Sunday, January 25, 2015

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3010 के विभाजित डिस्ट्रिक्ट्स में डॉक्टर सुब्रमणियन के साथ साथ सरोज जोशी की जीत में चूँकि मंजीत साहनी-आशीष घोष-अमित जैन की जीत का संदेश मुखर होकर सामने आया है, इसलिए शरत जैन की जीत से मिलने वाला अरनेजा गिरोह का मजा किरकिरा हुआ

नई दिल्ली । रवि चौधरी की पराजय ने अरनेजा गिरोह के लिए शरत जैन की जीत के रंग को फीका कर दिया है । प्रसून चौधरी को जितवाने की अरनेजा गिरोह की कोशिशों को जो झटका लगा है, वह सुरेश भसीन के ऐन मौके पर अपनी उम्मीदवारी से पीछे हटने के फैसले से भी बड़ा झटका साबित हुआ । उल्लेखनीय है कि इस वर्ष के चुनाव में अरनेजा गिरोह इस ऐलान के साथ चुनावी मैदान में उतरा था कि वह दोनों डिस्ट्रिक्ट में अपनी सत्ता स्थापित करेगा । इस ऐलान को साधने के लिए उसने पहले शरत जैन, डॉक्टर सुब्रमणियन, सतीश सिंघल और रवि चौधरी को अपने उम्मीदवार के रूप में घोषित किया । अरनेजा गिरोह को पहला झटका तब लगा जब डॉक्टर सुब्रमणियन उनकी छाया से बाहर निकल गए । अरनेजा गिरोह को तब सुरेश भसीन की उम्मीदवारी का झंडा उठाने के लिए मजबूर होना पड़ा । डॉक्टर सुब्रमणियन ने अरनेजा गिरोह को छोड़ा, तो अरनेजा गिरोह ने सतीश सिंघल से पीछा छुड़ाया । सतीश सिंघल दरअसल कभी भी एक उम्मीदवार के रूप में व्यवहार करते हुए दिखे ही नहीं और 'हर तरह से' वह दूसरों के भरोसे ही थे । अरनेजा गिरोह ने भाँप लिया कि सतीश सिंघल के मुकाबले प्रसून चौधरी का पलड़ा भारी है, सो उसने प्रसून चौधरी की उम्मीदवारी की कमान सँभाल ली ।
'अपने' उम्मीदवारों की इस अदला-बदली के बाद भी अरनेजा गिरोह के नेताओं का ज्यादा ध्यान शरत जैन और रवि चौधरी की उम्मीदवारी पर था । सुरेश भसीन की उम्मीदवारी से उन्हें कोई उम्मीद नहीं थी, इसलिए सुरेश भसीन को उन्होंने बेसहारा ही छोड़ दिया । प्रसून चौधरी और सतीश सिंघल वाले चुनाव में उन्होंने मान लिया कि प्रसून चौधरी को उनकी मदद की ज्यादा जरूरत नहीं हैं और वह खुद ही सतीश सिंघल से निपट लेंगे । इसलिए अपनी दूसरी पंक्ति के नेताओं को प्रसून चौधरी के साथ लगा कर वह निश्चिंत हो गए । अरनेजा गिरोह ने अपना सारा दाँव शरत जैन और रवि चौधरी पर लगाया । इसमें भी शरत जैन उनकी प्राथमिकता में रहे । दरअसल शरत जैन को किसी भी तरह से चुनाव जितवाना उनकी व्यावहारिक राजनीतिक मजबूरी भी थी । रवि चौधरी की जीत से तो उनका सिर्फ राजनीतिक ऑरा (आभामंडल) ही बढ़ता, लेकिन शरत जैन की जीत से तो उन्हें डिस्ट्रिक्ट पर राज करने का मौका मिलेगा । शरत जैन से ही उन्हें व्यावहारिक रूप में सत्ता का सुख मिलेगा, क्योंकि जेके गौड़ की तरह वह शरत जैन को ही कठपुतली बना कर रख सकेंगे ।
शरत जैन को चुनाव जितवाने की अरनेजा गिरोह की शुरू से ही जोरदार तैयारी थी, जो ऐन वोटिंग के मौके तक जारी रही । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर संजय खन्ना के ढीले-ढाले रवैये के चलते उनके लिए 'चुनावी बेईमानी' करना आसान हुआ और जोन बनाने के मामले में तथा नोमीनेटिंग कमेटी के लिए चयन करने की टाइमिंग व प्रक्रिया में मनमानी करते हुए उन्होंने शरत जैन की जीत के लिए माहौल तैयार किया और शरत जैन को जितवा लिया । सतीश सिंघल और प्रसून चौधरी के चुनाव में उनका आकलन और उनकी तैयारी हालाँकि फेल हो गई । अरनेजा गिरोह के साथ साथ दूसरे कई अन्य लोगों को भी सतीश सिंघल की जीतने की उम्मीद नहीं थी । चुनाव - प्रत्येक चुनाव दरअसल मैनेजमेंट के साथ साथ एक जुआँ भी होता है और किस्मत की बात भी होती है । मैनेजमेंट प्रसून चौधरी का अच्छा था, सतीश सिंघल तो चुनाव को जुएँ की तरह ले रहे थे । सतीश सिंघल की उम्मीदवारी और उसके नतीजे की तुलना फूलन देवी के चुनाव से ही की जा सकती है । फूलन देवी जब लोकसभा चुनाव के लिए उम्मीदवार बनी थीं, तो लोगों के बीच बनी उनकी नकारात्मक छवि के चलते किसी को भी उनके जीतने की उम्मीद नहीं थी । किंतु चूँकि किस्मत उनके साथ थी, इसलिए वह चुनाव जीत गईं । सतीश सिंघल के साथ भी ऐसा ही हुआ - लोगों के बीच, उनके अपने नजदीकियों तक के बीच उनकी नकारात्मक छवि होने के कारण किसी को उनके जीतने की उम्मीद नहीं थी; लेकिन जैसे किस्मत के भरोसे फूलन देवी उम्मीद न होने के बावजूद चुनाव में विजयी रही थीं, उसी तरह सतीश सिंघल भी उम्मीद न होने के बावजूद किस्मत के भरोसे चुनाव जीत गए ।
अरनेजा गिरोह को लेकिन रवि चौधरी की हार से ज्यादा बड़ा झटका लगा है । रवि चौधरी को चुनाव जितवा कर अरनेजा गिरोह डिस्ट्रिक्ट 3010 के विभाजन के बाद बने दोनों डिस्ट्रिक्ट में अपनी चौधराहट को साबित करने के जिस इंतजाम में लगा था, रवि चौधरी के मुकाबले सरोज जोशी को मिली जीत से दरअसल उसे झटका लगा है । रवि चौधरी को चुनाव जितवाने के लिए मुकेश अरनेजा के साथ साथ दीपक तलवार और डॉक्टर सुशील खुराना जोरशोर से लगे हुए थे; पर्दे के पीछे से विनोद बंसल भी मदद कर रहे थे - लेकिन फिर भी रवि चौधरी को नहीं जितवाया जा सका । अरनेजा गिरोह के लिए ज्यादा झटके की बात वास्तव में यह रही कि मंजीत साहनी के सहयोग से आशीष घोष और अमित जैन की जोड़ी से उन्हें हारना पड़ा । इस हार ने सीओएल के चुनाव में आशीष घोष के हाथों रमेश अग्रवाल को मिली हार के घाव को फिर से हरा कर दिया - वास्तव में इसलिए रवि चौधरी की हार ने अरनेजा गिरोह को ज्यादा दर्द दिया है । अरनेजा गिरोह के नेता लोग चूँकि चुनावी राजनीति के संदर्भ में मंजीत साहनी, आशीष घोष, अमित जैन की भूमिका को तवज्जो नहीं देते हैं, इसलिए बार बार उनसे हारने से उन्हें अपनी तौहीन होती हुई महसूस हो रही है । रवि चौधरी की हार और सरोज जोशी की जीत में चूँकि मंजीत साहनी-आशीष घोष-अमित जैन की जीत का संदेश मुखर होकर सामने आया है, इसलिए शरत जैन की जीत से मिलने वाला अरनेजा गिरोह का मजा किरकिरा हो गया है ।