नई दिल्ली । विक्रम शर्मा के
लिए यह समझना लगातार मुश्किल हो रहा है कि जिन नेताओं के कहने से उन्होंने
सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए अपनी उम्मीदवारी को प्रस्तुत
किया और जिनकी सलाह के अनुसार ही वह अपने 'कदम' बढ़ा रहे हैं, वही नेता पर्दे के पीछे उन्हें धोखा देने वाले काम क्यों कर रहे हैं ?
उल्लेखनीय है कि विक्रम शर्मा को विरोधी खेमे के उम्मीदवार के रूप में ही
डिस्ट्रिक्ट में पहचान मिली है और उनकी उम्मीदवारी की वकालत करते हुए हर्ष
बंसल, अजय बुद्धराज और राकेश त्रेहन को सुना गया है । इन्होंने विक्रम
शर्मा से अपने फर्जी किस्म के क्लब्स - आनंद निकेतन, भगवान नगर, सुविधा
कुञ्ज, किरण गैलेक्सी, आदि - के भारी-भरकम ड्यूज भी जमा करा लिए हैं । विक्रम
शर्मा ने इनके उस आदेश का पालन भी पूरी निष्ठां के साथ किया जिसमें
इन्होँने विक्रम शर्मा को विरोधी खेमे के नेताओं के यहाँ दीवाली देने जाने
से मना किया था । विक्रम शर्मा हालाँकि विरोधी खेमे के नेताओं को फोन
पर बात करके उन्हें अपने आने/पहुँचने की सूचना दे चुके थे । अपने नेताओं से
लेकिन 'न जाने का फ़तवा' मिलने के बाद विक्रम शर्मा को बहानेबाजी करके
विरोधी खेमे के नेताओं से न आने/पहुँचने के लिए माफी माँगनी पड़ी थी । इस
तरह, विक्रम शर्मा अपने नेताओं की हर बात मान रहे हैं - लेकिन फिर भी
उन्हें दूसरों से लगातार इस तरह की सूचनाएँ मिल रही हैं कि जिन्हें वह अपना
नेता मान रहे हैं और जिनकी हर डिमांड पूरी कर रहे हैं, उनके वही 'अपने
नेता' दूसरे दूसरे लोगों को उम्मीदवारी प्रस्तुत करने के लिए
उकसाने/प्रेरित करने में लगे हुए हैं ।
'अपने नेता'(ओं) की इस हरकत से परेशान हो रहे विक्रम शर्मा की
परेशानियों से परिचित उनके नजदीकियों का कहना है कि विक्रम शर्मा के लिए यह
समझ पाना मुश्किल हो रहा है कि अपने फर्जी किस्म के क्लब्स के ड्यूज के
पैसे जब ये नेता उनसे ले रहे हैं, तो फिर दूसरे दूसरे लोगों को ये
उम्मीदवार बनने के लिए क्यों प्रेरित कर रहे हैं ? विक्रम शर्मा को ये
बात भले ही न समझ में आ रही हो, लेकिन डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति के
खेल से परिचित लोग इस बात को बखूबी समझ रहे हैं । डिस्ट्रिक्ट की चुनावी
राजनीति से और नेताओं के समीकरणों/स्वार्थों से परिचित लोगों का मानना/कहना
है कि विक्रम शर्मा ने जिन नेताओं के भरोसे सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट
गवर्नर पद के लिए अपनी उम्मीदवारी को प्रस्तुत किया है, उन नेताओं की वह
दरअसल 'मजबूरी' की पसंद हैं । अजय बुद्धराज के साथ विक्रम शर्मा का
पुराना लफड़ा है जिसके चलते अजय बुद्धराज हरगिज हरगिज उनका समर्थन करने को
राजी नहीं हो सकते हैं; राकेश त्रेहन का बस चले तो वह ओंकार सिंह को आगे
बढ़ाये; हर्ष बंसल ने तमाम गुणा-भाग करके यह नतीजा निकाला है कि कोई बनिया
उम्मीदवार ही उनकी चुनावी राजनीति को पार लगा सकता है - इनकी समस्या लेकिन
यह है कि इन्हें अपनी पसंद का कोई उम्मीदवार मिला नहीं । हर्ष बंसल ने
दो-तीन बनियों को उम्मीदवार बनने के लिए उकसाया भी, लेकिन वह हर्ष बंसल की
बातों में आये नहीं । ओंकार सिंह को लाने के लिए राकेश त्रेहन द्धारा
किये गए प्रयासों को भी सफलता नहीं मिली है । ओंकार सिंह को चूँकि
स्थितियाँ अनुकूल नहीं दिख रही हैं इसलिए वह उम्मीदवार बनने को राजी नहीं
हो रहे हैं । अजय बुद्धराज ने भी जिन लोगों को आगे आने के लिए प्रेरित
किया, उन्होंने अजय बुद्धराज को कोई सकारात्मक जबाव नहीं दिया । विक्रम
शर्मा ने चूँकि उत्सुकता दिखाई, इसलिए ये लोग उनके साथ जुड़ने के लिए मजबूर
हो गए ।
अब नेतागिरी करने के लिए कोई उम्मीदवार तो चाहिए ही ।
अब नेतागिरी करने के लिए कोई उम्मीदवार तो चाहिए ही ।
मजबूरी
में ही सही, विक्रम शर्मा की उम्मीदवारी को उन्होंने हरी झंडी तो दे दी और
उनकी सलाहानुसार विक्रम शर्मा ने काम करना भी शुरू कर दिया; लेकिन विक्रम
शर्मा से उन्हें यह शिकायत भी बनी रही कि विक्रम शर्मा ने डिस्ट्रिक्ट
गवर्नर विजय शिरोहा के साथ संबंध बना लिए हैं । विजय शिरोहा के साथ विक्रम
शर्मा की नजदीकी विक्रम शर्मा की उम्मीदवारी के समर्थक नेताओं को बिलकुल भी
पसंद नहीं आई । यह तब है जब विजय शिरोहा के साथ नजदीकी बनाने का प्रयास विक्रम शर्मा ने अपने नेताओं की सलाह पर ही किया ।
उनके नेताओं ने ही उन्हें समझाया था कि सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद
की चुनावी लड़ाई जीतने के लिए डिस्ट्रिक्ट गवर्नर का समर्थन जरूरी होगा ।
विजय शिरोहा के साथ नजदीकी बनाने का सुझाव विक्रम शर्मा को उनके नेताओं ने दरअसल यह सोच कर दिया था कि
विजय शिरोहा ने यदि विक्रम शर्मा को सकारात्मक प्रतिक्रिया नहीं दी, तो
उन्हें विजय शिरोहा को बदनाम करने का मौका मिलेगा; और यदि विक्रम शर्मा को
विजय शिरोहा की तरफ से सकारात्मक प्रतिक्रिया मिली तो विजय शिरोहा को अपने ग्रुप के दिल्ली के नेताओं के विरोध का सामना करना पड़ेगा ।
विक्रम शर्मा को इस्तेमाल करके विजय शिरोहा और उनके साथी पूर्व गवर्नर्स
के बीच दूरियाँ पैदा करने के उद्देश्य से ही विक्रम शर्मा को उनके नेताओं
ने विजय शिरोहा के साथी गवर्नर्स के यहाँ दीवाली देने नहीं जाने दिया । विक्रम शर्मा के नेताओं ने
लेकिन जब देखा/पाया कि विक्रम शर्मा के जरिये बिछाये गए जाल में सत्ता खेमे
के नेता फँस ही नहीं रहे हैं तो उन्होंने विक्रम शर्मा की विजय शिरोहा के
साथ बनी नजदीकी को ही संदेह से देखना शुरू कर दिया है ।
विक्रम शर्मा के लिए मुसीबत की बात यह हो गई है कि चूँकि अभी तक वह विरोधी खेमे के नेताओं के कहे अनुसार ही चल रहे हैं, इसलिए विजय शिरोहा के साथ नजदीकी बना लेने के बावजूद सत्ता खेमे के नेताओं के बीच उन्हें लेकर संदेह बना हुआ है और वहाँ तो उनकी स्वीकार्यता नहीं ही बन पा रही है; उनके अपने खेमे के नेता भी उनसे पीछा छुड़ाने की तरकीबें और लगाने लगे हैं ।
विक्रम शर्मा के समर्थक नेताओं ने अपने अपने क्लब्स के ड्यूज तो विक्रम
शर्मा से जमा करवा लिए हैं, लेकिन उम्मीदवारी के लिए अब वह दूसरे दूसरे
'शिकार' खोजने लगे हैं ।