गाजियाबाद । शरत जैन और सतीश सिंघल की
अधिकृत हो चुकी उम्मीदवारी को चैलेंज करने को लेकर डिस्ट्रिक्ट में जिस
तरह की सुगबुगाहट है, उसके चलते डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति का पारा
खासा गर्म हो उठा है । नोमीनेटिंग कमेटी का फैसला आने के बाद यूँ तो
आमतौर पर चुनावी सक्रियता ढीली पड़ जाती रही हैं, लेकिन इस बार उल्टा ही हो
रहा है । नोमीनेटिंग कमेटी के फैसले पर डिस्ट्रिक्ट के लोगों के बीच जिस
तरह की निराशा और असंतोष है, उसके कारण प्रतिद्धंद्धी उम्मीदवारों पर
चैलेंज करने के लिए लोगों का दबाव पड़ रहा है । रोटरी की चुनावी राजनीति
में ऐसे मौके कम ही देखने को मिलते हैं जब नोमीनेटिंग कमेटी के फैसले को
चैलेंज करने के लिए प्रतिद्धंद्धी उम्मीदवार से भी ज्यादा उत्सुक दूसरे लोग
हों । डिस्ट्रिक्ट 3012 के पैतृक डिस्ट्रिक्ट 3010 में तो पहले कभी शायद
ही ऐसा मौका बना हो । अभी तक देखने में यही आया है कि नोमीनेटिंग कमेटी
के फैसले से असंतुष्ट प्रतिद्धंद्धी उम्मीदवार खुद ही चैलेंज करने के बारे
में सोचता है, और अधिकृत उम्मीदवार व उसके समर्थक ज्यादा सक्रिय नजर आते
हैं । डिस्ट्रिक्ट 3012 के पहले ही चुना(वों) में लेकिन इसका ठीक उल्टा
देखने में आ रहा है । यहाँ प्रतिद्धंद्धी उम्मीदवारों की तुलना में डिस्ट्रिक्ट के लोग चैलेंज करने के बारे में ज्यादा 'तैयारी' दिखा रहे हैं ।
ऐसा
दरअसल इसलिए भी है क्योंकि डिस्ट्रिक्ट के लोगों को पहले से ही यह आशंका
थी कि डिस्ट्रिक्ट पर अपना कब्जा बनाये रखने के लिए अरनेजा गिरोह के नेता
किसी भी तरह की हेराफेरी कर सकते हैं । लोगों का मानना और कहना है कि
डिस्ट्रिक्ट 3010 में तो इनकी हरकतों पर लगाम रखने के लिए दूसरे नेता भी
थे, लेकिन डिस्ट्रिक्ट 3012 में तो यह बिलकुल ही बेलगाम हो जायेंगे - इसलिए
लोगों को खुद ही सक्रिय होना पड़ेगा । खास बात यह है कि लोग समझ रहे हैं और
स्वीकार कर रहे हैं कि मुकेश अरनेजा और रमेश अग्रवाल चूँकि बहुत ही घाघ
किस्म के हैं, इसलिए जीतने के अवसर बनाने के मामले में आगे दिखेंगे - और
इसी कारण से इनके खिलाफ लगातार सक्रिय रहने की जरूरत है । लोगों को
अनुमान था कि नोमीनेटिंग कमेटी में यह लोग कोई न कोई खेल कर लेंगे और
इसीलिए लोगों को नोमीनेटिंग कमेटी का फैसला मंजूर नहीं हुआ है और वह
प्रतिद्धंद्धी उम्मीदवारों पर चैलेंज करने के लिए दबाव बना रहे हैं ।
लोगों के इस मूड को देखते/भाँपते हुए अधिकृत उम्मीदवार और उनके समर्थकों के सामने समस्या यह आ खड़ी हुई है कि वह कैसे चैलेंज करने की कोशिशों को रोकें ? शरत जैन और उनके समर्थकों के लिए तो यह इसलिए भी बड़ी समस्या हो गई है क्योंकि एक तरफ तो वह 'बड़ी जीत' का दावा करते हुए फूल कर कुप्पा हो रहे हैं, और दूसरी तरफ चैलेंज से डर रहे हैं । चैलेंज को रोकने की अपनी कोशिशों पर उन्हें लोगों से यही सुनने को मिल रहा है कि नोमीनेटिंग कमेटी में मिली 'बड़ी जीत' यदि सचमुच की जीत है तो फिर चैलेंज से डर क्यों रहे हो - चैलेंज हो जाने दो और सीधे चुनाव का सामना भी कर लो । शरत जैन की उम्मीदवारी को चैलेंज करना लोगों को इसलिए भी जरूरी लग रहा है क्योंकि वह मान रहे हैं कि शरत जैन एक कठपुतली गवर्नर ही बनेंगे, जबकि डिस्ट्रिक्ट को एक ऐसे गवर्नर की जरूरत है जो सबको साथ लेकर चल सके । जाहिर तौर पर यह सिर्फ विरोधियों का ही आरोप नहीं है, बल्कि सत्ता खेमे के लोगों का भी स्वीकार है कि नोमीनेटिंग कमेटी में शरत जैन को जो जीत मिली है उसे मुकेश अरनेजा ने तिकड़मों से प्राप्त किया है जिसका भांडा सीधे हो सकने वाले चुनावों में फूट सकता है; और जो लोग शरत जैन के पक्ष में भी हैं वह भी मान रहे हैं कि शरत जैन की गवर्नरी में चलेगी तो रमेश अग्रवाल और मुकेश अरनेजा की मनमानी ही । इसलिए वह हर संभव कोशिश कर रहे हैं कि नोमीनेटिंग कमेटी के फैसले को चैलेंज न मिले और उनका भांडा फूटने से बचा रह जाए । उनके लिए मुसीबत की बात लेकिन यह हो रही है कि डिस्ट्रिक्ट के लोगों के मूड और तर्कों के सामने उनकी कोशिशों के लिए रास्ता बनता नहीं दिख रहा है ।
लोगों के इस मूड को देखते/भाँपते हुए अधिकृत उम्मीदवार और उनके समर्थकों के सामने समस्या यह आ खड़ी हुई है कि वह कैसे चैलेंज करने की कोशिशों को रोकें ? शरत जैन और उनके समर्थकों के लिए तो यह इसलिए भी बड़ी समस्या हो गई है क्योंकि एक तरफ तो वह 'बड़ी जीत' का दावा करते हुए फूल कर कुप्पा हो रहे हैं, और दूसरी तरफ चैलेंज से डर रहे हैं । चैलेंज को रोकने की अपनी कोशिशों पर उन्हें लोगों से यही सुनने को मिल रहा है कि नोमीनेटिंग कमेटी में मिली 'बड़ी जीत' यदि सचमुच की जीत है तो फिर चैलेंज से डर क्यों रहे हो - चैलेंज हो जाने दो और सीधे चुनाव का सामना भी कर लो । शरत जैन की उम्मीदवारी को चैलेंज करना लोगों को इसलिए भी जरूरी लग रहा है क्योंकि वह मान रहे हैं कि शरत जैन एक कठपुतली गवर्नर ही बनेंगे, जबकि डिस्ट्रिक्ट को एक ऐसे गवर्नर की जरूरत है जो सबको साथ लेकर चल सके । जाहिर तौर पर यह सिर्फ विरोधियों का ही आरोप नहीं है, बल्कि सत्ता खेमे के लोगों का भी स्वीकार है कि नोमीनेटिंग कमेटी में शरत जैन को जो जीत मिली है उसे मुकेश अरनेजा ने तिकड़मों से प्राप्त किया है जिसका भांडा सीधे हो सकने वाले चुनावों में फूट सकता है; और जो लोग शरत जैन के पक्ष में भी हैं वह भी मान रहे हैं कि शरत जैन की गवर्नरी में चलेगी तो रमेश अग्रवाल और मुकेश अरनेजा की मनमानी ही । इसलिए वह हर संभव कोशिश कर रहे हैं कि नोमीनेटिंग कमेटी के फैसले को चैलेंज न मिले और उनका भांडा फूटने से बचा रह जाए । उनके लिए मुसीबत की बात लेकिन यह हो रही है कि डिस्ट्रिक्ट के लोगों के मूड और तर्कों के सामने उनकी कोशिशों के लिए रास्ता बनता नहीं दिख रहा है ।
सतीश
सिंघल के लिए 'बिल्ली के भाग्य से छींका टूटने' की तर्ज पर मिली जीत को
बचाए रखने की और भी ज्यादा बड़ी चुनौती है । दरअसल सतीश सिंघल की जीत से लोग
इसलिए भी दुखी और निराश हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि सतीश सिंघल की इस
जीत ने उनके साथ ज्यादा बड़ा छल किया है । सतीश सिंघल को खुद भी इस जीत
का अनुमान नहीं था । वह तो बहुत पहले ही अपने आपको चुनावी दौड़ से बाहर हो
चुका मान बैठे थे और एक उम्मीदवार के रूप में सक्रिय नहीं रह गए थे । एक
उम्मीदवार के रूप में सतीश सिंघल ने लोगों को बुरी तरह से निराश ही किया है
और इसीलिए उनके अधिकृत उम्मीदवार चुने जाने में लोगों ने अपने आप को ठगा
हुआ महसूस किया है । यही कारण है कि उनकी उम्मीदवारी के चैलेंज समर्थन
करने के लिए तत्पर हैं । सतीश सिंघल के लिए मुसीबत की बात यह है कि उनकी
वकालत करने तथा उनके सामने आने वाले चैलेंज को टलवाने के लिए कोई आगे ही
नहीं आ रहा है और उन्हें प्रसून चौधरी के नजदीकियों से खुद ही सिफारिशें करना पड़ रही हैं ।
नोमीनेटिंग
कमेटी के जरिये चुनाव कराने का जो 'तमाशा' हुआ है और उसका जो नतीजा आया
है, उसने डिस्ट्रिक्ट में लोगों को जिस तरह से निराश और नाराज किया है - उसके कारण दीपक गुप्ता और प्रसून चौधरी पर नोमीनेटिंग कमेटी के फैसले को चैलेंज करने के लिए लगातार दबाव पड़ रहा है । यह दबाव डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति में नई गर्माहट पैदा कर रहा है ।