Tuesday, May 12, 2015

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3012 में जेके गौड़ व शरत जैन जैसों के जरिए मुकेश अरनेजा को किनारे लगाने में कामयाब रहे रमेश अग्रवाल ने प्रसून चौधरी की उम्मीदवारी का झंडा उठाया, लेकिन प्रसून चौधरी के समर्थक रमेश अग्रवाल के खुले समर्थन को आत्मघाती मान रहे हैं

नई दिल्ली । प्रसून चौधरी की डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की उम्मीदवारी को रमेश अग्रवाल के समर्थन की चर्चाओं के कारण डिस्ट्रिक्ट के सत्ता खेमे में फूट पड़ने के अनुमान लगाये जाने लगे हैं । यह अनुमान इसलिए लगाए जा रहे हैं क्योंकि मुकेश अरनेजा को अशोक गर्ग के समर्थक के रूप में देखा/पहचाना जा रहा है । लोगों को लग रहा है कि अगले रोटरी वर्ष में होने वाला डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद का चुनाव मुकेश अरनेजा और रमेश अग्रवाल की राहों को अलग अलग करने का कारण बनेगा । दरअसल जेके गौड़ तथा शरत जैन के रवैये ने मुकेश अरनेजा को तगड़ा झटका दिया है; और उन्हें लगने लगा है कि उनके साथ 'इस्तेमाल करो और किनारे लगाओ' वाला फार्मूला इस्तेमाल किया जा रहा है । पहले जेके गौड़ को तथा फिर शरत जैन को चुनवाने में मुकेश अरनेजा ने अपना सारा 'हुनर' इस्तेमाल किया - लेकिन यह दोनों रमेश अग्रवाल के ज्यादा सगे बने हैं और इन्होंने मुकेश अरनेजा को तो 'एक्स्ट्रा कलाकार' मान कर अलग ही बैठा दिया है । जेके गौड़ जिस तरह रमेश अग्रवाल को ही 'माई-बाप' माने बैठे हैं, उससे सबसे ज्यादा फजीहत मुकेश अरनेजा की हुई है और हो रही है । शरत जैन ने भी अभी से जेके गौड़ जैसे ही रंग-ढंग दिखाने शुरू कर दिए हैं, जिससे यह लगने लगा है कि शरत जैन के गवर्नर-काल में भी मुख्य भूमिका रमेश अग्रवाल की ही रहेगी, तथा मुकेश अरनेजा को तो ज्यादा से ज्यादा अतिथि कलाकार की भूमिका मिल जायेगी । डिस्ट्रिक्ट में मुकेश अरनेजा की यह जो दुर्गति हो रही है, उसका असर डिस्ट्रिक्ट के ऊपर की रोटरी की दुनिया पर भी पड़ रहा है - जहाँ कि रमेश अग्रवाल अपने लिए तो छोटे-मोटे असाइनमेंट जुगाड़ लेते हैं, और मुकेश अरनेजा को हाथ मलते हुए ही रह जाना पड़ता है । 
इसीलिए मुकेश अरनेजा को लग रहा है कि रमेश अग्रवाल से अलग होकर ही वह अपनी खोई हुई ताकत तथा हैसियत को पुनः पा सकते हैं । दूसरे लोगों का तो कहना है ही, लेकिन अब तो मुकेश अरनेजा को भी लगने लगा है कि उनकी रोटरी की राजनीति को रमेश अग्रवाल की हरकतों के चलते ही ग्रहण लग रहा है । अपनी हरकतों के चलते रोटरी के नेताओं के बीच रमेश अग्रवाल बुरी तरह बदनाम हैं; उनकी यह बदनामी मुकेश अरनेजा के पीछे भी चिपक जाती है - क्योंकि माना/समझा जाता है कि रमेश अग्रवाल जो भी करते हैं उसमें मुकेश अरनेजा का सहयोग व समर्थन होता ही है । इस तरह रमेश अग्रवाल के कारण मुकेश अरनेजा को दोहरा नुकसान होता है - एक तरफ तो रमेश अग्रवाल की बदनामी उनकी बदनामी में और इजाफा करती है, और दूसरी तरफ उनके लिए जो थोड़े-बहुत मौके बनते हैं उन्हें भी रमेश अग्रवाल झपट लेते हैं । बड़ा कमाल तो डिस्ट्रिक्ट में यही हुआ है कि रमेश अग्रवाल के प्रभाव में जेके गौड़ जैसे 'ना-कुछ' ने मुकेश अरनेजा को धो कर रख दिया है । मुकेश अरनेजा की बेचारगी का आलम यह है कि वह जेके गौड़ का कुछ कर भी नहीं पा रहे हैं । मुकेश अरनेजा ऐसे थे नहीं - लोगों को याद है कि अमित जैन ने जब उन्हें 'धोया' था, तब मुकेश अरनेजा ने उनसे कैसा बदला लिया था । जेके गौड़ के मामले में मुकेश अरनेजा की लेकिन सिट्टी-पिट्टी गुम है । जेके गौड़ के बाद शरत जैन भी मुकेश अरनेजा को 'ठिकाने' लगाने की तैयारी में हैं । मुकेश अरनेजा जैसे धाकड़ नेता जेके गौड़ तथा शरत जैन जैसों के सामने असहाय बने हुए हैं, तो इसका कारण यही है कि इन दोनों को रमेश अग्रवाल से शह व समर्थन मिल रहा है ।
अपनी खोई हुई ताकत व हैसियत को वापस पाने के लिए मुकेश अरनेजा ने लेकिन इस बीच एक बड़ा काम यह जरूर किया है कि उन्होंने सतीश सिंघल से तार जोड़ लिए हैं । वह भाँप रहे हैं कि सतीश सिंघल के गवर्नर-काल में रमेश अग्रवाल को ज्यादा तवज्जो नहीं मिलेगी, इसलिए सतीश सिंघल के साथ तार जोड़ कर वह रोटरी की राजनीति में अपने पुराने मुकाम को पाने की उम्मीद लगाये हुए हैं और इस उम्मीद को पूरा करने के लिए उन्होंने अपना कदम बढ़ा दिया है । अपने इस कदम के वास्ते ठोस जमीन तैयार करने के लिए मुकेश अरनेजा ने सतीश सिंघल के बाद अशोक गर्ग को गवर्नर बनवाने का जिम्मा उठा लिया है । मुकेश अरनेजा की इस चाल को पहचान कर ही रमेश अग्रवाल ने अशोक गर्ग की उम्मीदवारी के समर्थन से हाथ खींच लिया है । उल्लेखनीय है कि अभी कुछ समय पहले तक रमेश अग्रवाल को अशोक गर्ग की उम्मीदवारी के समर्थक के रूप में ही देखा/पहचाना जा रहा था, लेकिन रमेश अग्रवाल ने अब प्रसून चौधरी की उम्मीदवारी का समर्थन करने के संकेत देना शुरू कर दिया है । मुकेश अरनेजा को यह स्थिति अपनी रणनीति के अनुरूप ही घटित होती हुई दिख रही है । रमेश अग्रवाल की इस उम्मीदवार-बदली से उनके लिए लोगों के बीच यह कहने/बताने का मौका बना है कि उन्होंने रमेश अग्रवाल का साथ नहीं छोड़ा है, बल्कि रमेश अग्रवाल ने उनका साथ छोड़ा है ।
रमेश अग्रवाल के समर्थन को लेकर प्रसून चौधरी के समर्थकों के बीच जो खलबली मची है, उसे देख/जान कर भी मुकेश अरनेजा उत्साहित हुए हैं । प्रसून चौधरी के कई समर्थक व शुभचिंतक रमेश अग्रवाल के खुले समर्थन को प्रसून चौधरी की उम्मीदवारी के लिए आत्मघाती मान रहे हैं । उनका कहना है कि डिस्ट्रिक्ट में रमेश अग्रवाल की जैसी जो बदनामी है - उसके कारण रमेश अग्रवाल के समर्थन से फायदा कम,नुकसान ज्यादा होगा । यह सच है कि रमेश अग्रवाल के समर्थन के बावजूद जेके गौड़ और शरत जैन जीते हैं, लेकिन यह मानना कि इन्हें जीत रमेश अग्रवाल के कारण मिली है - सच्चाई व तथ्यों से मुँह चुराना होगा । इसी का वास्ता देकर प्रसून चौधरी के कुछेक समर्थकों का सुझाव है कि रमेश अग्रवाल के समर्थन को पर्दे के पीछे छिपा कर रखे जाने की जरूरत है । सवाल लेकिन यह है कि इसके लिए रमेश अग्रवाल तैयार होंगे क्या ? यह सुझाव रमेश अग्रवाल को अपनी तौहीन नहीं लगेगा क्या ? और इस तौहीन के बाद भी वह प्रसून चौधरी की उम्मीदवारी के समर्थन में बने रहेंगे क्या ? इन सवालों से जो स्थितियाँ बन रही हैं, उन्हें सुभाष जैन और भड़का रहे हैं । वह लोगों को बता रहे हैं कि स्कूली धंधे के कारण जेके गौड़ और जैन होने के कारण शरत जैन उनके समर्थन के लिए राजी हो गए हैं, और यह दोनों रमेश अग्रवाल पर दबाव बनायेंगे कि रमेश अग्रवाल इस बार प्रसून चौधरी को उनके पक्ष में बैठा लें । सुभाष जैन का यह दावा कितना सच है, और यदि सच है तो कब तक कामयाब हो पायेगा - यह तो अगले कुछ दिनों में ही स्पष्ट हो पायेगा; लेकिन अभी यह जरूर हुआ है कि रमेश अग्रवाल के समर्थन से पैदा हुई मुसीबत में प्रसून चौधरी और उनके समर्थक अभी उलझे हुए थे ही कि सुभाष जैन के इस 'हमले' ने उनकी मुसीबत को और बढ़ा दिया है । 
रमेश अग्रवाल के नाम पर पैदा हुए इस झमेले में मुकेश अरनेजा को अपना काम आसान होता हुआ दिख रहा है; और उनकी इस आसानी में डिस्ट्रिक्ट की राजनीति एक दिलचस्प मोड़ लेती हुई नजर आ रही है ।