नई दिल्ली । नरेश अग्रवाल की सेकेंड इंटरनेशनल वाइस प्रेसीडेंट पद के लिए प्रस्तुत उम्मीदवारी उनके साथ दोस्ती और या परिचय बनाये रखने वाले लोगों के लिए मुसीबत बन गई है । ऐसे लोगों को हाल ही में आई एक हिंदी फिल्म के मशहूर हुए डायलॉग - 'थप्पड़ से डर नहीं लगता, प्यार से डर लगता है' - रह रह कर याद आ रहा है । लायन सदस्यों के बीच चर्चा है कि आजकल नरेश अग्रवाल और या उनकी उम्मीदवारी के प्रति सदाशयता या समर्थन रूपी 'प्यार' दिखाने का मतलब अपनी जेब कटाना हो गया है ।
जो कोई भी नरेश अग्रवाल और या उनकी उम्मीदवारी के प्रति समर्थन का भाव
प्रकट करता है, नरेश अग्रवाल की उम्मीदवारी के लिए बनी कैम्पेन कमेटी के
सदस्य उस पर जैसे टूट पड़ते हैं और उसकी जेब ढीली ढीली करने/करवाने में जुट जाते हैं । नरेश अग्रवाल की उम्मीदवारी के लिए बनी कैम्पेन कमेटी के सदस्यों के लिए वह लोग तो बड़े आसान 'शिकार' हैं जो जरा भी महत्वाकांक्षी हैं और लायनिज्म में किसी भी स्तर पर कोई पद/पोजीशन पाना/लेना चाहते हैं ।
नरेश अग्रवाल की उम्मीदवारी के लिए बनी कैम्पेन कमेटी ने लोगों से रकम खींचने के लिए तरह तरह के हथकंडे अपनाए हुए हैं; तरह तरह के ऑफर और प्लान बताये गए हैं - जिनके जरिये लोगों की जेब से सौ डॉलर से लेकर पाँच लाख रुपये तक निकालने की योजना बनाई गई है । नरेश अग्रवाल सेकेंड इंटरनेशनल वाइस प्रेसीडेंट बन सकें, इसके लिए प्रत्येक लायन सदस्य से सौ सौ रुपये 'जबरन' बसूलने का इंतजाम पहले से ही किया जा चुका है । उसके अलावा, लायन सदस्यों को सिनेटर, गोल्डन एम्बेसेडर, प्लेटिनम एम्बेसेडर, डायमंड एम्बेसेडर बनने के ऑफर दिए जा रहे हैं - जिनकी कीमत क्रमशः 51 हजार रुपये, एक लाख रुपये, ढाई लाख रुपये, पाँच लाख रुपये बताई गई है । 'मुर्गों' को फाँसने में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स भी दिलचस्पी लें, इसके लिए ऑफर दिया गया है कि जिन डिस्ट्रिक्ट्स से सिनेटर, गोल्डन एम्बेसेडर, प्लेटिनम एम्बेसेडर, डायमंड एम्बेसेडर मिलेंगे/बनेंगे - उन डिस्ट्रिक्ट्स को भी सिनेटर डिस्ट्रिक्ट, गोल्डन एम्बेसेडर डिस्ट्रिक्ट, प्लेटिनम एम्बेसेडर डिस्ट्रिक्ट, डायमंड एम्बेसेडर डिस्ट्रिक्ट का खिताब मिलेगा ।
नरेश अग्रवाल ने सेकेंड इंटरनेशनल वाइस प्रेसीडेंट पद के लिए प्रस्तुत अपनी उम्मीदवारी के लिए कैम्पेन चलाने के लिए पैसा इकठ्ठा करने का जो अभियान चलाया हुआ है, उसे लेकर लायन सदस्यों के बीच भारी नाराजगी है । नरेश अग्रवाल की उम्मीदवारी के प्रति समर्थन का भाव रखने वाले वरिष्ठ लायन सदस्यों तक का कहना है कि नरेश अग्रवाल ने अपनी उम्मीदवारी को जिस तरह धन इकठ्ठा करने का जरिया बना दिया है, उससे उनकी बदनामी तो हो ही रही है - उनकी उम्मीदवारी के प्रति समर्थन का भाव भी घट रहा है । ऐसा कहने वालों का तर्क है कि लायन बनना और लायन सदस्य के रूप में कुछ करना और या पाना एक स्वैच्छिक फैसला व प्रयास होता है; यहाँ जो कोई भी कुछ करना/पाना/होना चाहता है उसे अपनी ही जेब ढीली करनी पड़ती है । किसी को डिस्ट्रिक्ट कैबिनेट का सदस्य बनना हो, (सेकेंड वाइस) डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बनना हो, इंटनेशनल डायरेक्टर बनना हो - उसे अपने ही पैसे खर्च करने पड़ते हैं । सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर और इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के उम्मीदवार के लिए किसी क्लब या डिस्ट्रिक्ट के लोग अपने खर्चे से कोई मीटिंग कर लें तो बात अलग है, अन्यथा सारा खर्चा उम्मीदवार को ही करना पड़ता है ।
नरेश अग्रवाल यह सब अच्छे से जानते और समझते हैं - आखिर तब फिर वह अपनी उम्मीदवारी के लिए लोगों से पैसे बसूलने की मुहिम में क्यों जुटे हैं ? यह सच है कि सेकेंड इंटरनेशनल वाइस प्रेसीडेंट के चुनाव में काफी पैसे खर्च होते हैं; लेकिन यह बात तो नरेश अग्रवाल को उम्मीदवार बनने से पहले सोचना चाहिए थी । लोगों का कहना है कि उनके पास यदि आवश्यक पैसे नहीं हैं, तो उन्हें इस पचड़े में पड़ना ही नहीं चाहिए था । उल्लेखनीय है कि किसी भी उम्मीदवार को प्रायः अपने आने-जाने पर, अपने संभावित मतदाताओं को खिलाने-पिलाने और प्रमुख नेताओं को गिफ्ट आदि देने पर पैसे खर्च करने पड़ते हैं । सेकेंड इंटरनेशनल वाइस प्रेसीडेंट पद के उम्मीदवार के रूप में नरेश अग्रवाल को भी इन्हीं सब चीजों पर पैसे खर्च करने हैं - और इसके लिए उन्हें दूसरों से पैसे चाहिए : सौ सौ रुपये लेने की व्यवस्था तो उन्होंने 'जबरन' करवा ली है; अब उन्हें सौ सौ डॉलर से लेकर पाँच पाँच लाख रुपये तक लोगों से चाहिए ।
नरेश अग्रवाल, मजे की बात है कि लोगों को यह भी नहीं बता रहे हैं कि अपनी उम्मीदवारी के कैम्पेन के लिए उन्हें आखिर कितने पैसे चाहिए ? अपनी उम्मीदवारी के कैम्पेन के लिए उन्होंने और उनकी कैम्पेन टीम ने आखिर कोई बजट तो बनाया ही होगा । लोगों का कहना है कि नरेश अग्रवाल को अपनी उम्मीदवारी के कैम्पेन के लिए यदि दूसरों से पैसे चाहिए तो उन्हें लोगों को यह भी बताना चाहिए कि उनके कैम्पेन में कुल करीब कितनी रकम खर्च होगी, कहाँ कहाँ और कैसे कैसे खर्च होगी; और इस खर्च होने वाली रकम में वह अपनी तरफ से कितना पैसा लगायेंगे ताकि लोगों को यह पता चल सके कि नरेश अग्रवाल की उम्मीदवारी के कैम्पेन के लिए उन्हें कितनी रकम जुटानी है और वह रकम कहाँ कहाँ और कैसे कैसे खर्च होगी ।
नरेश अग्रवाल ने अपनी उम्मीदवारी के कैम्पेन संबंधी खर्च को चूँकि पूरी तरह छिपा कर रखा हुआ है, इसलिए दूसरों से पैसा जुटाने की उनकी मुहिम संदेह के घेरे में आ गई है । मजे की बात यह है कि लायन राजनीति में जिन लोगों को नरेश अग्रवाल से 'थप्पड़' मिलते रहे हैं, उन्हें नरेश अग्रवाल की पैसा-जुटाओ मुहिम से डर नहीं लग रहा है; डर उन्हें लग रहा है जिन्हें नरेश अग्रवाल से 'प्यार' मिलता रहा है । जिन्हें नरेश अग्रवाल से 'प्यार' मिलता रहा है, वही लोग उनकी उम्मीदवारी के प्रति बढ़चढ़ कर 'प्यार' जता भी रहे हैं - लेकिन वह नतीजा देख रहे हैं कि 'प्यार' जताने की उन्हें भारी कीमत चुकानी पड़ रही है । इसीलिए लायन सदस्य आजकल 'थप्पड़' से नहीं 'प्यार' से डर रहे हैं ।
नरेश अग्रवाल की उम्मीदवारी के लिए बनी कैम्पेन कमेटी ने लोगों से रकम खींचने के लिए तरह तरह के हथकंडे अपनाए हुए हैं; तरह तरह के ऑफर और प्लान बताये गए हैं - जिनके जरिये लोगों की जेब से सौ डॉलर से लेकर पाँच लाख रुपये तक निकालने की योजना बनाई गई है । नरेश अग्रवाल सेकेंड इंटरनेशनल वाइस प्रेसीडेंट बन सकें, इसके लिए प्रत्येक लायन सदस्य से सौ सौ रुपये 'जबरन' बसूलने का इंतजाम पहले से ही किया जा चुका है । उसके अलावा, लायन सदस्यों को सिनेटर, गोल्डन एम्बेसेडर, प्लेटिनम एम्बेसेडर, डायमंड एम्बेसेडर बनने के ऑफर दिए जा रहे हैं - जिनकी कीमत क्रमशः 51 हजार रुपये, एक लाख रुपये, ढाई लाख रुपये, पाँच लाख रुपये बताई गई है । 'मुर्गों' को फाँसने में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स भी दिलचस्पी लें, इसके लिए ऑफर दिया गया है कि जिन डिस्ट्रिक्ट्स से सिनेटर, गोल्डन एम्बेसेडर, प्लेटिनम एम्बेसेडर, डायमंड एम्बेसेडर मिलेंगे/बनेंगे - उन डिस्ट्रिक्ट्स को भी सिनेटर डिस्ट्रिक्ट, गोल्डन एम्बेसेडर डिस्ट्रिक्ट, प्लेटिनम एम्बेसेडर डिस्ट्रिक्ट, डायमंड एम्बेसेडर डिस्ट्रिक्ट का खिताब मिलेगा ।
नरेश अग्रवाल ने सेकेंड इंटरनेशनल वाइस प्रेसीडेंट पद के लिए प्रस्तुत अपनी उम्मीदवारी के लिए कैम्पेन चलाने के लिए पैसा इकठ्ठा करने का जो अभियान चलाया हुआ है, उसे लेकर लायन सदस्यों के बीच भारी नाराजगी है । नरेश अग्रवाल की उम्मीदवारी के प्रति समर्थन का भाव रखने वाले वरिष्ठ लायन सदस्यों तक का कहना है कि नरेश अग्रवाल ने अपनी उम्मीदवारी को जिस तरह धन इकठ्ठा करने का जरिया बना दिया है, उससे उनकी बदनामी तो हो ही रही है - उनकी उम्मीदवारी के प्रति समर्थन का भाव भी घट रहा है । ऐसा कहने वालों का तर्क है कि लायन बनना और लायन सदस्य के रूप में कुछ करना और या पाना एक स्वैच्छिक फैसला व प्रयास होता है; यहाँ जो कोई भी कुछ करना/पाना/होना चाहता है उसे अपनी ही जेब ढीली करनी पड़ती है । किसी को डिस्ट्रिक्ट कैबिनेट का सदस्य बनना हो, (सेकेंड वाइस) डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बनना हो, इंटनेशनल डायरेक्टर बनना हो - उसे अपने ही पैसे खर्च करने पड़ते हैं । सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर और इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के उम्मीदवार के लिए किसी क्लब या डिस्ट्रिक्ट के लोग अपने खर्चे से कोई मीटिंग कर लें तो बात अलग है, अन्यथा सारा खर्चा उम्मीदवार को ही करना पड़ता है ।
नरेश अग्रवाल यह सब अच्छे से जानते और समझते हैं - आखिर तब फिर वह अपनी उम्मीदवारी के लिए लोगों से पैसे बसूलने की मुहिम में क्यों जुटे हैं ? यह सच है कि सेकेंड इंटरनेशनल वाइस प्रेसीडेंट के चुनाव में काफी पैसे खर्च होते हैं; लेकिन यह बात तो नरेश अग्रवाल को उम्मीदवार बनने से पहले सोचना चाहिए थी । लोगों का कहना है कि उनके पास यदि आवश्यक पैसे नहीं हैं, तो उन्हें इस पचड़े में पड़ना ही नहीं चाहिए था । उल्लेखनीय है कि किसी भी उम्मीदवार को प्रायः अपने आने-जाने पर, अपने संभावित मतदाताओं को खिलाने-पिलाने और प्रमुख नेताओं को गिफ्ट आदि देने पर पैसे खर्च करने पड़ते हैं । सेकेंड इंटरनेशनल वाइस प्रेसीडेंट पद के उम्मीदवार के रूप में नरेश अग्रवाल को भी इन्हीं सब चीजों पर पैसे खर्च करने हैं - और इसके लिए उन्हें दूसरों से पैसे चाहिए : सौ सौ रुपये लेने की व्यवस्था तो उन्होंने 'जबरन' करवा ली है; अब उन्हें सौ सौ डॉलर से लेकर पाँच पाँच लाख रुपये तक लोगों से चाहिए ।
नरेश अग्रवाल, मजे की बात है कि लोगों को यह भी नहीं बता रहे हैं कि अपनी उम्मीदवारी के कैम्पेन के लिए उन्हें आखिर कितने पैसे चाहिए ? अपनी उम्मीदवारी के कैम्पेन के लिए उन्होंने और उनकी कैम्पेन टीम ने आखिर कोई बजट तो बनाया ही होगा । लोगों का कहना है कि नरेश अग्रवाल को अपनी उम्मीदवारी के कैम्पेन के लिए यदि दूसरों से पैसे चाहिए तो उन्हें लोगों को यह भी बताना चाहिए कि उनके कैम्पेन में कुल करीब कितनी रकम खर्च होगी, कहाँ कहाँ और कैसे कैसे खर्च होगी; और इस खर्च होने वाली रकम में वह अपनी तरफ से कितना पैसा लगायेंगे ताकि लोगों को यह पता चल सके कि नरेश अग्रवाल की उम्मीदवारी के कैम्पेन के लिए उन्हें कितनी रकम जुटानी है और वह रकम कहाँ कहाँ और कैसे कैसे खर्च होगी ।
नरेश अग्रवाल ने अपनी उम्मीदवारी के कैम्पेन संबंधी खर्च को चूँकि पूरी तरह छिपा कर रखा हुआ है, इसलिए दूसरों से पैसा जुटाने की उनकी मुहिम संदेह के घेरे में आ गई है । मजे की बात यह है कि लायन राजनीति में जिन लोगों को नरेश अग्रवाल से 'थप्पड़' मिलते रहे हैं, उन्हें नरेश अग्रवाल की पैसा-जुटाओ मुहिम से डर नहीं लग रहा है; डर उन्हें लग रहा है जिन्हें नरेश अग्रवाल से 'प्यार' मिलता रहा है । जिन्हें नरेश अग्रवाल से 'प्यार' मिलता रहा है, वही लोग उनकी उम्मीदवारी के प्रति बढ़चढ़ कर 'प्यार' जता भी रहे हैं - लेकिन वह नतीजा देख रहे हैं कि 'प्यार' जताने की उन्हें भारी कीमत चुकानी पड़ रही है । इसीलिए लायन सदस्य आजकल 'थप्पड़' से नहीं 'प्यार' से डर रहे हैं ।