपनी राजनीतिक कुशलता से इस गाँठ के बावजूद नागपुर के वोटरों को विभाजित तो नहीं होने दिया, लेकिन वह गाँठ को खोलने का काम भी नहीं कर पाएँ । उनकी राजनीतिक कुशलता को उनकी चतुराईपूर्ण तीन-तिकड़म के रूप में देखा गया, जिसका खामियाजा उन्हें सौ करोड़ रुपयों के जमीन घोटाले के दाग के रूप में भुगतना पड़ा । जयदीप शाह के नजदीकियों का ही मानना और कहना है कि सौ करोड़ रुपयों के जमीन घोटाले वाले मामले की 'आग' पर्दे के पीछे से अनिरुद्ध शेनवई ने ही लगाई थी । इस मामले के सूत्रधारों के रूप में भले ही दूसरे लोगों के नाम लिए जाते हों, लेकिन जयदीप शाह के नजदीकियों की नजरों में मामले के असली सूत्रधार अनिरुद्ध शेनवई ही थे । नागपुर में और नागपुर के बाहर भी कई लोगों का साफ कहना है कि अनिरुद्ध शेनवई को राजनीतिक मोर्चे पर जयदीप शाह से जो मात खानी पड़ी थी, उसका बदला उन्होंने जयदीप शाह पर जमीन घोटाले का दाग लगा/लगवा कर लिया । इस प्रसंग ने नागपुर में मराठों व गैर मराठों के बीच विभाजन को और हवा दी । 
मराठों व गैर मराठों के बीच विभाजन होने तथा सौ करोड़ रुपयों के जमीन घोटाले के कारण जयदीप शाह पर लगे दाग के चलते बाहर के उम्मीदवारों को नागपुर में समर्थन जुटाने में खासी सफलता मिली । पिछले चुनाव में इसका फायदा श्रीनिवास जोशी, प्रफुल्ल छाजेड़ और सुधीर पंडित को मिला । सुधीर पंडित हालाँकि इस फायदे के बावजूद जीत नहीं पाए । इस बार नागपुर के मराठी वोटों में मंगेश किनरे के सेंध लगाने की चर्चा है । प्रफुल्ल छाजेड़ को जयदीप शाह की बदनामी के कारण नागपुर के गैर मराठी वोटों का अच्छा समर्थन मिला । प्रफुल्ल छाजेड़ को मिले समर्थन का हाल तो यह रहा कि जो लोग उन्हें पहली वरीयता का वोट नहीं दे पाये, उन्होंने उन्हें दूसरी वरीयता का वोट दिया - जिसने उनकी जीत में निर्णायक भूमिका निभाई । उल्लेखनीय है कि राजेश लोया के बाहर होने के बाद ही प्रफुल्ल छाजेड़, एनसी हेगड़े से आगे निकल कर विजयी हो पाए थे । इन स्थितियों ने जुल्फेश शाह की चुनावी दौड़ को मुश्किल बना दिया है । रीजनल काउंसिल सदस्य के रूप में जुल्फेश शाह ने यद्यपि अपने समर्थन आधार को बढ़ाने का काम किया है, अपने व्यवहार और अपनी संलग्नता से उन्होंने अपने दोस्तों व समर्थकों की संख्या में इजाफा भी किया है; किंतु कोई भी चुनाव चूँकि एक मैनेजमेंट भी होता है, और जो परिस्थितियों से नियंत्रित होता है - इसलिए जुल्फेश शाह के लिए सेंट्रल काउंसिल की राह आसान नहीं है । जुल्फेश शाह पर जयदीप शाह की बदनामी का बोझ तो है ही, साथ ही मराठों व गैर मराठों के बीच पनप रहे अविश्वास तथा विरोध से निपटने की चुनौती भी है ।