Tuesday, January 6, 2015

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 ए थ्री में गवर्नर बनने के चक्कर में बुरी तरह लुट चुके विक्रम शर्मा ने अब और 'चुनावी खर्चा' न देने का ऐलान किया, तो उनके समर्थक नेताओं को चिंता हुई कि उनकी नेतागिरी की 'दुकान' कैसे चलेगी

नई दिल्ली । विक्रम शर्मा ने अपनी 'गवर्नरी' के लिए अब और पैसा लगाने से इंकार करके अपने ही समर्थक नेताओं के सामने संकट खड़ा कर दिया है । संकट इसलिए क्योंकि विक्रम शर्मा के समर्थक नेता विरोधी नेताओं के साथ समझौता करके विक्रम शर्मा और आरके शाह को बारी बारी से गवर्नर 'बनाने' के फार्मूले पर पहुँचने का जुगाड़ लगाने में लगे हुए हैं । इस जुगाड़ पर दोनों खेमों के नेताओं के बीच सहमति बन जाने की स्थिति में, इस जुगाड़ को व्यावहारिक रूप से सफल बनाने के लिए मौजूदा लायन वर्ष के 'चुनावी खर्च' को जुटाने की जिम्मेदारी आयेगी । 'चुनावी खर्च' में मुख्यतः नकली और फर्जी क्लब्स के ड्यूज चुकाने तथा डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस के खर्चे शामिल होते हैं । लायन राजनीति में यह प्रथा बन गई है कि प्रत्येक वर्ष के 'चुनावी खर्च' को उस वर्ष के उम्मीदवार ही उठाते हैं । इस वर्ष यदि विक्रम शर्मा और आरके शाह को ही 'चुना' जाना है, तो इस वर्ष का 'चुनावी खर्च' भी उन्हें ही उठाना होगा । विक्रम शर्मा ने लेकिन इस 'चुनावी खर्च' में अपना हिस्सा देने से इंकार कर दिया है । उनके इस इंकार ने उनके समर्थक नेताओं के सामने संकट यह खड़ा कर दिया है कि विक्रम शर्मा अपने हिस्से का खर्चा यदि नहीं करेंगे, तो फिर वह उन्हें गवर्नर 'बनवाने' की लड़ाई को आगे कैसे बढ़ायेंगे ?
विक्रम शर्मा के समर्थक एक बड़े नेता का हालाँकि कहना है कि विक्रम शर्मा को जब यह समझाया जायेगा कि 'चुनावी खर्च' में हिस्सेदारी दिए बिना उनका गवर्नर बनना असंभव ही होगा, तो फिर विक्रम शर्मा भी समझ जायेंगे कि 'चुनावी खर्च' में हिस्सेदारी उन्हें देनी ही पड़ेगी । उन्होंने दावा किया कि विक्रम शर्मा अभी भले ही 'चुनावी खर्च' में हिस्सेदारी देने से मना कर रहे हों, किंतु अंततः वह इसके लिए राजी हो जायेंगे । विक्रम शर्मा के समर्थक नेताओं में हालाँकि कई नेता विक्रम शर्मा के इस रवैये से नाराज भी हैं । उनका कहना है कि विक्रम शर्मा को गवर्नर 'बनवाने' के लिए उन्होंने अपनी एनर्जी और अपना समय व अपनी इज्जत दाँव पर लगाई हुई है; विक्रम शर्मा इसके लिए कोई अहसान तो मान नहीं रहे हैं, उलटे तेवर और दिखा रहे हैं: खर्चा वह नहीं उठायेंगे, तो उनकी उम्मीदवारी के लिए दूसरा कौन खर्चा करेगा; उन्होंने कभी किसी के लिए खर्चा किया है, जो अब वह उम्मीद कर रहे हैं कि दूसरे लोग उनकी उम्मीदवारी का खर्च उठाए ? इन नाराज नेताओं का कहना है कि विक्रम शर्मा यदि 'चुनावी खर्चा' करने के लिए तैयार नहीं होते हैं तो वह भी उनके लिए कुछ करने की अपनी कार्रवाई को बंद कर देंगे ।
विक्रम शर्मा का कहना है कि गवर्नर बनवाने के नाम पर उनके नेताओं ने उन्हें बुरी तरह लूट लिया है तथा अब वह और लुटने के लिए तैयार नहीं हैं । विक्रम शर्मा का रोना यह है कि उनके समर्थक नेता उन्हें तरह तरह की तरकीबें बताते रहते हैं और तरकीबों पर अमल करने के नाम पर उनसे पैसे ऐंठने की कोशिशें करते रहते हैं; इस सब से वह अब तंग आ गए हैं । विक्रम शर्मा की चिंता यह है कि जिस फार्मूले के तहत उन्हें और आरके शाह को बारी बारी से गवर्नर बनाये जाने की बात हो रही है, उस फार्मूले से गवर्नर बन जाने के बाद भी इस बात की क्या गारंटी है कि उनके रास्ते में दोबारा से रोड़ा नहीं पड़ेगा । हरियाणा के लोग तो कह ही रहे हैं कि हरियाणा का हक मार कर यदि कोई फार्मूला अपनाया गया, तो वह वह विक्रम शर्मा को गवर्नर नहीं बनने देंगे । विक्रम शर्मा के नजदीकियों का कहना है कि हर बात की एक लिमिट भी होती है; नेता लोग हर बार एक नई तरकीब यह दावा करते हुए ले आते हैं कि इसे अपनाने से विक्रम शर्मा का काम अवश्य ही बन जायेगा, लेकिन होता कुछ नहीं है और मामला जहाँ का तहाँ ही बना रह जा रहा है । विक्रम शर्मा और उनके नजदीकी मान रहे हैं और जहाँ कहीं मौका मिलता है वहाँ कह भी देते हैं कि उनके समर्थक नेताओं ने डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति में अपनी 'दुकान' चमकाने के लिए उनका इस्तेमाल किया है और नेताओं के चक्कर में फँस कर उन्होंने अपना काफी नुकसान कर लिया है ।
विक्रम शर्मा उस घड़ी को कोस रहे हैं जब वह विजय शिरोहा से छिपकर राकेश त्रेहन से मिल लिए थे । उल्लेखनीय है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में विजय शिरोहा ने सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए विक्रम शर्मा की उम्मीदवारी को हरी झंडी देने का फैसला कर ही लिया था, कि राकेश त्रेहन ने विक्रम शर्मा के साथ हुई अपनी मुलाकात को सार्वजनिक कर दिया जिससे कि विजय शिरोहा बिदक गए और फिर विजय शिरोहा खेमे की तरफ से आरके शाह उम्मीदवार हो गए । उसके बाद का किस्सा तो फिर सबके सामने का किस्सा है । विक्रम शर्मा अब महसूस कर रहे हैं कि वह उस समय यदि विजय शिरोहा के साथ धोखा नहीं करते तो इस समय मजे से सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के पद पर होते और किसी भी तरह के झमेले से दूर ही होते ।
जाहिर है कि झमेले में विक्रम शर्मा खुद ही फँसे हैं । समस्या उनकी लेकिन अब यह है कि झमेले से वह बाहर कैसे आयें ? उनके समर्थक नेता जानते/मानते तो हैं कि विक्रम शर्मा लाख कोशिश कर लें, उनकी पकड़ से निकल नहीं सकते हैं; किंतु विक्रम शर्मा ने जिस तरह से अब और 'चुनावी खर्चा' न देने का ऐलान किया है उससे उन्हें यह चिंता भी हुई है कि विक्रम शर्मा यदि अपने इस ऐलान पर टिके रहे तो फिर उनकी नेतागिरी की 'दुकान' कैसे चलेगी ? विक्रम शर्मा के समर्थक नेताओं को विक्रम शर्मा से कोई सहानुभूति नहीं है, वह तो विक्रम शर्मा को बस अपनी नेतागिरी चलाने के लिए इस्तेमाल कर रहे हैं । विक्रम शर्मा इस बात को समझ रहे हैं और इसीलिए वह अब आगे 'चुनावी खर्चा' देने से मना कर रहे हैं । यह देखना दिलचस्प होगा कि विक्रम शर्मा सचमुच अपने इस ऐलान पर टिके रह पाते हैं, या अपने समर्थक नेताओं के झाँसे में फिर से आ जाते हैं ?