Thursday, December 22, 2011

इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स ऑफ इंडिया में कौन बनेगा अगला वाइस प्रेसीडेंट

नई दिल्ली | इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स ऑफ इंडिया को जयदीप शाह के बाद क्या के रघु, जे वेंकटेस्वर्लु, सुबोध कुमार अग्रवाल, मनोज फडनिस, विजय गर्ग, संजय कुमार अग्रवाल, विनोद जैन, चरनजोत सिंह नंदा में से ही प्रेसीडेंट मिलेगा ? दरअसल वाइस प्रेसीडेंट पद के लिए इन्हीं आठ सेंट्रल काउंसिल सदस्यों को सक्रिय देखा जा रहा है | वाइस प्रेसीडेंट पद का चुनाव यूँ तो बहुत ही रहस्य और रोमांच से भरा होता है, और नतीजा आने से पहले तक किसी के लिए भी यह समझ पाना मुश्किल ही नहीं बल्कि असंभव ही होता है कि अंतत कौन वाइस प्रेसीडेंट चुना जायेगा - लेकिन यह भी सच ही है कि वाइस प्रेसीडेंट चुना तो उन्हीं में से कोई एक जाता है जो उसके लिए प्रयासरत होते हैं | मौजूदा सेंट्रल काउंसिल के सदस्यों में हालाँकि वाइस प्रेसीडेंट बनने की इच्छा तो मधुकर नारायण हिरेगंगे, एस संथानाकृष्णन, अभिजित बन्द्योपाध्याय, सुमंत्र गुहा ने भी प्रगट की है, लेकिन यह लोग अपनी इच्छा को क्रियान्वित करने के लिए चूँकि बहुत उत्सुक दिखाई नहीं दे रहे हैं इसलिए इनकी इच्छा को लेकर दूसरे लोग भी बहुत उत्सुक नहीं हैं | इंस्टीट्यूट के वाइस प्रेसीडेंट पद को लेकर इस बार जो चुनाव होने जा रहा है, उसका एक मजेदार पक्ष यह नज़र आ रहा है कि इस बार का चुनाव फ़िलहाल नए और पुराने सदस्यों के बीच की गोलबंदी बन गया है | यही कारण है कि के रघु और संजय कुमार अग्रवाल जैसे पहली बार सेंट्रल काउंसिल में चुने गए सदस्य भी जोरशोर से वाइस प्रेसीडेंट के चुनाव में कूद पड़े हैं; और सेंट्रल काउंसिल में पहली बार सदस्य बने मधुकर नारायण हिरेगंगे और सुमंत्र गुहा भी वाइस प्रेसीडेंट पद के बारे में सोच-विचार करते सुने/पाए गए हैं |
वाइस प्रेसीडेंट पद के लिए अपनी उम्मीदवारी को गंभीरता से प्रस्तुत करने वाले अधिकतर सेंट्रल काउंसिल सदस्यों के लिए एक बात कॉमन है, और वह यह कि उन्हें अपने-अपने रीजन के दूसरे सेंट्रल काउंसिल सदस्यों के विरोध का सामना भी करना पड़ रहा है | दरअसल प्रत्येक रीजन में कुछेक उम्मीदवारों के लिए बड़ी और मुख्य चिंता यह नहीं है कि वह जीतेंगे या नहीं जीतेंगे और जीतें तो कैसे जीतें; उनकी बड़ी और मुख्य चिंता यह है कि कहीं उनके रीजन का दूसरा कोई उम्मीदवार वाइस प्रेसीडेंट न चुन लिया जाये ? सदर्न रीजन में जे वेंकटेस्वर्लु को गंभीर और दमदार उम्मीदवार के रूप में देखा/पहचाना जा रहा है | माना/समझा जा रहा है कि किस्मत यदि उनसे बहुत ही रूठी नहीं रही तो इस बार बाजी उनके हाथ आ सकती है, लेकिन इसके बावजूद वह जितनी कोशिश अपने लिए समर्थन जुटाने में कर रहे हैं, उससे ज्यादा चिंता वह के रघु को लेकर कर रहे हैं कि कहीं के रघु उनसे आगे न निकल जाएँ | ईस्टर्न रीजन में सुबोध कुमार अग्रवाल को अपने संभावित वोटरों को यह समझा पाना मुश्किल हो रहा है कि उनके अपने रीजन के सदस्य उनके 'इतना' खिलाफ क्यों हैं ? सेंट्रल रीजन के मनोज फडनिस की स्थिति को भी इस बार मजबूत समझा जा रहा है | इंस्टीट्यूट की राजनीति के पर्दे के पीछे के खिलाड़ी उनके समर्थन में सक्रिय बताये जा रहे हैं | मनोज फडनिस सेंट्रल काउंसिल में कई वर्षों से हैं, और लगातार सक्रिय रहने के बावजूद उनके कोई लफड़े/झगड़े भी सामने नहीं आये हैं; जिसके चलते काउंसिल सदस्यों के बीच उनकी स्वीकारोक्ति भी है | मनोज फडनिस के लिए एक बड़ी राहत की बात यह भी है कि वाइस प्रेसीडेंट पद के संदर्भ में 'धरतीपकड़' की पहचान बना चुके अनुज गोयल इस बार चुनावी चक्कर से दूर-दूर दिख रहे हैं | अनुज गोयल ने भी दरअसल समझ लिया है कि उनकी जितनी और जैसी बदनामी है, उसके चलते उनके लिए वाइस प्रेसीडेंट पद के चुनाव से दूर रहने में ही भलाई है | अनुज गोयल की तरफ से मनोज फडनिस को राहत है, लेकिन विजय गर्ग अपनी उम्मीदवारी जता कर मनोज फडनिस के लिए समस्या खड़ी करने की कोशिश में हैं | नार्दर्न रीजन में वाइस प्रेसीडेंट के चुनाव को लेकर लगता है कि सिर्फ तमाशा हो रहा है | विनोद जैन वाइस प्रेसीडेंट पद के लिए अपनी उम्मीदवारी को लेकर बहुत ही गंभीर हैं, लेकिन उनके लिए समस्या की बात यह है कि उनकी उम्मीदवारी को लेकर उनके अलावा दूसरा कोई जरा भी गंभीर नहीं है | चरनजोत सिंह नंदा अपने को उम्मीदवार तो बता रहे हैं, लेकिन अपनी उम्मीदवारी को लेकर उन्होंने अभी तक जिन भी लोगों से बात की है उनके लिए यह समझना मुश्किल हुआ है कि वह अपनी उम्मीदवारी के लिए समर्थन जुटाने में लगे हैं या यह पता करने में कि कौन वाइस प्रेसीडेंट बन सकता है, ताकि वह उसके साथ जा लगें | संजय कुमार अग्रवाल की उम्मीदवारी ने जरूर लोगों को हैरान किया है | पिछले वर्ष अमरजीत चोपड़ा के प्रेसीडेंट-काल में उनकी जैसी व्यापक सक्रियता रही थी, और इस वर्ष जी रामास्वामी के प्रेसीडेंट-काल में भी उनको जिस तरह के महत्वपूर्ण असाइनमेंट मिले हैं, उसके चलते यह तो लोगों को नज़र आ रहा था कि सत्ता-लॉबी में उन्होंने अपनी पैठ बना ली है; लेकिन यह किसी को अनुमान नहीं था कि वह वाइस प्रेसीडेंट के चुनाव में इतनी जल्दी कूद पड़ेंगे | सेंट्रल काउंसिल में उनका यह पहला ही टर्न है | पहले ही टर्न में यद्यपि कुछेक सदस्य वाइस प्रेसीडेंट पद के लिए उम्मीदवार बन जाते हैं, लेकिन संजय कुमार अग्रवाल को चूँकि सत्ता-लॉबी के साथ जोड़ कर देखा/पहचाना जा रहा है, इसलिए माना/समझा जा रहा था कि वह अभी वाइस प्रेसीडेंट के लिए नहीं आयेंगे | लेकिन अब जब संजय कुमार अग्रवाल वाइस प्रेसीडेंट पद के लिए उम्मीदवार के रूप में आते दिख रहे हैं तो उनके इस आते दिखने में इंस्टीट्यूट की सत्ता-लॉबी का कोई खेल पहचानने की कोशिश की जा रही है |
इंस्टीट्यूट के वाइस प्रेसीडेंट पद के लिए चुनावी गहमागहमी शुरू तो हो गई हैं, लेकिन संभावित उम्मीदवार अभी संभल कर ही अपने लिए समर्थन देखने/जुटाने का प्रयास कर रहे हैं | जो लोग अपनी उम्मीदवारी को सचमुच गंभीरता से ले रहे हैं, उनके लिए चुनौती की बात यह हो गई है कि कैसे वह अपने लिए समर्थन जुटाने का काम करें कि उनका काम करना दूसरे लोगों की नज़र में ज्यादा न चढ़े | वाइस प्रेसीडेंट पद के चुनाव के लिए चलाये जाने वाले अभियान का एक अनुभव असल में सभी 'सच' मान रहे हैं और उससे डरे हुए हैं कि जो पहले से अभियान में जुटता है, चुनाव का दिन आते-आते वह पिछड़ जाता है | यह सोच कर कोई यदि अभी अभियान में नहीं जुटता है, तो वह उन उम्मीदवारों से अभी से पिछड़ता हुआ नज़र आता है, जो अभियान में जुटे हुए हैं | इसी गफलत में वाइस प्रेसीडेंट पद के चुनाव की गहमागहमी पिछले वर्षों की तुलना में अभी कम दिख रही है, लेकिन संभावित उम्मीदवारों ने जिस तरह तैयारी शुरू कर दी है, उसे देखते हुए जल्दी ही गहमागहमी के तेज होने का अनुमान लगाया जा रहा है |