Monday, January 12, 2015

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 सी वन में एपीएस कपूर के नजदीकियों व समर्थकों को लग रहा है कि सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए अजय सिंघल की उम्मीदवारी को मिलते दिख रहे समर्थन के चलते जब नेता लोग ही एपीएस कपूर की उम्मीदवारी का जिम्मा लेने से बच रहे हैं, तब फिर एपीएस कपूर किसके भरोसे अपनी उम्मीदवारी प्रस्तुत करेंगे ?

देहरादून । सुनील जैन - डिस्ट्रिक्ट गवर्नर सुनील जैन ने एपीएस कपूर की उम्मीदवारी में अपनी कोई भूमिका होने से इंकार करके कुंजबिहारी अग्रवाल की राजनीतिक उम्मीदों को तगड़ा झटका दिया है । डिस्ट्रिक्ट में हर कोई मानता और कहता है कि एपीएस कपूर को उम्मीदवार के रूप में सुनील जैन ने हवा दी, ताकि चुनाव की स्थितियाँ बनें और उन्हें क्लब्स से ड्यूज मिल सकें तथा उनके गवर्नर-काल की कॉन्फ्रेंस अच्छे से हो सके । सुनील जैन की एक निगाह मल्टीपल काउंसिल चेयरपरसन के पद पर भी है । अपने ही डिस्ट्रिक्ट में वह जिस तरह से अलग-थलग पड़ गए हैं, उसके चलते उन्हें बस सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के चुनाव का ही सहारा रह गया है । सुनील जैन को लगता है कि सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए चुनाव होने की स्थिति में डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति का नया समीकरण बनेगा; और उस नए समीकरण में एक पक्ष के - डिस्ट्रिक्ट गवर्नर होने के नाते - वह एक मजबूत स्तम्भ बनेंगे; और इस तरह अलग-थलग वाली मौजूदा स्थिति से वह बाहर आ जायेंगे, और तब वह मल्टीपल काउंसिल चेयरपरसन पद के लिए दावा करने की स्थिति में भी आ जायेंगे । कई फायदों को ध्यान में रखते हुए ही सुनील जैन ने एपीएस कपूर को उम्मीदवारी प्रस्तुत करने के लिए उकसाया । इस उकसाहट में कुंजबिहारी अग्रवाल एण्ड कंपनी को भी अपना फायदा होता हुआ नजर आया । उन्हें उम्मीद बँधी कि एपीएस कपूर की उम्मीदवारी के लिए समर्थन माँगने हेतु सुनील जैन अब उनका दरवाजा खटखटाने के लिए मजबूर होंगे और इस तरह उन्हें डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति में अपना 'चौधरीपना' दिखाने का मौका मिलेगा ।
सुनील जैन लेकिन अपना 'चौधरीपना' दिखाने के चक्कर में हैं और इस चक्कर में उन्होंने ऐलान कर दिया कि एपीएस कपूर की उम्मीदवारी से उनका कोई लेना-देना नहीं है । समझा जाता है कि सुनील जैन इस कोशिश में हैं कि एपीएस कपूर की उम्मीदवारी को कुंजबिहारी अग्रवाल एण्ड कंपनी गोद ले लें, और फिर उनसे समर्थन की बात करें । सुनील जैन यह तो कहते ही हैं कि वह चुनाव तो चाहते हैं । दरअसल यह कहते हुए सुनील जैन ने इशारा यह किया है कि कुंजबिहारी अग्रवाल एण्ड कंपनी एपीएस कपूर की उम्मीदवारी के लिए समर्थन माँगने उनके पास आएगी, तो समर्थन देने में उन्हें कोई परहेज नहीं होगा । कुंजबिहारी अग्रवाल एण्ड कंपनी के लोग अब कोई इतने लुलूलाल थोड़े ही हैं कि वह यह इशारा और इस इशारे की आड़ में छिपी सुनील जैन की राजनीति नहीं समझ रहे हैं । वह समझ रहे हैं कि सुनील जैन उनकी उम्मीदों को झटका दे रहे हैं; लेकिन उन्होंने भी कोई कच्ची गोलियाँ नहीं खेली हैं - सुनील जैन जैसों को चलाने का हुनर तो उन्हें आता ही है । सो, मुहावरे की भाषा में कहें तो उन्होंने 'सुनील जैन का जूता सुनील जैन के सिर पर ही दे मारा है' और एपीएस कपूर को अपना उम्मीदवार बनाने/मानने से इंकार कर दिया है ।
सुनील जैन और कुंजबिहारी अग्रवाल के बीच 'चौधरीपना' दिखाने का मौका बनाने का यह जो खेल चल रहा है उसमें एपीएस कपूर के लिए बड़ी समस्या हो गई है । उनकी उम्मीदवारी का झंडा उठाने के लिए न सुनील जैन तैयार हो रहे हैं और न कुंजबिहारी अग्रवाल एण्ड कंपनी । एपीएस कपूर ने सुशील अग्रवाल का दरवाजा खटखटा कर अपनी उम्मीदवारी का झंडा उन्हें थमाने का प्रयास भी किया था, लेकिन सुशील अग्रवाल ने भी उन्हें उलटे पाँव लौटा दिया है । एपीएस कपूर के नजदीकियों व समर्थकों को लग रहा है कि इन जिन लोगों के भरोसे वह अपनी उम्मीदवारी को प्रस्तुत करना चाहते हैं, उनके बस में उन्हें चुनाव लड़वाना है ही नहीं - और यह उनकी उम्मीदवारी की आड़ में सिर्फ अपना उल्लू सीधा करना और अपनी चौधराहट दिखाना चाहते हैं । इसीलिए हर कोई यह चाहता है कि एपीएस कपूर की उम्मीदवारी का झंडा कोई दूसरा उठाए और फिर समर्थन माँगने उनके पास आए, ताकि समर्थन देने के बदले में वह अच्छा मोलभाव कर सकें । सुनील जैन ने तो अजय सिंघल की उम्मीदवारी का समर्थन करने के लिए मुकेश गोयल से मोलभाव करने का प्रयास किया ही था, किंतु वहाँ उनका सौदा पटा नहीं; और उसी के बाद सुनील जैन ने एपीएस कपूर को उम्मीदवार बनने का रास्ता दिखाया । एपीएस कपूर के नजदीकियों व समर्थकों को यह भी महसूस हो रहा है कि इन जिन लोगों के भरोसे वह अपनी उम्मीदवारी प्रस्तुत करना चाह रहे हैं, उन्हें यदि अजय सिंघल/मुकेश गोयल के साथ जुड़ने में ज्यादा फायदा दिखेगा तो फिर वह एपीएस कपूर का बीच में भी साथ छोड़ने में नहीं हिचकिचाएंगे । सुनील जैन ने पिछले लायन वर्ष में अवतार कृष्ण को जिस तरह उम्मीदवार बनाया/हरवाया और फिर इस वर्ष बीच मँझधार में छोड़ दिया, वह सब सामने है ही !
दरअसल अजय सिंघल ने एक उम्मीदवार के रूप में डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति पर जैसी पकड़ बनाई है, उसके चलते उनके खिलाफ उम्मीदवार लाने का 'जिम्मा लेने' को डिस्ट्रिक्ट का कोई नेता तैयार नहीं है । जो नेता लोग अपने अपने कारणों से मुकेश गोयल की राजनीतिक छतरी के नीचे नहीं आना चाहते हैं, वह यह तो चाहते हैं कि कोई दूसरा भी उम्मीदवार आये और चुनाव की स्थितियाँ बनाये, जिससे कि उनकी भी कुछ राजनीतिक पूछ हो - लेकिन कोई भी उम्मीदवार लाने का जिम्मा नहीं लेना चाहता । क्योंकि हरेक को पता है कि अजय सिंघल से सामने जो भी उम्मीदवार आयेगा, वह हारेगा ही और फिर उसकी बदनामी यह कह कर होगी कि 'उसका' उम्मीदवार हार गया । एक उम्मीदवार के रूप में अजय सिंघल की ताकत सिर्फ यही नहीं है कि उन्हें मुकेश गोयल का समर्थन प्राप्त है । मुकेश गोयल की मदद से अजय सिंघल ने डिस्ट्रिक्ट के लोगों के बीच तो अपने लिए समर्थन जुटाया ही है, मल्टीपल के दूसरे और बड़े नेताओं के बीच भी जिस तरह से अपनी पैठ बनाई है - उससे भी उनकी 'राजनीतिक पहुँच' का दायरा बढ़ा है; और दायरे की इस बढ़त ने उनकी उम्मीदवारी के प्रति स्वीकार्यता को व्यापक बनाने का काम भी किया और उसे मजबूत भी बनाया है । अजय सिंघल की उम्मीदवारी की इसी मजबूती का नतीजा है कि अरुण मित्तल ने पीछे जो दाँव चला, उससे डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति में समीकरण भले ही उलट पलट गया हो - किंतु सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए अजय सिंघल की उम्मीदवारी को मिलने वाला समर्थन और और बढ़ा ही : इतना बढ़ा कि जो लोग चुनाव चाहते भी हैं और उम्मीदवार भी खोज लाए हैं, वह भी उस उम्मीदवार का जिम्मा लेने से बचते हुए नजर आ रहे हैं ।
एपीएस कपूर के नजदीकियों व समर्थकों को लग रहा है कि चुनाव चाहने वाले नेता लोग ही जब एपीएस कपूर की उम्मीदवारी का जिम्मा लेने से बच रहे हैं, तब फिर एपीएस कपूर किसके भरोसे अपनी उम्मीदवारी प्रस्तुत करेंगे । डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति का एक मजेदार दृश्य यह है कि जिस किसी को सचमुच में गवर्नर बनना होता है, वह मुकेश गोयल को पहले भले ही जितनी गालियाँ दे रहा होता है, फिर मुकेश गोयल की तारीफ करने लगता है और मुकेश गोयल का साथ पकड़ लेता है । एपीएस कपूर को भी कुछ लोग समझा रहे हैं कि उन्हें यदि अपने पैसे खराब करने हैं तो फिर चाहें जो करें; लेकिन यदि सचमुच में गवर्नर बनना है, तो जैसा दूसरों ने किया है वैसे ही करें और मुकेश गोयल का साथ पकड़ लें । यह देखना दिलचस्प होगा कि एपीएस कपूर अंततः क्या करते हैं ?