नई दिल्ली । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर विजय शिरोहा ने कॉल निकाल कर डिस्ट्रिक्ट के लोगों को चकित तथा विरोधी खेमे के लोगों को परेशान कर दिया है । विरोधी
खेमे के जो नेता अभी कल तक कहा करते थे कि विजय शिरोहा को राजनीति नहीं
आती, वह विजय शिरोहा की राजनीति की 'मार' से हतप्रभ हैं और विजय शिरोहा की राजनीति के फंदे में अपने आप को फँसा हुआ पा रहे हैं और समझ नहीं पा रहे हैं कि करें तो क्या करें ? गहरे सदमे और निराशा में, ले दे कर अभी उनकी तरफ से एक ही प्रतिक्रिया आ रही है कि विजय शिरोहा इस तरह मनमाने तरीके से - दूसरों को विश्वास में लिए बिना कॉल कैसे निकाल सकते हैं ? उनका
आरोप है कि विजय शिरोहा ने कॉल निकालने के संबंध में 'अपने' लोगों को भी
अँधेरे में रखा है तथा बहुत ही गुपचुप तरीके से कॉल निकालने के काम को
अंजाम दिया है । अब कॉल निकालने के संबंध में ऐसा कोई नियम तो है नहीं, जो यह कहता/बताता हो कि किसे अँधेरे में रखा जा सकता है और किसे 'उजाले में' रखना जरूरी है । जाहिर है कि विरोधी खेमे का यह सिर्फ एक प्रलाप है - जिसे गाने के अलावा उनके पास और कोई चारा या विकल्प नहीं है ।
सचमुच, विजय शिरोहा की इस चाल ने विरोधी खेमे की राजनीति को पूरी तरह बैंकरप्ट कर दिया है । दरअसल
इसीलिए विरोधी खेमा बुरी तरह बौखला गया है । विरोधी खेमे के नेताओं को
दरअसल यह उम्मीद नहीं थी कि विजय शिरोहा इस तरह की चाल चल कर उन्हें
राजनीतिक रूप से पूरी तरह कंगाल कर देंगे । विजय शिरोहा ने जो चाल चली है उसके चलते विरोधी खेमे को पिछले लायन वर्ष के मुकाबले करीब 40 वोटों का घाटा हो गया है । यह घाटा हालाँकि - विजय शिरोहा की चाल का उतना नहीं, जितना विरोधी खेमे के नेताओं की अदूरदर्शिता और अपने आपको ज्यादा होशियार समझने की 'समझ' का नतीजा है । विजय शिरोहा ने तो सिर्फ मौके का फायदा भर उठाया है ।
उल्लेखनीय है कि विरोधी खेमे के नेताओं ने अपने-अपने क्लब्स के तमाम सदस्यों को मौजूदा लायन वर्ष के शुरू से ही ड्रॉप दिखा दिया था । उन सदस्यों के ड्यूज उन्हें न देना पड़े, इसलिए उन्होंने ऐसा किया । उनकी
समस्या दरअसल यह हुई कि उक्त सदस्यों के ड्यूज देने के लिए कोई 'मुर्गा'
उनके जाल में फँसा नहीं, और ड्यूज देना उनके बस में था नहीं । विरोधी खेमे के नेता अपने आप को बड़ा होशियार समझते हैं - इसी होशियारी के चलते
उन्होंने सोचा कि जब चुनाव का समय नजदीक आयेगा और कोई उम्मीदवार उनके हाथों
'हलाल' होने को तैयार हो जायेगा, तब उससे उक्त सदस्यों के ड्यूज जमा करवा
कर उनकी सदस्यता को पुनर्जीवित करवा लिया जायेगा । विरोधी खेमे के नेताओं
की चाल तो अच्छी थी - किंतु 'लड़ाई' के एक बुनियादी सिद्धांत को वह भूल गए;
जो कहता है कि विरोधी को कभी भी सोया हुआ नहीं समझना चाहिए । विरोधी खेमे के नेताओं ने माना/समझा कि सत्ता खेमे के नेताओं को तो कोई समझ है नहीं, इसलिए वह जैसे चाहेंगे वैसे कर लेंगे । खास कर विजय शिरोहा के बारे में तो विरोधी खेमे के नेताओं का यह मानना और कहना रहा है कि उन्हें तो कुछ राजनीति नहीं आती है । इसी समझ के चलते विरोधी खेमे के नेता बेफिक्र थे और ख्याली पुलाव पकाने में व्यस्त थे ।
विजय
शिरोहा ने लेकिन सारी स्थितियों को जाना/समझा और बहुत ही सुनियोजित तरीके
से कॉल की तैयारी की । उन्होंने अपनी इस तैयारी की किसी को हवा भी नहीं
लगने दी । इसीलिए जैसे ही कॉल सामने आई - विरोधी खेमे के नेताओं के तो
तोते उड़ गए । सत्ता खेमे के भी लोगों को हैरानी हुई - क्योंकि उन्हें भी इस
कॉल के आने की कोई आहट तक नहीं हुई थी । विरोधी खेमे के नेताओं ने
सत्ता खेमे के कई लोगों को यह कह कर भड़काने का प्रयास भी किया कि विजय
शिरोहा ने तो उन्हें भी विश्वास में नहीं लिया और अपनी मनमानी चलाते हुए
कॉल निकाल दी । 'खिसियानी बिल्ली खम्बा नोचे' वाले अंदाज़ में विरोधी
खेमे के नेताओं ने सत्ता खेमे के लोगों को भड़काने को यह जो प्रयास किया,
उसका कोई सुफल न तो उन्हें मिलना था और न मिला ही - क्योंकि सत्ता खेमे
के लोगों को अचानक से लिए गए विजय शिरोहा के फैसले से हैरानी भले ही हुई
हो, लेकिन यह समझने में उन्होंने कोई चूक नहीं की कि विजय शिरोहा का यह
फैसला डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति में विरोधी खेमे को आत्मसमर्पण करने
की राह पर धकेलने का काम ही करेगा ।
कॉल निकाल कर विजय
शिरोहा ने विरोधी खेमे को जो जोर का झटका जोर से दिया है, उससे निपटने का
कोई फार्मूला विरोधी खेमे के नेता तलाश कर पायेंगे, इसकी उम्मीद खुद विरोधी
खेमे के नेताओं को भी नहीं है; और इसीलिए उन्होंने रोना-धोना शुरू कर दिया
है । विरोधी खेमे के कुछेक नेताओं की खासियत यह भी है कि वह चुप भी
नहीं बैठ सकते हैं, इसलिए डिस्ट्रिक्ट के लोगों की उम्मीद यह है कि वह विजय
शिरोहा की कॉल निकालने की कार्रवाई को मुद्दा बनाकर शिकायतें करने का खेल
शुरू कर सकते हैं । दरअसल विरोधी खेमे के नेताओं के सामने सिर्फ इसी एक
तरीके से अपने होने का अहसास कराने का अवसर बचा है ।
"हारेगी हर बार अँधियारे की घोर-कालिमा
जीतेगी जगमग उजियारे की स्वर्ण-लालिमा"
"हारेगी हर बार अँधियारे की घोर-कालिमा
जीतेगी जगमग उजियारे की स्वर्ण-लालिमा"
दीपावली के मौके पर लिखी/प्रकाशित हुई विजय शिरोहा की कविता की इन दो पँक्तियों में अभिव्यक्त होते भाव को विरोधी खेमे के नेताओं ने यदि पढ़ा/समझा होता तो शायद वे विजय शिरोहा को कम करके नहीं आँकते और विजय शिरोहा द्धारा डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में लिए गए फैसले से हक्के-बक्के न रह गए होते ।