Wednesday, January 7, 2015

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3010 के झमेले की अनदेखी करते हुए पूर्व इंटरनेशनल डायरेक्टर सुशील गुप्ता जिस तरह से डिस्ट्रिक्ट 3100 के झगड़े में दिलचस्पी ले रहे हैं, उससे लग रहा है कि वह समस्या को वास्तव में हल करने की नहीं बल्कि सिर्फ अपनी राजनीति दिखाने/चमकाने की कोशिश कर रहे हैं

नई दिल्ली । सुशील गुप्ता - पूर्व इंटरनेशनल डायरेक्टर सुशील गुप्ता भी गजब तमाशा करते हैं : अपना 'घर' सँभालने की वह कोई कोशिश करते नहीं दिख रहे, लेकिन दूसरों का 'घर' सँभालने की वह बड़ी फिक्र कर रहे हैं ।
सुशील गुप्ता 9 जनवरी को डिस्ट्रिक्ट 3100 की काउंसिल (ऑफ गवर्नर्स) के साथ मीटिंग करने जा रहे हैं, जिसमें वह डिस्ट्रिक्ट 3100 के झगड़ों-टंटों से बचने के उपाय बतायेंगे ।
रोटरी में यह एक आम समझ है कि क्लब्स में और डिस्ट्रिक्ट्स में लोग बहुत झगड़े-टंटे करते हैं, जिससे रोटरी की बहुत बदनामी होती है । डिस्ट्रिक्ट 3100 का मामला लेकिन यह बताता है कि रोटरी में झगड़े रोटरी के बड़े नेताओं द्धारा समय पर फैसला न लेने, उनकी पक्षपाती भूमिका और कई बार तो विरोधाभासी व मूर्खतापूर्ण तरीके से फैसले करने के कारण होते और बढ़ते हैं ।
उल्लेखनीय है कि डिस्ट्रिक्ट 3100 में पिछले वर्ष 'हुए' डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव के कारण डिस्ट्रिक्ट में बड़ा फजीता हुआ; प्रतिद्धंद्धी उम्मीदवारों ने दूसरे की शिकायतें कीं और इसके कारण डिस्ट्रिक्ट की बड़ी किरकिरी हुई । यह फजीता हुआ क्यों - इसे जानने/समझने के लिए घटनाक्रम को सिलसिलेबार देखना उपयोगी होगा : डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए दो उम्मीदवार सामने आये - दीपक बाबू और दिवाकर अग्रवाल । इनके नामांकन आधिकारिक रूप से स्वीकार होते, उससे पहले दीपक बाबू ने दिवाकर अग्रवाल की उम्मीदवारी को लेकर शिकायत दर्ज की । उनकी शिकायत थी कि दिवाकर अग्रवाल ने चूँकि डिस्ट्रिक्ट टीम में पद लिया है और डिस्ट्रिक्ट डायरेक्टरी में उनका नाम-पता-फोटो छपा है, इसलिए उनकी उम्मीदवारी स्वीकार नहीं करना चाहिए । दिल्ली स्थित रोटरी इंटरनेशनल के साउथ एशिया ऑफिस ने इस शिकायत पर लेकिन कई हफ्तों तक फैसला ही नहीं लिया । इसका नतीजा यह हुआ कि डिस्ट्रिक्ट में आरोपों-प्रत्यारोपों का सिलसिला शुरू हुआ और तत्कालीन गवर्नर राकेश सिंघल की भारी फजीहत हुई । फैसला लेने में अनावश्यक देर न लगती तो यह सब न हुआ होता । देर से हुए फैसले में दीपक बाबू की शिकायत को खारिज कर दिया गया - लेकिन तब तक दोनों तरफ के लोगों में इस हद तक तलवारें तन चुकी थीं कि दीपक बाबू ने इस फैसले के खिलाफ अपील दायर कर दी ।
दीपक बाबू की इस अपील पर फैसला आने में सात महीने लग गए । अब जो फैसला आया, उसमें दीपक बाबू की माँग को मान लिया गया और दिवाकर अग्रवाल की उम्मीदवारी को अमान्य घोषित कर दिया गया । लेकिन यह फैसला अप्रासंगिक साबित रहा और एक मजाक के रूप में सामने आया, क्योंकि जब तक यह फैसला आया तब तक चुनाव हो चुका था और चुनाव में पराजित हुए दिवाकर अग्रवाल ने दीपक बाबू की चुनावी जीत को इस आरोप के साथ कठघरे में खड़ा कर दिया था कि दीपक बाबू ने बेईमानी और खरीद-फरोख्त से जीत प्राप्त की है । दीपक बाबू की अपील पर जब फैसला आया, लगभग तभी दिवाकर अग्रवाल की शिकायत पर फैसला आया, जिसमें दिवाकर अग्रवाल के आरोप को सही मानते हुए दीपक बाबू की चुनावी जीत को न सिर्फ निरस्त कर दिया गया, बल्कि दीपक बाबू की हरकतों को देखते हुए दोबारा होने वाले चुनाव में उनके उम्मीदवार होने पर भी रोक लगा दी गई । रोटरी इंटरनेशनल में जिस भी स्तर पर फैसले होते हैं और जो भी पदाधिकारी फैसले करने की प्रक्रिया में हिस्सा लेते हैं, उनकी मूर्खता का आलम देखिये कि एक तरफ तो दिवाकर अग्रवाल को उम्मीदवार मानने से इंकार किया गया, और दूसरी तरफ उम्मीदवार के रूप में उन्हीं दिवाकर अग्रवाल की शिकायत के आधार पर दीपक बाबू के चुने जाने को अमान्य घोषित कर दिया गया ।
बात इतनी भर रहती तो भी गनीमत थी । बात लेकिन इससे और आगे बढ़ी । इन दोनों फैसलों के आने के बाद डिस्ट्रिक्ट 3100 में यह समझ बनी कि पिछले रोटरी वर्ष में हुए चुनाव के अमान्य होने के कारण दोबारा होने वाले चुनाव में दीपक बाबू और दिवाकर अग्रवाल उम्मीदवार नहीं हो सकेंगे । किंतु इस समझ पर तब पानी फिर गया जब पता चला कि रोटरी इंटरनेशनल ने दीपक बाबू को उनकी चुनावी जीत को निरस्त करने के फैसले से अवगत कराते हुए इस फैसले के खिलाफ अपील करने के विकल्प से उन्हें अवगत कराया और इसके लिए तीन हजार डॉलर की रकम जमा कराने के लिए उन्हें बाकायदा बाऊचर भेजा । दीपक बाबू ने अपील कर दी । यानि जो झगड़ा निपटता दिख रहा था, वह फिर भड़क उठा । अब इसे मजाक कहेंगे या मूर्खता कि रोटरी इंटरनेशनल एक तरफ तो अपील करने का ऑफर दे रहा है, और दूसरी तरफ उसी इंटरनेशनल के पदाधिकारी के रूप में पीटी प्रभाकर व मनोज देसाई डिस्ट्रिक्ट के पदाधिकारियों को धमका रहे हैं कि डिस्ट्रिक्ट से बहुत अपील हो रही हैं; क्यों न डिस्ट्रिक्ट बंद कर दें ।
रोटरी इंटरनेशनल के पदाधिकारियों को अपने द्धारा की जा रही मूर्खताओं का लगता है कि कोई अहसास भी नहीं है । पिछले रोटरी वर्ष में झगड़ा जिस कारण से दिवाकर अग्रवाल की उम्मीदवारी को निरस्त करने की माँग के साथ शुरू हुआ, और जो अभी तक भी नहीं निपटा है; उसी कारण से इस वर्ष प्रस्तुत हुई रोटरी क्लब मेरठ साकेत के राजीव सिंघल की उम्मीदवारी पर सवाल उठे । उल्लेखनीय है कि पिछले रोटरी वर्ष में दिवाकर अग्रवाल का नाम-पता-फोटो तो डिस्ट्रिक्ट डायरेक्टरी में एक जगह छपा था, राजीव सिंघल का नाम तो इस वर्ष दो जगह छपा है । रोटरी इंटरनेशनल के दिल्ली स्थित साऊथ एशिया ऑफिस ने जिस तरह पिछले वर्ष दिवाकर अग्रवाल की उम्मीदवारी को हरी झंडी दे दी थी, ठीक उसी तरह उसने इस वर्ष राजीव सिंघल की उम्मीदवारी को हरी झंडी दे दी - यानि पिछली बार की तरह उसने इस बार भी अपनी तरफ से झगड़ा बढ़ाने का पूरा इंतजाम कर दिया ।
इन तथ्यों से साफ है कि रोटरी में झगड़े बड़े पदाधिकारियों के रवैये से प्रेरित होते हैं और बढ़ते हैं । रोटरी इंटरनेशनल में फैसले यदि उचित समय से हों; जो फैसले हों उनमें परस्पर विरोध न दिखाई पड़ता हो तो तमाम झगड़ों को बढ़ने का मौका ही नहीं मिलेगा और रोटरी की बदनामी भी नहीं होगी ।
इसीलिए, सुशील गुप्ता यदि सचमुच में यह चाहते हैं कि डिस्ट्रिक्ट्स में झगड़े न हों तो उन्हें डिस्ट्रिक्ट के लोगों के साथ नहीं, बल्कि रोटरी इंटरनेशनल के साऊथ एशिया ऑफिस के पदाधिकारियों और इंटरनेशनल डायरेक्टर टाइप के लोगों के साथ मीटिंग करनी चाहिए । सुशील गुप्ता भी लेकिन लग रहा है कि बस मजे ले रहे हैं और डिस्ट्रिक्ट्स के झगड़ों में अपनी राजनीति चमकाने/दिखाने का मौका देख रहे हैं और उसे इस्तेमाल कर रहे हैं ।
इसीलिए डिस्ट्रिक्ट 3100 की फिक्र करने वाले सुशील गुप्ता अपने डिस्ट्रिक्ट - अपने 'घर' में चल रही उथल-पुथल के प्रति आँखें बंद किए बैठे हैं । रोटरी इंटरनेशनल के साऊथ एशिया ऑफिस के पदाधिकारियों तथा इंटरनेशनल डायरेक्टर टाइप के लोगों द्धारा फैसले न करने, देर से करने और परस्पर विरोधी दिखने वाले फैसले करने के रवैये के चलते डिस्ट्रिक्ट 3010 में हालात आग लगाने जैसे बने हुए हैं, लेकिन सुशील गुप्ता का इस पर कोई ध्यान नहीं है । शायद वह इंतजार कर रहे हैं कि आग पहले पूरी तरह लगे तो, फिर वह उसे बुझाने के लिए आगे आयेंगे । उनकी नेतागिरी तभी तो चमकेगी ।
डिस्ट्रिक्ट 3010 में इस वर्ष दो डिस्ट्रिक्ट के लिए दो दो चुनाव होने हैं । इंटरनेशनल डायरेक्टर टाइप के लोगों का कहना है कि यह चुनाव पायलट प्रोजेक्ट के नियमों के अनुसार होना चाहिए । इस फैसले का विरोधाभास यह है कि चुनाव जिस प्रक्रिया से हो रहा है उसमें पायलट प्रोजेक्ट के नियमों का पालन हो ही नहीं रहा है । सबसे बड़ी बात यह कि पायलट प्रोजेक्ट डिस्ट्रिक्ट 3010 पर लागू है; चुनाव डिस्ट्रिक्ट 3011 और डिस्ट्रिक्ट 3012 के होने हैं - जो पायलट प्रोजेक्ट के तहत नहीं आते हैं । सबसे बुरी बात जो हो रही है, वह यह कि इस विरोधाभास पर उठने वाले सवालों का जबाव कोई नहीं दे रहा है । साऊथ एशिया ऑफिस को बाकायदा पत्र लिख कर सवाल पूछे गए, लेकिन उसने यह कह कर जबाव देने से इंकार कर दिया कि यह सवाल डिस्ट्रिक्ट गवर्नर से पूछे जाएँ । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर संजय खन्ना को पत्र लिखा गया तो उन्होंने चुप्पी साध ली है । यानि हालात वही हैं कि समय से फैसले मत करो, फैसले देर से करो, विरोधाभासी फैसले करो - और इस सब के चलते लोगों के बीच असंतोष बढ़े और वह शिकायत करें तो कहो कि लोग झगड़ा करते हैं ।
फिर सुशील गुप्ता जैसे लोग आगे आयेंगे, लोगों को यह समझाने के लिए कि भई झगड़े मत करो । कोई सुशील गुप्ता से कह सकता है क्या कि झगड़े क्यों होते/बढ़ते हैं, यह जानने/समझने के लिए अपने गिरेबान में भी तो झाँक लो; और यह भी कि डिस्ट्रिक्ट 3100 में हालात ठीक करने की कोशिश के साथ-साथ कुछ अपने 'घर' की - डिस्ट्रिक्ट 3010 की भी ख़ैर खबर ले लो ।
प्लीज !