Saturday, June 8, 2019

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3080 में राजा साबू और उनके साथी गवर्नर्स प्रेसीडेंट नॉमिनी पद से इस्तीफा दे चुके सुशील गुप्ता की बीमारी का फायदा उठा कर टीके रूबी को डीआरएफसी के पद से हटवा देंगे और ग्रांट के पैसे का मनमाना इस्तेमाल करने का अधिकार पा लेने के प्रयासों में जुटे

चंडीगढ़ । सुशील गुप्ता के इंटरनेशनल प्रेसीडेंट नॉमिनी पद से इस्तीफा देने के बाद पूर्व इंटरनेशनल प्रेसीडेंट राजेंद्र उर्फ़ राजा साबू और उनके संगी-साथी एक बार फिर अपने 'असली रंग' में आ गए हैं, और इसके तहत उन्होंने निवर्त्तमान डिस्ट्रिक्ट गवर्नर टीके रूबी को एक बार फिर निशाना बनाना शुरू कर दिया है । राजा साबू और उनके संगी-साथियों को दरअसल टीके रूबी का डीआरएफसी (डिस्ट्रिक्ट रोटरी फाउंडेशन चेयरमैन) बनना पसंद नहीं आ रहा है; वास्तव में उन्हें डर यह हुआ है कि टीके रूबी के डीआरएफसी बनने से रोटरी की ग्रांट्स में हेराफेरी करने तथा मनमानी से उसका इस्तेमाल करने की उनकी हरकतों पर रोक लग जाएगी - इसलिए वह किसी भी बहाने से टीके रूबी को डीआरएफसी पद से हटवाना चाहते हैं । इसके लिए टीके रूबी द्वारा अपने गवर्नर-वर्ष का एकाउंट न दिए जाने तथा पिछले रोटरी वर्ष के ग्रांट-एकाउंट को बंद न करने को बहाने के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है । उल्लेखनीय है कि सुशील गुप्ता जब तक इंटरनेशनल प्रेसीडेंट नॉमिनी थे, तब तक राजा साबू और उनके संगी-साथी 'भीगी बिल्ली' बने हुए थे, और चुप बैठे थे, लेकिन सुशील गुप्ता के इस्तीफा देने के बाद वह फिर से अपनी हरकतों पर उतर आए हैं । असल में, राजा साबू और उनके संगी-साथी टीके रूबी से चलने वाली लड़ाई में बार-बार मात खाने के लिए टीके रूबी को मिलने वाले सुशील गुप्ता के समर्थन को जिम्मेदार मानते/ठहराते रहे हैं; उनका स्पष्ट आरोप रहा कि सुशील गुप्ता इंटरनेशनल कार्यालय में अपनी पहुँच का फायदा उठाते हुए टीके रूबी को बचाते तथा उन्हें लाभ पहुँचवाते रहे हैं । राजा साबू के संगी-साथी पूर्व गवर्नर्स इसके लिए सुशील गुप्ता को सरेआम कोसते भी रहे हैं । यह तब की बात है, जब सुशील गुप्ता इंटरनेशनल प्रेसीडेंट नॉमिनी नहीं बने थे । ऐसे में, सुशील गुप्ता के इंटरनेशनल प्रेसीडेंट नॉमिनी बनने के बाद तो राजा साबू और उनके संगी-साथियों को जैसे साँप सूँघ गया था ।
सुशील गुप्ता के इंटरनेशनल प्रेसीडेंट नॉमिनी पद से इस्तीफा देने के बाद लेकिन राजा साबू और उनके संगी-साथी पूर्व गवर्नर्स बिलों से बाहर निकल आए हैं; कुछेक को कहते हुए सुना गया है कि सुशील गुप्ता ने सिर्फ इस्तीफा ही नहीं दिया है; बीमारी के चलते अब वह इतने असाध्य हो गए हैं कि कुछ कहने/करने लायक नहीं हैं, इसलिए वह अब देखते हैं कि टीके रूबी को कौन बचायेगा ? राजा साबू के संगी-साथी टीके रूबी पर दो 'गुनाह' करने का आरोप लगा रहे है - एक यह कि उन्होंने पिछले रोटरी वर्ष के अपने गवर्नर-काल का एकाउंट नहीं दिया है, और दूसरा अपने गवर्नर वर्ष का ग्रांट-एकाउंट उन्होंने बंद नहीं किया है । यह दोनों आरोप 'नौ सौ चूहे खा चुकी बिल्ली के हज पर जाने' वाले मुहावरे की याद दिलाते हैं । डिस्ट्रिक्ट में कई गवर्नर ऐसे हुए हैं, जिन्होंने अपने गवर्नर-वर्ष के एकाउंट नहीं दिए हैं; लेकिन राजा साबू और या उनके संगी-साथियों ने कभी उनके एकाउंट न देने को मुद्दा नहीं बनाया । जिनके एकाउंट मिले भी उनमें गड़बड़ी के आरोप लगे, लेकिन उन आरोपों को अनसुना किया गया । एक पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के एकाउंट में गड़बड़ी छिपाने के लिए के दो बार ऑडिट करने की 'बेईमानी' करने वाले चार्टर्ड एकाउंटेंट तथा पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर हेमंत अरोड़ा को डिस्ट्रिक्ट फाइनेंस कमेटी का सदस्य बनाया हुआ है । ग्रांट-एकाउंट की जहाँ तक बात है तो पूर्व गवर्नर डेविड हिल्टन ने तीसरे वर्ष ग्रांट-एकाउंट बंद किया था, जिसके चलते टीके रूबी पूरे वर्ष अपना काम नहीं कर सके थे । मजे की बात यह है कि डेविड हिल्टन और टीके रूबी के बीच गवर्नर रहे रमन अनेजा ने डेविड हिल्टन से ग्रांट बंद करने के लिए कहा भी नहीं । दरअसल डिस्ट्रिक्ट में ग्रांट का पैसा राजा साबू की मर्जी और सुविधा से खर्च होता रहा है, इसलिए डेविड हिल्टन ने ग्रांट-अकाउंट बंद नहीं किया और जिस कारण रमन अनेजा अपने गवर्नर-वर्ष की ग्रांट का उपयोग नहीं कर सके, तो इससे किसी को कोई फर्क नहीं पड़ा - क्योंकि राजा साबू की 'सेवा' तो होती ही रही; फर्क तब पड़ता, जब रमन अनेजा को 'ईमानदारी' से क्लब्स को ग्रांट देना होती । 
टीके रूबी अपने गवर्नर वर्ष में ग्रांट का पैसा 'ईमानदारी' से क्लब्स पर खर्च न कर सकें, और ग्रांट के पैसे का राजा साबू मनमाने तरीके से इस्तेमाल कर सके - इसलिए डेविड हिल्टन ने तीसरे वर्ष भी ग्रांट-एकाउंट खुला रखा और रोटरी वर्ष के अंत में मई/जून में उसे बंद किया । तब तक राजा साबू ने इतना जुगाड़ कर लिया था कि मेडीकल मिशन के उनके आयोजनों पर कोई आँच नहीं आ सके । राजा साबू ने इस वर्ष तो बल्कि तीन मेडीकल मिशन किए हैं । डिस्ट्रिक्ट में किसी के लिए भी यह समझना मुश्किल है कि राजा साबू और उनके साथी गवर्नर्स को अपने डिस्ट्रिक्ट के भौगोलिक क्षेत्र के और या देश के बीमारों का ईलाज करने/करवाने की जरूरत क्यों नहीं महसूस होती और क्यों वह दूसरे देशों के बीमारों के ईलाज में ही ग्रांट का पैसा लगा देते हैं ? इसी से लोगों को शक होता है कि राजा साबू और उनके साथी पूर्व गवर्नर्स बीमारों के ईलाज की आड़ में वास्तव में कोई और 'धंधा' करते हैं । मौजूदा डिस्ट्रिक्ट गवर्नर प्रवीन गोयल की माँग और शिकायत अपनी जगह बिलकुल उचित ही है । टीके रूबी द्वारा ग्रांट-एकाउंट बंद न करने की स्थिति में प्रवीन गोयल के लिए वास्तव में यह संभव नहीं रह गया है कि वह अपने गवर्नर-वर्ष की ग्रांट का इस्तेमाल कर सकें - लेकिन उनकी इस स्थिति के लिए डेविड हिल्टन जिम्मेदार हैं; जिन्होंने तीसरे वर्ष अपना ग्रांट-एकाउंट तब बंद किया, जब टीके रूबी के गवर्नर-वर्ष को समाप्त होने में मुश्किल से एक महीना ही बचा था । राजा साबू और उनके संगी-साथियों को लगता था कि एक महीने में टीके रूबी अपना ग्रांट-एकाउंट खुलवा नहीं सकेंगे, और टीके रूबी के गवर्नर-वर्ष की ग्रांट पर भी वह हाथ साफ कर लेंगे । लेकिन उनकी बदकिस्मती रही कि टीके रूबी ने अपने गवर्नर-वर्ष का ग्रांट-एकाउंट खुलवा लिया । राजा साबू और उनके संगी-साथी पूर्व गवर्नर्स ने इस पर काफी हायतौबा मचाई थी, लेकिन तमाम कोशिशों के बावजूद वह कुछ कर नहीं सके थे । राजा साबू और उनके संगी-साथी पूर्व गवर्नर्स का कहना रहा है कि टीके रूबी का ग्रांट-एकाउंट खुलवाने में सुशील गुप्ता का 'सहयोग' था ।
टीके रूबी को जो ग्रांट-एकाउंट जुलाई 2017 में मिलना चाहिए था, राजा साबू और उनके संगी-साथी पूर्व गवर्नर्स की चालबाजियों के चलते वह उन्हें जून 2018 में मिला । ग्रांट-एकाउंट को उन्हें मई 2019 तक पूरा करना था । प्रवीन गोयल उससे पहले ही टीके रूबी पर ग्रांट-एकाउंट बंद करने के लिए दबाव बनाने लगे । रोटरी इंटरनेशनल के जनरल सेक्रेटरी को लिखे उनके पत्र में यह बात स्वतः ही स्पष्ट होती है । उनके पत्र का दिलचस्प पक्ष यह है कि ग्रांट-एकाउंट बंद न करने तथा अपने गवर्नर-काल का एकाउंट न देने का वास्ता देकर प्रवीन गोयल टीके रूबी के डीआरएफसी बनने पर निशाना साध रहे हैं और जनरल सेक्रेटरी से अनुरोध कर रहे हैं कि टीके रूबी के डीआरएफसी बनने के मामले का उन्हें 'रिव्यू' करना चाहिए । प्रवीन गोयल के इस पत्र से वास्तव में राजा साबू और उनके संगी-साथी पूर्व गवर्नर्स की वह बौखलाहट ही सामने आती है, जो टीके रूबी के डीआरएफसी बनने से उनके बीच पैदा हुई है । राजा साबू और उनके संगी-साथी पूर्व गवर्नर्स को लगता है कि अब जब सुशील गुप्ता इंटरनेशनल प्रेसीडेंट नॉमिनी पद से इस्तीफा दे चुके हैं, और बीमारी के कारण कुछ कहने/करने की स्थिति में नहीं हैं, तो वह टीके रूबी को डीआरएफसी के पद से हटवा देंगे और ग्रांट के पैसे का मनमाना इस्तेमाल करने का अधिकार पा लेंगे ।