Sunday, May 10, 2015

इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स ऑफ इंडिया की सेंट्रल इंडिया रीजनल काउंसिल से सेंट्रल काउंसिल के लिए उम्मीदवार बने मनु अग्रवाल ने लगता है कि पिछली बार की गलतियों से कोई सबक नहीं सीखा है; और इसीलिए उनके शुभचिंतकों को भी डर हुआ है कि पिछली बार की तरह कहीं इस बार भी हाथ में आता आता मौका फिसल कर निकल न जाए

कानपुर । मनु अग्रवाल ने अपने खुद के रवैये से ही सेंट्रल काउंसिल के लिए प्रस्तुत अपनी उम्मीदवारी को मजाक का विषय बना दिया है, और अपने लिए विरोध व मुसीबत का माहौल बना लिया है । उल्लेखनीय है कि इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स की सेंट्रल काउंसिल के लिए सेंट्रल रीजन में पिछली बार मामूली अंतर से जीतने से रह गए मनु अग्रवाल अगली बार अपनी उम्मीदवारी प्रस्तुत करने की घोषणा लगातार करते रहे थे और थोड़ी बहुत जितनी संभव थी उतनी सक्रियता भी बनाए हुए थे । किंतु अभी चार-पाँच महीने पहले उन्होंने अचानक से ऐलान कर दिया कि वह चुनाव में चक्कर में नहीं पड़ेंगे और अपने कामधाम में ध्यान देंगे । लोगों को उन्होंने खुद ही बताया कि उन्हें एक बड़ा बिजनेस मिल रहा है, जिसमें उन्हें खूब कमाई होगी - इसलिए वह अपना समय और अपनी एनर्जी उसमें लगायेंगे । चुनाव, चुनावी राजनीति, चुने गए सदस्यों के क्रियाकलापों को लेकर उन्होंने बहुत ही नकारात्मक तथा आपत्तिजनक किस्म की बातें कहीं; जिनका लब्बोलुबाब यह था कि चुनाव-फुनाव क्या होता है, चुने जाने के बाद सदस्य अपना घर भरने में ही लगे रहते हैं, मुझे अपना घर भरने का जब दूसरा मौका मिल रहा है तो मैं चुनाव के चक्कर में क्यों पडूँ ? आदि-इत्यादि । उनकी इस तरह की बातें चल ही रही थीं कि लोगों ने देखा/पाया कि उन्होंने अचानक से फिर पलटा खाया और वह दोबारा से अपनी उम्मीदवारी की बात करने लगे । उन्होंने तो नहीं बताया कि जिस बड़े बिजनेस के लिए उन्होंने पहले अपनी उम्मीदवारी को छोड़ने की घोषणा कर दी थी, उसके लिए समय और एनर्जी कैसे निकालेंगे; लेकिन उनके नजदीकियों ने बताया कि जिस बड़े बिजनेस के चक्कर में उन्होंने चुनाव से हटने की घोषणा की थी, वह बड़ा बिजनेस उन्हें मिला ही नहीं, और इसलिए वह वापस चुनाव लड़ने की तैयारी में जुट गए । इस कारण से मनु अग्रवाल को लोगों के इस सवाल का सामना अक्सर करना पड़ जाता है कि अब यदि उन्हें फिर से ज्यादा कमाई करने के लिए चुनाव लड़ने के अलावा कोई और बिजनेस मिल गया, तो क्या वह फिर से अपनी उम्मीदवारी छोड़ देंगे ? मनु अग्रवाल समझते हैं कि यह सवाल उन्हें चिढ़ाने के लिए पूछा जाता है, इसलिए इस सवाल को वह अलग अलग तरीकों से दाएँ-बाएँ कर देते हैं । 
मनु अग्रवाल का दावा है कि अपने धुर विरोधियों अक्षय गुप्ता और राजीव मेहरोत्रा को उन्होंने अपनी उम्मीदवारी का समर्थन करने के लिए राजी कर लिया है; और 'हम तीनों' ने तय किया है कि अब की बार कानपुर से मैं अकेला ही उम्मीदवार बनूँ, ताकि कानपुर से सीट को पक्का किया जा सके । मनु अग्रवाल के इस दावे ने कानपुर में कई लोगों को भड़काया और उन्होंने कहना शुरू किया कि कानपुर में क्या हो, इसे 'तुम तीनों' ही क्यों तय करोगे ? मामला बढ़ा तो अक्षय गुप्ता और राजीव मेहरोत्रा को सफाई देने सामने आना पड़ा और उन्होंने कहा कि उन्होंने तो बस इतना कहा है कि वह उम्मीदवार नहीं हो रहे हैं; कौन उम्मीदवार हो या न हो, इसे वह भला कैसे तय कर सकते हैं; और जहाँ तक इसकी बात है कि वह किसका समर्थन करेंगे, तो इसका फैसला वह तब करेंगे जब सारा सीन क्लियर हो जायेगा । मजे की बात यह है कि मनु अग्रवाल बिजनेस के चक्कर में अपनी उम्मीदवारी से पीछे हटने से पहले जब उम्मीदवार होने की बात कर रहे थे, तब तो अक्षय गुप्ता और राजीव मेहरोत्रा भी अपनी अपनी उम्मीदवारी की बातें कर रहे थे; लेकिन जब मनु अग्रवाल बिजनेस के चक्कर में पीछे हटे, तो इन्होंने भी अपनी अपनी उम्मीदवारी की बात करना बंद कर दिया । इससे समझा यह जा रहा है कि इन्हें उम्मीदवार होना कभी नहीं था, यह तो बस मनु अग्रवाल का काम बिगाड़ने के लिए अपनी अपनी उम्मीदवारी की बात चला रहे थे । हाँ-न-हाँ का जो तमाशा मनु अग्रवाल ने दिखाया, वैसा तमाशा चूँकि यह दोनों नहीं कर सकते हैं - इसलिए मनु अग्रवाल अपने आप को निश्चिंत और अकेला मान रहे हैं । मनु अग्रवाल मान रहे हैं और कह रहे कि इन दोनों के पास उनका समर्थन करने के अलावा और कोई चारा भी नहीं होगा; इनके समर्थन से विवेक खन्ना के उम्मीदवार हो सकने की संभावना को भी मनु अग्रवाल यह कहते/बताते हुए खारिज कर रहे हैं कि विवेक खन्ना अपनी पारिवारिक मुश्किलों में बुरी तरह उलझे हुए हैं, इसलिए वह चाहते हुए भी उम्मीदवार नहीं हो सकेंगे - और इस तरह कानपुर का मैदान उनके लिए पूरी तरह खाली है । 
यह सच लग भी रहा है कि कानपुर में मनु अग्रवाल को चुनावी चुनौती का सामना नहीं करना पड़ रहा है - किंतु इससे उनकी राह आसान नहीं हो गई है । कानपुर की और इंस्टीट्यूट की चुनावी राजनीति की बारीकियों को जानने/समझने वाले लोगों का कहना है कि मनु अग्रवाल दरअसल कुछेक गलतफहमियों के शिकार हैं और स्थितियों को तथ्यपरक रूप से नहीं, बल्कि अपनी सुविधा के नजरिये से देख रहे हैं । मनु अग्रवाल को सबसे बड़ी गलतफहमी यही है कि पिछली बार उन्हें जो थोड़े से वोट कम पड़ गए थे, उनकी भरपाई तो वह आराम से कर लेंगे और इसलिए उन्हें ज्यादा कुछ करने की जरूरत ही नहीं है । कानपुर में किसी और उम्मीदवार के न होने से उनका काम और आसान हो गया है । लोगों का कहना/पूछना लेकिन यह है कि चुनावी समीकरण यदि इतने ही सीधे होते तो पिछली बार रवि होलानी क्यों हारते ? दरअसल हर बार चुनाव का एक नया गणित होता है, और एक नई केमिस्ट्री होती है - इसे समझने/पहचानने की कोशिश जो नहीं करता है, वह औंधे मुँह ही गिरता है । कानपुर में कई लोगों का कहना है कि पिछली बार मनु अग्रवाल ने अपनी उम्मीदवारी को यदि थोड़ा गंभीरता से लिया होता, तो वह सेंट्रल काउंसिल में होते । पिछली बार उन्हें मुकेश कुशवाह ने नहीं हराया था, उनकी खुद की मूर्खताओं व लापरवाहियों ने उन्हें हराया था । कानपुर में लोगों को लग रहा है कि पिछली बार की गलतियों से उन्होंने लगता नहीं है कि कोई सबक सीखा है । 
मनु अग्रवाल ने पिछले तीन-चार महीनों में जिस तरह की हरकतें/बातें की हैं, उससे उन्होंने अपनी स्थिति को कमजोर ही किया है । उनकी कमजोरी का पूरा पूरा फायदा अविचल कपूर ने उठाया है । कानपुर में एक बड़ा तबका मनु अग्रवाल के खिलाफ है - सच होते हुए भी यह कोई खास बात नहीं है । हर जगह दो खेमे होते ही हैं । समस्या तब बड़ी हो जाती है जब आप खिलाफ लोगों के साथ होशियारी से डील करने का प्रयास नहीं करते हैं । कानपुर में मनु अग्रवाल के लिए समस्या की बात यह है कि कानपुर के मठाधीशों को डर यह है कि मनु अग्रवाल यदि जीत गए तो उनकी मठधीशी ही खत्म हो जायेगी; अपनी मठधीशी बचाने के लिए उन्हें यह जरूरी लग रहा है कि वह मनु अग्रवाल को जीतने से रोकें । यही मठाधीश अविचल कपूर का समर्थन करते हुए सुने जा रहे हैं । कानपुर में अकेले उम्मीदवार होने के नाते मनु अग्रवाल के लिए भावनात्मक अपील बनाना हालाँकि संभव है और मनु अग्रवाल इसके लिए प्रयास भी करते देखे गए हैं; किंतु उनके प्रयास प्रायः इतने फूहड़ और नकारात्मक साबित हुए हैं कि उनसे बात बनने की बजाये बिगड़ और गई है । मनु अग्रवाल के शुभचिंतकों का भी मनना और कहना है कि वैसे तो मनु अग्रवाल के लिए अब की बार अच्छा मौका है, लेकिन यदि उन्होंने हालात को समझदारी से हैंडल नहीं किया तो पिछली बार की तरह हाथ में आता आता मौका फिसल कर निकल भी सकता है ।