Wednesday, December 18, 2013

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 ए थ्री में लोगों के बीच सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नरेश गुप्ता के खिलाफ नेगेटिव वोट करने के लिए लामबंदी की सुगबुगाहट

नई दिल्ली । फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नरेश गुप्ता के खिलाफ डिस्ट्रिक्ट के - खासकर हरियाणा के लायंस सदस्यों के बीच जिस तरह से नाराजगी पनप रही है, उसके कारण उनके सामने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर 'बनने' वास्ते इक्यावन प्रतिशत वोट जुटा पाने का खतरा पैदा होता दिख रहा है । नरेश गुप्ता के शुभचिंतकों की चिंता इस बात को लेकर ज्यादा है कि डिस्ट्रिक्ट के जो नेता नरेश गुप्ता के गॉडफादर और/या सलाहकार बने हुए हैं वह उक्त संभावित खतरे को बिलकुल ही नजरअंदाज किये हुए हैं और इस तरह वह नरेश गुप्ता को एक बड़ी फजीहत का शिकार होने की तरफ धकेल रहे हैं । नरेश गुप्ता के शुभचिंतकों का मानना और कहना है कि डिस्ट्रिक्ट के कुछेक नेता अपनी राजनीति में नरेश गुप्ता को इस्तेमाल कर रहे हैं, लेकिन इस बात की बिलकुल भी परवाह नहीं कर रहे हैं कि इसका नरेश गुप्ता को कितना और कैसा खामियाजा भुगतना पड़ जायेगा । नरेश गुप्ता को भी चूँकि लायनिज्म का - और लायन राजनीति के उतार/चढ़ावों का कोई अता-पता और/या कोई अनुभव नहीं है इसलिए वह भी नहीं समझ रहे हैं कि लोगों के प्रति उनका जो व्यवहार/रवैया है, वह उन्हें कितनी भारी मुसीबत में धकेल सकता है ।
नरेश गुप्ता को 'गवर्नरी' चूँकि मुफ्त में और आसानी से मिल गई है, इसलिए वह 'गवर्नरी' की न तो गरिमा समझ पा रहे हैं और न उसकी अहमियत । नरेश गुप्ता के शुभचिंतकों के अनुसार, वह गवर्नरी की 'कीमत' नहीं समझ पा रहे हैं । सयानों ने कहा भी है कि किसी को जो चीज मुफ्त में मिल जाती है उसकी कीमत वह नहीं समझता है । नरेश गुप्ता इसी कहावत को सच साबित कर रहे हैं - बदकिस्मती से उन्हें सलाहकार भी ऐसे मिल गए हैं जिन्होंने उन्हें गवर्नर की बजाये अपना जासूस और अपनी कठपुतली बना रखा है । नरेश गुप्ता को दोहरी मार झेलनी पड़ रही है - जो नेता उनके पक्ष में 'दिख' रहे हैं, वह तो उन्हें गवर्नर के रूप में तवज्जो और सम्मान दे नहीं रहे हैं; और जब उनके 'अपने' ही उन्हें कठपुतली समझ रहे हैं तो दूसरे उन्हें क्या और कैसी तवज्जो देंगे भला ? नरेश गुप्ता की समस्या लेकिन इससे भी 'आगे' की है - वह केवल नेताओं के बीच ही शटलकॉक नहीं बने हुए हैं; अपने रवैये से वह आम लायन सदस्यों के बीच भी तेजी से अलोकप्रिय हो रहे हैं ।
नरेश गुप्ता को गवर्नरी चूँकि मेहनत से नहीं, बल्कि किस्मत से मिली है - इसलिए उनकी सबसे बड़ी समस्या यह है कि लोगों के साथ उनका कोई 'परिचय' ही नहीं है । न वह लोगों को जानते हैं और न लोग उन्हें जानते हैं । लोगों के साथ अपनी इस 'दूरी' को वह भर सकते थे - नहीं तो कम तो कर ही सकते थे । पर जिस तरह से सत्ता की चाबी उन्होंने डिस्ट्रिक्ट के कुछेक नेताओं को सौंप दी, उससे वह संभावना पूरी तरह ख़त्म हो गई । दरअसल हुआ यह कि डिस्ट्रिक्ट के जिन भी लोगों ने अपने भावी गवर्नर से बात करने और/या निकटता बनाने की कोशिश की तो वह यह देख/जान कर सन्न रह गए कि नरेश गुप्ता तो उनसे बात करने और/या उनसे निकटता बनाने में कोई दिलचस्पी नहीं ले रहे हैं, उनकी तरफ से दूसरे नेता अपनी अपनी 'नेतागिरी' दिखाने की कोशिश और कर रहे हैं । डिस्ट्रिक्ट में लोगों को यह समझने में देर नहीं लगी कि अगले लायन वर्ष में गवर्नरी का ताज भले ही नरेश गुप्ता के सिर पर होगा, लेकिन गवर्नरी ऐसे लोग करेंगे जो अपनी हरकतों और अपनी कारस्तानियों के कारण डिस्ट्रिक्ट में पहले से ही बुरी तरह बदनाम हैं और अपनी बदनामी के कारण ही बार-बार लोगों से 'पिटते' रहे हैं ।
डिस्ट्रिक्ट में लोग जिन नेताओं को बार-बार हराते और खदेड़ते रहे हैं, उन नेताओं को अगले वर्ष भी सत्ता से बाहर रखने के लिए लोगों को एक ही उपाय समझ में आ रहा है और वह यह कि वह नरेश गुप्ता के खिलाफ नेगेटिव वोट करें ताकि नरेश गुप्ता अगले वर्ष डिस्ट्रिक्ट गवर्नर का पदभार संभाल ही न सकें और उन्हें कठपुतली बना कर डिस्ट्रिक्ट पर राज करने का सपना देखने वाले नेताओं का सपना सपना ही रह जाये । नरेश गुप्ता के लिए दिलचस्प विडंबना की बात यह हुई है कि जो नेता लोग उन्हें सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर चुने जाने के खिलाफ थे, आज उन्हीं नेता लोगों के कारण उनका गवर्नर 'बनना' खतरे में पड़ा दिखाई दे रहा है । यहाँ यह याद करना प्रासंगिक होगा कि सुभाष गुप्ता के आकस्मिक निधन के कारण सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के खाली हुए पद को भरने की जब बात आई थी तब राकेश त्रेहन ने ओंकार सिंह रेणु के नाम की जोरदार वकालत की थी और हर्ष बंसल तथा अजय बुद्धराज को उनके नाम का समर्थन करने के लिए राजी कर लिया था । विजय शिरोहा और दीपक टुटेजा के विरोध के कारण राकेश त्रेहन की उक्त कोशिश सफल नहीं हो सकी थी और इन्हीं दोनों ने नरेश गुप्ता का नाम आगे बढ़ा कर ओंकार सिंह रेणु को सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर चुनवाने की राकेश त्रेहन की कोशिश को विफल कर दिया था । विजय शिरोहा से मिली वह 'चोट' राकेश त्रेहन को गहरा घाव दे गई है, जिसका 'दर्द' वह भूल नहीं पा रहे हैं ।
नरेश गुप्ता को सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर चुनवाने में जिन विजय शिरोहा की निर्णायक भूमिका थी, नरेश गुप्ता उन्हीं विजय शिरोहा के प्रति दुश्मनी का-सा भाव रखने वाले नेताओं की कठपुतली बन कर रह गए हैं । मामला यदि इतना ही होता, तब भी कोई समस्या नहीं थी । नरेश गुप्ता को चूँकि ज्यादा अता-पता नहीं है - और न अता-पता करने में उनकी कोई दिलचस्पी है - इसलिए किसी न किसी की कठपुतली तो उनको बनना ही था । कठपुतली 'बनने' के पीछे उद्देश्य यदि गवर्नरी चलाना होता, तो कोई समस्या नहीं थी । उद्देश्य लेकिन उन्हें कठपुतली बना कर, उनकी डोर थामने वाले नेताओं द्धारा अपनी राजनीति करने का है - इसलिए समस्या नरेश गुप्ता के लिए पैदा हो गई है । नरेश गुप्ता को मोहरा बना कर उनके समर्थक नेता चूँकि विजय शिरोहा, दीपक टुटेजा, अरुण पुरी, दीपक तलवार को निशाना बना रहे हैं - जिस कारण चपेट में डिस्ट्रिक्ट में इनके नजदीकी और समर्थक समझे जाने वाले लोग आ रहे हैं; और जिसकी प्रतिक्रिया में डिस्ट्रिक्ट के लोगों का गुस्सा नरेश गुप्ता के खिलाफ पैदा हो रहा है ।
नरेश गुप्ता के सचमुच के शुभचिंतकों का मानना और कहना है कि नरेश गुप्ता ने यदि जल्दी ही हालात की नाजुकता को नहीं समझा/पहचाना, और अपना रवैया नहीं बदला/सुधारा तो डिस्ट्रिक्ट गवर्नर 'बनने' के लिए आवश्यक इक्यावन प्रतिशत वोट जुटा पाना उनके लिए मुश्किल हो जायेगा और तब पास दिख रही गवर्नरी उनसे बहुत दूर हो जायेगी ।