Sunday, June 9, 2019

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 सी वन में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर विनय मित्तल की सादगी, ईमानदारी, पारदर्शिता, दूसरों को स्पेस तथा सम्मान देने की तत्परता ने डिस्ट्रिक्ट की राजनीतिक आबोहवा को जिस तरह से बदला है; उसमें पुरानी और बार बार इस्तेमाल की जा चुकीं तरकीबों से मुकेश गोयल अपना राजनीतिक अस्तित्व सचमुच बचा सकेंगे क्या ?

गाजियाबाद । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में विनय मित्तल की बहुआयामी कामयाबी ने डिस्ट्रिक्ट की 'व्यवस्था' और चुनावी राजनीति के समीकरणों को जिस तरह से 'डिस्टर्ब' किया है, उसके चलते डिस्ट्रिक्ट एक बड़े बदलाव के मुहाने पर आ खड़ा हुआ है । यह बड़ा बदलाव और चीजों/बातों को प्रभावित करने के साथ-साथ पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर मुकेश गोयल की स्थिति और भूमिका को मुख्य रूप से प्रभावित कर रहा है । उल्लेखनीय है कि पिछले कई वर्षों से मुकेश गोयल डिस्ट्रिक्ट की व्यवस्था और चुनावी राजनीति के केंद्र में रहे हैं; उनकी जगह लेकिन अब विनय मित्तल लेते हुए दिख रहे हैं । जैसे देश की राजनीति के केंद्र में पहले कॉंग्रेस होती थी, दूसरे दल उसके विरोध में गठबंधन करते/बनाते थे; लेकिन केंद्र की जगह अब बीजेपी ने ले ली है । डिस्ट्रिक्ट 321 सी वन की चुनावी राजनीति में भी जो दूसरे नेता पहले मुकेश गोयल के विरोध के मौके खोजते थे और उनके खिलाफ गठबंधन बनाने में जुटते थे; लेकिन अब मुकेश गोयल खुद विनय मित्तल से लड़ने के लिए समर्थक खोज रहे हैं । कॉंग्रेस के परंपरागत समर्थन आधार में सेंध लगाकर जिस तरह से बीजेपी ने उसे कमजोर बना दिया है; लगभग उसी तर्ज पर मुकेश गोयल के समर्थन-आधार के बड़े हिस्से को अपने साथ करके विनय मित्तल ने मुकेश गोयल के सामने अस्तित्व का संकट खड़ा कर दिया है । खुद मुकेश गोयल कहते हैं कि पहले भी उन्हें चुनौतियाँ मिली हैं, लेकिन अब जो चुनौती उनके सामने है - वह बड़ी भारी चुनौती है । मुकेश गोयल दावा तो करते हैं कि वह इस चुनौती से भी निपट लेंगे और विनय मित्तल का 'यह' कर देंगे, 'वह' कर देंगे - लेकिन उनके नजदीकियों और शुभचिंतकों को भी लग रहा है कि वास्तव में 'ऊँठ पहाड़ के नीचे' अब आया है । 
मुकेश गोयल के नजदीकियों और शुभचिंतकों का ही मानना और कहना है कि विनय मित्तल की तरफ से मिलने वाली चुनौती मुकेश गोयल के लिए इसलिए बड़ी और गंभीर है, क्योंकि पिछले कई वर्षों से मुकेश गोयल का जो राज-पाट चल रहा था - उसमें विनय मित्तल की बड़ी भूमिका थी । मुकेश गोयल के लिए मुसीबत की बात सिर्फ यह नहीं है कि कई वर्षों तक उनके साथी/सहयोगी रहे विनय मित्तल अब उनके सामने हैं, मुकेश गोयल के लिए मुश्किल की बात यह भी है कि उनके पास ऐसा कोई साथी/सहयोगी नहीं है जो विनय मित्तल की खूबियों के आसपास भी ठहरता हो । विनय मित्तल ने एक 'बदमाशी' और की; उन्होंने मुकेश गोयल की खूबियाँ तो सीख लीं, लेकिन कमजोरियों को छोड़ दिया - जिसका नतीजा यह है कि विनय मित्तल के सामने मुकेश गोयल असहाय से बने हुए हैं । पिछले वर्ष अश्वनी काम्बोज तथा इस वर्ष गौरव गर्ग की उम्मीदवारी का समर्थन मुकेश गोयल ने जिस मजबूरी में किया, उससे साबित हुआ है कि विनय मित्तल द्वारा रचे गए चक्रव्यूह को भेद पाने का मुकेश गोयल को कोई मौका नहीं मिल सका । इस वर्ष मुकेश गोयल आखिरी मौके तक कोई खेल करने की तैयारी में थे, लेकिन उनकी चालों से अच्छी तरह परिचित रहे विनय मित्तल ने उनकी ऐसी घेराबंदी की हुई थी कि वह फिर कोई साहस नहीं कर सके । अगले लायन वर्ष के लिए मुकेश गोयल 'अपने' उम्मीदवार को लाने के तेवर तो दिखा रहे हैं, लेकिन विनय मित्तल की रणनीति के सामने वह हथियार डालते और मजबूर होते ही नजर आ रहे हैं । इसका नजारा मुजफ्फरनगर में आयोजित अगले लायन वर्ष में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर होने जा रहे संजीवा अग्रवाल की पहली माइक्रो कैबिनेट मीटिंग एवं कैबिनेट परिचय सम्मेलन में देखने को मिला । विनय मित्तल ने बड़ी होशियारी से मुकेश गोयल के लिए जाल बुना, जिसके तहत उन्होंने सबसे ऊपर मुकेश गोयल के साथ कुञ्ज बिहारी अग्रवाल का नाम रखा । विनय मित्तल जानते थे कि मुकेश गोयल अपने नाम के साथ कुञ्ज बिहारी अग्रवाल का नाम रखे जाने को बर्दाश्त नहीं कर पायेंगे; यही हुआ और मुकेश गोयल नाराज होकर कार्यक्रम में नहीं गए - और इस तरह विनय मित्तल के बिछाए जाल में खुद ही जा फँसे ।
डिस्ट्रिक्ट में दरअसल कुछेक लोग ऐसे हैं, जो मुकेश गोयल और विनय मित्तल को साथ-साथ ही देखना चाहते हैं । ऐसे लोगों को अपने साथ लाने के लिए विनय मित्तल ऐसा कोई काम करते हुए 'दिखना' नहीं चाहते हैं जिसमें वह सार्वजनिक रूप से मुकेश गोयल की अवहेलना करते हुए नजर आएँ । इसीलिए विनय मित्तल ने मुकेश गोयल के लिए ऐसा बारीक जाल बुना है, जिसमें अपनी 'आदत' और अपने 'व्यवहार' के चलते मुकेश गोयल खुद ही फँसेंगे और गिरेंगे । मुकेश गोयल और विनय मित्तल के बीच चलने वाले शह और मात के खेल का सबसे रोचक पक्ष यह है कि विनय मित्तल को यह अच्छे से पता है कि मुकेश गोयल कहाँ क्या गलतियाँ करेंगे, इसलिए वह उसी के हिसाब से बातें/चीजें कर ले रहे हैं; जबकि मुकेश गोयल का इस बात पर लगता है कि कोई ध्यान ही नहीं है कि बदले हुए हालात में उन्हें क्या नई रणनीति बनाना चाहिए; वह पुराने ढर्रे पर ही हैं और उन्हें शायद इस बात का अहसास भी नहीं है कि पुराने ढर्रे पर रहने के चलते वह अपने नुकसान को और बढ़ा ही रहे हैं । विनय मित्तल ने जिस ईमानदारी के साथ गवर्नरी की है, उसके कारण डिस्ट्रिक्ट के लोगों के बीच उनकी साख और विश्वसनीयता बनी/बढ़ी है; और यह तथ्य उनका 'यह' और 'वह' करने की घोषणा करने वाले मुकेश गोयल के लिए मुश्किलें पैदा कर रहा है । विनय मित्तल ने जिस पारदर्शिता के साथ गवर्नर पद की जिम्मेदारियों का निर्वाह किया है, उसे डिस्ट्रिक्ट और लायनिज्म के व्यापक हित में देखा/पहचाना जा रहा है । ईमानदारी से गवर्नरी करने का काम तो हालाँकि कुछेक और गवर्नर्स ने भी किया है, लेकिन विनय मित्तल ने कामकाज में जिस तरह की पारदर्शिता बनाये रखी, उसके कारण उनकी ईमानदारी लोगों को नजर भी आई - और यही बात उनके कद को उँचा करने वाली साबित हुई है; और इसी बात ने विनय मित्तल को राजनीतिक ताकत भी दी है । मुकेश गोयल के लिए 'कोढ़ में खाज' वाली बात यह हुई है कि अगले डिस्ट्रिक्ट गवर्नर संजीवा अग्रवाल भी विनय मित्तल के नक्शेकदम पर चलने की तैयारी करते देखे जा रहे हैं । विनय मित्तल और संजीवा अग्रवाल के तौर-तरीकों से डिस्ट्रिक्ट की 'व्यवस्था' और उसका माहौल बदल रहा है; मुकेश गोयल इस बदलती व्यवस्था और माहौल में अपनी राजनीति फिट करने की कोशिश कर रहे हैं, और लगातार मात खाते दिख रहे हैं । उनके नजदीकियों और शुभचिंतकों का ही मानना और कहना है कि मुकेश गोयल इस सच्चाई को स्वीकार करने से मुँह छिपा रहे हैं कि विनय मित्तल की सादगी, ईमानदारी, पारदर्शिता, दूसरों को स्पेस तथा सम्मान देने की तत्परता ने डिस्ट्रिक्ट की आबोहवा को जिस तरह से बदला है, उसमें उनकी पुरानी और बार बार इस्तेमाल की जा चुकीं तरकीबें काम नहीं आयेंगी - तब तो और भी नहीं, जबकि उनके पास/साथ विनय मित्तल के जैसी खूबियों वाला कोई साथी/सहयोगी भी नहीं है ।