Thursday, May 7, 2015

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 ए थ्री में सुरेश बिंदल के लिए बन रहे मौके को बोगस वोटों की मदद से छीन कर विनोद खन्ना के 'बच्चों के मामा' डीके अग्रवाल चार्टर डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बने थे और इस तरह डिस्ट्रिक्ट 321 ए थ्री में बोगस वोटों की राजनीति की नींव रखने के लिए डीके अग्रवाल ही जिम्मेदार ठहरते हैं; हर्ष बंसल और दीपक टुटेजा तो उनके चेले हैं

नई दिल्ली । हर्ष बंसल ने अपनी ताजा कारस्तानी में अपने पापों को छिपाने तथा दूसरों पर दोष मढ़ने की जो कुत्सित हरकत की है, उसके कारण वह लायन नेताओं के बीच एक बार फिर हँसी का पात्र बन गए हैं । लायन नेताओं के बीच चर्चा का विषय यही है कि दूसरों को मूर्ख समझने/बनाने की अपनी ओछी हरकतों के जरिए हर्ष बंसल कब तक अपने आप को मूर्ख साबित करता रहेगा ? पौराणिक कथाओं में शैतानों द्वारा अपने बुरे उद्देश्यों को पूरा करने के लिए देवताओं का रूप धरने और उनकी भाषा बोलने के असंख्य किस्से हैं । सीता का हरण करने के लिए रावण द्वारा साधू का भेष धरने का किस्सा तो खासा लोकप्रिय है । मौजूदा समय में भी अपराधी किस्म के लोगों द्वारा भले दिखने व भली बातें करके अपने काम निकालने के प्रयास खूब देखे जाते हैं । हर्ष बंसल ने तो लेकिन भले दिखने की कोशिश में बेशर्मी की सारी हदें पार कर देने का काम किया है । अपने डिस्ट्रिक्ट - डिस्ट्रिक्ट 321 ए थ्री के मॉरटोरियम में जाने के संदर्भ में लायन नेताओं को लिखे एक ईमेल पत्र में बोगस क्लब्स को लायनिज्म व डिस्ट्रिक्ट के लिए नुकसानदेह बताते हुए उन्होंने कहा है कि उनके डिस्ट्रिक्ट में बोगस क्लब्स की शुरुआत वर्ष 2007-08 में उम्मीदवार बने वीके हंस द्वारा 50 बोगस क्लब्स बनाने से हुई है । डिस्ट्रिक्ट 321 ए थ्री की चुनावी राजनीति से परिचित लोगों के अनुसार हर्ष बंसल का यह दावा सरासर झूठा है कि डिस्ट्रिक्ट 321 ए थ्री में बोगस क्लब्स की शुरुआत वीके हंस की उम्मीदवारी से हुई; सच तो यह है कि इस डिस्ट्रिक्ट में बोगस क्लब्स की राजनीति इससे बहुत पहले से शुरू हो चुकी थी । कब से ? इसकी पड़ताल करने से पहले यह जानना दिलचस्प होगा कि वीके हंस द्वारा 50 बोगस क्लब्स बनाये जाने के संदर्भ में हर्ष बंसल ने किस तरह अपने शैतानी रूप पर साधू का मुखौटा लगाने का बेशर्मीभरा प्रयास किया है । 
हर्ष बंसल की यह बात सच है कि वर्ष 2007-08 में वीके हंस की उम्मीदवारी को कामयाब बनाने के लिए डिस्ट्रिक्ट में 50 बोगस क्लब्स बनाये गए थे । हर्ष बंसल ने लेकिन बेशर्मी दिखाते हुए इस बात को छिपा लिया कि इन 50 बोगस क्लब्स के बनने के पीछे गंदा दिमाग और ओछी सक्रियता किसकी थी ? लायन राजनीति को जो कोई थोड़ा-बहुत भी जानता है वह समझता है कि कोई भी उम्मीदवार डिस्ट्रिक्ट में बोगस क्लब्स नहीं बना सकता; यह काम उसके लिए उसके समर्थक बड़े नेता करते हैं । उम्मीदवार को तो बस बोगस क्लब्स बनने में खर्च होने वाला पैसा देना होता है । वर्ष 2007-08 में वीके हंस जब पहली बार उम्मीदवार बने थे, तब उनके सरपरस्त नेता ने उन्हें बोगस वोटों के सहारे चुनाव जीतने का फार्मूला सुझाया था और खर्चे का हिसाब बताया था । वीके हंस खर्चा करने को तैयार हो गए थे और तब उस वर्ष 50 बोगस क्लब्स बने । हर्ष बंसल उस वर्ष 50 बोगस क्लब बनने की बात तो बताते हैं, लेकिन इस बात को पूरी बेशर्मी के साथ छिपा जाते हैं कि वह 50 बोगस क्लब्स किसकी सरपरस्ती में बने थे ? दरअसल हर्ष बंसल इस तथ्य का यदि खुलासा करते तो उन्हें अपना ही नाम लेना पड़ता । उस वर्ष वीके हंस की उम्मीदवारी का झंडा हर्ष बंसल के पास ही था, और 50 बोगस क्लब्स बना कर चुनाव जीतने का फार्मूला हर्ष बंसल के गंदे दिमाग की ही उपज था । हर्ष बंसल को लगा होगा कि इस सच्चाई को वह नहीं बतायेंगे और छिपा जायेंगे, तो अपनी काली करतूतों से लोगों का ध्यान भटका लेंगे । हर्ष बंसल की करतूतों का लेकिन ऐसा बोलबाला है कि उनकी यह चाल सफल नहीं हो सकी और लायन नेताओं के बीच वह हँसी का पात्र बन बैठे । हालाँकि इसका मतलब यह भी नहीं है कि डिस्ट्रिक्ट 321 ए थ्री में बोगस क्लब्स की राजनीति की शुरुआत हर्ष बंसल ने की थी; शुरुआत तो यह पहले से ही हो चुकी थी - हर्ष बंसल ने तो इस कलाकारी को नई ऊँचाइयाँ प्रदान की । 
डिस्ट्रिक्ट 321 ए थ्री का इतिहास वर्ष 1993-94 से शुरू होता है, जिसमें पहले डिस्ट्रिक्ट गवर्नर डीके अग्रवाल थे । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में उनका 'चुनाव' उससे पिछले वर्ष, यानि वर्ष 1992-93 में अविभाजित डिस्ट्रिक्ट 321 ए में हुआ था । वर्ष 1992-93, अविभाजित डिस्ट्रिक्ट 321 ए का अंतिम वर्ष था, और उस वर्ष अविभाजित डिस्ट्रिक्ट के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर विनोद खन्ना थे । अविभाजित डिस्ट्रिक्ट में विभाजित डिस्ट्रिक्ट 321 ए थ्री के लिए जो चुनाव हुआ था, उसकी कहानी बड़ी दिलचस्प है । डिस्ट्रिक्ट 321 ए थ्री के लिए चार्टर डिस्ट्रिक्ट गवर्नर का जो चुनाव होना था, उसमें सुरेश बिंदल का पलड़ा भारी था और हर कोई सुरेश बिंदल को ही डिस्ट्रिक्ट 321 ए थ्री के चार्टर डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में देख/पहचान रहे थे । लेकिन सुरेश बिंदल का मौका डीके अग्रवाल ने विनोद खन्ना की मदद से हड़प लिया । आज कई लोगों को यह जानकर हैरानी हो सकती है कि उस समय डीके अग्रवाल के विनोद खन्ना के साथ बहुत ही नजदीकी संबंध होते थे । उनके नजदीकी संबंधों की जड़ें उनके परिवारों तक पहुँची हुई थीं । डीके अग्रवाल, विनोद खन्ना की पत्नी रेणु खन्ना को बहन मानते थे । रेणु खन्ना को डीके अग्रवाल जिस तरह दीदी दीदी कह कर संबोधित करते थे, उसे सुनते/देखते हुए लायन नेताओं ने डीके अग्रवाल का नाम ही 'बच्चों के मामा' रख दिया था । उस समय उनका यह नाम इतना लोकप्रिय हो गया था कि बड़े लायन नेता भी डीके अग्रवाल की बात करते थे, तो उन्हें 'बच्चों के मामा' कह कर संबोधित/उच्चारित करते थे । अपने 'बच्चों के मामा' डीके अग्रवाल को विनोद खन्ना ने टिप्स दी कि वह यदि पीपी भारद्वाज की मदद जुगाड़ लें, तो सुरेश बिंदल को पछाड़ कर नए डिस्ट्रिक्ट के चार्टर डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बन जायेंगे । 
पीपी भारद्वाज अविभाजित डिस्ट्रिक्ट में करीब सौ सौ की सदस्यता वाले तीन-चार बोगस क्लब्स रखने वाले पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर थे, और अपने बोगस क्लब्स के जरिये अविभाजित डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति में अच्छा-खासा दखल रखने वाले नेता के रूप में देखे/पहचाने जाते थे । पीपी भारद्वाज मूलतः नरेश अग्रवाल के डिस्ट्रिक्ट के खिलाड़ी थे और वही वह गवर्नर बने थे । एक सरकारी बीमा कंपनी में नौकरी करने वाले पीपी भारद्वाज ट्रांसफर के चलते दिल्ली आ गए तो यहाँ के डिस्ट्रिक्ट में 'खिलाड़ी' बन गए । विनोद खन्ना ने ही पीपी भारद्वाज के बोगस क्लब्स के वोटों का सौदा डीके अग्रवाल से करवाया, जिनकी ताकत से सुरेश बिंदल का चार्टर डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बनने का मौका छिना और डीके अग्रवाल चार्टर डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बने । इस तरह डिस्ट्रिक्ट 321 ए थ्री की शुरुआत ही बोगस क्लब्स के वोटों के भरोसे मिली जीत के 'सम्मान' से हुई । सुरेश बिंदल का मौका छीनने में डीके अग्रवाल को जो सफलता मिली, उससे बोगस क्लब्स की ताकत पर डीके अग्रवाल को ऐसा भरोसा हुआ कि अपने गवर्नर-काल में उन्होंने ललित नरूला को अगले लायन वर्ष का गवर्नर और नरहरि डालमिया को वाइस गवर्नर बनवाने/चुनवाने का जाल बिछाया और नरहरि डालमिया के पैसे लगवा कर बोगस वोट बनाये । डीके अग्रवाल के यह दोनों उम्मीदवार हालाँकि चुनाव हार गए थे, लेकिन नरहरि डालमिया को जेएन भूटानी से हरवाने का आरोप डीके अग्रवाल पर ही लगा था । ललित नरूला तो सुरेश बिंदल से चार-पाँच वोटों से ही हारे थे, किंतु नरहरि डालमिया को जेएन भूटानी से 35 के करीब वोटों से पराजय मिली थी । उस समय आरोप लगा था कि नरहरि डालमिया को डीके अग्रवाल ने जितवाने का भरोसा तो उनका पैसा लगवाने के लिए दिया था, वास्तव में साथ वह जेएन भूटानी के थे । 
डीके अग्रवाल इस तरह के खेल करते रहे हैं । वह 'दिखते' किसी के साथ और सचमुच में 'होते' किसी और के साथ । उनके इसी रवैये पर राकेश जैन ने उन्हें 'डुप्लीकेट कुमार' जैसा नाम दिया था । जिन विनोद खन्ना के 'बच्चों के मामा' जैसी उन्हें पहचान मिली थी, उन्हीं विनोद खन्ना की फिर उन्होंने ऐसी हालत कर दी थी कि विनोद खन्ना को डिस्ट्रिक्ट से भाग कर डिस्ट्रिक्ट 321 ए टू में शरण लेनी पड़ी । बोगस वोट तथा क्लब्स बनवाने का खेल हर्ष बंसल ने वास्तव में डीके अग्रवाल से ही सीखा । बोगस वोट और क्लब्स बनाने के लिए जो क्लेरिकल हुनर चाहिए होता है, उसमें हर्ष बंसल चूँकि एक्सपर्ट रहे इसलिए वह डीके अग्रवाल की गुडबुक में शामिल हुए । बोगस वोट के खेल की ताकत समझने के बाद जिस तरह डीके अग्रवाल ने विनोद खन्ना को किनारे लगाया, ठीक वैसे ही हर्ष बंसल ने डीके अग्रवाल से निपटने की कोशिश की तो दोनों में खटक गई । तब क्लेरिकल काम के लिए डीके अग्रवाल ने दीपक टुटेजा का सहारा लिया । डीके अग्रवाल की देखरेख में ही दीपक टुटेजा बोगस वोटों के खिलाड़ी बने । दीपक टुटेजा के इस खिलाड़ीपने से मिली ऑक्सीजन के सहारे ही डीके अग्रवाल ने हर्ष बंसल को डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति में उसकी औकात बताई और हर्ष बंसल को जीरो बना कर रख दिया । फिर लेकिन डीके अग्रवाल को दीपक टुटेजा से भी शिकायत होने लगी । समझा जाता है कि डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति में दीपक टुटेजा की बढ़ती ताकत से अजय बुद्धराज को खतरा महसूस हुआ, और उन्होंने डीके अग्रवाल के कान भरे । डीके अग्रवाल ने दीपक टुटेजा से निपटने की रणनीति में हर्ष बंसल से हाथ मिला लिया, लेकिन हर्ष बंसल की लोगों के बीच इतनी बदनामी है कि उनसे मिलकर डीके अग्रवाल खुद भी जीरो हो गए ।
दीपक टुटेजा से मिली मात पर मात से उबरने के लिए डीके अग्रवाल और हर्ष बंसल की जोड़ी ने ऐसे हालात पैदा किए कि डिस्ट्रिक्ट मॉरटोरियम में चला गया है । मजे की बात यह है कि बोगस वोटों का सारा ठीकरा दीपक टुटेजा के सिर फोड़ने की कोशिश करते हुए डीके अग्रवाल और हर्ष बंसल अपने आप को बड़ा पवित्र दिखाने/जताने की जो कोशिश कर रहे हैं, उससे कई दबी/छिपी बातें सामने आ रही हैं - जिनसे वास्तव में इन्हीं की किरकिरी व फजीहत हो रही है ।