Wednesday, June 28, 2017

इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के प्रेसीडेंट नीलेश विकमसे ने क्या सचमुच लाभ पाने की उम्मीद में चार्टर्ड एकाउंटेंट्स को भीड़ का और किराए का आदमी बना दिया है तथा मनमानी लूट-खसोट का अवसर बना दिया है ?

नई दिल्ली । नीलेश विकमसे पर चार्टर्ड एकाउंटेंट्स इंस्टीट्यूट के प्रेसीडेंट के रूप में चार्टर्ड एकाउंटेंट्स की छवि और पहचान को गहरी चोट पहुँचाने तथा नीचे गिराने का ऐतिहासिक काम करने का आरोप लगा है । आरोपपूर्ण चर्चाओं में कहा/सुना जा रहा है कि इंस्टीट्यूट के अभी तक के इतिहास में एक जुलाई को होने वाले 'सीए डे' के फंक्शन में चार्टर्ड एकाउंटेंट्स अपनी अपनी खुशी और अपनी अपनी ठसक के साथ पहुँचा करते थे; लेकिन इस बार नीलेश विकमसे के प्रेसीडेंट-काल में उन्हें भेड़-बकरियों की तरह बसों में भरकर फंक्शन-स्थल पर पहुँचाया जाएगा - नीलेश विकमसे ने एक कृपा जरूर की है कि उन्होंने चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के लिए एसी बसों की व्यवस्था की/करवाई है । नीलेश विकमसे ने कई एक जगह यह भी ऐलान करवाया है कि 'सीए डे' फंक्शन में बसों से आने वाले चार्टर्ड एकाउंटेंट्स को खाने के पैकेट्स भी मिलेंगे । नीलेश विकमसे की इस व्यवस्था पर कुछेक लोगों ने चुटकी भी ली है कि वह अब यह घोषणा और करवाने वाले हैं कि 'सीए डे' फंक्शन में आने वाले चार्टर्ड एकाउंटेंट्स को शराब की बोतल तथा सौ सौ रुपए भी मिलेंगे । चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के बीच इस तरह के मजाक सुने जा रहे हैं कि 'सीए डे' फंक्शन में पहुँचने वाले चार्टर्ड एकाउंटेंट्स एक-दूसरे से किस तरह की बातें करेंगे - तुझे खाने का पैकेट नहीं मिला क्या, तेरे खाने के पैकेट में क्या क्या था, वापसी पर बस कहाँ से मिलेगी, बस हमें छोड़ कर तो नहीं चली जाएगी; आदि-इत्यादि । उनकी बातों में इस दृश्य की कल्पना भी की जा रही है कि 'सीए डे' फंक्शन में पहुँचे चार्टर्ड एकाउंटेंट्स खाने के पैकेट्स तथा 'दूसरी' चीजें लेने के लिए कैसे भिड़े हुए हैं । इस तरह की बातों के बीच, वरिष्ठ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स महसूस कर रहे हैं कि अभी तक 'सीए डे' फंक्शन में शामिल होने पर चार्टर्ड एकाउंटेंट्स को गर्व की अनुभूति होती थी, लेकिन अब की बार इस फंक्शन में शामिल होते हुए वह शर्म महसूस करेंगे - और उन्हें अपने ही साथियों के बीच इस बात को छिपाने के लिए मशक्कत करना पड़ेगी कि वह बस में यहाँ नहीं आया है, और खाने के पैकेट या 'दूसरी' चीजों के लालच में वह नहीं फँसा है ।
नीलेश विकमसे के प्रेसीडेंट-काल में चार्टर्ड एकाउंटेंट्स को भीड़ जुटाने के एक 'कंपोनेंट्स' में बदल दिया गया है; 'सीए डे' फंक्शन में भीड़ जुटाने के लिए चार्टर्ड एकाउंटेंट्स का जिस जिस तरह और 'तरीके' से इस्तेमाल किया जा रहा है - उसमें उसकी पहचान एक प्रोफेशनल की नहीं, बल्कि भीड़ बढ़ाने में काम आने वाले 'किराए के एक व्यक्ति' की बन कर रह गयी है । विडंबनापूर्ण संयोग यह है कि जो 'सीए डे' चार्टर्ड एकाउंटेंट्स को एक गरिमापूर्ण और प्रतिष्ठाभरी पहचान देने/दिलाने का प्रतीक है, नीलेश विकमसे के प्रेसीडेंट-काल में उसी 'सीए डे' पर चार्टर्ड एकाउंटेंट्स की पहचान को धूल में मिला देने वाला काम हो रहा है ।
यहाँ यह याद करना प्रासंगिक होगा कि इंडियन कॉंस्टीट्यूएंट एसेम्बली में चार्टर्ड एकाउंटेंट्स एक्ट, 1949 को लेकर जो चर्चा हुई थी - उसमें इस बात को लेकर बहुत ही गंभीर और गर्मागर्मी भरा विचार-विमर्श हुआ था कि प्रोफेशन के लोगों को क्या नाम दिया जाए । उससे पहले प्रोफेशन के लोगों को रजिस्टर्ड एकाउंटेंट्स कहा जाता था । कुछेक कॉमनवेल्थ देशों में सर्टीफाईड पब्लिक एकाउंटेंट्स का नाम भी चलता था । उस समय सिर्फ ग्रेट ब्रिटेन में प्रोफेशन के लोगों को चार्टर्ड एकाउंटेंट्स कहा जाता था । उस समय चूँकि यह आम धारणा थी कि ग्रेट ब्रिटेन के लोग ही ज्यादा प्रतिभाशाली व प्रतिष्ठा के लायक होते हैं, इसलिए चार्टर्ड एकाउंटेंट शब्द उन्हीं के लिए बना है - और दूसरे पिछड़े व अविकसित देश के लोग इस पहचान को अपनाने के योग्य नहीं हैं, इसलिए ही इंडियन कॉंस्टीट्यूएंट एसेम्बली में प्रोफेशन के लोगों को देने वाले नाम पर गंभीर विवाद था । उस विवाद में जवाहरलाल नेहरू ने तर्क दिया था कि देश की पहचान और प्रतिष्ठा को यदि आधुनिक होती दुनिया में अक्षुण्ण बनाए रखना है, तो हमें अपने यहाँ प्रोफेशन के लोगों को चार्टर्ड एकाउंटेंट नाम देना चाहिए । जवाहरलाल नेहरू के तर्क के आगे दूसरे सभी तर्क गिर गए और एक जुलाई 1949 को जब चार्टर्ड एकाउंटेंट्स एक्ट, 1949 लागू हुआ तब प्रोफेशन के लोगों को 'रजिस्टर्ड एकाउंटेंट' की जगह 'चार्टर्ड एकाउंटेंट' नाम मिला । यह तथ्य एक जुलाई के दिन को चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के लिए गौरव और गरिमा का दिन बनाता है - लेकिन नीलेश विकमसे के प्रेसीडेंट-काल में इस वर्ष एक जुलाई का दिन चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के लिए भीड़ जुटाने वाले 'किराए के आदमी' की पहचान बना रहा है ।
नीलेश विकमसे पर आरोप है कि मौजूदा केंद्र सरकार के पदाधिकारियों को खुश करके उनसे फायदा उठाने की तिकड़म में नीलेश विकमसे ने चार्टर्ड एकाउंटेंट्स को भीड़ का और किराए का आदमी बना दिया है । कहा जा रहा है कि नीलेश विकमसे आठ महीने बाद जब प्रेसीडेंट नहीं रहेंगे, तब सरकार से आकर्षक लाभ पाने की उम्मीद में उन्होंने इस वर्ष के 'सीए डे' को तमाशा बना दिया है, जिसमें 68 वर्ष पहले प्राप्त की गयी चार्टर्ड एकउंटेंटस की पहचान और प्रतिष्ठा को धूल में मिला देने वाला काम हो रहा है । गंभीर बात यह है कि यह सब तमाशा देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम पर हो रहा है । पूछा जा सकता है कि क्या नरेंद्र मोदी ने नीलेश विकमसे से भीड़ जुटाने के लिए कहा है । यह ठीक है कि अरुण शौरी जैसे बड़े लेखक ने नरेंद्र मोदी सरकार को इवेंट मैनेजमेंट कंपनी कहा/बताया है, लेकिन इसका मतलब यह कहाँ निकलता है कि इंस्टीट्यूट के प्रेसीडेंट के रूप में नीलेश विकमसे सरकार को खुश करने के लिए चार्टर्ड एकाउंटेंट्स को नाच नचवा दें । नीलेश विकमसे वैसे खुशकिस्मत हैं कि उन्हें सेंट्रल काउंसिल सदस्य राजेश शर्मा के रूप में ऐसे सहयोगी भी मिल गए हैं, जिन्हें प्रोफेशन और प्रोफेशन से जुड़े लोगों की पहचान व प्रतिष्ठा को बचाने/बनाए रखने की बजाए नेताओं के साथ अपनी तस्वीरों को दिखाने का काम ज्यादा जरूरी लगता है । 'सीए डे' के तमाशे में राजेश शर्मा ने जिस तरह से अपने आपको आगे 'दिखाने' का काम किया हुआ है, उसके चलते इंस्टीट्यूट की सेंट्रल काउंसिल के दूसरे सदस्य बुरी तरह खफा नजर आ रहे हैं । नीलेश विकमसे और राजेश शर्मा अभी तो उनकी खफाई की तथा अन्य आरोपों की कोई परवाह करते हुए नहीं दिख रहे हैं, लेकिन उम्मीद की जा रही है कि आने वाले दिनों में सेंट्रल काउंसिल सदस्यों की खफाई तथा दूसरे आरोप बबाल पैदा करेंगे ।
दरअसल 'सीए डे' के तमाशे में पैसों की हेराफेरी और लूट-खसोट होने के आरोप अभी से सुने जाने लगे हैं । इस फंक्शन में भीड़ जुटाने के लिए जो साधन इस्तेमाल हो रहे हैं, उन्हें लेकर यह सवाल उठ रहे हैं कि उनके लिए पैसे किस मद से लिए जा रहे हैं - और इस सीधे से सवाल का कोई जबाव नहीं मिल रहा है । चर्चा यही है कि इस तमाशे में जो पैसे खर्च हो रहे हैं, उन्हें चोर दरवाजों से एडजस्ट किया जाएगा - और जिसमें हेराफेरी तथा लूट-खसोट करने के आसान मौके बनेंगे । राजेश शर्मा के प्रोफेशनल पार्टनर भी इस आयोजन में जिस तैयारी से जुट गए हैं, उसे देख कर लोगों को यह कहने का मौका मिला है कि इस आयोजन की आड़ में राजेश शर्मा ने राजनीतिक फायदा उठाने के साथ-साथ पैसे बनाने के लिए भी कमर कस ली है । अभी से जब इस तरह की बातें सुनी जाने लगी हैं, तो अनुमान लगाया जा रहा है कि एक जुलाई का तमाशा हो जाने के बाद चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के बीच और बड़ा तमाशा शुरू होगा - देखना दिलचस्प होगा कि उस और बड़े तमाशे की चपेट में कौन कौन निशाना बनता है ।