Saturday, November 30, 2013

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 सी वन में अरुण मित्तल और मलकीत सिंह जस्सर ने डिस्ट्रिक्ट ट्रस्ट का पैसा 'कब्जाने' की सुधीर जनमेजा की कोशिशों को फ़िलहाल तो विफल कर दिया है

गाजियाबाद । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर सुधीर जनमेजा ने डिस्ट्रिक्ट ट्रस्ट की मोटी रकम पर कब्ज़ा जमाने के लिए सुशील अग्रवाल की मदद से जो दाँव चला था, उसमें अरुण मित्तल और मलकीत सिंह जस्सर ने जिस तरह से फंदा फँसाया है - उसके नतीजे को देख/समझ कर लगता नहीं है कि सुधीर जनमेजा के हाथ ट्रस्ट का पैसा लगेगा । मामला हालाँकि अभी भी पूर्व इंटरनेशनल डायरेक्टर सुशील अग्रवाल की 'कोर्ट' में है लेकिन उनके लिए भी अब सुधीर जनमेजा के इरादे को कामयाब बनाना आसान नहीं रह गया है । उल्लेखनीय है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में तरह-तरह से पैसा जुगाड़ने के अपने प्रयासों को अंजाम देने के क्रम में सुधीर जनमेजा ने डिस्ट्रिक्ट ट्रस्ट के लाखों रूपए 'पार करने' के लिए पहला कदम गाजियाबाद में आयोजित अधिष्ठापन समारोह के दौरान गवर्नर्स ऑनरेरी कमेटी की मीटिंग में उठाया था । इंटरनेशनल प्रेसीडेंट की उपस्थिति में हुई उक्त मीटिंग में सुधीर जनमेजा ने अपनी तरफ से होशियारी दिखाते हुए प्रस्ताव रखा कि डिस्ट्रिक्ट ट्रस्ट में लाखों रूपया यूँ ही पड़ा हुआ है, इसलिए किसी प्रोजेक्ट में उसका इस्तेमाल करते हुए उसका सदुपयोग कर लेना चाहिए ।
'सदुपयोग' का नाम देकर सुधीर जनमेजा ने किस मनमाने तरीके से पैसे इकट्ठे किये हैं - इससे वाकिफ पूर्व गवर्नर्स ने जब सुधीर जनमेजा के मुँह से ट्रस्ट के पैसों के 'सदुपयोग' की बात सुनी, तो वह हक्के-बक्के रह गये । जल्दी से किसी को कुछ सूझा ही नहीं कि बेहद चालाकी से तैयार किये गए सुधीर जनमेजा के इस प्रस्ताव पर वह किस तरह से रिएक्ट करें और क्या कहें । सुधीर जनमेजा ने भी जल्दीबाजी दिखाते हुए 'आगे बढ़ने की' कोशिश की ताकि उनके प्रस्ताव को स्वीकृत मान लिया जाये । लेकिन उनकी इस कोशिश को विफल करते हुए इंटरनेशनल डायरेक्टर एंडोरसी अरुण मित्तल ने तर्क दिया कि डिस्ट्रिक्ट ट्रस्ट के पैसों को इस्तेमाल करने के बारे में एक नियम बना हुआ है, जिसका पालन किया जाना चाहिए; और यदि उस नियम को बदलने की जरूरत महसूस की जा रही है तो नए नियम क्या हों उसका प्रारूप सामने आना चाहिए और उस पर चर्चा होनी चाहिए । अरुण मित्तल ने यह सुझाव देकर तो सुधीर जनमेजा के मंसूबों पर पूरी तरह पानी फेर दिया कि इस संबंध में बात करने का यह उचित मौका नहीं है, इसलिए इस विषय को अगली किसी मीटिंग के लिए स्थगित कर देना चाहिए । सभी पूर्व गवर्नर अरुण मित्तल के इस सुझाव से सहमत हुए और तब सुधीर जनमेजा को मनमसोस कर रह जाना पड़ा ।
सुधीर जनमेजा ने लेकिन हिम्मत नहीं हारी और कुछ दिनों बाद देहरादून में डिस्ट्रिक्ट ट्रस्ट के पैसों के इस्तेमाल करने को लेकर एक मीटिंग बुला ली । अरुण मित्तल के लिए उक्त मीटिंग में शामिल हो पाना संभव नहीं था, इसलिए उन्होंने मीटिंग का निमंत्रण मिलते ही जबावी ईमेल भेज कर उक्त मीटिंग के ही गैरकानूनी होने का सवाल उठा दिया । अरुण मित्तल का कहना था कि ट्रस्ट की मीटिंग बुलाने का अधिकार ट्रस्ट के चेयरमैन को है - डिस्ट्रिक्ट गवर्नर को मीटिंग बुलाने का अधिकार ही नहीं है । अरुण मित्तल ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर को लिखे/भेजे अपने जबावी ईमेल संदेश को सभी पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स को भी भेज दिए । इस ईमेल संदेश में अरुण मित्तल ने जो कुछ कहा उससे लोगों को यह समझने में देर नहीं लगी कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में सुधीर जनमेजा को डिस्ट्रिक्ट ट्रस्ट के पदाधिकारियों को पद-स्थापित करने का जो काम करना चाहिए, उसे करने में तो वह कोई दिलचस्पी नहीं ले रहे हैं; और उनकी सारी दिलचस्पी डिस्ट्रिक्ट ट्रस्ट के पैसों का कब्ज़ा ले लेने में है । अरुण मित्तल के इस संदेश ने सुधीर जनमेजा के प्रयासों को एक बार फिर विफल कर दिया ।
डिस्ट्रिक्ट ट्रस्ट के पैसों को कब्जाने के अपने प्रयासों के संबंध में सुधीर जनमेजा ने हिम्मत लेकिन अभी भी नहीं हारी थी । हरिद्धार में आयोजित दूसरी कैबिनेट मीटिंग के समय डिस्ट्रिक्ट ऑनरेरी कमेटी की मीटिंग में सुधीर जनमेजा ने डिस्ट्रिक्ट ट्रस्ट के पदाधिकारियों को लेकर तो कोई बात नहीं की, लेकिन ट्रस्ट के पैसों के 'सदुपयोग' का राग फिर छेड़ दिया । बात आगे बढ़ती, इससे पहले ही अरुण मित्तल ने सवाल दाग दिया कि जो लोग ट्रस्ट के सदस्य तक नहीं हैं उन्हें ट्रस्ट के बारे में फैसला करने का अधिकार कैसे दिया जा सकता है ? सुधीर जनमेजा को यह समझने में देर नहीं लगी कि अरुण मित्तल ने इस सवाल के जरिये उन्हें ही निशाने पर लिया है । लिहाजा, सुधीर जनमेजा ने झट से ढाई हजार रुपये अपनी जेब से निकाल कर सामने रख दिए और ट्रस्ट के सदस्य होने का  दावा करने लगे । उल्लेखनीय है कि डिस्ट्रिक्ट ट्रस्ट की सदस्यता को लेकर नियम यह है कि वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बनते ही ट्रस्ट की सदस्यता की पात्रता बन जाती है लेकिन ट्रस्ट का सदस्य बनने के लिए पात्रता रखने वाले को ढाई हजार रुपए ट्रस्ट में जमा कराने होते हैं । वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में ही नहीं, डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में भी सुधीर जनमेजा ने उक्त ढाई हजार रुपए जमा कराने की लेकिन कोई जरूरत नहीं समझी । डिस्ट्रिक्ट ट्रस्ट के लाखों रुपए कब्जाने के लिए तरह-तरह की तिकड़म लगा रहे सुधीर जनमेजा को जब अरुण मित्तल ने यह अहसास कराया कि वह तो डिस्ट्रिक्ट ट्रस्ट के सदस्य ही नहीं हैं और इस नाते से उन्हें ट्रस्ट के बारे में बात करने का ही अधिकार नहीं हैं, तब सुधीर जनमेजा ने अपनी जेब से ढाई हजार रुपए निकाले और ट्रस्ट के सदस्य 'बने' ।
सुधीर जनमेजा डिस्ट्रिक्ट ट्रस्ट के पैसों को कब्जाने की अपनी कोशिशों के चलते लगातार फजीहत का शिकार हो रहे थे - लेकिन फिर भी उन्होंने अपनी कोशिशों को नहीं छोड़ा । हरिद्धार में डिस्ट्रिक्ट ऑनरेरी कमेटी की मीटिंग में सुधीर जनमेजा ने ट्रस्ट का सदस्य 'बनने' के बाद बेहद चालाकी के साथ बड़ा दाँव चला और प्रस्ताव रखा कि डिस्ट्रिक्ट ट्रस्ट को लेकर चूंकि कई तरह की अस्पष्टाएँ हैं इसलिए उन सब को क्लियर करने का जिम्मा सुशील अग्रवाल को सौंप देना चाहिए । सुधीर जनमेजा को विश्वास था कि सुशील अग्रवाल को उक्त जिम्मेदारी देने का कोई भी विरोध नहीं करेगा और फिर सुशील अग्रवाल से तो वह जो चाहेंगे, करवा लेंगे । सुधीर जनमेजा का यह विश्वास सच भी साबित हुआ; सुशील अग्रवाल को उक्त जिम्मेदारी देने का किसी ने विरोध नहीं ही किया और एक बार को तो लगा कि सुधीर जनमेजा की तरकीब काम कर जायेगी - लेकिन तभी मलकीत सिंह जस्सर ने हस्तक्षेप किया और बाजी पलट दी । मलकीत सिंह जस्सर ने सुझाव दिया कि सुशील अग्रवाल को जो जिम्मेदारी दी जा रही है उसे अकेले निभाना उनके लिए मुश्किल होगा इसलिए उक्त जिम्मेदारी निभाने के काम में सुशील अग्रवाल के साथ अरुण मित्तल को भी शामिल कर लिया जाना चाहिए । जिस तरह सुशील अग्रवाल के नाम का कोई विरोध नहीं कर पाया, ठीक उसी तरह अरुण मित्तल के नाम का भी कोई विरोध नहीं कर सका । सुधीर जनमेजा ने समझ लिया कि मलकीत सिंह जस्सर उनके भी 'गुरु' साबित हुए हैं और मलकीत सिंह जस्सर ने उनकी कामयाब होती दिख रही योजना में फच्चर फँसा दिया है । मलकीत सिंह जस्सर ने जो चाल चली उसके बाद सुधीर जनमेजा के सामने अपने प्रस्ताव को वापस लेने के अलावा और कोई चारा नहीं बचा ।
मलकीत सिंह जस्सर के हस्तक्षेप के बाद जो सीन बना, उससे उत्साहित हुए अरुण मित्तल ने प्रस्ताव रखा कि पहली जरूरत डिस्ट्रिक्ट ट्रस्ट के पदाधिकारियों का नियमानुसार चयन करने की है । उनका कहना था कि ट्रस्ट के नियमानुसार चुने हुए पदाधिकारियों को ही ट्रस्ट के पैसों को इस्तेमाल करने संबंधी फैसले करने चाहिए । सभी ने उनकी बातों का समर्थन किया और अरुण मित्तल के प्रस्ताव पर ही डिस्ट्रिक्ट ट्रस्ट के पदाधिकारियों का नियमानुसार चयन करने की जिम्मेदारी सुशील अग्रवाल को सौंप दी गई । इससे डिस्ट्रिक्ट ट्रस्ट के पैसों को कब्जाने की सुधीर जनमेजा की कोशिशों को धक्का तो लगा है; लेकिन लोगों को शक है कि सुधीर जनमेजा अपनी कोशिशों को विराम देंगे । लोगों को डर है कि सुधीर जनमेजा अब कोई और तरकीब सोच और आजमा सकते हैं । हालाँकि अरुण मित्तल और मलकीत सिंह जस्सर ने अभी तक जो जो किया है उससे सुधीर जनमेजा की कोशिशों को लेकर संदेह और जागरूकता का माहौल तो बना ही है । ऐसे में, डिस्ट्रिक्ट ट्रस्ट के पैसे को कब्जाने और बचाने की लड़ाई खासी दिलचस्प हो गई है ।