Friday, November 15, 2013

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 बी वन में गुरनाम सिंह ने भी इस सच्चाई को पहचानना/स्वीकारना शुरू कर दिया है कि डिस्ट्रिक्ट में विशाल सिन्हा के मुकाबले एके सिंह को लोगों के बीच समर्थन और स्वीकार्यता ज्यादा मिल रही है

लखनऊ । एके सिंह को डिस्ट्रिक्ट के क्लब्स में जिस तरह से तवज्जो और मान-सम्मान मिल रहा है, उसे देखते हुए सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद की संभावित चुनावी लड़ाई में विशाल सिन्हा पर दबाव खासा बढ़ गया है । विशाल सिन्हा को सबसे तगड़ा झटका गुरनाम सिंह के रवैये से भी लगा है । गुरनाम सिंह ने भी अब एके सिंह की उम्मीदवारी को एक हकीकत के रूप में स्वीकार कर लिया है और इस तरह की बातें की/कहीं हैं जिनसे संकेत मिलता है कि वह विशाल सिन्हा की उम्मीदवारी को वापस भी करा सकते हैं । एके सिंह ने दरअसल गुरनाम सिंह के पिछले वर्ष के उस वायदे को ही अपनी उम्मीदवारी का आधार बनाया है जिसमें गुरनाम सिंह ने उन्हें अगले वर्ष - यानि इस वर्ष सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर चुनवाने की बात कही थी । एके सिंह ने लगातार इस बात को  दोहराया है कि गुरनाम सिंह को उनके साथ किये गए इस वायदे को निभाना चाहिए ताकि कोई यह न कह सके कि गुरनाम सिंह वायदा तो कर देते हैं, लेकिन जब उन्हें निभाने का मौका आता है तो पीछे हट जाते हैं । गुरनाम सिंह ने पहले तो एके सिंह की इस रणनीति पर कोई ध्यान नहीं दिया; क्योंकि उन्होंने यह उम्मीद ही नहीं की थी कि एके सिंह की उम्मीदवारी में कोई दम पैदा हो पायेगा; लेकिन अब जब वह एके सिंह की उम्मीदवारी में दम बना देख रहे हैं तो यह कहने के लिए मजबूर हो रहे हैं कि एके सिंह की बात सच तो है ।
ऐसा नहीं है कि गुरनाम सिंह ने विशाल सिन्हा की उम्मीदवारी के समर्थन से पीछे हटने के कोई संकेत दिए हैं, लेकिन जिस तरीके से उन्होंने एके सिंह की उम्मीदवारी के दावे को सच मानना शुरू कर दिया है; तथा विशाल सिन्हा और एके सिंह में से कौन - के जबाव में उन्होंने 'देखते हैं' कहना शुरू किया है उससे लगने लगा है कि विशाल सिन्हा को उनका समर्थन अब पहले जैसा नहीं रहा है । गुरनाम सिंह के नजदीकियों का कहना है कि गुरनाम सिंह को लगातार दूसरी बार विशाल सिन्हा की पराजय का सहभागी बनना मँजूर नहीं होगा - इसलिए उन्होंने 'बचने' का विकल्प देखना शुरू कर दिया है । गुरनाम सिंह के नजदीकियों का कहना है कि उम्मीदवार के रूप में विशाल सिन्हा की कमजोरियों और एके सिंह की ताकत को पहचानना/भाँपना उन्होंने शुरू कर दिया है और जैसे ही उन्हें इस बात का पक्का विश्वास हो जायेगा कि विशाल सिन्हा के 'बचने' की कोई उम्मीद नहीं है - वैसे ही फिर वह एके सिंह के साथ किये गए वायदे को निभाने की बात करने लगेंगे । यही करतब गुरनाम सिंह ने मंजु सक्सैना और विनय भारद्धाज के मामले में दिखाया था । नंबर विनय भारद्धाज का था, लेकिन गुरनाम सिंह ने मंजु सक्सैना को उम्मीदवार बनवा दिया; किंतु जैसे ही उन्हें यह समझ में आया कि विनय भारद्धाज के सामने मंजु सक्सैना टिक नहीं पायेंगी - वह तुरंत ही मंजु सक्सैना को छोड़ कर विनय भारद्धाज के पक्ष में आ खड़े हुए । लोगों का मानना/कहना है कि गुरनाम सिंह ने जो खेल मंजु सक्सैना के साथ किया था, उसे वह विशाल सिन्हा के साथ भला क्यों नहीं कर सकते हैं ?
विशाल सिन्हा के खेल का कबाड़ा किया लेकिन डिस्ट्रिक्ट गवर्नर अनुपम बंसल ने है । विशाल सिन्हा के नजदीकियों का कहना है कि अनुपम बंसल ने जिस तरह से एके सिंह को तवज्जो दी और आगे बढ़ाया, उसके चलते एके सिंह को डिस्ट्रिक्ट में लोगों के बीच पहचान, समर्थन और स्वीकार्यता मिलती गई और आज वह विशाल सिन्हा के लिए बड़ी चुनौती बन गए हैं । विशाल सिन्हा के नजदीकियों का कहना है कि विशाल सिन्हा ने कई बार अनुपम बंसल से कहा भी कि एके सिंह को ज्यादा हवा न दो, लेकिन अनुपम बंसल ने उनकी एक नहीं सुनी । दरअसल अनुपम बंसल को शिकायत यह रही कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर को एक उम्मीदवार से जिस तरह की मदद की जरूरत होती है, उम्मीदवार के रूप में विशाल सिन्हा वैसी मदद मुहैया नहीं करा रहे हैं । एके सिंह से चूँकि उन्हें मदद मिली, इसलिए उन्होंने एके सिंह को आगे बढ़ने का मौका दिया । अनुपम बंसल ने संभवतः यह भी समझ लिया कि विशाल सिन्हा के साथ दोस्ती निभाने के चक्कर में उन्हें कोई फायदा तो हुआ नहीं, उलटे सिर्फ बदनामी ही साथ लगी है । इसके आलावा, अनुपम बंसल को यह भी समझ में आया - या उन्हें यह समझाया गया - कि वह विशाल सिन्हा के लिए चाहें कुछ भी कर देंगे, विशाल सिन्हा लेकिन अहसान सिर्फ गुरनाम सिंह का ही मानेंगे और उनके हिस्से में तो बस 'बाबा जी का ठुल्लु' ही आयेगा । संभवतः इसीलिए, विशाल सिन्हा की तमाम नाखुशी के बावजूद अनुपम बंसल ने एके सिंह को आगे बढ़ाने का काम किया है और इस तरह मिले मौके का एके सिंह ने भरपूर फायदा उठाया है ।
विशाल सिन्हा अपने आप को जिस स्थिति में फँसा पा रहे हैं, उसमें से निकलने/उबरने के लिए उन्होंने हमदर्दी-कॉर्ड चला है । विशाल सिन्हा लोगों को बता/जाता रहे हैं कि उन्होंने पिछले वर्ष इतना इतना 'काम' किया था, इसलिए इस वर्ष उनसे ज्यादा 'काम' की उम्मीद नहीं की जानी चाहिए और उन्हें इस वर्ष सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर चुन लेना चाहिए । विशाल सिन्हा के इस तर्क पर कुछेक लोगों ने पराग गर्ग की वकालत शुरू कर दी । पराग गर्ग की वकालत करने वाले लोगों का कहना है कि विशाल सिन्हा यदि एक वर्ष के 'काम' के आधार पर दूसरे वर्ष चुने जाने का अधिकार माँग रहे हैं, तो यह अधिकार अपने से पहले उन्हें पराग गर्ग को लेने देना चाहिए - क्योंकि पराग गर्ग ने तो उम्मीदवार के रूप में दो वर्ष काम किया है । जाहिर तौर पर विशाल सिन्हा का हमदर्दी-कॉर्ड भी पिटता हुआ दिख रहा है ।
विशाल सिन्हा से सहानुभूति रखने वाले लोगों का कहना है कि विशाल सिन्हा को सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद की दौड़ में यदि सचमुच रहना है, और इस दौड़ को जीतना है तो उन्हें वस्तु स्थिति का आकलन करके अपनी रणनीति और सक्रियता को संयोजित करना होगा । गलतफहमियों में रहने का नतीजा वह पिछली बार भुगत ही चुके हैं । इस सच्चाई को उन्हें स्वीकार कर ही लेना चाहिए कि पिछली बार के मुकाबले इस बार की उनकी लड़ाई ज्यादा मुश्किल है - क्योंकि पिछली बार गुरनाम सिंह की मुट्ठी बंद थी और उसे लाख की समझा जा रहा था; इस बार वह मुट्ठी खुली हुई है और सभी जान चुके हैं कि वह तो खाक की है ।
गुरनाम सिंह इस सच्चाई को समझ रहे हैं तथा इसीलिये 'विशाल सिन्हा और एके सिंह में से कौन' जैसे सवाल पर उनका जबाव हो रहा है कि 'देखते हैं' - जाहिर है कि गुरनाम सिंह ने इस सच्चाई को पहचानना/स्वीकारना शुरू कर दिया है कि डिस्ट्रिक्ट में विशाल सिन्हा के मुकाबले एके सिंह को लोगों के बीच समर्थन और स्वीकार्यता ज्यादा मिल रही है । ,