Thursday, May 21, 2015

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल मल्टीपल डिस्ट्रिक्ट 321 में अंबरीश सरीन के मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन बनने से जेपी सिंह का एक बड़ा दाँव फेल हो गया है और उनकी बड़ी फजीहत हो रही है - इससे उनके सामने मल्टीपल की अपनी नेतागिरी को बचाने की एक बड़ी चुनौती भी पैदा हो गई है

नई दिल्ली । मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन के पद पर अंबरीश सरीन की जीत का श्रेय लेने की पूर्व इंटरनेशनल डायरेक्टर सुशील अग्रवाल और जगदीश गुलाटी ने जो कोशिश की है - उसने उमेश गौतम, जितेंद्र सिंह चौहान, जेपी सिंह, तेजपाल सिंह खिल्लन जैसे नेताओं को बुरी तरह भड़का दिया है; और इन लोगों ने सुशील अग्रवाल और जगदीश गुलाटी को अवसरवादी घोषित करते हुए दावा किया है कि चुनावी नतीजा आने से पहले तक यह दोनों पीएस चावला के समर्थन में ही थे । कहा/बताया जा रहा है कि अगले लायन वर्ष में मल्टीपल में पूछ/तवज्जो बनाये रखने के उद्देश्य से ही सुशील अग्रवाल और जगदीश गुलाटी ने पलटी मार ली और बताने लगे हैं कि वह तो अंबरीश सरीन के साथ ही थे । उल्लेखनीय है कि सुशील अग्रवाल तो पहले से ही (कु)ख्यात हैं कि वह तो हमेशा ही जीतने वाले के साथ ही होते हैं; इस 'जरूरत' को लगता है कि अब जगदीश गुलाटी ने भी 'समझ' लिया है । लोगों को लेकिन इनके रवैये पर नहीं - बल्कि उमेश गौतम, जितेंद्र सिंह चौहान, जेपी सिंह और तेजपाल सिंह खिल्लन के रवैये पर हैरानी हो रही है कि यह चौकड़ी सुशील अग्रवाल और जगदीश गुलाटी की पलटी पर इस कदर बौखला क्यों रही है ? दरअसल अंबरीश सरीन की जीत ने इस चौकड़ी को खासा तगड़ा झटका दिया है - और पीएस चावला की हार को पीएस चावला की हार के रूप में नहीं, बल्कि इस चौकड़ी की हार के रूप में देखा/पहचाना जा रहा है । पीएस चावला को मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन बनवाने का 'ठेका' दरअसल इसी चौकड़ी ने - इस चौकड़ी में भी खासकर जेपी सिंह ने लिया हुआ था; और यही लोग अपने आप को मल्टीपल के लीडर के रूप में दिखा/जता रहे थे । 
मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन पद के चुनाव में पीएस चावला को लीडरशिप के उम्मीदवार के रूप में देखा/पहचाना जा रहा था; इस बात पर फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स भड़के हुए थे । उनकी शिकायत यह थी कि वोट तो उनको देना है लेकिन राजनीति करने और मलाई खाने का काम लीडरशिप के नाम पर कुछेक स्वयंभू नेता कर रहे हैं । इस संबंध में फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स के निशाने पर जेपी सिंह और जितेंद्र सिंह चौहान खासतौर पर थे । इसका नतीजा यह हुआ कि कुछेक फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स ने अपने आप को संगठित कर लिया और तय किया कि मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन वह चुनेंगे । इस काम में ड्रिस्ट्रिक्ट 321 सी वन के फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर सुनील निगम ज्यादा सक्रिय थे; उन्होंने दूसरे फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स को फार्मूला दिया कि मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन बनने की दौड़ में शामिल उम्मीदवारों से कहा जाए कि वह लीडरशिप पर पैसा खर्च करने की बजाए उनपर पैसा खर्च करें और उनके वोट प्राप्त करें । राजीव मित्तल और अंबरीश सरीन को इस फार्मूले पर सहमत तो बताया गया लेकिन दोनों में से कोई भी इस फार्मूले पर आगे बढ़ता हुआ नहीं दिखा । समस्या दरअसल यह हुई कि इस फार्मूले के सूत्रधार और प्रस्तोता सुनील निगम पैसों के लेनदेन के मामले में चूँकि थोड़ा बदनाम रहे हैं, इसलिए राजीव मित्तल और अंबरीश सरीन उनसे डील करने के लिए तैयार नहीं थे; डील करने के लिए दूसरा कोई सामने नहीं आया । राजीव मित्तल और अंबरीश सरीन चूँकि अपनी अपनी उम्मीदवारी के पक्ष में दोनों ही डील करने के लिए प्रयास कर रहे थे, इसलिए भी मामला थोड़ा गफलतभरा हो गया था । 
जेपी सिंह ने इस गफलत का पूरा पूरा फायदा उठाया । वह पीएस चावला को यह समझाने में कामयाब रहे कि उन्हें पैसे चाहने/माँगने वाले फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स के पास जाने की और उनकी चिंता करने की जरूरत नहीं है; वह उन्हें मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन बनवा देंगे । लोगों का आरोप है कि यह भरोसा देकर जेपी सिंह ने अकेले ही पीएस चावला से माल सूत लिया । इसी तरह की बातों और चर्चाओं के बीच यह लगभग तय हो गया था कि पीएस चावला फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स की पसंद नहीं रह गए थे; फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स इस बात पर उनसे बुरी तरह खफा हो गए थे कि वह पूरी तरह जेपी सिंह की गोद में जा बैठे हैं और फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स को कोई तवज्जो ही नहीं दे रहे हैं । कई फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स पीएस चावला से नाराज जरूर थे, लेकिन वह चूँकि किसी और उम्मीदवार के साथ भी जुड़ते हुए नहीं दिख रहे थे - या यह कहें कि दूसरे उम्मीदवार उन्हें अपने साथ जोड़ने में सफल होते हुए नहीं दिख रहे थे; इसलिए पीएस चावला निश्चिंत थे । जेपी सिंह भी उन्हें भरोसा दिलाए हुए थे कि जो नाराज हैं वह चूँकि गफलत में हैं और बँटे हुए हैं, इसलिए वह कुछ कर नहीं पायेंगे । उमेश गौतम और जितेंद्र सिंह चौहान ने अंबरीश सरीन के खिलाफ और तेजपाल सिंह खिल्लन ने राजीव मित्तल के खिलाफ कमर कसी हुई थी ही, इसलिए पीएस चावला और भी निश्चिंत थे । वही क्या, मल्टीपल काउंसिल की चुनावी राजनीति में दिलचस्पी रखने वाला हर कोई पीएस चावला के चुने जाने को लेकर आश्वस्त था ।
इन आश्वस्त लोगों ने लेकिन ऐन मौके पर हुए एक बड़े बदलाव को अनदेखा कर दिया । ऐन मौके पर एक बड़ी घटना यह हुई कि राजीव मित्तल ने चेयरमैन पद की अपनी उम्मीदवारी को वापस ले लिया, और वह वाइस चेयरमैन पद के उम्मीदवार हो गए । अंडरकरेंट पीएस चावला और जेपी सिंह की जोड़ी के खिलाफ था ही - उनके विरोधी वोटों के बँटे होने का जो फायदा उन्हें मिलता दिख रहा था, राजीव मित्तल के पीछे हटते ही उस फायदे की संभावना घट गई थी । इस तथ्य को भाँपने/पहचानने और सावधान होने में वह चूक गए और जीतती दिख रही बाजी को हार बैठे । अब वह अपने एक वोट के बिक जाने का आरोप लगा रहे हैं । उन्हें पाँच वोट मिलने का विश्वास था, लेकिन मिले चार वोट । कौन सा एक वोट उनके हाथ से निकल गया, इसे लेकर उनमें आपस में ही मतभेद हैं । ज्यादा शक जगदीश वर्मा और प्रमोद सपरा पर किया जा रहा है । जेपी सिंह की तरफ से कहा जा रहा है कि जगदीश वर्मा ने धोखा दिया है, तो तेजपाल सिंह खिल्लन की तरफ से प्रमोद सपरा का नाम लिया जा रहा है । इस आरोप-प्रत्यारोप को जेपी सिंह और तेजपाल सिंह खिल्लन की 'लड़ाई' के रूप में भी देखा जा रहा है । लोगों को लग रहा है कि इस आरोप-प्रत्यारोप के जरिए यह दोनों एक दूसरे को लोगों की निगाह में नीचा करने/गिराने का प्रयास कर रहे हैं । हार के बाद का यह एक स्वाभाविक दृश्य है - हारने वाले खेमे के लोग एक दूसरे को जिम्मेदार ठहराते ही हैं ।  
सुशील अग्रवाल और जगदीश गुलाटी की कलाबाजी ने लेकिन इनके लिए - खासकर जेपी सिंह के लिए बड़ा संकट पैदा कर दिया है । पीएस चावला को मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन बनवाने की मुहिम के जरिए जेपी सिंह ने दरअसल एक बड़ा दाँव चला था; जिसके फेल होने पर जिस तरह उनकी फजीहत हो रही है - उससे उनके सामने अपनी नेतागिरी को बचाने की एक बड़ी चुनौती पैदा हो गई है । सुशील अग्रवाल और जगदीश गुलाटी की कलाबाजी ने उनकी चुनौती को और बढ़ाने का ही काम किया है, इसलिए उन्हें इनके खिलाफ भी बातें करने को मजबूर होना पड़ा है ।