नई दिल्ली । नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के पदाधिकारियों और सदस्यों को मिलजुल कर काम करने की सेंट्रल काउंसिल सदस्यों द्वारा दी गई नसीहत एक सप्ताह भी टिकी नहीं रह पाई और 30 जून के कार्यक्रम की तैयारी को लेकर की गई मीटिंग में पदाधिकारियों और सदस्यों के बीच का झगड़ा फिर फूट पड़ा । निकासा चेयरमैन राजेंद्र अरोड़ा का रोना है कि जिस कार्यक्रम में बच्चों/छात्रों की महत्त्वपूर्ण भूमिका होनी है और उनका सहयोग चाहिए होगा, उस कार्यक्रम की तैयारी के लिए होने वाली मीटिंग में निकासा चेयरमैन होने के बावजूद उन्हें बुलाया तक नहीं गया । राजेंद्र अरोड़ा के अलावा, नितिन कँवर, सुमित गर्ग और अविनाश गुप्ता को भी उक्त मीटिंग की सूचना तक नहीं दी गई । इस मामले में इनकी नाराजगी चेयरमैन हरीश चौधरी जैन के प्रति फूट रही है । इनका कहना है कि इस बात को अभी सप्ताह भी नहीं हुआ है, जबकि हरीश चौधरी जैन को सेंट्रल काउंसिल सदस्यों से कसकर फटकार पड़ी थी और उन्हें चेतावनी मिली थी कि काउंसिल के कार्यक्रमों में उन्हें सभी पदाधिकारियों और सदस्यों की भागीदारी को सुनिश्चित करना/रखना चाहिए । हरीश चौधरी जैन लेकिन एक सप्ताह से भी कम समय में उक्त फटकार और नसीहत को भूल गए हैं । मजे की और विडंबना की बात यह भी है कि हरीश चौधरी जैन अभी जिन लोगों को सूचित किए बिना एक महत्त्वपूर्ण कार्यक्रम की तैयारी करने के बारे में मीटिंग करने को तैयार हो गए; अभी तक वह उन्हीं लोगों के भरोसे रहा करते थे । हरीश चौधरी जैन इतनी तेजी से अपना रंग बदल लेंगे, यह नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल में उनके नजदीक रहे लोगों ने सोचा भी नहीं था - और इस तरह उन्होंने अपने आप को हरीश चौधरी जैन के हाथों ठगा हुआ पाया ।
30 जून के साँस्कृतिक कार्यक्रम के बारे में अब मीटिंग करना और उसकी तैयारी की शुरुआत करना भी चेयरमैन के रूप में हरीश चौधरी जैन के नाकारापन का पुख्ता सुबूत है । उल्लेखनीय है कि नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल हर वर्ष सीए दिवस की पूर्व संध्या पर, 30 जून को साँस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन करती है, जिसमें चार्टर्ड एकाउंटेंट्स तथा उनके परिवार के सदस्य और चार्टर्ड एकाउंटेंट्स छात्र विभिन्न तरह के साँस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत करते हैं । इस कार्यक्रम की तैयारी अप्रैल से शुरू हो जाती है; जिसमें सबसे पहले कार्यक्रम प्रस्तुत करने की इच्छा रखने वाले लोगों के आवेदन माँगे जाते हैं, आवेदकों की प्रस्तुतियों की झलक देखी जाती है और एक कमेटी आवेदकों में से ऐसे लोगों को चुनती है जिनकी प्रस्तुतियों को कार्यक्रम के योग्य माना/पाया जाता है; फिर चुने हुए लोग अपनी प्रस्तुतियों की आगे तैयारी करते हैं । चेयरमैन हरीश चौधरी जैन ने लेकिन अप्रैल और मई का पूरा महीना लड़ने/झगड़ने में ही बिता दिया; और अब जब 30 जून में मुश्किल से ढाई सप्ताह का समय बचा है, तब उन्हें उक्त कार्यक्रम को करने की सुध आई है । समझा जा सकता है कि जिस कार्यक्रम की तैयारी में तीन महीने का समय लगता रहा है, उसे ढाई सप्ताह में कैसे किया जा सकेगा ? जाहिर है कि कार्यक्रम के नाम पर महज खानापूर्ति ही होगी । खानापूर्ति भी अच्छे से की जा सकती थी, यदि रीजनल काउंसिल के सभी पदाधिकारियों और सदस्यों को साथ लेकर उसे पूरा करने की कोशिश की जाती । लेकिन जिस कार्यक्रम की तैयारी के पहले कदम में ही विवाद और झगड़ा पैदा हो गया हो, उसका क्या हश्र होगा - इसका सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है ।
30 जून के कार्यक्रम की तैयारी के लिए बनी कमेटी में गौरव गर्ग को जगह मिलने पर भी हैरानी व्यक्त की जा रही है । कुछेक लोग इसे गौरव गर्ग की 'ब्लैकमेल की राजनीति' की सफलता के रूप में 'देख' रहे हैं । लोगों का कहना है कि गौरव गर्ग ने पिछले दिनों रीजनल काउंसिल में हो रही मनमानियों को मुद्दा बना कर काउंसिल कार्यालय में धरना देने का जो आयोजन किया था, उसी के फल के रूप में उन्हें संदर्भित कमेटी में जगह मिली है - ताकि आगे वह धरने जैसा कोई काम न करें । उल्लेखनीय है कि गौरव गर्ग की शिकायत थी कि रीजनल काउंसिल में क्या हो रहा है, रीजनल काउंसिल सदस्य होने के बावजूद उन्हें भी पता नहीं होता है; इसलिए अपने धरने के जरिये वह माँग करेंगे कि रीजनल काउंसिल के आयोजनों की तैयारी में रीजनल काउंसिल के सभी सदस्यों को शामिल किया जाए । लेकिन अब जब 30 जून के कार्यक्रम की तैयारी से रीजनल काउंसिल के चार सदस्यों को, जिनमें एक पदाधिकारी भी है, दूर रखा जा रहा है तो गौरव गर्ग चुप्पी साधे हुए हैं - क्योंकि उन्हें कमेटी में पद मिल गया है । इसी से लोगों को कहने का मौका मिला है कि गौरव गर्ग का धरनेबाजी का सारा नाटक वास्तव में अपने लिए पद पाने के लिए था; और उन्हें इस बात से कोई मतलब नहीं है कि रीजनल काउंसिल के आयोजनों में सभी सदस्यों की भागीदारी हो और सभी सदस्यों को पता हो कि काउंसिल में आखिर हो क्या रहा है ? 30 जून के कार्यक्रम की तैयारी के लिए हुई मीटिंग में जिस तरह से पदाधिकारियों और सदस्यों को दूर रखने की कोशिश हुई है, उससे नजर आ रहा है कि नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल में हालात सुधरने वाले हैं नहीं ।