नई दिल्ली । सुशील गुप्ता के इस्तीफा देने के बाद इंटरनेशनल प्रेसीडेंट नॉमिनी पद की जिम्मेदारी संभालने वाले होल्गर नेक ने सुशील गुप्ता द्वारा बनाई गई कोर टीम को ही अपनी कोर टीम बना कर सुशील गुप्ता के विरोधियों को तगड़ा झटका दिया है । उल्लेखनीय है कि स्वास्थ्य कारणों से सुशील गुप्ता के इंटरनेशनल प्रेसीडेंट नॉमिनी पद से इस्तीफा देने के बाद सुशील गुप्ता के विरोधी नेताओं के मन बड़े गदगद थे । इंटरनेशनल प्रेसीडेंट नॉमिनी चुने जाने के बाद सुशील गुप्ता से नजदीकियाँ बनाने और 'दिखाने' वाले महत्त्वाकांक्षी नेताओं ने भी उनके इस्तीफा देते ही रंग बदलना शुरू कर दिया था । सुशील गुप्ता के विरोधियों और अवसरवादी नेताओं ने मान/समझ लिया था कि रोटरी इंटरनेशनल की 'व्यवस्था' तथा उसकी राजनीति में सुशील गुप्ता का प्रभाव खत्म हो गया है, और इसलिए उन्हें सुशील गुप्ता की परवाह करने की जरूरत नहीं है । लेकिन सुशील गुप्ता की जगह इंटरनेशनल प्रेसीडेंट नॉमिनी बने होल्गर नेक ने उनकी 'समझ' पर पत्थर गिरा दिए हैं । इन पंक्तियों के लिखे जाने के समय होल्गर नेक की कोर टीम की चल रही मीटिंग की तस्वीरों में यह देखने को मिल रहा है कि सुशील गुप्ता द्वारा अपनी कोर टीम के लिए चुने गए पदाधिकारियों को ही होल्गर नेक ने अपनी कोर टीम में बनाए रखा है और इसके जरिये उन्होंने वास्तव में यह 'संदेश' देने का काम किया है कि उन्हें सुशील गुप्ता से अलग न समझा जाए । होल्गर नेक के इस संदेश ने सुशील गुप्ता के विरोधियों और अवसरवादी नेताओं की 'खुशियों' पर जैसे ताला डाल दिया है ।
उल्लेखनीय है कि सुशील गुप्ता के इस्तीफा देने के बाद, इंटरनेशनल प्रेसीडेंट नॉमिनी पद पर होल्गर नेक का 'चयन' हुआ था, तब भी यह चर्चा चली थी कि उनके चयन में सुशील गुप्ता की पसंद का ध्यान रखा गया है । दरअसल इंटरनेशनल प्रेसीडेंट नॉमिनी पद के दावेदारों में होल्गर नेक की स्थिति बहुत ही कमजोर थी; इंटरनेशनल प्रेसीडेंट पद के चुनाव की राजनीति के खिलाड़ियों में कोई भी उन्हें 'दौड़' में नहीं पा/देख रहा था । सुशील गुप्ता के इस्तीफे के बाद, प्रेसीडेंट नॉमिनी पद के लिए होने वाले पुनर्निर्वाचन में उन उम्मीदवारों का पलड़ा भारी देखा/पहचाना जा रहा था जिनका सुशील गुप्ता के साथ तगड़ा मुकाबला हुआ था, और जो बहुत मामूली अंतर से पिछड़ गए थे । होल्गर नेक को तो कोई भी संभावित प्रेसीडेंट नॉमिनी के रूप में नहीं देख रहा था; यहाँ तक कि वह खुद भी कोई उम्मीद नहीं रखे थे और इसीलिए प्रेसीडेंट नॉमिनी पद के लिए होने वाले पुनर्निर्वाचन की प्रक्रिया में उन्होंने कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई । लेकिन जब उनके नाम की घोषणा हुई, तब हर किसी को हैरानी हुई । नोमीनेटिंग कमेटी ने जितनी आसानी से होल्गर नेक के नाम पर सहमति बनाई, उतनी आसानी से तो सुशील गुप्ता भी नहीं चुने गए थे । नोमीनेटिंग कमेटी में सुशील गुप्ता को कड़ी टक्कर देने वाले उम्मीदवारों के समर्थकों ने होल्गर नेक को चुने जाने के मामले में ज्यादा टाँग नहीं अड़ाई तो इसका कारण यही रहा कि नोमीनेटिंग कमेटी के सदस्यों को सुशील गुप्ता की राय का सम्मान करने का 'इशारा' था और उनकी 'पसंद' के रूप में होल्गर नेक को प्रेसीडेंट नॉमिनी का पद मिल गया ।
होल्गर नेक को सुशील गुप्ता की पसंद के रूप में मिली चर्चा को सुशील गुप्ता के विरोधियों ने ज्यादा गंभीरता से नहीं लिया और यह मान लिया कि रोटरी में सुशील गुप्ता के दिन अब पूरे हो गए हैं । वैसे भी, रोटरी में पद पाने वाला यह कहाँ ध्यान रखता है कि उसे किन लोगों के सहयोग से पद मिला है ? लेकिन होल्गर नेक ने सुशील गुप्ता द्वारा अपनी कोर टीम के लिए चुने गए पदाधिकारियों को ही अपनी कोर टीम में बनाए रखने के फैसले से यह दिखा/जता दिया है कि उन्हें सुशील गुप्ता के 'प्रतिनिधि' के रूप में ही देखा/पहचाना जाए । सुशील गुप्ता ने अपनी कोर टीम में अपने देश से रंजन ढींगरा को चुना था, होल्गर नेक ने रंजन ढींगरा को अपनी कोर टीम में उसी पद पर बनाए रखा है । इन पंक्तियों के लिखे जाने के समय होल्गर नेक की कोर टीम की चल रही मीटिंग में यह देखने को भी मिला कि सिर्फ रंजन ढींगरा ही नहीं, सुशील गुप्ता की कोर टीम के दूसरे सदस्य भी होल्गर नेक की कोर टीम में पहले के अपने अपने पदों पर बनाए रखे गए हैं । होल्गर नेक के इस फैसले ने सुशील गुप्ता के विरोधियों और अवसरवादी नेताओं को तगड़ा झटका दिया है; सुशील गुप्ता के प्रभाव को खत्म हुआ मान कर उन्होंने रोटरी में अपने जो जो मंसूबे बनाए थे, वह सब उन्हें फेल होते हुए दिख रहे हैं । होल्गर नेक के रवैये को देखते हुए उन्हें यह मुश्किल लग रहा है कि सुशील गुप्ता की 'अनुपस्थिति' का वह कोई फायदा उठा सकेंगे । होल्गर नेक के प्रेसीडेंट नॉमिनी चुने जाने में तथा उनके द्वारा सुशील गुप्ता की टीम को ही अपनी टीम बना लेने के फैसले में एक यह संदेश भी निहित है कि सुशील गुप्ता भले ही बीमार हों, और बीमारी के चलते वह प्रेसीडेंट नॉमिनी का पद छोड़ने के लिए मजबूर हुए हों - लेकिन रोटरी में उनका प्रभाव पहले जैसा ही बना हुआ है; और यह बात रोटरी में उनके विरोधियों तथा अवसरवादी महत्त्वाकांक्षी नेताओं के लिए काफी मुसीबतभरी है ।