नई दिल्ली । सुधीर अग्रवाल ने चार्टर्ड एकाउंटेंट्स इंस्टीट्यूट की सेंट्रल काउंसिल के लिए अपनी उम्मीदवारी की औपचारिक घोषणा करके नवीन गुप्ता और राधेश्याम बंसल की उम्मीदवारी के लिए सीधा खतरा पैदा कर दिया है । उल्लेखनीय है कि यूँ तो सुधीर अग्रवाल की उम्मीदवारी के प्रस्तुत होने की चर्चा काफी समय से थी; कुछेक लोगों का कहना/बताना था भी कि सुधीर अग्रवाल ने उनसे अपने उम्मीदवार होने की बात कही/बताई है - लोगों को लेकिन फिर भी सुधीर अग्रवाल की तरफ से औपचारिक घोषणा होने का इंतजार था । यह इंतजार इसलिए भी था क्योंकि सुधीर अग्रवाल की उम्मीदवारी की चर्चा तो खूब थी, लेकिन खुद सुधीर अग्रवाल अपनी उम्मीदवारी के लिए कुछ करते हुए नहीं दिख रहे थे । उनका मामला कुछ कुछ मधुसुदन गोयल जैसा था - मधुसुदन गोयल के मुकाबले हालाँकि उनकी उम्मीदवारी को लेकर ज्यादा विश्वास जरूर था । लोगों के बीच बने इस विश्वास पर बस सुधीर अग्रवाल की मोहर लगने का इंतजार किया जा रहा था । लोगों का यह इंतज़ार अंततः खत्म हुआ और अभी हाल ही में सुधीर अग्रवाल ने एक कार्यक्रम में उपस्थित होकर अपनी उम्मीदवारी का सार्वजनिक रूप से ऐलान किया ।
सुधीर अग्रवाल द्वारा अपनी उम्मीदवारी की औपचारिक घोषणा में की गई इस देरी के लिए वेद जैन की हरी झंडी मिलने में हुई देरी को जिम्मेदार माना जा रहा है । हालाँकि सुधीर अग्रवाल यह नहीं मानते हैं कि उन्होंने अपनी उम्मीदवारी की औपचारिक घोषणा करने में कोई देर की है; लेकिन इंस्टीट्यूट की चुनावी राजनीति के खिलाड़ियों तथा सुधीर अग्रवाल व वेद जैन की नजदीकियत को जानने वाले लोगों का मानना/कहना है कि सुधीर अग्रवाल दरअसल वेद जैन से हरी झंडी मिलने का इंतजार कर रहे थे । नवीन गुप्ता की उम्मीदवारी को देखते हुए वेद जैन के लिए सुधीर अग्रवाल की उम्मीदवारी के पक्ष में खड़ा दिखना मुश्किल लग रहा था । उल्लेखनीय है कि सुधीर अग्रवाल और वेद जैन को एनडी गुप्ता खेमे के सदस्य के रूप में ही देखा/पहचाना जाता रहा है । पिछले कुछेक वर्षों से हालाँकि इन दोनों के एनडी गुप्ता के साथ पहले जैसे संबंध नहीं रह गए बताए जाते हैं । वेद जैन जब इंस्टीट्यूट के प्रेसीडेंट थे, तभी उनकी एनडी गुप्ता के साथ दूरी बनना शुरू हो गया था । दोनों के नजदीकियों का कहना है कि दोनों के बीच अब पहले जैसे संबंध नहीं रह गए हैं । कई लोग हालाँकि मानते हैं कि एनडी गुप्ता और वेद जैन के बीच भले ही पहले जैसे संबंध न रह गए हों, लेकिन वेद जैन ऐसा कुछ नहीं करेंगे या कर सकेंगे जिससे एनडी गुप्ता और उनके बेटे नवीन गुप्ता को राजनीतिक नुकसान होता हो ।
सुधीर अग्रवाल द्वारा अपनी उम्मीदवारी की औपचारिक घोषणा करने के लिए इंतजार करवाने से लोगों के बीच लेकिन इंप्रेशन यही गया है कि राजनीतिक मोर्चे पर वेद जैन ने एनडी गुप्ता से एक अलग राह पकड़ ली है । मजे की बात यह है कि न तो सुधीर अग्रवाल की तरफ से और न वेद जैन की तरफ से सुधीर अग्रवाल की उम्मीदवारी को वेद जैन के समर्थन के बारे में कोई घोषणा की गई है, किंतु लोगों ने मान लिया है कि सुधीर अग्रवाल ने लंबा इंतजार करवा कर अपनी उम्मीदवारी की अब जो औपचारिक घोषणा की है, तो वेद जैन से हरी झंडी मिलने के बाद ही की है । राजनीति समझने और करने वाले लोग जानते हैं कि राजनीति तथ्यों से नहीं, परसेप्शन से होती है । नवीन गुप्ता के लिए मुसीबत की बात यही है । लोगों के बीच परसेप्शन चूँकि यह बन रहा है कि सुधीर अग्रवाल की उम्मीदवारी को वेद जैन का समर्थन है, इसलिए लोगों के बीच इसकी प्रतिक्रिया इस रूप में हो रही है कि सेंट्रल काउंसिल में नवीन गुप्ता की जो परफॉर्मेंस है, वेद जैन उससे संतुष्ट नहीं हैं और इसीलिए अब वह नवीन गुप्ता का साथ छोड़ कर सुधीर अग्रवाल को आगे बढ़ाना चाहते हैं । नवीन गुप्ता के नजदीकियों की तरफ से हालाँकि यह बताने का प्रयास हो रहा है कि वेद जैन उनके ही साथ हैं तथा रहेंगे; लेकिन समस्या यह है कि यह बात बताने भर से लोगों के बीच स्वीकार्य नहीं होगी - उनकी यह बात यदि सच भी है, तो इसे उन्हें लोगों को 'दिखाना' भी होगा; और इस दिखाने में जितनी देर होगी उतना ही उन्हें नुकसान होता जायेगा । इस तरह, सुधीर अग्रवाल की उम्मीदवारी और उनकी उम्मीदवारी को वेद जैन के समर्थन का परसेप्शन नवीन गुप्ता के लिए भारी मुसीबत बन गया है ।
सुधीर अग्रवाल की उम्मीदवारी राधेश्याम बंसल के लिए भी मुसीबत बन कर आई है । उल्लेखनीय है कि सुधीर अग्रवाल और राधेश्याम बंसल कभी एक साथ हुआ करते थे; और इस नाते दोनों का कार्य-क्षेत्र और समर्थन-आधार लगभग एक ही है । पिछले वर्ष नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के चेयरमैन के रूप में अपनी सक्रियता के भरोसे राधेश्याम बंसल ने सेंट्रल काउंसिल के लिए अपनी जिस उम्मीदवारी को आगे बढ़ाया है, उसे सुधीर अग्रवाल की उम्मीदवारी ने ग्रहण लगा दिया है । सुधीर अग्रवाल भले ही छह वर्ष पहले नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के चेयरमैन थे, लेकिन उनका चेयरमैन-काल चूँकि ज्यादा सक्रियताभरा रहा था - इसलिए चेयरमैन होने के नाते मिलने वाले फायदे के संदर्भ में उनका पलड़ा राधेश्याम बंसल से भारी ही साबित होगा । कार्य-क्षेत्र और समर्थन-आधार में भी राधेश्याम बंसल की तुलना में सुधीर अग्रवाल का प्रभाव व स्वीकार्यता ज्यादा है, इसलिए सुधीर अग्रवाल की उम्मीदवारी राधेश्याम बंसल की उम्मीदवारी के लिए चौतरफा मुसीबत बनकर ही आई है । राधेश्याम बंसल के समर्थक और नजदीकी यह कहने भी लगे हैं कि सुधीर अग्रवाल उम्मीदवार बने ही राधेश्याम बंसल का रास्ता रोकने के लिए हैं । उनका कहना है कि वर्ष 2009 के चुनाव में जो 'काम' भगवानदास गुप्ता ने सुधीर अग्रवाल के लिए किया था, वही काम अब राधेश्याम बंसल के लिए सुधीर अग्रवाल करने उतरे हैं ।
सुधीर अग्रवाल की उम्मीदवारी ने नवीन गुप्ता और राधेश्याम बंसल के लिए जिस तरह की चुनौती पैदा कर दी है, उसके चलते इंस्टीट्यूट की सेंट्रल काउंसिल का चुनाव खासा दिलचस्प हो उठा है ।