Friday, June 21, 2019

रोटरी इंटरनेशनल के पूर्व प्रेसीडेंट केआर रवींद्रन से संबंध 'सुधारने' की तमाम कोशिशों के बावजूद इंदौर इंस्टीट्यूट में बड़ी भूमिका न मिलने से निराश और परेशान डिस्ट्रिक्ट 3011 के पूर्व गवर्नर विनोद बंसल को इंटरनेशनल डायरेक्टर पद की अपनी तैयारियों पर पानी फिरता नजर आ रहा है

नई दिल्ली । इंदौर में 3 से 8 दिसंबर के बीच हो रहे रोटरी जोन इंस्टीट्यूट में बड़ी भूमिका न मिल पाने के कारण विनोद बंसल इंस्टीट्यूट के कन्वेनर भरत पांड्या और चेयरमैन टीएन सुब्रमणियन से खासे नाराज हैं । विनोद बंसल के लिए झटके वाली बात यह है कि इस मामले में उन्हें इंस्टीट्यूट के चीफ काउंसलर कमल सांघवी से मदद मिलने की उम्मीद थी, लेकिन कमल सांघवी भी उनकी कोई मदद नहीं कर रहे हैं । इंदौर इंस्टीट्यूट की कमेटियों में हालाँकि उन लोगों की ही भरमार है, जो राजेंद्र उर्फ़ राजा साबू, अशोक महाजन व केआर रवींद्रन के 'खेमे' में देखे/पहचाने जाते हैं और जिन्होंने भरत पांड्या को इंटरनेशनल डायरेक्टर का चुनाव जितवाने में मदद की थी; इसलिए विनोद बंसल को इंदौर इंस्टीट्यूट में कोई तवज्जो न मिलना कोई 'राजनीतिक हैरानी' की बात नहीं है, लेकिन फिर भी विनोद बंसल परेशान हैं - तो इसका कारण यह है कि पिछले कुछेक महीनों में उन्होंने उक्त खेमे के साथ नजदीकी बनाने की बहुतेरी कोशिशें की हैं, और फिर भी उन्हें अपनी कोशिशों का फल मिलता हुआ नहीं दिख रहा है । उल्लेखनीय है कि विनोद बंसल को सुशील गुप्ता वाले खेमे के सदस्य के रूप में देखा/पहचाना जाता है; और इसी नाते इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के पिछले चुनाव में उन्हें अशोक गुप्ता की उम्मीदवारी के समर्थन में देखा/पहचाना गया था; बाद में हालाँकि उनकी तरफ से भरत पांड्या और उनके नजदीकियों को बताने/समझाने के काफी प्रयास हुए कि वह तो चुनाव में तटस्थ थे और उन्होंने अशोक गुप्ता की उम्मीदवारी के पक्ष में कोई काम नहीं किया था । इंदौर इंस्टीट्यूट में लेकिन तमाम कोशिशों के बावजूद विनोद बंसल तवज्जो पाने में विफल रहे हैं, उससे लगता है कि उनकी समझाइस भरत पांड्या को समझ में आई नहीं है ।  
विनोद बंसल को दरअसल इंटरनेशनल डायरेक्टर पद की अपनी उम्मीदवारी के संबंध में इंदौर इंस्टीट्यूट में बड़ी भूमिका निभाना जरूरी लगता है । यह इसलिए क्योंकि पिछले दिनों उन्होंने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स इलेक्ट व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स नॉमिनी के साथ साथ प्रमुख रोटेरियंस के साथ तार जोड़ने का काम खासी प्रमुखता के साथ किया है; उन्हें लगता है कि उनका यह काम सचमुच में तब प्रभावी बन सकेगा, जब यह लोग इंदौर इंस्टीट्यूट में उन्हें कोई बड़ी भूमिका निभाते हुए देखेंगे; ऐसे में उन्हें डर है कि जब ऐसा नहीं होगा, तो उनके सारे किये-धरे पर पानी ही फिर जाएगा । लेकिन इंदौर इंस्टीट्यूट के कन्वेनर भरत पांड्या और चेयरमैन टीएन सुब्रमणियन उन्हें कोई भूमिका निभाने का मौका देने को तैयार ही नहीं हो रहे हैं । विनोद बंसल को अब यह भी लगने लगा है कि भरत पांड्या और टीएन सुब्रमणियन यह व्यवहार खेमे के बड़े नेताओं के इशारे पर ही कर रहे हैं । इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के चुनाव के संदर्भ में विनोद बंसल के लिए यह बात और भी ज्यादा झटके वाली है । 
दरअसल विनोद बंसल देखे/पहचाने भले ही सुशील गुप्ता वाले खेमे में हैं, और सुशील गुप्ता के साथ उनके नजदीक के संबंध भी रहे - लेकिन सुशील गुप्ता खेमे के समर्थन के भरोसे इंटरनेशनल डायरेक्टर बन पाने का उन्हें भरोसा नहीं हो पाया । सुशील गुप्ता वाले खेमे में अशोक गुप्ता और रंजन ढींगरा का पलड़ा उनसे भारी है । कई मौकों पर सुशील गुप्ता उन्हें झटका देते हुए अशोक गुप्ता और रंजन ढींगरा को आगे बढ़ाते हुए नजर आए । यह देखने के बाद विनोद बंसल ने दूसरे खेमे के नेताओं के साथ पींगें बढ़ाना शुरू किया । कुछेक लोगों को लगता है और उनका कहना है कि विनोद बंसल ने पहले से ही दूसरे खेमे के नेताओं के साथ संबंध जोड़ने/बनाने शुरू कर दिए थे, और इस बात को देखते/समझते हुए ही सुशील गुप्ता के यहाँ उनकी भूमिका संदेहास्पद हो गई थी और इस कारण सुशील गुप्ता वाले खेमे में उनकी वैसी जगह नहीं बन पाई जैसी अशोक गुप्ता और या रंजन ढींगरा की है । विनोद बंसल के लिए लगता है कि बदकिस्मती की बात यह रही है कि वह दूसरे खेमे के लोगों के बीच भी अपनी विश्वसनीयता नहीं बना सके हैं । उल्लेखनीय है कि पिछले काफी समय से विनोद बंसल पूर्व इंटरनेशनल प्रेसीडेंट केआर रवींद्रन के साथ नजदीकी बनाने और 'दिखाने' की खूब कोशिशें करते आ रहे हैं; अपने डिस्ट्रिक्ट में उन्होंने केआर रवींद्रन का बड़े जोरशोर से एक कार्यक्रम भी करवाया ।  विनोद बंसल को उम्मीद रही कि केआर रवींद्रन से नजदीकी बना और 'दिखा' कर वह  उनके वाले खेमे के नेताओं और 'सदस्यों' का सहयोग/समर्थन पा लेंगे; लेकिन इंदौर इंस्टीट्यूट में बड़ी भूमिका पाने की उनकी कोशिशों को जो झटका लगा है, उससे इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के चुनाव के संदर्भ में उन्हें अपनी उम्मीदों पर पानी फिरता दिख रहा है ।