Wednesday, January 28, 2015

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 ए थ्री में विक्रम शर्मा और आरके शाह की 'होशियारी' के चलते असहाय बने बैठे नेताओं को सुरेश जिंदल की कवायद से उम्मीद तो बनी है, लेकिन सुरेश जिंदल के केएल खट्टर और चंद्रशेखर मेहता की 'पकड़' में होने के कारण यह उम्मीद उनके लिए अभी अधर में भी लटकी हुई है

नई दिल्ली । विक्रम शर्मा और आरके शाह ने नेताओं को जैसा जो नाच नचाया हुआ है, उससे सुरेश जिंदल को अपना काम बनता हुआ दिख रहा है, और इसी उम्मीद में उन्होंने दिल्ली में कुछेक नेताओं से तार जोड़े हैं । तार जोड़ने की इस प्रक्रिया में उन्होंने नेताओं को अभी हालाँकि सिर्फ यही संकेत दिया है कि वह 'उपलब्ध' हैं । सुरेश जिंदल की इस प्रक्रिया को 'गर्म लोहे पर चोट मारने' वाली कहावत के रूप में देखा/पहचाना जा रहा है । डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति के नेता - मजे की बात यह है कि दोनों पक्षों के नेता इस समय तक अपने आपको नितांत असहाय पा रहे हैं । यह उनकी असहायता का ही आलम है कि जनवरी का महीना खत्म हो रहा है और उनके पास कोई उम्मीदवार नहीं है तथा उनकी कोई राजनीतिक सक्रियता नहीं है । कहा जा सकता है कि चुनावी राजनीति के परिदृश्य में पूरी तरह सन्नाटा पसरा हुआ है और किसी की भी समझ में नहीं आ रहा है कि वह करें तो क्या करें ? हमेशा आपस में लड़ते रहने और एक दूसरे को नीचा दिखाने की कोशिशों में लगे रहने वाले नेता अब एक दूसरे पर इस उम्मीद में निगाह जमाये हुए हैं कि कुछ करो भई ! यह हाल तब है जब कि इस वर्ष नेताओं को दो वर्षों के लिए डिस्ट्रिक्ट गवर्नर तय करने हैं । 
नेताओं की बदकिस्मती यह है कि उन्होंने तो तय कर लिया है लेकिन आश्चर्यजनक स्थिति यह है कि उन्होंने जिनके नाम तय किए हैं, वह नेताओं की शर्ते मानने को तैयार नहीं हो रहे हैं । लायन राजनीति में ऐसा कभी भी नहीं देखा गया है । यहाँ हमेशा उम्मीदवार नेताओं के पीछे भागते देखे जाते है, पर अभी यह हो रहा है कि नेता लोग उम्मीदवारों को ताकते बैठे हुए हैं । उल्लेखनीय है कि डिस्ट्रिक्ट के दिल्ली के नेताओं के बीच इस फार्मूले के लिए सहमति बन गई है कि वह विक्रम शर्मा और आरके शाह को बारी बारी से गवर्नर बनवा लेते हैं । डिस्ट्रिक्ट के हरियाणा के नेता हालाँकि दिल्ली के नेताओं के बीच बनी इस सहमति पर ऐतराज जता रहे हैं, लेकिन दिल्ली के नेता उनकी परवाह करते हुए नहीं दिख रहे हैं । दिल्ली के नेता अपने इस फार्मूले को लेकर भारी उत्साह में हैं, लेकिन उनके इस उत्साह पर पानी डालने का काम किया है विक्रम शर्मा और आरके शाह ने । मामला दरअसल पैसों को लेकर अटक गया है । नेताओं का कहना है कि यह फार्मूला सफल तो हो जायेगा तथा यह दोनों ही गवर्नर बन जायेंगे, लेकिन इसके लिए इन्हें पैसे तो खर्च करने की पड़ेंगे । पैसों के मामले में विक्रम शर्मा और आरके शाह ने लेकिन चुप्पी साध ली है । उनकी चुप्पी ने नेताओं को असहाय बना दिया है । नेताओं ने अपने फार्मूले को चूँकि सार्वजनिक कर दिया है इसलिए दूसरे संभावित उम्मीदवार भी उनके पास नहीं आ रहे हैं ।
विक्रम शर्मा और आरके शाह वैसे तो कुछ नहीं कह रहे हैं, किंतु उनके नजदीकियों की तरफ से जो बातें सुनने को मिल रही हैं उनमें उनकी नाराजगी इस बात को लेकर दिख रही है कि नेताओं के फर्जी क्लब्स/वोटों के पैसे उनसे दो दो बार क्यों माँगे जा रहे हैं । उल्लेखनीय है कि उम्मीदवार को जो पैसे खर्च करने होते हैं, उसमें एक बड़ा हिस्सा फर्जी क्लब्स/वोटों के ड्यूज चुकाने में होता है । विक्रम शर्मा और आरके शाह पिछले लायन वर्ष में इस मद में पैसे लगा चुके हैं; उनसे अब इस वर्ष दोबारा से पैसे माँगे जा रहे हैं । नजदीकियों के अनुसार, विक्रम शर्मा और आरके शाह को इस पर आपत्ति है और इसीलिए वह चुप लगा कर बैठ गए हैं । नजदीकियों के अनुसार, वह भी समझ तो रहे हैं कि यह पैसे तो उन्हें देने ही पड़ेंगे; फिर भी यदि वह चुप बैठ गए हैं तो इसलिए ताकि वह दूसरे खर्चों से बच सकें । दोनों ही जानते हैं कि नेताओं द्धारा तय किए गए फार्मूले पर वह यदि अभी से उत्साह दिखायेंगे तो नेता लोग उनसे फर्जी क्लब्स/वोटों के ड्यूज तो ले ही लेंगे, दूसरे और खर्चे भी करवाने लगेंगे । विक्रम शर्मा और आरके शाह समझ रहे हैं कि नेता लोगों के पास अपने उक्त फार्मूले को क्रियान्वित करवाने - यानि उन्हें ही गवर्नर बनवाने - के अलावा और कोई विकल्प नहीं है; इसलिए अभी चुप बैठ कर वह जितने जो पैसे बचा सकते हैं, बचा लें । विक्रम शर्मा और आरके शाह की इस चाल ने नेताओं को सचमुच में असहाय बना दिया है और नेता लोग घर बैठने को मजबूर हो गए हैं ।
नेताओं की इस मजबूरी में सुरेश जिंदल को अपना काम बनता हुआ दिख रहा है । उनके नजदीकियों का कहना है कि वह दिल्ली के नेताओं को यह ऑफर देना चाहते हैं कि इस वर्ष सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए हरियाणा का जो नंबर है, वह नंबर यदि उन्हें दे दिया जाये तो वह सारा खर्चा उठाने के लिए तैयार हैं । उनके कुछेक नजदीकियों का यह भी सुझाव है कि वीके हंस के बाद वाले वर्ष में गवर्नर बनने के लिए जो भी इच्छुक हो, दिल्ली के नेता उसे तैयार कर लें और उससे भी पैसे खर्च करवाएँ - और मौज लें ! विक्रम शर्मा और आरके शाह यदि 'होशियारी' दिखा रहे हैं तो उन्हें किनारे करें । सुरेश जिंदल का संभावित ऑफर और उनके नजदीकियों का सुझाव तो अच्छा है, और दिल्ली के नेताओं के लिए उसे स्वीकार करना कोई मुश्किल भी नहीं होगा । समस्या लेकिन यह है कि सुरेश जिंदल दिल्ली के नेताओं के पास सचमुच में आते 'कैसे' हैं और 'किस जरिये से' आते हैं । सुरेश जिंदल अभी केएल खट्टर और चंद्रशेखर मेहता के नजदीक 'देखे' जा रहे हैं । केएल खट्टर उनकी उम्मीदवारी को जिस तरह से आगे बढ़ा रहे हैं, उससे उनका काम बनने की बजाये बिगड़ता ज्यादा दिख रहा है । पिछली बार भी सुरेश जिंदल का मामला सिर्फ इसलिए ही बिगड़ गया था, क्योंकि उनकी उम्मीदवारी के लिए नेताओं के बीच ही ठीक तरह से समर्थन नहीं जुटाया जा सका था । पिछली बार के अपने उसी अनुभव से सबक लेकर सुरेश जिंदल इस बार सिर्फ केएल खट्टर और चंद्रशेखर मेहता के भरोसे ही नहीं रहना चाहते हैं, और इसीलिए उन्होंने अपनी तरफ से भी दिल्ली के नेताओं से तार जोड़ने की कवायद शुरू की है ।
सुरेश जिंदल की इस कवायद से दिल्ली के नेताओं को विक्रम शर्मा व आरके शाह की 'होशियारी' से निपटने में मदद तो मिलेगी - लेकिन सुरेश जिंदल भी चूँकि कोई जल्दबाजी नहीं दिखा रहे हैं, इसलिए दिल्ली के नेताओं को अभी असहाय ही बने रहना पड़ेगा । इसके अलावा, विक्रम शर्मा और आरके शाह से जब तक पूरी तरह जबाव न मिल जाए तब तक दिल्ली के नेताओं के लिए सुरेश जिंदल को हरी झंडी देना भी मुश्किल ही होगा । जाहिर है कि सारा मामला इस तरह पेचीदा हो गया है कि नेताओं को भी समझ में नहीं आ रहा है कि वह करें तो क्या करें ? डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति में नेताओं को इतना असहाय शायद ही कभी देखा गया होगा ।