Friday, August 28, 2015

इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स की नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल की कुछेक ब्रांचेज में राजिंदर नारंग की उपस्थिति के अभाव में कार्यक्रम स्थगित होने से उनकी पकड़ के मजबूत होने के जो संकेत और सुबूत मिले हैं, उससे हरियाणा/पंजाब से ज्यादा उम्मीदवार होने के कारण राजिंदर नारंग के लिए इस बार हालात अनुकूल न होने की आशंका निर्मूल साबित हो रही है

हिसार । नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल की कुछेक ब्रांचेज में अभी हाल ही में कुछेक कार्यक्रम ऐन मौके पर जिस तरह स्थगित हुए, उसके लिए काउंसिल सदस्य राजिंदर नारंग की धमक को जिम्मेदार माना/ठहराया गया - और इसके चलते एक उम्मीदवार के रूप में राजिंदर नारंग के जलवे की चर्चा लोगों के बीच फैली । लोगों के बीच चर्चा है कि जो कार्यक्रम ऐन मौके पर स्थगित हुए, उनके आयोजनकर्ता कार्यक्रम में राजिंदर नारंग की उपस्थिति चाहते थे - लेकिन राजिंदर नारंग ने अपनी व्यस्तता का वास्ता देकर उक्त कार्यक्रम में उपस्थित हो पाने में अपनी असमर्थता बता दी, तो आयोजनकर्ताओं ने कार्यक्रम ही स्थगित कर दिया; और घोषित कर दिया कि जब राजिंदर नारंग को उपस्थित होने का समय मिलेगा वह तब कार्यक्रम कर लेंगे । ऐसी घटनाएँ हालाँकि कुछेक जगह ही हुई हैं, लेकिन कुछेक जगह होने वाली इन घटनाओं से यह सुबूत तो मिला ही है कि इन कुछेक जगहों पर यदि पत्ता भी हिलेगा तो राजिंदर नारंग की मर्जी से हिलेगा । रीजनल काउंसिल के एक उम्मीदवार के रूप में राजिंदर नारंग की यदि ऐसी स्थिति है - भले ही कुछेक जगहों पर ही; तो चुनावी माहौल में यह स्थिति उनका जलवा तो दिखाती ही है और लोगों के बीच इसका चर्चा का विषय बनना स्वाभाविक ही है । चुनावी माहौल में इस स्थिति और चर्चा के चलते सेंट्रल काउंसिल के कुछेक उम्मीदवारों ने राजिंदर नारंग से 'जुड़ने' की तिकड़में लगाना शुरू कर दिया है, ताकि राजिंदर नारंग के 'जलवे' से वह भी फायदा उठा सकें । 
राजिंदर नारंग के इस 'दिखते' जलवे के बावजूद इस बार के चुनाव में कुछेक लोग राजिंदर नारंग की स्थिति को 'फँसा' हुआ भी मान रहे हैं । उनका तर्क है कि हरियाणा और पंजाब में इस बार चूँकि पिछली बार की तुलना में ज्यादा उम्मीदवार आ रहे हैं, इसलिए राजिंदर नारंग के सामने पहली वरीयता के ज्यादा वोट पाने की समस्या होगी - और इस कारण उन्हें मुसीबत का सामना करना पड़ सकता है । दिल्ली से बाहर के उम्मीदवारों को दूसरी वरीयता के वोटों का भी बहुत सहारा नहीं मिलता है; और फिर इस बार सोनीपत, पानीपत, लुधियाना से दो दो उम्मीदवारों के नामों चर्चा है - इसलिए दूसरी वरीयता के वोटों की भी राजिंदर नारंग बहुत उम्मीद नहीं कर सकते हैं । लिहाजा राजिंदर नारंग के सामने सचमुच संकट है । चुनावी गणित लगाने वाले लोग लेकिन इस तर्क से सहमत नहीं है । उनका कहना है कि 'एक और एक दो' के हिसाब से तो यह तर्क ठीक जान पड़ता है, लेकिन चुनावी राजनीति इस हिसाब से नहीं होती है - यदि होती हो ती तो दिल्ली में लोकसभा की सातों सीटें जीतने और साठ विधानसभा सीटों में बढ़त बनाने वाली भारतीय जनता पार्टी विधानसभा चुनाव में तीन सीटों पर न सिमट जाती ! 
ऐसा मानने वालों का कहना है कि ज्यादा उम्मीदवार होने के बावजूद राजिंदर नारंग के लिए इस बार हालात बल्कि ज्यादा अनुकूल हैं । पिछली बार विशाल गर्ग, आलोक कृष्ण और अश्वनी कठपालिया को मजबूत उम्मीदवारों के रूप में देखा/पहचाना जा रहा था; और उनके रहते राजिंदर नारंग के लिए स्थिति ज्यादा चुनौतीपूर्ण थी । अश्वनी कठपालिया को अमरजीत चोपड़ा का खुला समर्थन था; और यह बात राजिंदर नारंग के लिए सबसे बड़ी समस्या थी । अबकी बार अमरजीत चोपड़ा का 'प्यार' राजिंदर नारंग के लिए दिखाई दे रहा है । इस बार जो उम्मीदवार हैं, उनमें एक आलोक कृष्ण को छोड़ कर और किसी ने अभी तक अपनी उम्मीदवारी को लेकर बहुत गंभीरता नहीं दिखाई है । सोनीपत, पानीपत और लुधियाना में जो दो दो उम्मीदवार सुने जा रहे हैं - वह अपने अपने जीतने की कोशिश करने की बजाए एक दूसरे की टाँग खींचने में ज्यादा दिलचस्पी लेते हुए सुने/देखे जा रहे हैं । ऐसे में, यह राजिंदर नारंग के लिए कोई चुनौती भला क्यों और कैसे बन पायेंगे ? इसी आधार पर, चुनावी गणित लगाने वाले लोगों को विश्वास है कि ज्यादा उम्मीदवार होने के बावजूद राजिंदर नारंग के लिए पिछली बार की तुलना में इस बार स्थितियाँ अपेक्षाकृत ज्यादा अनुकूल हैं ।
इस विश्वास को इस तथ्य से भी बल मिलता है कि काउंसिल सदस्य के रूप में राजिंदर नारंग ने लोगों के बीच अपनी पैठ को और बढ़ाया भी है, और अपने लिए नए समर्थन-आधार भी विकसित किए हैं । जैसे दिल्ली का ही मामला है - पिछली बार दिल्ली में राजिंदर नारंग की कोई पहचान नहीं थी; किंतु इस बार ऐसा नहीं कहा जा सकता है । हरियाणा/पंजाब के जो लोग दिल्ली में प्रैक्टिस रहे हैं, उनकी एक बड़ी संख्या को राजिंदर नारंग ने अपने व्यवहार से प्रभावित किया है, जो इस बार के चुनाव में उनके काम आयेंगे ही । हरियाणा/पंजाब के लोगों के लिए राजिंदर नारंग दिल्ली में जिस तरह से सहारा बने, उसके कारण हरियाणा/पंजाब में भी उनका समर्थन-आधार बढ़ा है । इसके अलावा, राजिंदर नारंग के जो मजबूत गढ़ हैं वहाँ जो वोट बढ़े हैं उसका तो सीधा फायदा उन्हें होना ही है । उनकी उपस्थिति के अभाव में जिस तरह पिछले दिनों कुछेक ब्रांचेज में कार्यक्रम स्थगित हुए हैं, उससे उन जगहों पर उनकी मजबूत पकड़ के संकेत और सुबूत भी मिले ही हैं ।
तमाम अनुकूल स्थितियों के बावजूद राजिंदर नारंग के लिए यदि समस्या कहीं हैं, तो उनके शुभचिंतकों को वह उनके मैनेजमेंट में दिख रही है । उनके कुछेक शुभचिंतकों का कहना है कि जिस तरह उनकी स्थिति को संकट में पा रहे लोग 'एक और एक दो' का हिसाब लगा रहे हैं; ठीक वैसे ही 'हिसाब' से राजिंदर नारंग अपनी स्थिति को मजबूत मान रहे हैं । राजिंदर नारंग का हिसाब तो ठीक है, लेकिन इस हिसाब को फलीभूत करने के लिए उन्हें अपने चुनाव अभियान को वास्तविकता के धरातल पर व्यवस्थित तो करना ही पड़ेगा । उनके शुभचिंतकों का कहना है कि राजिंदर नारंग ने इसमें अगर कोई लापरवाही बरती तो फिर सचमुच में उनके सामने चुनौती खड़ी हो सकती है ।